Tuesday, May 31, 2011

वर्ल्‍डकप, आईपीएल और अब वेस्‍टइंडीज






अब इसे पैसे कमाने की कभी न ख़त्म होने वाली भूख कहें या कुछ और, लेकिन इतना तो तय है, अब क्रिकेट लगता है कि कभी ख़त्म नहीं होगा. मतलब आईपीएल ख़त्म होगा तो वर्ल्डकप, वर्ल्डकप ख़त्म तो आईसीएल, फिर 20-20 वर्ल्डकप और फिर विदेशों में दौरे. एक दौर था, जब साल में क्रिकेट के नाम पर एक-दो सीरीज़ और एकाध दौरे का कार्यक्रम हुआ करता था और बाक़ी व़क्त कहा जाता था कि अब क्रिकेटर अभ्यास मैच खेलेंगे और समय मिला तो परिवार के साथ छुट्टियां मनाएंगे. लेकिन अब अगर भारत में क्रिकेट का शेड्यूल देखा जाए तो पता चलेगा कि दिन ही नहीं, रात भर क्रिकेट के कार्यक्रम हैं. टेलीविज़न पर स़िर्फ क्रिकेट की ही स्टोरी चलती दिखाई देती है. अभी हाल में कहा जा रहा था कि भारतीय क्रिकेट टीम को वर्ल्डकप की जीत के जश्न में डुबा दिया जाएगा और क्रिकेटर आराम करेंगे, लेकिन फिर पता चला कि आईपीएल की आंधी आने वाली है. अब आईपीएल ख़त्म हुआ तो भारत चला वेस्टइंडीज के दौरे पर.

भारतीय टीम में कई बड़े खिलाड़ी हैं और गैरी कर्स्टन ने ख़ुद को पृष्ठभूमि में रखते हुए उन खिलाड़ियों के साथ काम किया. ऐसे में डंकन फ्लेचर का रुख़ देखने वाला होगा और गैरी कर्स्टन के साथ उनकी तुलना भी शायद होती ही रहेगी. कुल मिलाकर भारत जिस तरह इतना क्रिकेट खेल रहा है, उसकी थकान का असर वेस्टइंडीज दौरे में तो दिखाई देगा ही, साथ ही शुरुआती मैचों में दिग्गज खिलाड़ियों की कमी भी खलेगी, लेकिन क्रिकेट के प्रशंसकों का पूरा मनोरंजन होना तय है.

इस बार के वेस्टइंडीज़ दौरे पर कई बदलाव देखने को मिलेंगे. मसलन, कई वरिष्ठ खिलाड़ियों को आराम दिया जाएगा और कई नए चेहरों को मैदान पर काफी दिनों बाद देखा जाएगा. वहीं गौतम गंभीर टीम की कमान पहली बार थामते नज़र आएंगे. हालांकि इससे फायदा यह होगा कि इस दौरे के बहाने कई नए चेहरों को अपनी काबिलियत दिखाने का मौक़ा मिल जाएगा. इस बार कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और सचिन तेंदुलकर सहित कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों को राष्ट्रीय क्रिकेट के चयनकर्ताओं ने वेस्टइंडीज़ दौरे के लिए वन डे सीरीज़ में आराम का मौक़ा दे दिया. ग़ौरतलब है कि इन वरिष्ठ खिलाड़ियों को आराम देने की नौबत ही क्यों आई. मामला सा़फ है, जब इन खिलाड़ियों से इतने कम अंतराल में ज़रूरत से ज़्यादा क्रिकेट खिलवाया जाएगा तो ऐसा होना लाज़िमी है. तमिलनाडु के बल्लेबाज़ एस बद्रीनाथ और बंगाल के विकेट कीपर रिद्धिमान साहा की 16 सदस्यीय टीम में वापसी हुई है. गंभीर को कप्तान बनाया गया है. उनकी अगुवाई वाली टीम में कर्नाटक के तेज गेंदबाज़ आर विनय कुमार को भी जगह मिली है, जबकि अमित मिश्रा, रोहित शर्मा और ईशांत शर्मा की वापसी हुई है. युवा सुरेश रैना को उप कप्तान बनाया गया है. बीसीसीआई सचिव एन श्रीनिवासन ने चयन समिति की बैठक के बाद टीम की घोषणा की, जिसमें लेग स्पिनर पीयूष चावला और तेज गेंदबाज़ एस श्रीसंत को शामिल नहीं किया गया. ये दोनों भारत की वर्ल्ड चैंपियन टीम का हिस्सा थे. धोनी, तेंदुलकर एवं तेज गेंदबाज़ ज़हीर ख़ान को वन डे और 20-20 मैच के लिए आराम दिया गया है, लेकिन ये तीनों टेस्ट सीरीज़ के लिए मौजूद रहेंगे. सीरीज की शुरुआत 4 जून को 20-20 मैच के साथ होगी, जिसके बाद 5 वन डे मैचों की सीरीज़ खेली जाएगी. पहला वन डे मैच 6 जून को होगा. 3 टेस्ट मैचों की सीरीज़ की शुरुआत 20 जून से होगी.

श्रीनिवासन ने कहा, धोनी, सचिन और ज़हीर ख़ान को आराम दिया गया है, लेकिन वे टेस्ट सीरीज़ के लिए उपलब्ध रहेंगे. वहीं सलामी बल्लेबाज़ वीरेंद्र सहवाग के नाम पर विचार नहीं किया गया, क्योंकि उन्हें कंधे का ऑपरेशन कराना है, जिसके कारण वह 6 हफ्तों तक क्रिकेट नहीं खेल पाएंगे. तेज गेंदबाज़ आशीष नेहरा के नाम पर भी विचार नहीं किया गया, क्योंकि वह वर्ल्डकप के दौरान उंगली में लगी चोट से उबर रहे हैं. आईपीएल में बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे अंबाती रायडू को टीम में जगह नहीं मिली, क्योंकि चयनकर्ताओं ने उन पर अनुभवी बद्रीनाथ को तरजीह दी. बद्रीनाथ को आईपीएल और घरेलू टूर्नामेंट में अच्छे प्रदर्शन का ईनाम मिला है. उन्होंने रणजी टूर्नामेंट में 131 के औसत से 922 रन बनाए, जबकि आईपीएल में वह अब तक 349 रन बना चुके हैं. चयन समिति के अध्यक्ष के श्रीकांत के मुताबिक़, यह सर्वश्रेष्ठ संभावित टीम है. मुझे यक़ीन है कि टीम में अच्छा संतुलन रहेगा, टीम अच्छा प्रदर्शन करेगी और लय बरक़रार रखेगी. कोहनी में चोट के कारण वर्ल्डकप टीम से बाहर हुए प्रवीण कुमार की वापसी हुई है, जबकि पिछले साल अगस्त में श्रीलंका के ख़िला़फ अपना अंतिम वन डे खेलने वाले ईशांत को भी मौक़ा मिला है. रोहित को इस साल जनवरी में साउथ अफ्रीका के ख़िला़फ वन डे सीरीज़ में मौक़ा मिला था. इस 24 वर्षीय बल्लेबाज़ ने अब तक 61 वन डे मैचों में 27.13 के औसत से 1248 रन बनाए हैं. वहीं सबसे बड़ा सरप्राइज पैकेज पार्थिव पटेल के नाम पर मिला है. टीम इंडिया से एक बार बाहर होने के बाद टीम में वापसी करना बेहद टेढ़ी खीर होता है, लेकिन विकेट कीपर बल्लेबाज़ पार्थिव पटेल ने यह कर दिखाया है. पहले वर्ल्डकप के संभावितों में और अब वेस्टइंडीज़ दौरे की वन डे सीरीज़ के लिए चयन ने पार्थिव के करियर को पुनर्जीवित कर दिया है. चयनकर्ताओं ने साहा और पार्थिव पटेल के रूप में दो विकेटकीपरोंको चुना है. धोनी की ग़ैर मौजूदगी में टीम की कमान गंभीर के हाथों में होगी, जिनकी अगुवाई में पिछले साल टीम इंडिया ने न्यूजीलैंड को 5-0 से रौंदा था. उम्मीद के मुताबिक़, ऑल राउंडर की भूमिका यूसुफ पठान निभाएंगे. वेस्टइंडीज दौरे के लिए टीम के चयन को लेकर भी कई सवाल खड़े होते हैं. मसलन, रोहित शर्मा को टीम में क्यों शामिल किया गया? क्या उनके पीछे कोई बड़ा हाथ है? रोबिन उथप्पा एवं अंबाती रायडू में से किसी एक को शामिल जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें शामिल न करने के पीछे कोई ठोस कारण नहीं दिए गए. इऱफान पठान को भी टीम में शामिल किया जाना चाहिए था. कुछ लोगों का आरोप है कि चयन समिति जानबूझ कर इरफ़ान को नज़रअंदाज़ कर रही है और उनका भविष्य ख़राब कर रही है. ख़ैर जो भी हो, चयन को लेकर तो हमेशा सवाल उठते रहते हैं, पर टीम तो चयनित हो चुकी है.


ये तो रहे टीम के बदलाव. अब एक और बड़े बदलाव पर ग़ौर कीजिए. भारत की वर्ल्डकप विजेता टीम में बतौर कोच अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कोच यानी गुरु गैरी कर्स्टन इस बार नदारद रहेंगे. ग़ौरतलब है कि वर्ल्डकप के बाद उनका कार्यकाल ख़त्म हो गया था और अटकलें लगाई जा रही थीं कि उन्हें दोबारा कोच की भूमिका में देखा जा सकता है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और उनकी जगह ली फ्लेचर ने. अगर फ्लेचर के बारे में बात की जाए तो उनसे भी काफी उम्मीदें रहेंगी. ग़ौरतलब है कि फ्लेचर ने इंग्लैंड को वेस्टइंडीज़ में 36 सालों बाद जीत दिलाई थी और फिर न्यूजीलैंड के विरुद्ध भी इंग्लैंड ने जीत का स्वाद चखा. इतना ही नहीं, उनके साथ इंग्लैंड ने दक्षिण अफ्रीका को भी 2-1 से हराया, मगर वन डे में इंग्लैंड के ख़राब फॉर्म के चलते उनकी आलोचना हुई और 2007 के विश्वकप से इंग्लैंड के बाहर होने के  बाद फ्लेचर ने इंग्लैंड के साथ आठ वर्ष का अपना कार्यकाल समाप्त किया. जबकि गैरी कर्स्टन के साथ भारतीय टीम टेस्ट में नंबर एक टीम बनी और उसने विश्वकप भी जीता. ऐसे में उनकी तुलना गैरी से होना स्वाभाविक है. साथ ही टेस्ट में भारत नंबर एक टीम है और फ्लेचर की चुनौती उसे वहां बरक़रार रखना होगा.

वन डे में भारतीय टीम मौजूदा विश्व चैंपियन है और रैंकिंग में दूसरे नंबर पर है. भारत को अब कई विदेशी दौरे करने हैं और उसका विदेशी धरती पर प्रदर्शन अपने यहां के मुक़ाबले कमज़ोर रहता आया है. ऐसे में फ्लेचर को वहां भारत के प्रदर्शनों पर पैनी निगाह रखनी होगी. भारत को वेस्टइंडीज दौरे के बाद इंग्लैंड जाना है और फिर वर्ष के  अंत में ऑस्ट्रेलियाई दौरा भी प्रस्तावित है यानी भारत की कड़ी परीक्षा आने वाली है. इसके अलावा भारत का पूरा कैलेंडर काफ़ी व्यस्त है, जिसकी वजह से दो सीरीज़ के बीच में उन्हें टीम के  साथ किसी तरह के  अभ्यास शिविर का भी कोई बड़ा मौक़ा शायद ही हाथ लगे. भारतीय टीम में कई बड़े खिलाड़ी हैं और गैरी कर्स्टन ने ख़ुद को पृष्ठभूमि में रखते हुए उन खिलाड़ियों के साथ काम किया. ऐसे में डंकन फ्लेचर का रुख़ देखने वाला होगा और गैरी कर्स्टन के साथ उनकी तुलना भी शायद होती ही रहेगी. कुल मिलाकर भारत जिस तरह इतना क्रिकेट खेल रहा है, उसकी थकान का असर वेस्टइंडीज दौरे में तो दिखाई देगा ही, साथ ही शुरुआती मैचों में दिग्गज खिलाड़ियों की कमी भी खलेगी, लेकिन क्रिकेट के प्रशंसकों का पूरा मनोरंजन होना तय है.


टीम

गौतम गंभीर (कप्तान), सुरेश रैना (उपकप्तान), पार्थिव पटेल एवं रिद्धिमान साहा (दोनों विकेट कीपर), विराट कोहली, युवराज सिंह, एस बद्रीनाथ, रोहित शर्मा, हरभजन सिंह, आर अश्विन, प्रवीण कुमार, ईशांत शर्मा, मुनाफ पटेल, आर विनय कुमार, यूसुफ पठान और अमित मिश्रा.

कार्यक्रम

20-20 सीरीज

4 जून-क्वींस पार्क ओवल, पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद

वन डे सीरीज

पहला वन डे-6 जून-क्वींस पार्क ओवल, पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद

दूसरा वन डे-8 जून-क्वींस पार्क ओवल, पोर्ट ऑफ स्पेन, त्रिनिदाद

तीसरा वन डे-11 जून-सर विवियन रिचर्ड्स, नॉर्थ साउंड, एंटीगुआ

चौथा वन डे-  जून-सर विवियन रिचड्‌र्स, नॉर्थ साउंड, एंटीगुआ

पांचवां वन डे-15 जून-सबीना पार्क, किंग्सटन, जमैका

टेस्ट सीरीज

पहला टेस्ट-20 से 24 जून-सबीना पार्क, किंग्सटन, जमैका

दूसरा टेस्ट-28 जून से 2 जुलाई-केंसिंग्टन ओवल, ब्रिज टाउन, बार्बादोस

तीसरा टेस्ट-10 से 14 जुलाई-विंडसोर पार्क, डोमिनिका

Friday, May 27, 2011

सिर्फ छह महीने में पता चल जाएगाः ममता सफल होंगी या असफल मुख्यमंत्री



जनता ने तो सत्ता का पोरिवर्तन कर दिया है, अब पोरिवर्तन करने की बारी ममता बनर्जी की है. अकेले दम पर लगभग दो तिहाई सीटें बटोरने के बाद भी अगर ममता बनर्जी कांग्रेस को सरकार में शामिल होने का न्योता देती हैं तो इसे सिर्फ उनकी भलमनसाहत या कहें कि गठबंधन धर्म निभाने की बात नहीं माना जाना चाहिए. वैसे भी राजनीति में भलमनसाहत जैसे शब्दों के लिए जगह नहीं होती. पश्चिम बंगाल में सालों तक विपक्ष की भूमिका निभाने वाली ममता बनर्जी को यह अच्छी तरह मालूम है कि जनता ने जो पोरिवर्तन किया है, वह महज 34 साल पुरानी सत्ता की वजह से ही नहीं किया है. जनता ने यह बदलाव इस आशा के साथ भी किया है कि ममता अब उनकी जिंदगी और पश्चिम बंगाल का पोरिवर्तन करेंगी. पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी लगभग 25 फीसदी से भी ज्यादा है, लेकिन उसकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक हालत क्या है, यह सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट देखकर पता चल जाता है. लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के हित से जुड़े सबसे अहम मुद्दे यानी रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट पर तृणमूल का रुख अब तक साफ नहीं हो सका है.

 यह रिपोर्ट, अल्पसंख्यक समुदाय में भी जो वंचित तबका है, उसे शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरी में आरक्षण देने की बात कहती है. जाहिर है, ममता के लिए यह भारी जीत एक भारी जिम्मेदारी भी साथ लेकर आई है. अपने प्रचार के दौरान तृणमूल ने वामपंथियों पर यह आरोप भी लगाया कि उनके 34 सालों के शासन में राज्य में 72 हज़ार छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाइयां बंद हुईं. सिर्फ हावड़ा में 12 हज़ार कल-कारखाने बंद हो गए. नतीजतन, बेरोजगारी बढ़ी, लेकिन जब वाममोर्चा की सरकार ने नंदीग्राम और सिंगूर में उद्योग लगवाने की कोशिश की तो ममता बनर्जी ने इसका जमकर विरोध किया. इस मुद्दे पर कि किसानों से जबरन जमीन छीनी जा रही है. लेकिन अब ममता सत्ता में हैं और वामपंथी विपक्ष में. सवाल यह है कि अब ममता बंगाल में उद्योगपतियों को कैसे बुला पाएंगी, कैसे और किन नीतियों के आधार पर जमीन का अधिग्रहण करेंगी, क्या वह लगभग सवा सौ साल पुराने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव करने के लिए यूपीए सरकार पर दबाव बनाएंगी? दूसरी ओर, नक्सलवाद को लेकर तृणमूल का जो रुख रहा है और जिस तरह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर नक्सलवादियों ने तृणमूल का समर्थन किया है, उसे देखते हुए ममता बनर्जी के समक्ष इस समस्या का समाधान निकालना एक बहुत बड़ी चुनौती है. जाहिर है, यह मुद्दा भी तृणमूल के लिए एक भारी टास्क साबित होने वाला है.

गौरतलब है कि जमीन पर अधिकार न होना और रोजगार के घटते अवसर जैसी वजहों ने भी नक्सल समस्या को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई. ऐसे हालात में बंगाल के औद्योगिक विकास का खाका तैयार करना ममता बनर्जी के लिए दोधारी तलवार पर चलने जैसा होगा, क्योंकि यह मामला सीधे-सीधे रोजगार और जमीन से जुड़ा है और जनता इनमें से किसी एक को पाने के लिए दूसरे को खोना नहीं चाहेगी. इसके अलावा पश्चिम बंगाल के युवाओं की एक बड़ी संख्या (करोड़ों में) ने इस चुनाव में तृणमूल का समर्थन किया है. बेरोजगारी से त्रस्त इस युवा ऊर्जा का इस्तेमाल ममता बनर्जी कैसे करेंगी, कहां और किस रचनात्मक कार्य में? इस चुनाव में पश्चिम बंगाल के अल्पसंख्यक समुदाय ने भी तृणमूल का आंख मूंदकर समर्थन किया है. यहां मुस्लिम आबादी लगभग 25 फीसदी से भी ज्यादा है, लेकिन उसकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक हालत क्या है, यह सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट देखकर पता चल जाता है. सरकारी नौकरी में इस समुदाय की हिस्सेदारी महज 2.1 फीसदी है. ममता बनर्जी ने वैसे तो अपने घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों के लिए नए मदरसों और एक विश्वविद्यालय की स्थापना की  बात कही है, लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के हित से जुड़े सबसे अहम मुद्दे यानी रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट पर तृणमूल का रुख अब तक साफ नहीं हो सका है. यह रिपोर्ट, अल्पसंख्यक समुदाय में भी जो वंचित तबका है, उसे शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरी में आरक्षण देने की बात कहती है. यूपीए गठबंधन में शामिल तृणमूल कांग्रेस की ओर से अब तक इस रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू कराने के लिए न तो कोई दबाव बनाया गया और न कोई पहल होती दिखी. जाहिर है, तृणमूल को इस मसले पर अपना पक्ष साफ करना चाहिए. न सिर्फ इतना, बल्कि इस रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू कराने के लिए एक नई पहल भी करनी चाहिए. तृणमूल ने अपने घोषणापत्र में कहा था कि सत्ता में आने के सौ दिनों के भीतर पश्चिम बंगाल में शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली बदल दी जाएगी और लोगों को अंतर दिखने लगेगा.


इसके अलावा तृणमूल ने सत्ता मिलने के बाद अगले 200 दिनों का एजेंडा भी पहले से तय कर लिया था, जिसमें कोलकाता को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र बनाने की योजना शामिल है. साथ ही नए मेडिकल कॉलेज, मदरसे, मुस्लिम विश्वविद्यालय, हिंदी स्कूल और 300 नए आईआईटी खोलने की बात है, दार्जिलिंग एवं जंगल महल के लिए विशेष विकास योजना बनाने की बात है, सार्वजनिक क्षेत्र के बंद कारखानों को फिर चालू करना और नए कारखाने खोलने की बात है, लेकिन सवाल उठता है कि क्या ममता बनर्जी ये सारे काम महज़ 200 दिनों के भीतर कर पाएंगी? क्योंकि विकास का जो खाका इस एजेंडे में दिख रहा है, उसके लिए एक बेहतर बुनियादी संरचना मसलन, बिजली, सड़क, बेहतर कानून-व्यवस्था की दरकार होगी. बिहार का उदाहरण बताता है कि नीतीश कुमार को सिर्फ सड़कों का जाल बिछाने में ही पांच साल लग गए. वह भी काम अभी अधूरा है. बिजली की स्थिति अभी भी बिहार में नहीं सुधर सकी है. कहने का मतलब यह कि एक बीमारू प्रदेश को फिर से पटरी पर लाने में काफी लंबा समय लगता है. ऐसे में ममता बनर्जी पर दबाव अधिक होगा.


 जाहिर है, ममता बनर्जी को अपने पास उपलब्ध संसाधनों और विकास का जो स्वप्न उन्होंने जनता को दिखाया है, के बीच के गहरे अंतर का अंदाजा है. यही वजह है कि जब बात सरकार गठन और उसमें शामिल होने के लिए कांग्रेस को निमंत्रण देने की आई, तो यह समझना मुश्किल नहीं था कि ममता ने यह कदम क्यों उठाया, क्योंकि वह उस अंतर को कम करने के लिए केंद्र सरकार यानी कांग्रेस की मदद भी चाहती हैं. बहरहाल, पश्चिम बंगाल की जनता को अब पोरिवर्तन का इंतजार है, जिसकी जिम्मेदारी ममता बनर्जी को निभानी है.

Thursday, May 19, 2011

सौरभ की वापसी के मायने



बंगाल टाइगर, दादा, बाबू मोशाय और सौरव गांगुली, ये सारे नाम उस शख्स के हैं, जिसका एक दौर में भारतीय क्रिकेट पर ऐसा दबदबा था कि लोग बोलते थे कि यह भारतीय क्रिकेट टीम का अब तक का सबसे सफल और शानदार कप्तान है. लेकिन यह उगता हुआ सूरज इतनी जल्दी अस्त होगा, ऐसा किसी ने सोचा नहीं था. अर्श से फर्श और फर्श से अर्श तक के स़फर के सही मायने दादा से बेहतर कोई और नहीं समझ सकता है.

 कप्तानी से हटने के बाद फर्श तक पहुंचना और कमेंट्री करने से लेकर आईपीएल 4 के अंतिम दौर में बतौर उपकप्तान वापसी करना, फिर से अर्श तक पहुंचने की जद्दोजहद की अजीब दास्तां है. कल तक युवराज जैसे कई युवा प्रतिभाओं को निखारने वाला यह खिलाड़ी आज उसी की कप्तानी में खेलने को मजबूर है. इसे मजबूरी कहें या सीमित विकल्प, लेकिन दादा खुद को किस किनारे स्थापित करना चाहते हैं, इस पर संशय बरक़रार है. कभी उनके लिए कहा जाता है कि दादा अब क्रिकेट को अलविदा कहने की पोजीशन में हैं तो कभी वह आईपीएल जैसी फटा़फट  श्रंख्ला में वापसी कर अपने अंदर बचे हुए हुनर को सबके सामने लाने की कोशिश करते दिखाई देते हैं, जैसे वह यह साबित करने की कोशिश कर रहे हों वह अभी तक चुके हुए साबित नहीं हुए हैं.

 इतने बड़े क्रिकेटर की वापसी क्या ऐसी होनी चाहिए थी. क्या सौरव अब इतने मजबूर हो गए हैं कि उन्हें किसी के रहमो-करम की ज़रूरत है. जब उन्हें शुरुआत में आईपीएल में शामिल करने के लायक़ नहीं समझा गया तो अब उन्हें शामिल नहीं होना चाहिए था. पुणे वारियर्स के टीम निदेशक अभिजीत सरकार ने कहा कि गांगुली को लेना कोई जुआ नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत में गांगुली जैसा क्रिकेट का जानकार कोई और नहीं है और वह अपनी उपयोगिता साबित कर देंगे. अजीब बात है, अभिजीत सरकार को उनकी उपयोगिता इतनी जल्दी समझ में आ गई. लगता है, यह बात नेशनल टीम के चयनकर्ताओं को नहीं सूझी. जब वर्ल्ड कप के दौरान सौरव कमेंट्री कर रहे थे, उस व़क्त सब ठीक नहीं था, क्योंकि उससे पहले ही आईपीएल 4 के संभावित खिलाड़ियों की सूची में उनका नाम नहीं था. पहले और तीसरे सत्र में कोलकाता नाइट राइडर्स के कप्तान रहे गांगुली को 10 में से किसी फ्रेंचाइजी ने नीलामी में नहीं खरीदा था. फिर अचानक से सहारा पुणे वारियर्स उन्हें आईपीएल के अंतिम दौर में शामिल करता है. यहीं पर मामला अटक जाता है. आ़िखर उस प्लेयर का क़द इसी बात से मापा जा सकता है कि जिस पर किसी ने भी बोली न लगाई हो, उसे मजबूरी में कहें या फिर ज़रूरत पड़ने पर शामिल किया जाता है. क्या इस क़द में दादा फिट बैठते हैं.

हालांकि यहां पर इस बात पर ग़ौर कर सकते हैं कि दादा ने इस चयन पर खुद अपनी स्वीकृति दी है. अब दादा ने यह फैसला किस तरह लिया है, यह तो वह ही बता सकते हैं, लेकिन प्रशंसकों और उनके आलोचकों के लिए यह चर्चा का विषय ज़रूर हो सकता है कि क्या उन्हें क्रिकेट खेलने की चाह ने इस फैसले पर हांमी भरने को प्रेरित किया, या फिर आईपीएल में मिलने वाली रक़म ने. इतना तो तय है कि यह फैसला उन्होंने देश के लिए खेलने की खातिर तो लिया नहीं है, क्योंकि देश के लिए खेलने की चाहत को आईपीएल में खेलने से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता. हर खिलाड़ी का सपना होता है कि वह एक दिन देश के  लिए खेले. देश के  लिए खेलने की चाहत में कहीं न कहीं गर्व और देशभक्ति की भावना जुड़ी रहती है और ऐसे में यदि कोई फिट खिलाड़ी 40 की उम्र में भी राष्ट्रीय टीम में शामिल होने के  लिए कोशिश करता है तो तब उसकी भावनाओं को समझा जा सकता है. लेकिन यहां आईपीएल में गर्व और देशभक्ति जैसी कोई बात नहीं जुड़ी है. आप यहां एक शहर की किसी फ्रेंचाइजी के लिए खेलते हैं. और तो और कई खिलाड़ियों के जन्म स्थान और फ्रेंचाइजी टीम में कोई रिश्ता भी नहीं है. बहरहाल दादा ने युवराज की कप्तानी में उस टीम की ओर से खेलने का फैसला लिया जो पहले से ही प्वाइंट रैंकिंग में फिसड्डी बनी हुई है.


 पुणे की डूबती नैया को पार लगाने के लिए अब टीम में उन्हें शामिल किया गया है, लेकिन चोटी की टीम को मात देने के लिए टीम को हर दृष्टि से बेहतरीन प्रदर्शन करना होगा, जो वारियर्स के लिए इतना आसान नहीं होगा. इस टीम ने टूर्नामेंट में अब तक शुरुआती दो मैचों को छोड़कर लगभग सभी में हार का मुंह देखा है. हालांकि दादा मुंबई इंडियंस के  खिला़फ हुए मैच में मैदान पर नहीं उतरे. उस मैच में भी पुणे को मुंबई के हाथों पिटना पड़ा. युवराज सिंह की कप्तानी वाली पुणे वारियर्स लगातार छह मैच हारकर टूर्नामेंट से बाहर होने की कगार पर है. फ्रेंचाइजी को उम्मीद है कि अपार अनुभव रखने वाले गांगुली के आने से उनकी बल्लेबाज़ी मज़बूत होगी. पुणे वारियर्स के टीम निदेशक अभिजीत सरकार ने कहा कि गांगुली को लेना कोई जुआ नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत में गांगुली जैसा क्रिकेट का जानकार कोई और नहीं है और वह अपनी उपयोगिता साबित कर देंगे. अजीब बात है, अभिजीत सरकार को उनकी उपयोगिता इतनी जल्दी समझ में आ गई. लगता है, यह बात नेशनल टीम के चयनकर्ताओं को नहीं सूझी. हालांकि यह पहला मौक़ा नहीं है जब दादा को इस तरह से दरकिनार कर टीम से बाहर किया गया हो. इससे पहले भी कप्तान सौरव गांगुली को अच्छे प्रदर्शन के बावजूद एक दिवसीय टीम से बाहर किया गया था. इस बात का दर्द उन्हें अब भी सालता है.

 एक दिवसीय टीम से बाहर किए जाने के बारे में यदि गांगुली से कोई पत्रकार ज़रा सा भी कुछ पूछता है तो उनके दिल का दर्द जैसे बाहर निकल आता है और वह अपने मन की बात दबा नहीं पाते हैं. गांगुली कहते थे किमैं नहीं जानता कि वनडे टीम में वापसी के लिए आ़िखर क्या करूं. वह यह भी कहते थे कि मुझे यह भी नहीं पता कि इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में अच्छा प्रदर्शन करने पर क्या मुझे भारतीय वनडे टीम में जगह मिल पाएगी. उनका मानना था कि फॉर्म में होने के बावजूद उन्हें ऑस्ट्रेेलिया में हुई एक दिवसीय मैचों की कॉमनवेल्थ बैंक सीरीज के लिए चुनी गई भारतीय टीम से हटा दिया गया था. उन्होंने कहा कि एक साल में क़रीब 1300 रन बनाने के बावजूद मुझे टीम में जगह नहीं दी गई. यह बात तब की है जब दादा को बुरी तरह से घेरकर टीम से बाहर का रास्ता दिखाया गया था, लेकिन उसके बाद उनके जख्मों पर मलहम लगाते हुए शाहरु़ख ने अपनी कोलकाता नाइट राइडर्स में उन्हें बतौर कप्तान चुना. ऐसा लगा जैसे इस बार दादा ज़ोरदार वापसी करेंगे, लेकिन शुरुआत में सब ठीक चलने के बाद अचानक पता नहीं क्या हुआ कि चौथे सीजन से उनका पत्ता सा़फ हो गया. सबसे गंभीर बात तो यही थी कि किसी भी फे्रंचाइजी ने उन पर भरोसा नहीं जताया. सरकार कहते हैं कि वह पैसे के लिए आईपीएल नहीं खेल रहे हैं, बल्कि उन्हें कुछ साबित करना है. वह का़फी सम्मान के  हक़दार हैं, लेकिन उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया गया. वह यह भी कहते हैं कि उनकी टीम कई खिलाड़ियों की फिटनेस समस्या से जूझ रही है. लिहाज़ा उन्होंने गांगुली के बारे में सोचा.

टूर्नामेंट की शुरुआत में ही एंजेलो मैथ्यूज बाहर हो गए जो सर्वश्रेष्ठ ऑल राउंडर थे. आस्ट्रेलियाई टी 20 के उपकप्तान टिम पेन, दक्षिण अफ्रीकी कप्तान ग्रीम स्मिथ भी चोटिल हैं. आशीष नेहरा भी फिट नहीं है. हम नेहरा की फिटनेस रिपोर्ट का इंतज़ार कर रहे थे. टीम प्रबंधन का मानना है कि गांगुली सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध विकल्प हैं. वह जुझारू हैं और वापसी के बादशाह भी. हमें यक़ीन है कि वह अपनी उपयोगिता साबित करेंगे. इससे पहले दादा को लेकर आईपीएल में अटकलों का बाज़ार का़फी गर्म था. कहा जा रहा था कि वह कोलकाता की टीम में बतौर कोच भी हिस्सेदारी ले सकते हैं, लेकिन इस बात से सभी वाक़ि़फ थे कि कल तक एक-दूसरे को गले लगाकर खेलबो लड़बो, जीतबो एंथम गाने वाले दादा और शाहरु़ख के बीच अब पहले जैसी बात नहीं रही है. दोनों की दोस्ती में दरार तभी पड़ गई थी जब दो बार कोलकाता नाइट राइडर्स की कप्तानी करने के बाद आईपीएल के चौथे संस्करण में शाहरु़ख ने दादा को अपनी टीम में शामिल करने के लायक़ ही नहीं समझा. आपको याद होगा कि इस बात पर बंगाल में दादा के प्रशंसकों ने शाहरु़ख के िखला़फ जमकर प्रदर्शन भी किया था. इसके अलावा एक खास तबक़े में भीदादा को दोबारा कोलकाता में न शामिल करने के कारण शाहरु़ख को का़फी लोगों की आलोचना सहनी पड़ी थी. हालांकि इसके बाद भी शाहरु़ख दुनिया भर में इस बात का ढोल पीटते रहे कि दादा आज भी उनके क़रीब हैं, लेकिन सच्चाई क्या है, यह सभी जानते हैं. कुछ वरिष्ठ खिलाड़ी सौरव के इस फैसले पर कुछ अलग ही राय रखते हैं.


कुछ लोगोंे का मानना है कि नीलामी में नहीं खरीदे जाने के बाद गांगुली ने खिलाड़ी के तौर पर इसे अपने क्रिकेट करियर का अंत मान लिया होगा, लेकिन उसके बाद जब अचानक उन्हें पुणे में शामिल होने का ऑफर मिला तो उन्होंने इसे एक मौक़े के तौर पर लिया होगा यानि उन्हें अब फिर नए सिरे से शुरुआत करनी होगी. उन्हें उस टीम की नैया पार लगाने की ज़िम्मेदारी दी गई है, जो लगभग डूबने की कगार पर है. फ्रेंचाइजी और गांगुली ने सोच समझ कर निर्णय लिया होगा, लेकिन इस फैसले ने मन में कई सवाल खड़े कर दिए हैं. अपना बेहतरीन क्रिकेट खेल चुकने और क्रिकेट से बहुत दिनों दूर रहने के  बाद वापस इससे जुड़ना क्या बद्धिमत्ता वाला निर्णय कहा जा सकता है? सौरव को बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड ने उनकी टीम के बल्लेबाज़ी कोच बनने का प्रस्ताव दिया है. बांग्लादेश बोर्ड ने इस खबर की पुष्टि भी कर दी है कि वह दादा को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं. जल्द ही वह दादा को एक औपचारिक पत्र भेजेंगे. बांग्लादेश बोर्ड के चेयरमैन मोहम्मद जलाल यूनुस के मुताबिक़ वह दादा की क़ाबिलियत का लाभ उठाना चाहते हैं. इससे पहले क़यास लगाए जा रहे थे कि वह कोच्चि टीम की कप्तानी संभाल सकते हैं. उनका यह सपना सच भी हो जाता अगर श्रीलंका के खिलाड़ी वापस अपने देश लौट जाते. इस पूरे घटनाक्रम में स़िर्फ एक बात पोजिटिव यह रही कि अब दादा के प्रशंसक एक बार फिर से उन्हें मैदान में देख सकेंगे. आ़िखरकार लंबे समय से लग रहे सभी क़यासों पर विराम लगा है.

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि सौरव के टीम में शामिल होने से पुणे टीम में अनुभव की कमी दूर हो सकती है, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि सहारा को यह फैसला लेने में कुछ ज़्यादा ही व़क्त लग गया. इसके अलावा जिस तरह का रवैया दादा को लेकर अब तक अपनाया जाता रहा है, उसे देखते हुए तो दादा को इतनी जल्दी फैसला नहीं लेना चाहिए था, क्योंकि पता नहीं कब शाहरु़ख की तरह सहारा भी किसी सीजन में उनसे अपना पल्ला झाड़ ले, तब दादा कहां जाएंगे.

Thursday, May 12, 2011

खिलाडि़यों को गुमराह करने की कोशिश



पिछले कुछ सालों में अगर भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर सकारात्मक रूप से उभरी है तो उसमें क्रिकेट का भी काफी योगदान रहा है. लंबे समय बाद देखा गया, जबकि भारतीय विदेशों में नहीं, बल्कि अपने ही देश में क्रिकेट के जरिए पैसा और अंतरराष्ट्रीय ख्याति हासिल कर रहे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, हम कभी क्रिकेट के सरताज कहे जाने वाले देशों के खिलाड़ियों की नीलामी भी कर रहे हैं. आज हालत यह है कि क्रिकेट अप्रत्यक्ष तौर पर राष्ट्रीय खेल बन चुका है और यह सब हुआ आईपीएल की वजह से. लेकिन अति तो किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती. आईपीएल के साथ भी यही हुआ. मोदी और कलमाडी का हश्र तो दुनिया देख ही चुकी है. इन दोनों के घोटालों को देखते हुए यह वाजिब भी था, लेकिन इस बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि पैसा, ग्लैमर और चकाचौंध वाला यह आईपीएल इस जेंटलमैन गेम को ही बर्बाद करने पर तुला हुआ है. मलिंगा का तर्क क्रिकेटरों की उस दुविधा को दर्शाता है, जिसमें एक तरफ़ तो आईपीएल की ओर से मिलने वाली भारी-भरकम राशि है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय टीम के प्रति ज़िम्मेदारी. अब यह तो खिलाड़ियों को ही तय करना है, क्योंकि जिस तरह मलिंगा ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है, उससे तो यही लगता है कि बलपूर्वक किसी को भी ज़िम्मेदारियों का एहसास नहीं कराया जा सकता.

 जेंटलमैन इसलिए, क्योंकि एक दौर था, जब खिलाड़ी खेल के मैदान पर उतर कर एक-दूसरे से हाथ मिलाकर अपने-अपने देश का प्रतिनिधित्व करते थे और दर्शकों से भरा स्टेडियम अपने इन नायकों के लिए हवा में उछलता था. हर खिलाड़ी अपने देश की शान माना जाता था और आज भी सचिन जैसे लोग दुनिया भर के हीरो माने जाते हैं. लेकिन अब क्रिस गेल और मलिंगा जैसे खिलाड़ियों को देखिए, वेस्टइंडीज और श्रीलंका के ये धुरंधर खिलाड़ी पिछले कुछ समय से मीडिया की सुर्खियां बटोर रहे हैं. इस बार की सुर्खियां किसी प्रदर्शन को लेकर नहीं, बल्कि इस बात पर हैं कि वे अपने देश के लिए खेलें या छप्पर फाड़कर नोटों की बरसात करने वाले आईपीएल के लिए. आखिर में इन दोनों खिलाड़ियों ने देश से ज़्यादा नोट को तवज्जो देते हुए आईपीएल को चुना. दोनों के ही अपने बहाने हैं. किसी को अपने देश के क्रिकेट बोर्ड से नाराजगी है तो कोई कोहनी में चोट की वजह से टेस्ट मैच से संन्यास ही ले रहा है. गौरतलब है कि आईपीएल में खेल रहे श्रीलंकाई खिलाड़ियों को कुछ समय पहले उनके बोर्ड ने इंग्लैंड दौरे की तैयारियों के लिए जल्द स्वदेश लौटने को कहा था. इसका मतलब यह था कि खिलाड़ी आईपीएल को बीच में ही छोड़कर स्वदेश लौटें. इसका दूसरा मतलब यह भी था कि आईपीएल को बीच में छोड़ना यानी खिलाड़ियों का करोड़ों का नुकसान. इससे बीसीसीआई और श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड में टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी. अंदर से तो ऐसी खबरें भी आईं कि श्रीलंका के खेल मंत्रालय को पर्याप्त मुनाफा नहीं मिला, इसीलिए वह खिलाड़ियों पर वापसी का दबाव बना रहा है. संगकारा कहते हैं कि यदि एफटीपी में नियमित तौर पर आईपीएल को जगह दी जाती है तो इस तरह के  टकराव से बचा जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि आईपीएल के लिए खास जगह होनी चाहिए और बीसीसीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्याप्त टेस्ट क्रिकेट खेला जाए. आपको बता दें कि श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड ने अपने खिलाड़ियों को 18 मई तक आईपीएल में खेलने की अनुमति दे दी है, लेकिन संगकारा कुछ दिन पहले इंग्लैंड दौरे पर चले जाएंगे. उन्होंने कहा, हमें 20 मई तक का समय दिया गया है. हमारा 16 और 21 मई को मैच है. मैं 16 मई के मैच के बाद लौट जाऊंगा. अब यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि अगर ये खिलाड़ी अपने बिजी शेड्यूल से समय निकाल कर स्वदेश रवाना हो सकते हैं तो क्या गेल और मलिंगा ऐसा नहीं कर सकते थे? इन दोनों मामलों में क्रिस गेल की बात पर थोड़ा यकीन किया जा सकता है. उनके मुताबिक, वहां के बोर्ड ने उन्हें चयन संबंधी प्रक्रिया से दरकिनार किया है, जिसकी वजह से उन्हें अपमान सहना पड़ा.

लेकिन मलिंगा का मामला पूरी तरह अजीब और अलग है. उन्होंने तो अपने देश वापस जाने से बचने के लिए या यूं कहें कि अपना नुकसान बचाने के लिए टेस्ट क्रिकेट से ही संन्यास लेने की घोषणा कर दी. यहां पर ताज्जुब वाली बात यह है कि इसके लिए उन्होंने घुटने की चोट को वजह बताया है. 27 वर्ष की उम्र में ही टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा करने वाला यह क्रिकेटर असल में शुरुआत से इस दुविधा में था कि वह पैसा चुने या अपना देश. इसी दुविधा का नतीजा है कि राष्ट्रीय टीम प्रबंधकों को अपने घायल होने की सूचना देकर लसिथ मलिंगा आईपीएल में खेल रहे हैं. मलिंगा के मामले में यह तर्क गले नहीं उतरता कि आईपीएल में तो सिर्फ़ चार ओवर फेंकने होते हैं. मलिंगा का तर्क क्रिकेटरों की उस दुविधा को दर्शाता है, जिसमें एक तरफ़ तो आईपीएल की ओर से मिलने वाली भारी-भरकम राशि है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय टीम के प्रति ज़िम्मेदारी. अब यह तो खिलाड़ियों को ही तय करना है, क्योंकि जिस तरह मलिंगा ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है, उससे तो यही लगता है कि बलपूर्वक किसी को भी ज़िम्मेदारियों का एहसास नहीं कराया जा सकता. यह अजीब सा लगता है कि वह घायल हैं, लेकिन फिर भी खेल रहे हैं. मेंडिस कहते हैं कि हमने मलिंगा को पत्र लिखकर घर लौटने को कहा था, लेकिन जवाब में मलिंगा ने यह कहा कि उनके घुटने में दर्द है, जिसकी वजह से वह टेस्ट सीरीज़ के लिए उपलब्ध नहीं हैं. दिलीप मेंडिस ने कड़ा रुख़ अख्तियार करते हुए यह भी कहा था कि अगर खिलाड़ी घायल है तो उसे तुरंत इलाज शुरू कर लेना चाहिए, ताकि वह अगर अपने देश के लिए खेलने में दिलचस्पी रखता है तो उसके लिए स्वस्थ हो सके. तिलकरत्ने दिलशान की कप्तानी में इंग्लैंड के दौरे पर जाने वाली श्रीलंकाई टीम एंजेलो मैथ्यू के घायल होने के कारण पहले ही गेंदबाज़ी के सीमित विकल्पों से जूझ रही है, लेकिन शायद मलिंगा को यह बात समझ में नहीं आई और उन्होंने इन सब झंझटों से पीछा छुड़ाने के लिए संन्यास लेना ही बेहतर समझा. अब उन्हें आईपीएल में खेलने से कोई भी नहीं रोक सकता. क्रिस गेल पर भी यही बात लागू होती है कि अगर उन्हें अपने देश के क्रिकेट बोर्ड से कोई नाराजगी थी तो इसका बहाना लेकर आप आईपीएल नहीं खेल सकते. ऐसा नहीं है कि पैसे और ग्लैमर की चमक में सिर्फ विदेशी खिलाड़ी ही अंधे हुए हैं, हमारे खिलाड़ी भी कम नहीं हैं. यह तो अच्छा है कि आईपीएल हमारे देश में हो रहा है, नहीं तो किसी और देश में इन खिलाड़ियों की बोली लगती और ये भी घरेलू क्रिकेट को दरकिनार करते हुए पैसा कमाने की सोच बैठते. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि अभी हाल में धोनी समेत कई भारतीय खिलाड़ी वर्ल्डकप में मिलने वाली पुरस्कार राशि से खुश नहीं थे और उन्होंने बाकायदा विरोध दर्ज कराया.

नतीजतन, भारतीय क्रिकेट बोर्ड यानी बीसीसीआई ने विश्वकप जीतने वाली भारतीय टीम के प्रत्येक खिलाड़ी को दी जानी वाली राशि एक करोड़ से बढ़ाकर दो करोड़ रुपये कर दी. बीसीसीआई ने अपनी कार्यकारी समिति की बैठक में पुरस्कार-प्रोत्साहन राशि बढ़ाकर दो करोड़ रुपये तो कर दी, लेकिन अंदरूनी सूत्रों की मानें तो यह राशि अभी भी कम है, क्योंकि खिलाड़ियों की मांग पांच करोड़ रुपये थी. हम यह नहीं कह रहे हैं कि खिलाड़ी पैसा न कमाएं. पैसा कमाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन वे किस तरह पैसा कमा रहे हैं, इस पर गौर करने की आवश्यकता है. इसे किस तरह सही कहा जा सकता है कि आप अपने देश में होने वाले टूर्नामेंट को छोड़कर सिर्फ इसलिए आईपीएल में शामिल हों, क्योंकि वहां आपको अपने देश से ज्यादा पैसे मिल रहे हैं. इस बात को खिलाड़ी क्यों भूल जाते हैं कि उन्हें यह पैसा इसलिए मिल रहा है, क्योंकि वे अपने देश की ओर से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलते हैं. अगर वे अपने देश के स्टार खिलाड़ी नहीं होते तो आईपीएल तक कैसे पहुंचते? यह विडंबना है कि कुछ ही सालों पहले शुरू हुआ आईपीएल संस्करण अपने पैसों के दम पर खिलाड़ियों को बागी बना रहा है. यहां पर एक पक्ष यह भी है कि जब क्रिकेट से जुड़ा प्रबंधन करोड़ों में खेल रहा है और मोदी जैसे सूरमा बड़े-बड़े घोटाले कर रहे हैं तो ऐसे में खिलाड़ी पैसा क्यों न कमाएं. आईपीएल ने न सिर्फ खिलाड़ियों को खेमों में बांटा है, बल्कि उनके सामने लालच की एक ऐसी खाई खड़ी कर दी है, जिससे बचना सबके वश की बात नहीं है.

Thursday, May 5, 2011

निशाने पर खिलाडी़



यह बिल्कुल वैसा है कि मंदिरों के नाम पर देश भर में दंगे होते हैं और भगवान को सच्चे मन से मानने वाला कोई नहीं मिलता. सब उनका नाम अपने-अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए इस्तेमाल करते हैं. तीज-त्योहारों पर उनके नाम का हल्ला शुरू कर देते हैं. ऐसा ही कुछ हमारे देश में खेल प्रतिभाओं के साथ हो रहा है.

हमारे देश में खेल को किसी धर्म से कम नहीं आंका जा सकता है. खिलाड़ियों की लोकप्रियता ऐसी है कि लोगों का जुनून देखते ही बनता है. सचिन जैसे खिलाड़ी को क्रिकेट के भगवान तक का दर्जा हासिल है और उनके नाम से महाराष्ट्र में बाकायदा मंदिर का निर्माण तक कराया गया है, लेकिन वास्तविकता के धरातल पर खिलाड़ियों की सुरक्षा को लेकर हमेशा संदेह बना रहता है.जहां एक तऱफ खेल और खिलाड़ियों का क़द इतना बढ़ा है, वहीं दूसरी ओर एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि इन्हीं खिलाड़ियों के साथ ऐसा सुलूक किया जाता है कि विश्वास ही नहीं होता है कि इसी देश में खेल और खिलाड़ियों के पीछे लोग पागलपन की हद तक जान लुटाते हैं.

 हाल में राष्ट्रीय स्तर की फुटबाल एवं वॉलीबाल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा उर्फ सोनू के साथ जो दुर्घटना हुई, वह इस बात की तस्दीक करती है कि हम इनके साथ किस तरह से पेश आते हैं. स़िर्फ अरुणिमा ही नहीं है, जिसके साथ इस तरह का हादसा हुआ है. याद कीजिए मेरठ की वह घटना, जिसमें अंडर-19 के युवा क्रिकेटर गगनदीप सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. अभी हाल में राष्ट्रीय स्तर की फुटबाल एवं वॉलीबाल खिलाड़ी अरुणिमा सिन्हा उर्फ सोनू के साथ जो दुर्घटना हुई, वह इस बात की तस्दीक करती है कि हम इनके साथ किस तरह से पेश आते हैं. स़िर्फ अरुणिमा ही नहीं है, जिसके साथ इस तरह का हादसा हुआ है. याद कीजिए मेरठ की वह घटना, जिसमें अंडर-19 के युवा क्रिकेटर गगनदीप सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

 ग़ौरतलब है कि गगनदीप मेरठ में सी के नायडू टूर्नामेंट के लिए गया था. उसी दौरान जब वह अपने दो साथियों के साथ होटल में था, तभी एक अज्ञात बंदूक़धारी ने मैनेजर से किसी बात पर हुए विवाद को लेकर गोली चला दी. इसमें एक गोली गगनदीप को भी लगी, जिससे उसकी मौत हो गई. इसके बाद बहुत सी ख़बरें आईं, जिनमें बताया गया कि अपराधी पकड़ लिया गया है, लेकिन कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया. ऐसा ही वाकया अरुणिमा के साथ भी हुआ. कुछ बदमाशों ने उनके गले में पड़ी सोने की जंजीर खींचने की कोशिश की, लेकिन अरुणिमा ने उनका विरोध किया. इस पर बदमाशों ने उन्हें चलती टे्रेन से धक्का दे दिया. पटरी पर गिरी अरुणिमा का पैर एक दूसरी ट्रेेन के नीचे आकर कट गया. ताज्जुब की बात यह है कि उन्हें देखने के लिए रेल मंत्री ममता बनर्जी के पास थोड़ा सा भी व़क्त नहीं था. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि यह दुर्घटना उत्तर प्रदेश में हुई है, पश्चिम बंगाल में नहीं.

अगर वहां किसी राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी के साथ ऐसा होता तो दीदी की ममता देखते ही बनती. हालांकि बाद में रेल मंत्रालय हरकत में आया. अरुणिमा सिन्हा उर्फ सोनू फुटबाल और वॉलीबाल की खिलाड़ी हैं, लेकिन एक पैर गंवाने के बाद उनका खेल में करियर समाप्त हो चुका है, इस कड़वे सच से सभी वाक़ि़फ हैं. रेल मंत्रालय ने उन्हें नौकरी देने की घोषणा की है. इसके अतिरिक्त केंद्रीय खेल मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार, राजनेताओं और युवराज सिंह एवं हरभजन सिंह जैसे क्रिकेट खिलाड़ियों ने अरुणिमा को वित्तीय सहायता की घोषणा की है. रेलवे में मिली नौकरी से अरुणिमा का भविष्य सुरक्षित है और अब वह अपने सपनों को सुरक्षित करना चाहती हैं. इसलिए उनका विचार खेल अकादमी खोलने का है. यह अकादमी वह वित्तीय सहायता स्वरूप प्राप्त धनराशि से खोलना चाहती हैं. यहां एक और बात ग़ौर करने वाली है कि एक राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी ट्रेन की जनरल बोगी में सफर कर रही थी. वर्ल्डकप जीतने पर अरबों रुपये के ईनाम देने वाली विभिन्न संस्थाओं, खेल अकादमियों, राज्य सरकारों और राजनेताओं के खेल प्रेम की असलियत भी यहां ज़ाहिर हो जाती है कि राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को इस तरह जनरल बोगी में सफर करना पड़ता है.
क्या क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के खिलाड़ी इस देश में कभी सम्मान से रह पाएंगे? अरुणिमा सिन्हा भी रेल और खेल मंत्रालय की तऱफ से दी गई कुल 30 हज़ार रुपये की शर्मनाक सहायता राशि पर बिफर पड़ीं. उन्होंने कहा कि उनका मज़ाक बनाया गया है, यह सहायता राशि उनके लिए भीख के समान है. अरुणिमा के मामले में दो पहलुओं को विश्लेषित करने की आवश्यकता है. पहला यह कि रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था. अकेले यात्रा करती महिलाओं के भय, सहयात्रियों की उदासीनता और बदमाशों के बेख़ौ़फ रवैये ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. दूसरा पहलू राष्ट्रीय स्तर की महिला खिलाड़ी के साथ हुए बर्ताव का है. रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था उसके सारे दावों को मुंह चिढ़ाती नज़र आती है. हर बार रेल बजट पेश करते समय सुरक्षा का विशेष ज़िक्र किया जाता है, लेकिन साल दर साल हालात बिगड़ते जा रहे हैं. यात्रा के दौरान लूटपाट, ज़हरखुरानी और महिलाओं से छेड़छाड़ आम बात हो गई है. स्टेशनों पर और रेल के भीतर सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं हैं.


 आप अपने सामान की सुरक्षा स्वयं करें और अपनी भी. रेलवे पुलिस की कहीं कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती. जिस तरह बदमाशों ने अरुणिमा के साथ व्यवहार किया, उससे लगता है कि उनके मन में ऐसा कोई डर नहीं था कि पुलिस आ सकती है या सहयात्री किसी तरह का विरोध कर सकते हैं. अकेली लड़की बदमाशों से जूझ रही थी और लोग गूंगे-बहरे बने तमाशा देख रहे थे, यह हिंदुस्तान की हक़ीक़त है. खिलाड़ियों के साथ दुर्व्यवहार स़िर्फ देश में ही नहीं, बल्कि इससे बाहर भी होता है. आपको वह घटना याद होगी, जब भारतीय एथलीटों ने हमलावरों को ही पीट डाला था. यह वाकया आस्ट्रेलिया का था. ग़ौरतलब है कि आस्ट्रेलिया में नस्लीय हिंसा के दौरान युवकों के एक गुट ने मेलबर्न के एक स्टेडियम से बाहर आ रहे भारतीय एथलीटों पर हमला करके उनकी कार क्षतिग्रस्त कर दी थी. पुलिस ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा था कि कार में सवार एथलीटों की मदद के लिए उनके सहयोगी आगे आए तो हमलावर भागने लगे. इनमें से दो को पकड़ कर उनकी पिटाई की गई.

पुलिस के अनुसार, वे लोग भारतीय एथलीटों को अपशब्द कह रहे थे. ऐसी ही एक घटना ब्रिसबेन टाइम्स ने भारतीय एथलीट टिम सिंह के हवाले से बताई थी कि वह अपने साथियों के साथ मेलबर्न के अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स स्टेडियम से कबड्डी खेलकर लौट रहे थे, तभी कुछ लोगों ने उनकी कार पर हमला करके शीशे तोड़ दिए और उनके ख़िला़फ टिप्पणी की. इसके बाद दोनों पक्षों में मारपीट शुरू हो गई. भारतीय शूटरों के साथ भी अपमानजनक व्यवहार हुआ था. बाद में भारत की ओर से ज़बरदस्त आपत्ति दर्ज कराने के बाद आईएसएसएफ वर्ल्डकप शूटिंग टूर्नामेंट की आयोजन समिति ने उन सभी भारतीय शूटरों से माफी मांग ली थी, जिनसे ट्रांसपोर्ट विभाग के अधिकारियों ने बदसलूकी की थी. आपको बता दें, भारतीय शूटरों का आरोप था कि उन्हें शूटिंग रेंज तक ले जाने के दौरान ट्रांसपोर्ट विभाग के कर्मचारियों ने उनके साथ बदसलूकी की. मानवजीत का कहना था कि उनके पूरे करियर में इतना अपमान कभी नहीं हुआ. कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. किसी ने कभी यह नहीं सोचा था कि भारतीय महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों को यौन उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन एक समय ऐसा भी आया, जब यह कड़वा सच दुनिया के सामने खुलकर आया. यह ख़बर शर्मसार करने वाली थी कि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान-सम्मान दिलाने वाली महिलाओं की इज़्ज़त सुरक्षित नहीं है.

आपको याद होगा कि भारतीय हॉकी टीम की एक खिलाड़ी ने टीम के वीडियोग्राफर बासवा राजा पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. महिला खिलाड़ी ने बताया कि उसे राजा द्वारा यौन उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा. उसने हॉकी इंडिया को दी गई अपनी लिखित शिकायत में कहा कि टीम कोच कौशिक और वीडियोग्राफर राजा ने उससे शारीरिक संबंध बनाने की पेशकश की थी. बाद में मामले पर लीपापोती करते हुए नरेंद्र बत्रा ने कहा था कि यह बहुत चौंकाने वाली बात है, अगर वीडियोग्राफर दोषी पाया गया तो उसके ख़िला़फ सख्त कार्रवाई की जाएगी. अब वह मामला किसी को भी याद नहीं है. तब दिग्गज एथलीट पीटी ऊषा ने हॉकी और भारोत्तोलन को झकझोरने वाले सेक्स स्कैंडल को भारतीय खेलों के लिए धब्बा क़रार देते हुए कहा था कि पीड़ितों को कर्णम मल्लेश्वरी की तरह मौक़े का इंतज़ार करने के बजाय तुरंत इसकी रिपोर्ट करनी चाहिए.

यह तो स़िर्फ कुछ ऐसे चुनिंदा मामले हैं, जो रोशनी में आ गए, वरना चकाचौंध, पैसे और ग्लैमर से भरपूर खेलों के खिलाड़ियों की असल हैसियत क्या है, यह कोई नहीं जानता. उपरोक्त तमाम घटनाओं से एक बात तो साफ है कि स्टार खिलाड़ियों के साथ सरकार और जनता, दोनों का रवैया उदासीन है. आज अगर राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी के साथ चलती ट्रेन में इतनी भीड़ के सामने ऐसी वारदात हो सकती है तो आने वाली नई प्रतिभाओं का भविष्य कैसा होगा, यह एक सोचनीय विषय है.