भारत के ज़्यादातर खेल पहले से ही क्रिकेट के मायाजाल में फंसकर खुद के अस्तित्व के लिए तरस रहे हैं, ऐसे में डोपिंग के बढ़ते मामलों ने उन उभरते हुए खेलों और खिलाड़ियों को हाशिए पर डालने का काम किया है, जो किसी तरह क्रिकेट के बाज़ार के बीच अपने स्वर्ण पदकों की बदौलत अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे. जिस तरह स्वर्ण पदक विजेता खिलाड़ी डोपिंग टेस्ट में एक-एक करके असफल होते जा रहे हैं, उससे न स़िर्फ इन खिलाड़ियों की प्रतिभा पर सवालिया निशान खड़े हुए हैं, बल्कि इससे देश और संबंधित खेलों पर भी एक बदनुमा दाग़ लग गया है.
हाल में जिस तरह 8 खिलाड़ियों को डोपिंग टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया है, उससे इतना तो साबित हो गया कि यह सिलसिला अभी रुकने वाला नहीं है. राष्ट्रीय एंटी डोपिंग एजेंसी यानी नाडा के टेस्ट के दौरान जिन 8 खिलाड़ियों के ए सैंपल में स्टेरॉयड पाए गए हैं, उनमें धाविका सिनी जोस, जौना मूर्मू, टियाना मैरी थॉमस, लंबी कूद के हरि कृष्णन और गोला फेंक की खिलाड़ी सोनिया आदि नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इस डोपिंग के लिए ज़िम्मेदार कौन है? खिलाड़ियों से पूछिए तो वे बताएंगे कि हमें तो सप्लीमेंट हमारे कोच देते हैं और हम अनजाने में इस तरह की अवैध दवाओं के शिकार हो जाते हैं. अगर यही सवाल कोच से पूछा जाता है तो उनका जवाब और भी ग़ैर ज़िम्मेदाराना होता है. उनके मुताबिक़ वे तो सारे खिलाड़ियों को सही सप्लीमेंट देते हैं, पर व्यक्तिगत जीवन में उक्त खिलाड़ी बाहर का खाना और पेय इस्तेमाल करते हैं, जिससे उनके शरीर में कुछ तत्व ऐसे आ जाते हैं, जो डोपिंग टेस्ट को पॉजिटिव बना देते हैं. यही सवाल अगर खेल मंत्रालय और फेडरेशन से पूछा जाता है तो उनका जवाब यह होता है कि इसके लिए खिलाड़ियों के कोच और उनके मार्गदर्शक ज़िम्मेदार हैं. हो सकता है कि सबके तर्क अपनी-अपनी जगह पर सही हों, लेकिन ऐसा हो क्यों रहा है और कौन कर रहा है, इस बात पर किसी को भी कोई तर्क नहीं सूझता और न कोई इसे रोकने के ठोस समाधान पर बात करता है.
कोच ही खिलाड़ियों से कहता है कि अगर आप यह दवा लेंगे तो आपका प्रदर्शन अच्छा होगा, आप दूर तक गोला फेंक पाएंगे. खिलाड़ियों को इन दवाओं के बारे में पता ही नहीं होता. तभी मैं कहता हूं कि कोचों को सज़ा मिलनी चाहिए, ताकि आगे आने वाले कोचों को सबक मिले.
- मिल्खा सिंह
हाल में जिस तरह 8 खिलाड़ियों को डोपिंग टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया है, उससे इतना तो साबित हो गया कि यह सिलसिला अभी रुकने वाला नहीं है. राष्ट्रीय एंटी डोपिंग एजेंसी यानी नाडा के टेस्ट के दौरान जिन 8 खिलाड़ियों के ए सैंपल में स्टेरॉयड पाए गए हैं, उनमें धाविका सिनी जोस, जौना मूर्मू, टियाना मैरी थॉमस, लंबी कूद के हरि कृष्णन और गोला फेंक की खिलाड़ी सोनिया आदि नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं. ग़ौरतलब है कि सिनी जोस ने राष्ट्र मंडल और एशियाई खेलों की 4 गुना 400 मीटर रिले में पिछले वर्ष स्वर्ण पदक जीता था. सिनी, जौना, हरि कृष्णन और सोनिया के यूरिन सैंपल्स में मेथनडाइनोन पाया गया, जबकि टियाना के सैंपल में एपिमैथानडियॉल पाया गया. नतीजतन, इन सभी खिलाड़ियों को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया है. नाडा अभी भी कई नमूनों की जांच कर रहा है. उम्मीद लगाई जा रही है कि इस टेस्ट में अभी कई खिलाडि़यों के नाम सामने आ सकते हैं. भले ही हम कुछ खिलाड़ियों पर अस्थायी निलंबन की कार्यवाही करें या फिर किसी विदेशी कोच को ब़र्खास्त कर दें.
ज़्यादातर खिलाडी़ बहुत ज़्यादा प़ढे-लिखे नहीं होते हैं, उनके कोच उन्हें जो भी देते हैं, वे उन पर विश्वास करके ले लेते हैं. इसलिए डोपिंग के लिए खिला़डियों को दोष देना सही नहीं है. मैं ऐसे कई ला़डकियों को जानती हूं , जिन्होंने यह बात खुद मुझे बताई है.
- साइना नेहवाल
किसी विदेशी कोच को ब़र्खास्त करने और आगे से ऐसे किसी भी कोच की सेवा न लेने का फैसला का़फी हास्यास्पद है. क्या कोई इस बात की गारंटी ले सकता है कि देशी कोच की मौजूदगी में इस तरह के मामले सामने नहीं आएंगे? पिछले कुछ सालों से भारत में डोपिंग के मामलों में बढ़ोत्तरी को देखते हुए सरकार ने राष्ट्रीय एंटी डोपिंग एजेंसी यानी नाडा का गठन किया था. यह संस्था का़फी हद तक सफल भी रही. मई 2010 से लेकर अब तक यानी 11 महीनों के दौरान 122 खिलाड़ी डोपिंग टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए. इनमें अधिकतर पहलवान और भारोत्तोलक हैं. इसके अलावा वर्ष 2010 में अगस्त तक नाडा ने 2047 एथलीटों के नमूने लिए थे, जिनमें 103 एथलीट विभिन्न प्रतिबंधित पदार्थ सेवन करने के दोषी पाए गए. इनमें कुछ जूनियर खिलाड़ी भी शामिल हैं. हाल में राष्ट्र मंडल खेलों की टीम में शामिल 18 खिलाड़ी भी डोपिंग के दोषी पाए गए, जिनमें 12 खिलाड़ी मिथाइलहेक्सानेमाइन के सेवन के दोषी पाए गए.
जिस तरह नाडा अपना काम कर रही थी, उसे देखकर तो ऐसा लग रहा था कि डोपिंग के शिकंजे से खिलाड़ियों को छुड़ाना अब आसान हो गया है, लेकिन इस वाक़िये ने एक बार फिर इस बात पर मुहर लगा दी है कि कहीं न कहीं कुछ तो ग़डब़ड है. मामलों को ब़ढता देख अब टेस्ट के अलावा ड्रग्स की धोखेबाज़ी को पकड़ने के लिए एनएडीए खिलाड़ियों के घरों पर भी छापा मारने की बात कही जा रही है. असल में छापा मारने की कवायद नाडा ने एक ऑस्ट्रेलियाई मॉडल के आधार पर तय की है, जिसके तहत किसी भी खिलाड़ी के घर अचानक छापा मारा जा सकता है. ऑस्ट्रेलिया ने इस मुद्दे पर बहुत प्रभावी काम किया है, लेकिन इस बात की गारंटी कोई भी नहीं दे रहा है कि यह मॉडल नाडा से कितना बेहतर साबित होगा. कहीं ऐसा न हो कि छापेमारी चलती रहे और खिलाड़ियों के टेस्ट पॉजिटिव आते रहें. अगर फेडरेशन वाक़ई इस संकट से निजात चाहता है तो वह पहले खिलाड़ियों और उनके कोचों की दलीलों में न फंसकर गंभीरता से जांच करे कि खिलाड़ियों के भोजन, पेय और सप्लीमेंट तक आखिर ये प्रतिबंधित पदार्थ पहुंचते कहां से हैं? साथ ही वह खिलाड़ियों को यह संदेश भी दे कि वे अपना प्रदर्शन बेहतर बनाने के लिए प्रदर्शन बढ़ाने वाली दवाइयों पर आश्रित होने के बजाय अभ्यास और कड़ी मेहनत पर ज़ोर दें. अन्यथा ये खिलाड़ी फिर किसी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए विदेश जाएंगे और प्रतिबंधित दवाओं के सेवन के आरोप में वापस भेज दिए जाएंगे. अभी मामला घर में है, यहीं सुलझा लिया जाए और इस डोपिंग के जिन्न के असली आक़ा को पकड़ा जाए तो बेहतर होगा.
डोपिंग के शिकार खिलाडी़
नाम सज़ा खेल
विली मेस 20 साल आठ महीने बेसबॉल
मेल हॉल 45 साल बेसबॉल
ऐडी जॉन्सन आजीवन प्रतिबंध बास्केटबॉल
फ्लोड मेवेदर सी. 5 साल बॉक्सिंग
माइक टाइसन 3 साल बॉक्सिंग
मिसी जिवो 6 महीने साइक्लिंग
स्टीव डर्बानो 7 साल आइस हॉकी
इवेंजोलोस गाउसिस 20 साल मार्शल आर्ट
वाइस ली 12 साल मोटर स्पोर्ट
जे एडम्स 2 साल 6 महीने स्केटबोर्डिंग
सिलिवीनो फ्रेंसिस्को 3 साल स्नूकर
क्रिस्टोस लैकोवोस 5 साल भारोत्तोलन
इनके अलावा और कई ऐसे खिला़डी हैं जिन्हें बाद में डोपिंग टेस्ट में फेल पाए जाने पर उनके गोल्ड मेडल्स तक वापस छीन लिए गए हैं.