हमारे देश में क्रिकेट के अलावा लगभग सभी खेलों की स्थिति एक जैसी है यानी बदहाल और उपेक्षित. भले ही वे क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले खेल हों या फिर राज्य स्तर पर. जब भी इन खेलों का आयोजन होता है, कभी मेज़बानी को लेकर समस्या पैदा हो जाती है तो कभी प्रायोजकों की भागीदारी को लेकर. अगर भूले-भटके उक्त दोनों समस्याओं से निजात मिल भी जाए तो असुविधा और बदइंतज़ामी मार जाती है.
इन सभी समस्याओं से इतर भी एक समस्या है, जिस पर शायद ही किसी का ध्यान जाता हो. यह समस्या है उन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की, जो इन बदइंतज़ामियों के शिकार हो जाते हैं. उनका करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाता है. कई सालों के अथक परिश्रम और प्रशिक्षण के बाद वे इस तरह की प्रतिस्पर्धाओं के लिए तैयार होते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कब ये खेल राजनीति या फिक्सिंग के शिकार होकर उनका करियर चौपट कर देंगे. इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता कि अगर एक बार म़ेजबानी छिन जाए तो कितना नुक़सान होता है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को नुक़सान तो होता ही है, साथ ही राज्य को आर्थिक क्षति भी होती है. उदाहरण के लिए आयोजन के पहले विज्ञापन हेतु लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं.
कई समितियां बनाई जाती हैं, जिन पर मोटा खर्च आता है. इसके अलावा जो बदनामी होती है, वह अलग. 33वें राष्ट्रीय खेलों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी. वर्ष 2003-2004 में उसके आयोजन के लिए हरी झंडी भी मिल गई थी, लेकिन आज तक पता नहीं चल पाया कि उस आयोजन के रद्द होने के पीछे क्या कारण थे. ऐसा नहीं है कि इन खेलों का आयोजन एक बार ही रद्द हुआ हो, चार बार राष्ट्रीय खेलों के आयोजन रद्द हो चुके हैं. अब जाकर ये खेल संपन्न हुए हैं. लोग जश्न मना रहे हैं. कई प्रतिस्पर्धाओं में झारखंड के खिलाड़ियों ने कई पदक भी अपने नाम किए हैं, लेकिन इस बार प्रतिस्पर्धा में शामिल होने वाले खिलाड़ी नए थे. इनमें वे खिलाड़ी नहीं थे, जो पिछले आयोजन को लेकर तैयार थे. पुराने खिलाड़ी अपनी प्रतिभा दिखाने से वंचित रह गए. अगर ये राष्ट्रीय खेल सही समय पर होते तो इनकी तस्वीर कुछ और ही होती. खेल संघ को शायद इस बात का अंदाजा नहीं है कि इस दौरान खिलाड़ियों का कितनाक़ीमती वक्त बर्बाद हुआ. उन्हें सही समय पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौक़ा नहीं मिला. ग़ौरतलब है कि हर बार राष्ट्रीय खेलों के ज़रिए खिलाड़ियों की एक नई पीढ़ी उभर कर सामने आती है, लेकिन अगर एक बार प्रतिस्पर्धा रद्द हो जाए या मेज़बानी छिन जाए तो न जाने कितनी प्रतिभाएं गुमनामी में खो जाती हैं.जिन खिलाड़ियों को पिछली बार अवसर नहीं मिला, उनमें से कुछ खिलाड़ी इस बार की प्रतिस्पर्धा में शामिल तो हुए, पर उम्र ज्यादा होने या अन्य कारणों से भाग लेने से वंचित रह गए.
झारखंड में खेलों की बदहाली के पीछे के कारणों को समझना जरूरी है. दरअसल जब भी इस तरह के आयोजन होते हैं तो सभी राज्यों को मेज़बानी के लिए दावेदारी करनी होती है. यह दावेदारी राज्यों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली बेहतरीन सुविधा के आधार पर मजबूत होती है. बस इसी मामले में झारखंड की हालत ढीली हो जाती है. इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता कि अगर एक बार म़ेजबानी छिन जाए तो कितना नुक़सान होता है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को नुक़सान तो होता ही है, साथ ही राज्य को आर्थिक क्षति भी होती है. उदाहरण के लिए आयोजन के पहले विज्ञापन हेतु लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं. कई समितियां बनाई जाती हैं, जिन पर मोटा खर्च आता है. इसके अलावा जो बदनामी होती है, वह अलग. इस सबके बावजूद झारखंड ने महेंद्र सिंह धोनी के अलावा हॉकी, तीरंदाज़ी, एथलेटिक्स और अन्य खेलों में कई बेहतरीन खिलाड़ी दिए हैं. सोचने वाली बात यह है कि अगर इस सुविधाविहीन माहौल में इतनी प्रतिभाएं पैदा हो सकती हैं तो फिर अगर सब कुछ सही समय पर और सुविधाओं के साथ हो तो खेलों और खिलाड़ियों का भविष्य कितना उज्ज्वल होगा.
इन सभी समस्याओं से इतर भी एक समस्या है, जिस पर शायद ही किसी का ध्यान जाता हो. यह समस्या है उन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की, जो इन बदइंतज़ामियों के शिकार हो जाते हैं. उनका करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाता है. कई सालों के अथक परिश्रम और प्रशिक्षण के बाद वे इस तरह की प्रतिस्पर्धाओं के लिए तैयार होते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कब ये खेल राजनीति या फिक्सिंग के शिकार होकर उनका करियर चौपट कर देंगे. इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता कि अगर एक बार म़ेजबानी छिन जाए तो कितना नुक़सान होता है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को नुक़सान तो होता ही है, साथ ही राज्य को आर्थिक क्षति भी होती है. उदाहरण के लिए आयोजन के पहले विज्ञापन हेतु लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं.
कई समितियां बनाई जाती हैं, जिन पर मोटा खर्च आता है. इसके अलावा जो बदनामी होती है, वह अलग. 33वें राष्ट्रीय खेलों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी. वर्ष 2003-2004 में उसके आयोजन के लिए हरी झंडी भी मिल गई थी, लेकिन आज तक पता नहीं चल पाया कि उस आयोजन के रद्द होने के पीछे क्या कारण थे. ऐसा नहीं है कि इन खेलों का आयोजन एक बार ही रद्द हुआ हो, चार बार राष्ट्रीय खेलों के आयोजन रद्द हो चुके हैं. अब जाकर ये खेल संपन्न हुए हैं. लोग जश्न मना रहे हैं. कई प्रतिस्पर्धाओं में झारखंड के खिलाड़ियों ने कई पदक भी अपने नाम किए हैं, लेकिन इस बार प्रतिस्पर्धा में शामिल होने वाले खिलाड़ी नए थे. इनमें वे खिलाड़ी नहीं थे, जो पिछले आयोजन को लेकर तैयार थे. पुराने खिलाड़ी अपनी प्रतिभा दिखाने से वंचित रह गए. अगर ये राष्ट्रीय खेल सही समय पर होते तो इनकी तस्वीर कुछ और ही होती. खेल संघ को शायद इस बात का अंदाजा नहीं है कि इस दौरान खिलाड़ियों का कितनाक़ीमती वक्त बर्बाद हुआ. उन्हें सही समय पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौक़ा नहीं मिला. ग़ौरतलब है कि हर बार राष्ट्रीय खेलों के ज़रिए खिलाड़ियों की एक नई पीढ़ी उभर कर सामने आती है, लेकिन अगर एक बार प्रतिस्पर्धा रद्द हो जाए या मेज़बानी छिन जाए तो न जाने कितनी प्रतिभाएं गुमनामी में खो जाती हैं.जिन खिलाड़ियों को पिछली बार अवसर नहीं मिला, उनमें से कुछ खिलाड़ी इस बार की प्रतिस्पर्धा में शामिल तो हुए, पर उम्र ज्यादा होने या अन्य कारणों से भाग लेने से वंचित रह गए.
झारखंड में खेलों की बदहाली के पीछे के कारणों को समझना जरूरी है. दरअसल जब भी इस तरह के आयोजन होते हैं तो सभी राज्यों को मेज़बानी के लिए दावेदारी करनी होती है. यह दावेदारी राज्यों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली बेहतरीन सुविधा के आधार पर मजबूत होती है. बस इसी मामले में झारखंड की हालत ढीली हो जाती है. इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता कि अगर एक बार म़ेजबानी छिन जाए तो कितना नुक़सान होता है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को नुक़सान तो होता ही है, साथ ही राज्य को आर्थिक क्षति भी होती है. उदाहरण के लिए आयोजन के पहले विज्ञापन हेतु लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं. कई समितियां बनाई जाती हैं, जिन पर मोटा खर्च आता है. इसके अलावा जो बदनामी होती है, वह अलग. इस सबके बावजूद झारखंड ने महेंद्र सिंह धोनी के अलावा हॉकी, तीरंदाज़ी, एथलेटिक्स और अन्य खेलों में कई बेहतरीन खिलाड़ी दिए हैं. सोचने वाली बात यह है कि अगर इस सुविधाविहीन माहौल में इतनी प्रतिभाएं पैदा हो सकती हैं तो फिर अगर सब कुछ सही समय पर और सुविधाओं के साथ हो तो खेलों और खिलाड़ियों का भविष्य कितना उज्ज्वल होगा.