Tuesday, March 8, 2011

करे कोई भरे कोई

हमारे देश में क्रिकेट के अलावा लगभग सभी खेलों की स्थिति एक जैसी है यानी बदहाल और उपेक्षित. भले ही वे क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले खेल हों या फिर राज्य स्तर पर. जब भी इन खेलों का आयोजन होता है, कभी मेज़बानी को लेकर समस्या पैदा हो जाती है तो कभी प्रायोजकों की भागीदारी को लेकर. अगर भूले-भटके उक्त दोनों समस्याओं से निजात मिल भी जाए तो असुविधा और बदइंतज़ामी मार जाती है.


इन सभी समस्याओं से इतर भी एक समस्या है, जिस पर शायद ही किसी का ध्यान जाता हो. यह समस्या है उन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की, जो इन बदइंतज़ामियों के शिकार हो जाते हैं. उनका करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाता है. कई सालों के अथक परिश्रम और प्रशिक्षण के बाद वे इस तरह की प्रतिस्पर्धाओं के लिए तैयार होते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कब ये खेल राजनीति या फिक्सिंग के शिकार होकर उनका करियर चौपट कर देंगे. इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता कि अगर एक बार म़ेजबानी छिन जाए तो कितना नुक़सान होता है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को नुक़सान तो होता ही है, साथ ही राज्य को आर्थिक क्षति भी होती है. उदाहरण के लिए आयोजन के पहले विज्ञापन हेतु लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं.

कई समितियां बनाई जाती हैं, जिन पर मोटा खर्च आता है. इसके अलावा जो बदनामी होती है, वह अलग. 33वें राष्ट्रीय खेलों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी. वर्ष 2003-2004 में उसके आयोजन के लिए हरी झंडी भी मिल गई थी, लेकिन आज तक पता नहीं चल पाया कि उस आयोजन के रद्द होने के पीछे क्या कारण थे. ऐसा नहीं है कि इन खेलों का आयोजन एक बार ही रद्द हुआ हो, चार बार राष्ट्रीय खेलों के आयोजन रद्द हो चुके हैं. अब जाकर ये खेल संपन्न हुए हैं. लोग जश्न मना रहे हैं. कई प्रतिस्पर्धाओं में झारखंड के खिलाड़ियों ने कई पदक भी अपने नाम किए हैं, लेकिन इस बार प्रतिस्पर्धा में शामिल होने वाले खिलाड़ी नए थे. इनमें वे खिलाड़ी नहीं थे, जो पिछले आयोजन को लेकर तैयार थे. पुराने खिलाड़ी अपनी प्रतिभा दिखाने से वंचित रह गए. अगर ये राष्ट्रीय खेल सही समय पर होते तो इनकी तस्वीर कुछ और ही होती. खेल संघ को शायद इस बात का अंदाजा नहीं है कि इस दौरान खिलाड़ियों का कितनाक़ीमती वक्त बर्बाद हुआ. उन्हें सही समय पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौक़ा नहीं मिला. ग़ौरतलब है कि हर बार राष्ट्रीय खेलों के ज़रिए खिलाड़ियों की एक नई पीढ़ी उभर कर सामने आती है, लेकिन अगर एक बार प्रतिस्पर्धा रद्द हो जाए या मेज़बानी छिन जाए तो न जाने कितनी प्रतिभाएं गुमनामी में खो जाती हैं.जिन खिलाड़ियों को पिछली बार अवसर नहीं मिला, उनमें से कुछ खिलाड़ी इस बार की प्रतिस्पर्धा में शामिल तो हुए, पर उम्र ज्यादा होने या अन्य कारणों से भाग लेने से वंचित रह गए.

 झारखंड में खेलों की बदहाली के पीछे के कारणों को समझना जरूरी है. दरअसल जब भी इस तरह के आयोजन होते हैं तो सभी राज्यों को मेज़बानी के लिए दावेदारी करनी होती है. यह दावेदारी राज्यों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली बेहतरीन सुविधा के आधार पर मजबूत होती है. बस इसी मामले में झारखंड की हालत ढीली हो जाती है. इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता कि अगर एक बार म़ेजबानी छिन जाए तो कितना नुक़सान होता है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को नुक़सान तो होता ही है, साथ ही राज्य को आर्थिक क्षति भी होती है. उदाहरण के लिए आयोजन के पहले विज्ञापन हेतु लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं. कई समितियां बनाई जाती हैं, जिन पर मोटा खर्च आता है. इसके अलावा जो बदनामी होती है, वह अलग. इस सबके बावजूद झारखंड ने महेंद्र सिंह धोनी के अलावा हॉकी, तीरंदाज़ी, एथलेटिक्स और अन्य खेलों में कई बेहतरीन खिलाड़ी दिए हैं. सोचने वाली बात यह है कि अगर इस सुविधाविहीन माहौल में इतनी प्रतिभाएं पैदा हो सकती हैं तो फिर अगर सब कुछ सही समय पर और सुविधाओं के साथ हो तो खेलों और खिलाड़ियों का भविष्य कितना उज्ज्वल होगा. 

विश्‍वकप- 2011: आगाज खूबसूरत है अंजाम क्‍या होगा




ढाका के ऐतिहासिक बंग बंधु स्टेडियम में विश्वकप का आ़गा़ज एक भव्य समारोह के साथ हो गया. समारोह में दुनिया भर के सुप्रसिद्ध कलाकारों के साथ-साथ विश्वकप में भाग लेने वाली 14 टीमों के कप्तानों ने भी अपने जलवे दिखाए. उद्घाटन समारोह के साथ ही सभी टीमों ने अपनी-अपनी जीत की दावेदारी की. विश्वकप उद्घाटन समारोह कई मायनों में भव्य और खास रहा. समारोह में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने औपचारिक रूप से विश्वकप शुरू होने की घोषणा करते हुए कहा कि यह प्रतियोगिता सफल होगी. इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के प्रमुख शरद पवार भी मौजूद थे. इस रंगारंग कार्यक्रम में सबसे पहले बांग्लादेश के गायकों ने समां बांधा, फिर बारी आई सभी 14 टीमों के कप्तानों की. पहले मैदान के बीचोंबीच ठेले पर लोगो स्टंपी आया, फिर टीमों के कप्तान छोटे बच्चों के साथ सजे-धजे रिक्शे पर बैठकर आए. इस दौरान पूरा स्टेडियम विश्वकप थीम गीत-दे घुमा के से गूंज रहा था.

विश्वकप के लिए टीम इंडिया ने जो रणनीति बनाई थी, वह लीक हो गई. विश्वकप जैसी बड़ी प्रतियोगिता में दबदबा बनाने के लिए हर टीम अपनी एक खास रणनीति बनाती है. ज़ाहिर है, भारत ने भी एक रणनीति बनाई थी. टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और कोच गैरी कर्स्टन ने मिलकर अपनी योजना 150 पेजों के दस्तावेज में दर्ज की है. इस दस्तावेज को धोनी और कर्स्टन ने आओ अपना सपना साकार करें नाम दिया है, लेकिन टीम इंडिया का यह गुप्त दस्तावेज मीडिया में लीक हो गया है.

ग़ौरतलब है कि विश्वकप थीम को शंकर-एहसान-लॉय की तिकड़ी ने कंपोज किया है. इसी क्रम में पहले तीन बार के चैंपियन रिकी पोंटिंग बंग बंधु स्टेडियम पहुंचे. हर कप्तान के साथ रिक्शे में एक बच्चा था. पोंटिंग के बाद कनाडा के  कप्तान आशीष बगई, इंग्लैंड के कप्तान एंड्रयू स्ट्रॉस, आयरलैंड के कप्तान विलियम पोर्टरफील्ड, केन्या के जिमी कमांडे, हालैंड के पीटर बोरेन, न्यूजीलैंड के डेनियल विटोरी, पाकिस्तान के शाहिद आफरीदी, दक्षिण अफ्रीका के ग्रीम स्मिथ, वेस्टइंडीज के डेरेन सैमी और जिंबाब्वे के एल्टन चिगुंबुरा स्टेडयम में आए. फिर भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने इंट्री की. धोनी के बाद श्रीलंकाई कप्तान कुमार संगकारा और फिर मेजबान बांग्लादेश के कप्तान शाकिब अल हसन ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच स्टेडियम में प्रवेश किया. मशहूर गायक सोनू निगम ने अंग्रेजी गीत राइज अप फोर ग्लोरी गाकर सबको झूमने पर मजबूर कर दिया. रूना लैला के गीत दमादम मस्त कलंदर की भी ख़ूब सराहना हुई. इसके बाद अंतरराष्ट्रीय पॉप गायक ब्रायन एडम्स ने अपनी गायिकी का जादू बिखेरा. आख़िर में शंकर, एहसान और लॉय ने दे घुमा के गाकर माहौल में जोश भर दिया. इसके बाद हुई जमकर आतिशबाज़ी. रोशनी से जगमग स्टेडियम आतिशबाज़ी से गूंज उठा और एक अच्छे विश्वकप के आयोजन के वादे के साथ ख़त्म हुआ उद्घाटन समारोह.

हमारा देश इस महा आयोजन का आयोजक देश होने पर गर्व की अनुभूति कर रहा है.

- शेख हसीना, प्रधानमंत्री, बांग्लादेश


यह तो था विश्वकप का आग़ाज़, लेकिन इसका अंजाम भी इतना ही खूबसूरत होगा, इस बात को लेकर खेलप्रेमियों से लेकर आयोजकों तक के मन में संशय बरक़रार है. इस संशय की वजह हैं, मैच के पहले ही सुर्खियों में आईं विवादास्पद खबरें. हालांकि कई खबरों में का़फी हद तक सच्चाई भी है. अपने घर में विश्वकप खेल रही टीम इंडिया इस खिताब को जीतने के लिए पूरे जोश में है. कई कीर्तिमान रच चुके महेंद्र सिंह धोनी अपने नाम एक और इतिहास करने को आतुर हैं. इसके लिए उन्होंने अपने फॉर्म को भी दोबारा हासिल कर लिया है. लेकिन फिर भी कई सारी अड़चनें हैं, जो विश्वकप में भारत की जीत केआड़े आ सकती हैं. सबसे पहले तो टीम इंडिया के प्रदर्शन की बात करते हैं. टीम इंडिया के सामने सबसे बड़ा सवाल क्षेत्ररक्षण है. टीम इंडिया की कमज़ोर कड़ी उसकी फील्डिंग है. कुछ खिलाड़ियों को छोड़कर टीम में फुर्तीले फील्डरों की कमी है. इस कमी की वजह से कई ऐसे मौक़े आए हैं, जबकि टीम इंडिया को जीता हुआ मैच गंवाना पड़ा है. यदि भारतीय टीम अपनी इस कमज़ोरी पर क़ाबू पा ले तो कई सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे. इसके अलावा तेज़ गेंदबाजों का ज़्यादा रन लुटाना भी टीम को नुकसान पहुंचा सकता है. कई अवसरों पर देखा गया है कि जब मैच भारत के पक्ष में जा रहा होता है तो भारतीय बल्लेबाज अति आत्मविश्वासी होकर रन लुटाना शुरू कर देते हैं. नतीजतन टीम इंडिया को इसका खामियाजा हार के रूप में चुकाना पड़ता है. टीम प्रबंधन को तेज़ गेंदबाजी पर काम करने की भी ज़रूरत है.

भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन रहा और ऐसा भव्य उद्घाटन समारोह पहले मैंने कभी नहीं देखा. वन डे वर्ल्डकप आईसीसी का फ्लैगशिप टूर्नामेंट है. इसमें खेलना हर खिलाड़ी का सपना होता है.

- शरद पवार, आईसीसी प्रमुख

इतना का़फी नहीं था कि विश्वकप के लिए टीम इंडिया ने जो रणनीति बनाई थी, वह लीक हो गई. विश्वकप जैसी बड़ी प्रतियोगिता में दबदबा बनाने के लिए हर टीम अपनी एक खास रणनीति बनाती है. ज़ाहिर है, भारत ने भी एक रणनीति बनाई थी. टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और कोच गैरी कर्स्टन ने मिलकर अपनी योजना 150 पेजों के दस्तावेज में दर्ज की है. इस दस्तावेज को धोनी और कर्स्टन ने आओ अपना सपना साकार करें नाम दिया है, लेकिन टीम इंडिया का यह गुप्त दस्तावेज मीडिया में लीक हो गया है. अब इतनी जल्दी कोई नई रणनीति बनाना आसान नहीं है. यह भी किसी हद तक नुकसान पहुंचाने के लिए का़फी है. प्रदर्शन और खेल के मैदान के बाहर फिक्सिंग का काला साया भी मंडराया रहा है, जो समय-समय पर खिलाड़ियों का ध्यान भटकाएगा. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने विश्वकप मैचों के दौरान खिलाड़ियों और अधिकारियों द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट ट्‌वीटर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. यह क़दम फिक्सिंग, खास तौर से स्पॉट फ़िक्सिंग को रोकने के लिए उठाया गया है. आईसीसी की भ्रष्टाचार निरोधक और सुरक्षा इकाई की पहल पर ऐसा किया गया है.


आईसीसी चाहती है कि टी-20 की तरह विश्वकप में कोई भ्रष्टाचार न हो. आईसीसी का यह क़दम खिलाड़ियों और अधिकारियों से संपर्क करने की उन लोगों की कोशिश को रोकना भी है, जो ग़ैर क़ानूनी रूप से सट्टेबाज़ी करते हैं. आईसीसी के  मीडिया मैनेजर जेम्स फ़िट्ज़गेराल्ड के मुताबिक़, विश्वकप के सभी मैचों के दौरान खिलाड़ियों और टीम अधिकारियों के ट्‌वीट करने पर पाबंदी लगा दी गई है.

अब अगर टीम इंडिया को इस बार विश्वकप का खिताब अपने नाम करना है तो इन विवादों से दूर रहने के साथ-साथ अपनी उन सभी कमज़ोरियों की ओर ध्यान देना होगा, जो उसका प्रदर्शन प्रभावित कर सकती हैं.