भारत भूकंप के लिहाज़ से लगातार ज़्यादा संवेदनशील इसलिए भी होता जा रहा है, क्योंकि इसकी सब-कॉन्टिनेंटल प्लेट एशिया के अंदर घुसती चली जा रही है. इससे जब भी सब-कॉन्टिनेंटल प्लेट का दबाव ऐशियन प्लेट पर ब़ढेगा तो नतीजा एक बड़े सैलाब के तौर पर दिखाई देगा. धरती की जो प्लेट्स या परतें जहां-जहां मिलती हैं वहां के आसपास के समुद्र में सुनामी का ख़तरा ज़्यादा होता है.
जोन 1: पश्चिमी मध्य प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा के हिस्से आते हैं. यहां भूकंप का सबसे कम ख़तरा है.
जोन 2: तमिलनाडु, राजस्थान और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा, पश्चिम बंगाल और हरियाणा. यहां भूकंप की संभावना रहती है.
जोन 3: केरल, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिमी राजस्थान, पूर्वी गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा आता है. इस ज़ोन में भूकंप के झटके आते रहते हैं.
जोन 4: मुंबई, दिल्ली जैसे महानगर, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी गुजरात, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाक़े और बिहार-नेपाल सीमा के इलाक़े शामिल हैं. यहां भूकंप का ख़तरा लगातार बना रहता है और रुक-रुककर भूकंप आते रहते हैं.
जोन 5: भूकंप के लिहाज़ से यह सबसे ख़तरनाक इलाक़ा है. इसमें गुजरात का कच्छ इलाक़ा, उत्तराखंड का एक हिस्सा और पूर्वोत्तर के ज़्यादातर राज्य शामिल हैं.
भूकंप की आशंका के आधार पर देश को पांच जोन में बांटा गया है. नार्थ-ईस्ट के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में आते हैं. यह हिस्सा सबसे ज़्यादा संवेदनशील कहा जा सकता है. उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर हिस्से और दिल्ली जोन-4 में आते हैं. इन्हें भी कम संवेदनशील नहीं कहा जा सकता है.
मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज़्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं, लेकिन यह एक मोटा वर्गीकरण है. दिल्ली में कुछ इला़के हैं, जो जोन-5 की तरह खतरे वाले हो सकते हैं. इस प्रकार दक्षिण राज्यों में कई स्थान ऐसे हो सकते हैं जो ज़ोन-4 या ज़ोन-5 जैसे खतरे वाले हो सकते हैं. दूसरे ज़ोन-5 में भी कुछ इला़के हो सकते हैं, जहां भूकंप का खतरा बहुत कम हो और वे ज़ोन-2 की तरह कम खतरे वाले हों. इस मामले में बिहार ही एक ऐसा राज्य है, जहां लगभग सभी भूकंपीय ज़ोन आते हैं. इसकी जांच के लिए भूकंपीय माइक्रोजोनेशन की ज़रूरत होती है. माइक्रोजोनेशन वह प्रक्रिया है, जिसमें भवनों के पास की मिट्टी को लेकर परीक्षण किया जाता है और इसका पता लगाया जाता है कि वहां भूकंप का खतरा कितना है.
हालांकि, भारत में तबाही लाने के लिए स़िर्फ सब-कॉन्टिनेंटल प्लेट ही ज़िम्मेदार नहीं हैं, बल्कि भारत की परमाणु इकाइयां भी भारत को राख के ढेर में तब्दील करने के लिए का़फी हैं. अब ज़रा भारत की 20 परमाणु इकाइयों के बारे में भी सोचें. अगर भारत में तबाही का कारण ये परमाणु इकाइयां होती हैं तो इससे होने वाली तबाही दुनिया में किसी भी दूसरी जगह आई आपदा से ज़्यादा विनाशकारी होगी. भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो हिंदूकश क्षेत्र में भूकंप का सबसे ज़्यादा खतरा कश्मीर को होता है. हिंदूकश क्षेत्र में आए भूकंप का खतरा भले ही गुज़र गया हो, लेकिन इस महीने में एक के बाद एक आ रहे भूकंप चिंता का विषय हैं. मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार मार्च महीने के 21 दिनों में अब तक भूकंप के 55 झटके लग चुके हैं, जबकि प्रतिमाह 25-30 भूकंप ही आते हैं.
भारत के 10 बड़े भूकंप
1. शिलॉन्ग (1897)
2. कांगड़ा (1905)
3. बिहार-नेपाल सीमा (1934)
4. पूर्वोत्तर असम (1950)
5. सतपुड़ा (1938)
6. अंजार (1956)
7. कोयना (1967)
8. किल्लारी (1993)
9. जबलपुर (1997)
10. कच्छ (2001)
मौसम विज्ञान केंद्र के भूकंप वैज्ञानिक डॉ. ए. के. शुक्ला के अनुसार इसकी वजह जापान में आया बड़ा भूकंप है. जब भी कोई बड़ा भूकंप आता है तो उसके बाद छोटे भूकंप आते हैं. भूकंप विज्ञान केंद्र में पूरी दुनिया में आने वाले भूकंप रिकॉर्ड किए जाते हैं. इस महीने आए 55 भूकंपों में सबसे ज़्यादा 11 मार्च को 22 झटके लगे हैं. इसी दिन जापान में 8.9 तीव्रता का भूकंप भी आया था. जहां तक भारत का प्रश्न है 19 मार्च को अंडमान निकोबार क्षेत्र में 4.8 तीव्रता का तथा इससे पहले 14 मार्च को चमोली में 3.3 तीव्रता का भूकंप आया था. डॉ. शुक्ला के अनुसार भारत के लिए अंडमान, कच्छ, पूर्वोत्तर, उत्तराखंड तथा कुछ हद तक हिंदूकश क्षेत्रों में आने वाले भूकंप संवेदनशील होते हैं. वैसे अगर हम भूकंप के कारणों की बात करें तो वैज्ञानिकों बताते हैं कि धरती या समुद्र के अंदर होने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के कारण ये भूकंप आते हैं. अधिकांश भूकंपों की उत्पत्ति धरती की सतह से 30 से 100 किलोमीटर अंदर होती है. सतह के नीचे धरती की परत ठंडी होने और कम दबाव के कारण कमज़ोर होती है.
सुनामी जापान बनाम भारत
मार्च में जापान में आए भूकंप और सुनामी में मरने वालों की आधिकारिक संख्या अब 10 हज़ार से ऊपर हो गई है. पुलिस के रिकॉर्ड में अब भी 17,440 लोग लापता और 2,775 घायल हैं. 2004 में आए सुनामी के बाद तटीय इलाक़ों में का़फी कम तादाद में लोग बचे हैं. ज्यादातर लोगों को ऊंचाई वाली जगहों पर बसा दिया गया है. 2004 में भारत में भी सुनामी ने अपना क़हर बरसाया था. 2004 में आए भूकंप के बाद सुनामी आई थी. उस समय भूकंप की तीव्रता 9.15 थी. उस सुनामी में तेरह देशों के क़रीब सवा दो लाख लोग मारे गए थे. इस लिहाज़ से भारत में सुनामी जापान से कम प्रलंयकारी नहीं थी.
ऐसी स्थिति में जब अचानक चट्टानें दरकती हैं तो भूकंप आता है. एक अन्य प्रकार के भूकंप सतह से 100 से 650 किलोमीटर नीचे आते हैं. इतनी गहराई में धरती इतनी गर्म होती है कि एक तरह से द्रव रूप में होती हैं. हालांकि वहां किसी झटके या टक्कर की संभावना नहीं होती, लेकिन ये चट्टानें भारी दबाव में होती हैं. यदि इतनी गहराई में भूकंप आता है तो भारी मात्रा में ऊर्जा बाहर निकलती है. धरती की सतह से काफ़ी गहराई में उत्पन्न अब तक का सबसे बड़ा भूकंप 1994 में बोलीविया में रिकॉर्ड किया गया था. सतह से 600 किलोमीटर भीतर दर्ज इस भूकंप की तीव्रता रिएक्टर पैमाने पर 8.3 मापी गई थी, लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंप का ख़तरा बढ़ रहा है.
दुनिया के अब तक के खतरनाक भूकंप
11 मार्च 2011, जापान के उत्तरी पूर्वी तट पर 9.0 की तीव्रता के भूकंप से सुनामी, 10,000 से अधिक लोगों की मौत.
9 मई 2010, इंडोनेशिया में 7.2 की तीव्रता का भूकंप, सैकड़ों की मौत.
13 अप्रैल 2010, चीन में 6.9 की तीव्रता का भूकंप, 2500 की मौत.
12 जनवरी 2010, हैती में 7.0 की तीव्रता का भूकंप, 2 लाख लोगों की मौत.
30 सितंबर, 2009, इंडोनेशिया, सुमात्रा में 7.6 की तीव्रता का भूकंप, 1100 की मौत.
29 सितंबर 2009, सैमोन द्वीप में 8.3 की तीव्रता का भूकंप, सैकड़ों की मौत.
10 अगस्त 2009, अंडमान निकोबार में 7.6 की तीव्रता का भूकंप, कोई हताहत नहीं.
6 अप्रैल, 2009, इटली के लैकिला शहर में 6.3 की तीव्रता का भूकंप, सैकड़ों की मौत.
छह मार्च, 2007, इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में 6.3 तीव्रता का भूकंप, 70 लोगों की मौत.
10. 27 मई, 2006, इंडोनेशिया के जकार्ता में भूकंप, छह हज़ार लोग मारे गए.
11. आठ अक्टूबर, 2005, पाकिस्तान में 7.6 तीव्रता वाला भूकंप, क़रीब 75 हज़ार लोग मारे गए.
12. 28 मार्च, 2005, इंडोनेशिया में 8.7 तीव्रता वाला भूकंप, लगभग 1300 लोग मारे गए.
13. 22 फ़रवरी, 2005, ईरान के केरमान प्रांत में लगभग 6.4 तीव्रता के आए भूकंप में लगभग 100 लोग मारे गए थे.
14. 26 दिसंबर,2004, 8.9 की तीव्रता वाले भूकंप के कारण उत्पन्न सूनामी ने एशिया में हज़ारों लोगों की जान गई.
15. 24 फ़रवरी, 2004, मोरक्को के तटीय इलाक़े में आए भूकंप ने 500 लोगों की जान ले ली थी.
16. 26 दिसंबर, 2003, दक्षिणी ईरान में आए भूकंप में 26 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.
17. 21 मई 2003, अल्जीरिया में भूकंप आया, दो हज़ार लोगों की मौत
18. 24 फरवरी 2003, पश्चिमी चीन में भूकंप, 260 लोग मारे गए और 10 हज़ार से अधिक लोग बेघर.
19. 21 नवंबर 2002, पाकिस्तान के उत्तरी दियामीर ज़िले में भूकंप में 20 लोगों की मौत.
20. 25 मार्च 2002, अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी इलाक़े में 6 की तीव्रता का भूकंप, 800 से ज़्यादा लोग मरे.
21. 26 जनवरी 2001, गुजरात में 7.9 तीव्रता का भूकंप, तीस हज़ार लोग मारे गए.
22. 13 जनवरी 2001, अल साल्वाडोर में 7.6 तीव्रता का भूकंप, 700 से भी अधिक लोग मारे गए.
23. 6 अक्टूबर 2000, जापान में 7.1 तीव्रता का एक भूकंप, 30 लोग घायल हुए और कई लापता.
24. 21 सितंबर 1999, ताईवान में 7.6 तीव्रता का भूकंप, ढाई हज़ार लोग मारे गए.
25. 17 अगस्त 1999, तुर्की के इमिट और इंस्ताबूल शहरों में 7.4 तीव्रता का भूकंप, 17000 लोग मारे गए.
26. 29 मार्च 1999, उत्तर प्रदेश राज्य के उत्तरकाशी और चमोली में दो भूकंप. 100 से अधिक लोग मारे गए.
27. 25 जनवरी 1999, कोलंबिया के आर्मेनिया शहर में 6.0 तीव्रता का भूकंप. क़रीब एक हज़ार लोग मारे गए.
28. 17 जुलाई 1998, न्यू पापुआ गिनी के उत्तरी-पश्चिमी तट पर समुद्र के अंदर आया भूकंप, एक हज़ार से अधिक मरे.
29. 26 जून 1998, तुर्की के दक्षिण-पश्चिम में अदना में 6.3 तीव्रता का भूकंप, 144 लोग मारे गए.
30. 30 मई 1998, उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में एक बड़ा भूकंप, चार हज़ार लोग मारे गए.
31. फ़रवरी 1997, उत्तर-पश्चिमी ईरान में 5.5 तीव्रता का एक भूकंप, एक हज़ार लोग मारे गए.
32. 27 मई 1995, रूस के पूर्वी द्वीप सखालीन में 7.5 तीव्रता का भूकंप, दो हज़ार लोग मरे.
33. 17 जनवरी 1995, जापान के कोबे शहर में भूकंप, छह हज़ार चार सौ तीस लोग मारे गए.
34. 6 जून 1994, कोलंबिया में आया भूकंप, क़रीब एक हज़ार लोग मारे गए.
35. 30 सितंबर 1993, भारत के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों में आए भूकंप से क़रीब दस हज़ार लोगों की मौत.
36. 21 जून 1990, ईरान के उत्तरी राज्य गिलान में भूकंप, चालीस हज़ार से भी अधिक लोगों की मौत.
37. 17 अक्टूबर 1989, कैलिफ़ोर्निया में भूकंप, 68 लोग मारे गए.
38. 7 दिसंबर 1988, उत्तर-पश्चिमी आर्मेनिया में 6.9 तीव्रता का भूकंप, पच्चीस हज़ार लोगों की मौत.
39. 19 सितंबर 1985, मैक्सिको में भूकंप, दस हज़ार से अधिक लोग मारे गए.
40. 28 जुलाई 1976, चीन का तांगशान शहर में भूकंप, पांच लाख से अधिक लोग मारे गए.
41. 22 मार्च 1960, दुनिया का सबसे शक्तिशाली भूकंप चिली में आया. इसकी तीव्रता 9.5 दर्ज की गई.
42. 28 जून 1948, पश्चिमी जापान में पूर्वी चीनी समुद्र को केंद्र बनाकर भूकंप आया, तीन हज़ार से ज़्यादा लोग मरे.
43. 31 मई, 1935, क्वेटा और उसके आसपास के इलाक़ों में भूकंप, लगभग 35 हज़ार लोगों की जानें गईं.
44. 1 सितंबर 1923, जापान की राजधानी टोक्यो में आया ग्रेट कांटो भूकंप, 142,800 लोगों की मौत
45. 18 अप्रैल 1906, सैन फ्रांसिस्को में कई मिनट तक भूकंप के झटके आते रहे. तीन हज़ार लोग मारे गए.
46. 1 नवंबर 1755 पुर्तगाल में 8.7 की तीव्रता का भूकंप, 70,000 की मौत
47. 17 अगस्त 1668 टर्की में 8.0 की तीव्रता का भूकंप, 8000 की मौत
48. 23 जनवरी 1556 में चीन में 8.0 की तीव्रता का भूकंप, 830, 000 की मौत
49. 9 अगस्त 1138, सीरिया में 230,000 की मौत
50. 22 दिसंबर 0856 में, ईरान के दमगान में 200,000 की मौत.
वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत और तिब्बत एक-दूसरे की तरफ़ प्रति वर्ष दो सेंटीमीटर की गति से सरक रहे हैं. इस प्रक्रिया से हिमालय क्षेत्र पर दबाव बढ़ रहा है. यही वजह है कि पिछले 200 वर्षों में हिमालय क्षेत्र में छह बड़े भूकंप आ चुके हैं. इनके मुताबिक़ इस दबाव को कम करने का प्रकृति के पास सिर्फ़ एक ही तरीक़ा है और वह है भूकंप. इसलिए भूकंपों को रोकना तो किसी के बस की बात नहीं है, हां इतना ज़रूर है कि इनसे सावधान होकर जानमाल के नुक़सान को कम ज़रूर किया जा सकता है. हालांकि इस मामले मेंसबसे ज़्यादा दुर्भाग्यशाली भारत में है. उपरोक्त हालात से इस बात की पुष्टि तो हो ही जाती है कि हम भी जापान की तरह भूकंप के बारूदी ढेर में बैठे हैं. लेकिन जापान और हममें स़िर्फ इतना ही अंतर है कि जापान इस तरह की परिस्थितियों से जूझने के लिए लिए तैयार है और हम नहीं. समय चेतने का है, नहीं तो हम भी प्रकृति की इस विनाशलीला का शिकार कभी हो सकते हैं.