Friday, April 15, 2011

भारत में जापान से ज्यादा खतरनाक भूकंप आ सकते हैं






जापान में सुनामी से हुई तबाही पूरी दुनिया ने देखी. कुछ लोगों ने टेलीविज़न पर तो कुछ लोगों ने अपनी आंखों से. भारत में इस तरह के भयंकर मंज़र अभी तक देखे नहीं गए हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत में इस तरह की तबाही नहीं आ सकती है. दरअसल हम लोग ग़फलत में जी रहे हैं. बिना किसी तैयारी के इस बात से बे़फिक्र हैं कि भारत में इस तरह के प्रलंयकारी भूकंप और सुनामी आ ही नहीं सकते. सच्चाई तो यह है कि भारत में जापान से भयानक तबाही आ सकती है. जापान तो खैर इस तरह की परिस्थितियों से निपटने में माहिर हो चुका है, लेकिन भारत में तो इस तरह की आपातकाल स्थितियों से निपटने के लिए पुख्ता इंतज़ाम भी नहीं हैं. जिस तरह से भारत में भूकंप जोन के इलाक़े ब़ढते जा रहे हैं, उससे तो सा़फ हो जाता है कि भारत किसी भी व़क्तजापान जैसी हालात से रूबरू हो सकता है. भारत के भूकंपीय जोन ऩक्शे में भी देखे जा सकते हैं. इसकी गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मसले पर पिछले साल शिमला में हुई बैठक में एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ मीटिंग में उन्होंने कहा कि हम एक टाइम बम पर बैठे हैं. हम बार-बार भले ही इस बात की दलील दें कि हमारी जापान से तुलना सही नहीं है, लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञ और भूमंडलीय प्लेटों की स्थितियां यही बताती हैं कि हमारा देश कभी भी किसी बड़े भूकंप की चपेट में आ सकता है.

भारत भूकंप के लिहाज़ से लगातार ज़्यादा संवेदनशील इसलिए भी होता जा रहा है, क्योंकि इसकी सब-कॉन्टिनेंटल प्लेट एशिया के अंदर घुसती चली जा रही है. इससे जब भी सब-कॉन्टिनेंटल प्लेट का दबाव ऐशियन प्लेट पर ब़ढेगा तो नतीजा एक बड़े सैलाब के तौर पर दिखाई देगा. धरती की जो प्लेट्स या परतें जहां-जहां मिलती हैं वहां के आसपास के समुद्र में सुनामी का ख़तरा ज़्यादा होता है.


जोन 1: पश्चिमी मध्य प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा के हिस्से आते हैं. यहां भूकंप का सबसे कम ख़तरा है.

जोन 2: तमिलनाडु, राजस्थान और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा, पश्चिम बंगाल और हरियाणा. यहां भूकंप की संभावना रहती है.

जोन 3: केरल, बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिमी राजस्थान, पूर्वी गुजरात,  उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का कुछ हिस्सा आता है. इस ज़ोन में भूकंप के झटके आते रहते हैं.

जोन 4: मुंबई, दिल्ली जैसे महानगर, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी गुजरात, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश के पहाड़ी इलाक़े और बिहार-नेपाल सीमा के इलाक़े शामिल हैं. यहां भूकंप का ख़तरा लगातार बना रहता है और रुक-रुककर भूकंप आते रहते हैं.

जोन 5: भूकंप के लिहाज़ से यह सबसे ख़तरनाक इलाक़ा है. इसमें गुजरात का कच्छ इलाक़ा, उत्तराखंड का एक हिस्सा और पूर्वोत्तर के ज़्यादातर राज्य शामिल हैं.

भूकंप की आशंका के आधार पर देश को पांच जोन में बांटा गया है. नार्थ-ईस्ट के सभी राज्य, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्से जोन-5 में आते हैं. यह हिस्सा सबसे ज़्यादा संवेदनशील कहा जा सकता है. उत्तराखंड के कम ऊंचाई वाले हिस्सों से लेकर उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर हिस्से और दिल्ली जोन-4 में आते हैं. इन्हें भी कम संवेदनशील नहीं कहा जा सकता है.

मध्य भारत अपेक्षाकृत कम खतरे वाले हिस्से जोन-3 में आता है, जबकि दक्षिण के ज़्यादातर हिस्से सीमित खतरे वाले जोन-2 में आते हैं, लेकिन यह एक मोटा वर्गीकरण है. दिल्ली में कुछ इला़के हैं, जो जोन-5 की तरह खतरे वाले हो सकते हैं. इस प्रकार दक्षिण राज्यों में कई स्थान ऐसे हो सकते हैं जो ज़ोन-4 या ज़ोन-5 जैसे खतरे वाले हो सकते हैं. दूसरे ज़ोन-5 में भी कुछ इला़के हो सकते हैं, जहां भूकंप का खतरा बहुत कम हो और वे ज़ोन-2 की तरह कम खतरे वाले हों. इस मामले में बिहार ही एक ऐसा राज्य है, जहां लगभग सभी भूकंपीय ज़ोन आते हैं. इसकी जांच के लिए भूकंपीय माइक्रोजोनेशन की ज़रूरत होती है. माइक्रोजोनेशन वह प्रक्रिया है, जिसमें भवनों के पास की मिट्टी को लेकर परीक्षण किया जाता है और इसका पता लगाया जाता है कि वहां भूकंप का खतरा कितना है.

हालांकि, भारत में तबाही लाने के लिए स़िर्फ सब-कॉन्टिनेंटल प्लेट ही ज़िम्मेदार नहीं हैं, बल्कि भारत की परमाणु इकाइयां भी भारत को राख के ढेर में तब्दील करने के लिए का़फी हैं. अब ज़रा भारत की 20 परमाणु इकाइयों के बारे में भी सोचें. अगर भारत में तबाही का कारण ये परमाणु इकाइयां होती हैं तो इससे होने वाली तबाही दुनिया में किसी भी दूसरी जगह आई आपदा से ज़्यादा विनाशकारी होगी. भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो हिंदूकश क्षेत्र में भूकंप का सबसे ज़्यादा खतरा कश्मीर को होता है. हिंदूकश क्षेत्र में आए भूकंप का खतरा भले ही गुज़र गया हो, लेकिन इस महीने में एक के बाद एक आ रहे भूकंप चिंता का विषय हैं. मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार मार्च महीने के 21 दिनों में अब तक भूकंप के 55 झटके लग चुके हैं, जबकि प्रतिमाह 25-30 भूकंप ही आते हैं.


भारत के 10 बड़े भूकंप

1.         शिलॉन्ग (1897)

2.         कांगड़ा (1905)

3.         बिहार-नेपाल सीमा (1934)

4.         पूर्वोत्तर असम (1950)

5.         सतपुड़ा (1938)

6.         अंजार (1956)

7.         कोयना (1967)

8.         किल्लारी (1993)

9.         जबलपुर (1997)

10.       कच्छ (2001)

मौसम विज्ञान केंद्र के भूकंप वैज्ञानिक डॉ. ए. के. शुक्ला के अनुसार इसकी वजह जापान में आया बड़ा भूकंप है. जब भी कोई बड़ा भूकंप आता है तो उसके बाद छोटे भूकंप आते हैं. भूकंप विज्ञान केंद्र में पूरी दुनिया में आने वाले भूकंप रिकॉर्ड किए जाते हैं. इस महीने आए 55 भूकंपों में सबसे ज़्यादा 11 मार्च को 22 झटके लगे हैं. इसी दिन जापान में 8.9 तीव्रता का भूकंप भी आया था. जहां तक भारत का प्रश्न है 19 मार्च को अंडमान निकोबार क्षेत्र में 4.8 तीव्रता का तथा इससे पहले 14 मार्च को चमोली में 3.3 तीव्रता का भूकंप आया था. डॉ. शुक्ला के अनुसार भारत के लिए अंडमान, कच्छ, पूर्वोत्तर, उत्तराखंड तथा कुछ हद तक हिंदूकश क्षेत्रों में आने वाले भूकंप संवेदनशील होते हैं. वैसे अगर हम भूकंप के कारणों की बात करें तो वैज्ञानिकों बताते हैं कि धरती या समुद्र के अंदर होने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के कारण ये भूकंप आते हैं. अधिकांश भूकंपों की उत्पत्ति धरती की सतह से 30 से 100 किलोमीटर अंदर होती है. सतह के नीचे धरती की परत ठंडी होने और कम दबाव के कारण कमज़ोर होती है.

सुनामी जापान बनाम भारत

मार्च में जापान में आए भूकंप और सुनामी में मरने वालों की आधिकारिक संख्या अब 10 हज़ार से ऊपर हो गई है. पुलिस के रिकॉर्ड में अब भी 17,440 लोग लापता और 2,775 घायल हैं. 2004 में आए सुनामी के बाद तटीय इलाक़ों में का़फी कम तादाद में लोग बचे हैं. ज्यादातर लोगों को ऊंचाई वाली जगहों पर बसा दिया गया है. 2004 में भारत में भी सुनामी ने अपना क़हर बरसाया था. 2004 में आए भूकंप के बाद सुनामी आई थी. उस समय भूकंप की तीव्रता 9.15 थी. उस सुनामी में तेरह देशों के क़रीब सवा दो लाख लोग मारे गए थे. इस लिहाज़ से भारत में सुनामी जापान से कम प्रलंयकारी नहीं थी.

ऐसी स्थिति में जब अचानक चट्टानें दरकती हैं तो भूकंप आता है. एक अन्य प्रकार के भूकंप सतह से 100 से 650 किलोमीटर नीचे आते हैं. इतनी गहराई में धरती इतनी गर्म होती है कि एक तरह से द्रव रूप में होती हैं. हालांकि वहां किसी झटके या टक्कर की संभावना नहीं होती, लेकिन ये चट्टानें भारी दबाव में होती हैं. यदि इतनी गहराई में भूकंप आता है तो भारी मात्रा में ऊर्जा बाहर निकलती है. धरती की सतह से काफ़ी गहराई में उत्पन्न अब तक का सबसे बड़ा भूकंप 1994 में बोलीविया में रिकॉर्ड किया गया था. सतह से 600 किलोमीटर भीतर दर्ज इस भूकंप की तीव्रता रिएक्टर पैमाने पर 8.3 मापी गई थी, लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंप का ख़तरा बढ़ रहा है.


दुनिया के अब तक के खतरनाक भूकंप

11 मार्च 2011, जापान के उत्तरी पूर्वी तट पर 9.0 की तीव्रता के भूकंप से सुनामी, 10,000 से अधिक लोगों की मौत.
9 मई 2010, इंडोनेशिया में 7.2 की तीव्रता का भूकंप, सैकड़ों की मौत.
13 अप्रैल 2010, चीन में 6.9 की तीव्रता का भूकंप, 2500 की मौत.
12 जनवरी 2010, हैती में 7.0 की तीव्रता का भूकंप, 2 लाख लोगों की मौत.
30 सितंबर, 2009, इंडोनेशिया, सुमात्रा में 7.6 की तीव्रता का भूकंप, 1100 की मौत.
29 सितंबर 2009, सैमोन द्वीप में 8.3 की तीव्रता का भूकंप, सैकड़ों की मौत.
10 अगस्त 2009, अंडमान निकोबार में 7.6 की तीव्रता का भूकंप, कोई हताहत नहीं.
6 अप्रैल, 2009, इटली के लैकिला शहर में 6.3 की तीव्रता का भूकंप, सैकड़ों की मौत.
छह मार्च, 2007, इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप में 6.3 तीव्रता का भूकंप, 70 लोगों की मौत.
10. 27 मई, 2006, इंडोनेशिया के जकार्ता में भूकंप, छह हज़ार लोग मारे गए.

11. आठ अक्टूबर, 2005, पाकिस्तान में 7.6 तीव्रता वाला भूकंप, क़रीब 75 हज़ार लोग मारे गए.

12. 28 मार्च, 2005, इंडोनेशिया में 8.7 तीव्रता वाला भूकंप, लगभग 1300 लोग मारे गए.

13. 22 फ़रवरी, 2005, ईरान के केरमान प्रांत में लगभग 6.4 तीव्रता के आए भूकंप में लगभग 100 लोग मारे गए थे.

14. 26 दिसंबर,2004, 8.9 की तीव्रता वाले भूकंप के कारण उत्पन्न सूनामी ने एशिया में हज़ारों लोगों की जान गई.

15. 24 फ़रवरी, 2004, मोरक्को के तटीय इलाक़े में आए भूकंप ने 500 लोगों की जान ले ली थी.

16. 26 दिसंबर, 2003, दक्षिणी ईरान में आए भूकंप में 26 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी.

17. 21 मई 2003, अल्जीरिया में भूकंप आया, दो हज़ार लोगों की मौत

18. 24 फरवरी 2003, पश्चिमी चीन में भूकंप, 260 लोग मारे गए और 10 हज़ार से अधिक लोग बेघर.

19. 21 नवंबर 2002, पाकिस्तान के उत्तरी दियामीर ज़िले में भूकंप में 20 लोगों की मौत.

20. 25 मार्च 2002, अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी इलाक़े में 6 की तीव्रता का भूकंप, 800 से ज़्यादा लोग मरे.

21. 26 जनवरी 2001, गुजरात में 7.9 तीव्रता का भूकंप, तीस हज़ार लोग मारे गए.

22. 13 जनवरी 2001, अल साल्वाडोर में 7.6 तीव्रता का भूकंप, 700 से भी अधिक लोग मारे गए.

23. 6 अक्टूबर 2000, जापान में 7.1 तीव्रता का एक भूकंप, 30 लोग घायल हुए और कई लापता.

24. 21 सितंबर 1999, ताईवान में 7.6 तीव्रता का भूकंप, ढाई हज़ार लोग मारे गए.

25. 17 अगस्त 1999, तुर्की के इमिट और इंस्ताबूल शहरों में 7.4 तीव्रता का भूकंप, 17000 लोग मारे गए.

26. 29 मार्च 1999,  उत्तर प्रदेश राज्य के उत्तरकाशी और चमोली में दो भूकंप. 100 से अधिक लोग मारे गए.

27. 25 जनवरी 1999, कोलंबिया के आर्मेनिया शहर में 6.0 तीव्रता का भूकंप. क़रीब एक हज़ार लोग मारे गए.

28. 17 जुलाई 1998, न्यू पापुआ गिनी के उत्तरी-पश्चिमी तट पर समुद्र के अंदर आया भूकंप, एक हज़ार से अधिक मरे.

29. 26 जून 1998, तुर्की के दक्षिण-पश्चिम में अदना में 6.3 तीव्रता का भूकंप, 144 लोग मारे गए.

30. 30 मई 1998, उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान में एक बड़ा भूकंप, चार हज़ार लोग मारे गए.

31. फ़रवरी 1997, उत्तर-पश्चिमी ईरान में 5.5 तीव्रता का एक भूकंप, एक हज़ार लोग मारे गए.

32. 27 मई 1995, रूस के  पूर्वी द्वीप सखालीन में 7.5 तीव्रता का भूकंप, दो हज़ार लोग मरे.

33. 17 जनवरी 1995, जापान के कोबे शहर में भूकंप, छह हज़ार चार सौ तीस लोग मारे गए.

34. 6 जून 1994, कोलंबिया में आया भूकंप, क़रीब एक हज़ार लोग मारे गए.

35. 30 सितंबर 1993, भारत के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों में आए भूकंप से क़रीब दस हज़ार लोगों की मौत.

36. 21 जून 1990, ईरान के उत्तरी राज्य गिलान में भूकंप, चालीस हज़ार से भी अधिक लोगों की मौत.

37. 17 अक्टूबर 1989, कैलिफ़ोर्निया में भूकंप, 68 लोग मारे गए.

38. 7 दिसंबर 1988, उत्तर-पश्चिमी आर्मेनिया में 6.9 तीव्रता का भूकंप, पच्चीस हज़ार लोगों की मौत.

39. 19 सितंबर 1985, मैक्सिको में भूकंप, दस हज़ार से अधिक लोग मारे गए.

40. 28 जुलाई 1976, चीन का तांगशान शहर में भूकंप, पांच लाख से अधिक लोग मारे गए.

41. 22 मार्च 1960, दुनिया का सबसे शक्तिशाली भूकंप चिली में आया. इसकी तीव्रता 9.5 दर्ज की गई.

42. 28 जून 1948, पश्चिमी जापान में पूर्वी चीनी समुद्र को केंद्र बनाकर भूकंप आया, तीन हज़ार से ज़्यादा लोग मरे.

43. 31 मई, 1935, क्वेटा और उसके आसपास के इलाक़ों में भूकंप, लगभग 35 हज़ार लोगों की जानें गईं.

44. 1 सितंबर 1923, जापान की राजधानी टोक्यो में आया ग्रेट कांटो भूकंप, 142,800 लोगों की मौत

45. 18 अप्रैल 1906, सैन फ्रांसिस्को में कई मिनट तक भूकंप के झटके आते रहे. तीन हज़ार लोग मारे गए.

46. 1 नवंबर 1755 पुर्तगाल में 8.7 की तीव्रता का भूकंप, 70,000 की मौत

47. 17 अगस्त 1668 टर्की में 8.0 की तीव्रता का  भूकंप, 8000 की मौत

48. 23 जनवरी 1556 में चीन में 8.0 की तीव्रता का भूकंप, 830, 000 की मौत

49. 9 अगस्त 1138, सीरिया में 230,000 की मौत

50. 22 दिसंबर 0856 में, ईरान के दमगान में 200,000 की मौत.



वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत और तिब्बत एक-दूसरे की तरफ़ प्रति वर्ष दो सेंटीमीटर की गति से सरक रहे हैं. इस प्रक्रिया से हिमालय क्षेत्र पर दबाव बढ़ रहा है. यही वजह है कि पिछले 200 वर्षों में हिमालय क्षेत्र में छह बड़े भूकंप आ चुके हैं. इनके मुताबिक़ इस दबाव को कम करने का प्रकृति के पास सिर्फ़ एक ही तरीक़ा है और वह है भूकंप. इसलिए भूकंपों  को रोकना तो किसी के बस की बात नहीं है, हां इतना ज़रूर है कि इनसे सावधान होकर जानमाल के नुक़सान को कम ज़रूर किया जा सकता है. हालांकि इस मामले मेंसबसे ज़्यादा दुर्भाग्यशाली भारत में है. उपरोक्त हालात से इस बात की पुष्टि तो हो ही जाती है कि हम भी जापान की तरह भूकंप के बारूदी ढेर में बैठे हैं. लेकिन जापान और हममें स़िर्फ इतना ही अंतर है कि जापान इस तरह की परिस्थितियों से जूझने के लिए लिए तैयार है और हम नहीं. समय चेतने का है, नहीं तो हम भी प्रकृति की इस विनाशलीला का शिकार कभी हो सकते हैं.

जिनके लिए यह आख़िरी मौक़ा है



भारत में क्रिकेट अगर धर्म है तो विश्वकप भी महाकुंभ के आयोजन से कम नहीं होता. यह बात स़िर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया के लगभग हर देश पर लागू होती है. यही वजह है कि हर चार साल बाद जब विश्वकप का आयोजन होता है तो उसकी मेजबानी को लेकर देशों में और टीम में जगह पक्की करने के लिए खिलाड़ियों में उत्साह देखते ही बनता है. कुछ खिलाड़ियों की किस्मत इतनी अच्छी होती है कि उन्हें न सिर्फ विश्वकप में खेलने का मौका मिलता है, बल्कि वे विश्वकप विजेता टीम का हिस्सा भी बनते हैं. वहीं दूसरी ओर इंग्लैंड जैसी टीम भी है, जो आज तक विश्वकप ट्राफी से वंचित है.

इन सबके बीच एक चीज जो आम है, वह यह कि हर खिलाड़ी का सपना होता है कि उसे अपने पूरे करियर के दौरान कम से कम एक बार विश्वकप में खेलने का मौका अवश्य मिले. लेकिन इस अंक में हम उन खिलाड़ियों की बात कर रहे हैं, जिनके लिए विश्वकप 2011 उनका आखिरी विश्वकप होगा. उन पर दोहरा दबाव है, विश्वकप जीतने का और अपने आखिरी मौके को अच्छी तरह भुनाने का, क्योंकि पता नहीं, इसके बाद हो सकता है कि उनका करियर रिकॉर्ड यहीं पर थम जाए. शुरुआत मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर से ही करते हैं. खेल प्रेमियों के लिए वह दिन मातम का होगा, जब सचिन क्रिकेट को अलविदा कहेंगे. विश्वकप 2011 सचिन का आखिरी विश्वकप होगा. इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि सचिन की मौजूदगी में भारत ने अभी तक कोई विश्वकप नहीं जीता है. हालांकि इस बात से पूरी दुनिया वाकिफ है कि सचिन अपने समय के हर तरह से सबसे पूर्ण क्रिकेटर हैं और क्रिकेट इतिहास के सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं.

सचिन निस्संदेह दुनिया के सबसे लोकप्रिय क्रिकेटर हैं. बल्लेबाज़ी का शायद ही कोई ऐसा रिकॉर्ड हो, जो उनकी क्षमता से बाहर हो. धैर्य, संयम, आक्रमण, सही गेंद का चुनाव, गेंद का प्लेसमेंट, गैप निकालना और सबसे बढ़कर क्रिकेट के प्रति समर्पण उन्हें एक बेमिसाल खिलाड़ी बनाता है. उनका लंबा अनुभव और किसी भी परिस्थिति से निपटने का हौसला भारत के लिए एक वरदान है. उनके पास वनडे और टेस्ट, दोनों में सबसे ज़्यादा शतक हैं, सबसे ज़्यादा रन हैं. दुनिया का कोई भी गेंदबाज़ उनका विकेट लेने की ख्वाहिश रखता है. दो विश्वकपों में वह सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी रहे. वर्ष 2000 में वह पहले ऐसे खिलाड़ी बने, जिसने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 50 शतक लगाए हों और इस विश्वकप में उनसे यह उम्मीद की जा रही है कि वह अपना 100वां अंतरराष्ट्रीय शतक लगाएंगे. तेंदुलकर आईपीएल में मुंबई इंडियंस के कप्तान हैं, लेकिन उन्होंने भारत की ओर से टी-20 न खेलने का फ़ैसला किया है. जब तक सचिन खेल रहेे हैं, तब तक आप किसी भी करिश्मे की उम्मीद कर सकते हैं. उसके बाद क्या होगा, कोई नहीं जानता. सचिन के अलावा भारत की ओर से आशीष नेहरा भी ऐसे खिलाड़ी होंगे, जिनका यह आखिरी विश्वकप है. गौरतलब है कि आशीष नेहरा ने अंतरराष्ट्रीय वनडे क्रिकेट में 2000-01 में क़दम रखा था और उसके साथ यह भी बता दिया कि उनमें बाएं हाथ के क्लासिक तेज़ गेंदबाज़ की सारी विशेषताएं मौजूद हैं.

नेहरा ने 1999 में अपना पहला टेस्ट खेला था. नेहरा को उनकी चोट ने काफ़ी परेशान किया और जब वह अपने चरम पर थे, तभी परेशानियों ने आ घेरा और फिर गति एवं दिशा पर उनका नियंत्रण जाता रहा. नेहरा ने ज़िम्बॉब्वे के  ख़िलाफ़ ही अपनी पहली पूरी सीरीज़ खेली थी और 2005 में उन्हें ज़िम्बॉब्वे के दौरे को बीच में ही छोड़ना पड़ा था. टेस्ट में उन्हें दोबारा तो नहीं बुलाया जा सका, लेकिन आईपीएल के दूसरे संस्करण में अच्छा प्रदर्शन करने के नतीजे में उन्हें वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध 2009 में वनडे टीम में वापस बुलाया गया. नेहरा ने पाकिस्तान और इंग्लैंड के विरुद्ध ख़ास तौर से अच्छा प्रदर्शन किया है. उन्होंने वनडे में इंग्लैंड के विरुद्ध अपना बेहतरीन प्रदर्शन दिखाया, जब उन्होंने 23 रन देकर छह विकेट झटके. कुल मिलाकर इस विश्वकप के बाद आशीष नेहरा को क्रिकेट की और क्रिकेट प्रेमियों को नेहरा की कमी जरूर खलेगी. अब बात करते हैं उस खिलाड़ी की, जिसने अभी से ही अपने संन्यास की घोषणा कर दी है. कभी अपने प्रदर्शन तो कभी विवादों से लोगों को अक्सर चौंकाने वाले पाकिस्तानी तेज गेंदबाज शोएब अख्तर का यह आखिरी मौका है. अधिकतर समय विवादों से घिरे रहने वाले और रावलपिंडी एक्सप्रेस के नाम से मशहूर शोएब की सनसनाती गेंदों से बल्लेबाजों के होश फाख्ता हो जाते थे. ब्रायन लारा ने जब पहली बार शोएब की सनसनाती गेंदों का सामना किया था तो वह काफी असहज नजर आए थे. शोएब के नाम सबसे तेज गेंद फेंकने का रिकॉर्ड 100.2 मील (161.3 किमी) प्रति घंटा है, जो उन्होंने 2003 के विश्वकप में इंग्लैंड के विरुद्ध दर्ज कराया था. इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी की तेज रफ्तार और आक्रामकता ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी निकली. चोट और अपने गुस्सैल व्यवहार की वजह से अत्यंत प्रतिभाशाली होते हुए भी उन्हें टीम में कभी स्थायी जगह मिली ही नहीं. जानकार आज भी मानते हैं कि अगर थोड़ा सा धैर्य और अनुशासन शोएब में होता तो इस खिलाड़ी को महानतम बनने से कोई नहीं रोक सकता था. 2006 में शोएब को डोपिंग का दोषी पाया गया था. वर्ष 2007 में मोहम्मद आसिफ से मारपीट के कारण उन पर 13 वनडे मैचों की पाबंदी लगाई गई थी. 2008 में पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड की आलोचना करने पर उन पर 18 महीने का प्रतिबंध और 70 लाख रुपये का जुर्माना हुआ था. अब शोएब का शबाब उतार पर है और उनकी गेंदों में वह तेजी भी नहीं रही, जिससे दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज भी खौफ खाते थे. फिर भी उनकी अपनी शैली की वजह से रावलपिंडी एक्सप्रेस को हमेशा याद रखा जाएगा. मालूम हो कि शोएब अख्तर ने अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर की शुरुआत वर्ष 1997 में की थी और उन्होंने 46 टेस्ट मैचों में 178 विकेट लिए. उन्होंने अपना आख़िरी टेस्ट मैच वर्ष 2007 में भारत के ख़िलाफ़ बंगलुरू में खेला था.

 अभी तक शोएब 163 एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं और उन्होंने 247 विकेट भी लिए. शोएब की छवि के ठीक विपरीत जैक्स कालिस भी उन खिलाड़ियों में से हैं, जो आखिरी बार विश्वकप में हिस्सा ले रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका टीम के  सर्वश्रेष्ठ हरफनमौला खिलाड़ी जैक्स कालिस टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में शुमार हैं. कालिस बल्लेबाजी में अपनी क्लास के लिए जाने जाते हैं. जबरदस्त बल्लेबाज होने के साथ-साथ वह मध्यम-तेज गेंदबाजी भी करते हैं. 1995-96 में इंग्लैंड के खिलाफ इस खिलाड़ी ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर का सफर शुरू किया. कालिस की ़खासियत है कि वह क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं. 1998 से 2002 के बीच कालिस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हरफनमौला खिलाड़ी के तौर पर उभरे. 1998 में चैंपियंस ट्राफी में दक्षिण अफ्रीका को खिताब दिलाने में उनकी अहम भूमिका थी. कालिस इस टूर्नामेंट में दो बार मैन ऑफ द मैच, जबकि पूरी सीरीज के लिए मैन ऑफ द सीरीज भी चुने गए. टेस्ट इतिहास के कालिस मात्र चौथे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने लगातार पांच मैचों में शतक जड़ा हो. चोटों से जूझने के बाद भी इस खिलाड़ी ने जीवट खेल दिखाया है. 2011 में भारत के ़िखला़फ निर्णायक टेस्ट मैच में कमर में बहुत दर्द के बाद भी कालिस मैदान पर डटे रहे और शतक जड़कर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को हार से बचाया. इसके अलावा वह 2005 में आईसीसी द्वारा प्लेयर आफ द ईयर चुने जा चुके हैं. उनके  शानदार करियर ग्राफ में एक नगीना लगना अभी बाकी है. क्रिकेट जगत के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपाधि यानी आईसीसी क्रिकेट विश्वकप को जीतना. वैसे तो कई बड़े खिलाड़ी हैं, जो अगले विश्वकप में नहीं दिखाई देंगे, लेकिन शायद सभी के नाम उतने यादगार नहीं रहेंगे, जितना आस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग का रहेगा. जानकार आज भी मानते हैं कि सचिन का रिकॉर्ड अगर कोई तोड़ सकता है तो वह पोंटिंग ही हैं. आस्ट्रेलिया की कई सालों तक कप्तानी करने वाले रिकी पोंटिंग ने एलन बोर्डर का रिकार्ड तोड़कर आस्ट्रेलिया की तरफ से टेस्ट मैचों में सर्वाधिक रन बनाने का रिकॉर्ड अपने नाम किया. वह अब टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वाले शीर्ष तीन बल्लेबाजों में शामिल हैं. पोंटिंग के नाम अब 134 टेस्ट मैचों की 225 पारियों में 11,188 रन दर्ज हैं, जिसमें 38 शतक और 46 अर्धशतक शामिल हैं. टेस्ट क्रिकेट में पोंटिंग से अधिक रन भारत के सचिन तेंदुलकर और वेस्टइंडीज के ब्रायन लारा ने बनाए हैं. अगर सब कुछ ठीक रहा तो कोई आश्चर्य नहीं कि रिकी जाते-जाते कोई नया करिश्मा कर जाएं. हालांकि उनके लिए आखिरी विश्वकप का मलाल इसलिए नहीं होगा, क्योंकि वह इससे पहले अपनी टीम को विश्वकप जिता चुके हैं. फिर भी आस्ट्रेलियाई टीम के लिए उनके जैसे कप्तान और खिलाड़ी की जगह भरना आसान नहीं होगा. अब जब उम्र के इस पड़ाव पर आकर इन खिलाड़ियों के सामने क्रिकेट को अलविदा कहने का मौका करीब आ गया है तो फिर इन्हें जाते-जाते क्रिकेट और क्रिकेट प्रेमियों को ऐसा तोहफा जरूर देना होगा, जिससे इनकी विदाई शानदार मानी जाए.