सफदरगंज से सिंगापुर तक के सफर में भले ही गैंगरेप की शिकार लड़की ने दम तोड़ दिया हो पर मर तो उसी दिन गई थी जब 16 दिसंबर की रात चलती बस में उस पर दरिंदगी कहर बनकर टूटी थी. अब प्रायश्चित और शर्मसार होने के अलावा एक यही रास्ता है कि आज का युवा बलात्कार जैसे वीभत्स कृत्य के खिलाफ उबले इस आक्रोश को गलीगली तक ले जाए और उसे सालोंसाल अपने अंदर पालें. ताकि फिर कोई दामिनी हैवानियत और हवस की आग में न झुलसे. उस के प्रति यही हमारी सच्ची श्रद्धांजली होगी.
उठो जवानों तुम्हे जगाने
क्रांति द्वार पर आई है, 70 के दश क में जेपी
आंदोलन के दौरान जब यह नारा गूंजता था तो देश भर का युवा तत्कालीन सरकार के भ्रष्टचार और तानाशाही के खिलाफ स्कूलों और कालेजों से निकलकर सड़कों पर उमड़
पड़ता था. उस दौरान युवाशक्ति की इस गोलबंदी के आगे सरकार की हताशा और बेबसी कुछ
ऐसी थी, जैसी दिल्ली गैंगरेप के
खिलाफ युवाओं के फूटे आक्रोश के सामने है.
रायसीना हिल्स, जंतरमंतर, प्रगति मैदान और इंडिया गेट पर उमड़ा जनसैलाब यह बताने के लिए
काफी है कि इतिहास खुद को दोहराता है. एक मासूम लड़की के बलात्कार और उस की मौत तक
सरकार का जो शर्मनाक रवैया पूरी जनता के सामने दिखा, उसी से मजबूर होकर युवाओं ने सरकार के
खिलाफ मोर्चा खोला है. और इतिहास गवाह है कि जब जब युवाओं ने क्रांति की मसाल अपने
हाथों में थामी है, व्यवस्था हिलती
दिखी है.
गैंगरेप कांड के खिलाफ
गुस्से से भरे युवाओं ने न सिर्फ दिल्ली सरकार को बल्कि पूरी दुनिया को बता दिया
है कि अगर गुस्सा जायज हो तो किसी लीडर या अगुआ के बगैर भी इतना बड़ा आंदोलन खड़ा
किया जा सकता है. बगैर किसी नेता का पहला आंदोलन और बलात्कार जैसे जघन्य वारदात के
मसले पर सरकार को झकझोरने के लिए युवा बधाई के पात्र हैं.
पर मन में एक डर भी है.
डर इस बात का कि कहीं यह आंदोलन भी बाकी बड़े तथाकथित ऐतिहासिक आंदोलनों की तरह
चार दिन की चांदनी, मीडिया का
टीआरपी बेस्ड विजुअल प्रेजेंटेंशन, चंद फिल्मों की देखादेखी षुरू हुआ कैंडिल मार्च का ट्रेडिशन या फिर
किसी सियासी दल, नेता, पंडेपुजारियों या योगगुरुओं द्वारा हाइजैक
किया हुआ आंदोलन तो नहीं बन जाएगा.
यह डर इस बार किसी भी
हालत में सही साबित नहीं होना चाहिए क्योंकि युवाओं को यह स्वर्णिम अवसर पहली बार
मिला है जब उन के इस आंदोलन के सामने सियासी मलाई जीमने वाला कोई नेता नहीं है. वह
खुद नेता है और खुद जनता. अब यह आंदोलन कुंद नहीं होना चाहिए. इस के अलावा सरकार ;यहां सरकार से मतलब मनमोहन या सोनिया
गांधी ही नहीं बल्कि विपक्षी दलों समेत हर उस प्रश सनिक या राजनीतिक इकाई है, जो किसी न किसी रूप में जनता का
प्र्रतिनिधित्व करती है.द्ध जैसे आज की परिस्थितियों में इस हद तक लाचार, बेबस, असहाय और घुटने टेके खडी है, वैसे पहले कभी नही खडी होती थी. अब अगर तानाषाही मानसिकता की
वर्तमान सरकार युवाओं के आक्रोश से डरी
सहमी है तो उन चंद बलात्कारियों की बिसात ही क्या है. इसलिए बहुत जरूरी है कि
हमारा यह गुस्सा और आंदोलन सिर्फ जंतर मंतर, रायसीना हिल्स या इंडिया गेट पर ही न चले बल्कि यह हर उस गली महल्ले
बस, मेट्रो स्टेशन, मंदिर, मौल, बाजार और हर उस
परिवार तक चले जहां महिलाओं को भोगने की वस्तु समझकर उनका षारीरिक या मानसिक शोषण करने वाले लोग दिखते या पलते हैं.
हर युवा जानता और देखता
है कि जब वह अपनी गलीमहल्ले से निकलकर बस या मेट्रो के जरिए अपनेअपने अपने काम की
जगह पुहंचता है तो उसे हर नुक्कड़, चैराहे और बसों में लड़कियों से छेड़छाड़ या कमेंट करने वाले तत्व
मिलते हैं. याद रखिए जो नुक्कड़ चैराहे पर दिनदहाड़े किसी लड़की या महिला को
छेड़ने की हिम्मत कर सकता है वह मौका पाकर रेप जैसा कदम कभी भी उठा सकता है. असल
में बलात्कारी तत्व इन्हीं जगहों पर पनपते हैं. इसलिए अगर हम इंडिया गेट या
रायसीना हिल्स पर सांप के गुजरने के बाद की लकीर पीटने के बजाए उन गली महल्लों में
सरेआम घूमने वालों सापों पर धावा बोलेंगे तब जाकर इन भेडियों के मन में भी वहीं
खैफ पैदा होगा जो अभी सरकार के कंपकपाते बयानों में दिखता है.
यह सब कुछ दिनों के शोरशराबे, कैंडल मार्च या सरकार की
घेराबंदी से नहीं होगा बल्कि तब होगा जब युवाओं के मन में उबल रहा यह आक्रोश उन के अंतर्मन में भी रोज उबलेगा. साथ ही इस
उग्र आंदोलन को गली गली तक ले जाना होगा. समाज में कुकुतमुत्तों की तरह पनप रहे इन
असामाजिक तत्वों को सरेआम एक्सपोज करना होगा., तब जाकर समाज इस तरह की
कलंकित वारदातों से मुक्त हो सकेगा.
युवा इस बात को अच्छे से
समझ लें कि बैनरों और तख्तियों पर बचकाने स्लोगन ओर नारे लिखकर, कड़े कानून और त्वरित कार्यवाही की मांग
कर सिर्फ इस लडकी के साथ बलात्कार और उस की हत्या करने वाले को सजा दिलवा सकते हैं
पर दूेश भर में फैले हर बलात्कारी के मन
में ऐसा डर नहीं पैदा कर सकते कि वह इस तरह का कदम उठाने से पहले दस बार सोचे.
अगर कड़े कानून बनाने या
रेपिस्ट को फांसी देने से बलात्कार की घटनाए बंद होतीं तो दुनिया भर के उन देषों
में कभी बलात्कार नहीं होता जहां रेप की इतनी वीभत्स और दिल दहला देने वाले पनिशमेंट
हैं कि सोचकर ही दिल बैठ जाए. और हां, अगर दिल्ली गैंग रेप के आरोपियों को फांसी की सजा की हम मांग करते
हैं तो सांसद, विधायक, मुखिया, जिला परिश द सदस्यों को भी फांसी की सजा मिलनी चाहिए, जिन पर बलात्कार के केस चल रहे हैं. एक
साथ मामले का ट्रायल किया जाए. शुरूआत करनी है तो ढंग से की जाए.
रोश , आक्रोश, गुस्सा, नाराजगी सब अपनी
जगह है और यह दिखना भी चाहिए लेकिन इस के नाम पर पुलिस के साथ लड़ने से कुछ हल
नहीं होने वाला है. क्योंकि आप भी जानते हैं कि बलात्कारी इंडिया गेट पर नहीं बैठे
हैं. वो तो देश की रग रग में हैं. हर गली
और हर चैराहे पर हैं. इसलिए जरूरी है कि सही बीमारी को ढूढा जाए और फिर से जड से
खत्म किया जाए क्योंकि हमें बीमार को नही बल्कि बीमारी को खत्म करना है बीमारी तभी
खत्म होती है जब हम उसके सिम्टम्स यानी लक्षणों और उन स्रोतो का पता लगा लें जहां
ये तत्व पैदा होते हैं. हम सब जानते हैं कि इस बीमारी के लक्षणों से रोजाना हमारा
सामना होता है. बस अब तक हम इन्हें हंसकर या डरकर टालते आ रहे हैं.
दरअसल, पुलिस और कानून ब्यवस्था के खिलाफ हमारे
अंदर का गुस्सा तभी उबाल लेता है जब इस तरह की कोई ताजा वारदात हो. जैसेजैसे मामला
मीडिया की सुर्खियों और नेताओं की बयानबाजियों से ठंडा पड़ने लगता है वैसवैसे ही
हमारे गुस्से का उबाल भी ठंडा पडने लगता है.
आज देश का युवा आज संकल्प ले कि उसे बीमार को नहीं
बल्कि बीमारी को जड़ को खत्म करना है. यह काम सिर्फ और युवा ही कर सकते हैं.
युवा श ब्द को उल्टा लिखने पर वह वायु बन जाता है. वायु जब आक्रोश मंे बहती है तो दुनिया में बवंडर ला देती है.
तख्ते पलट देती है. युवाश क्ति भी कुछ ऐसी ही है. बस उसे जरूरत होती है सही दिषा
की. इस मामले ने उन्हें यह दिषा भी दे दी है. जब भी देश दुनिया में बड़े आंदोलन और
परिवर्तन हुए हैं उन में युवाओं की महती भूमिका रही है. कहा भी गया है कि किसी भी देश
की विकास की रीढ युवा होते हैं. भारत भी
युवा शक्ति से लबरेज है.
जाहिर है इस समय जड
बलात्कारी नहीं बल्कि बलात्कार की मानसिकता है. और मानसिकता तभी बदलेगी जब यह युवा
आक्रोश देश की हर गलियों से गुजरता हुआ सालों साल हमारे
अंदर सुलगता रहेगा और जिंदा रहेगा. अगर हर युवा ऐसा करने में सफल रहा तो यह
निष्चित है कि हम में किसी की भी मां, बेटी, बहन, पत्नी और औरत का दामिनी जैसा हश्र नहीं
होगा.