देश की उस महान कवि के अपमान की, जिसने न स़िर्फ अपनी लेखनी से देश को कई कालजयी रचनाएं दी हैं, बल्कि देश की आज़ादी की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा की है. इससे ज़्यादा दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है कि जिस आदमी ने देश को आज़ाद कराया, आज उसी का मकान उसके अपने लोगों ने ही क़ब्ज़ा लिया है.
पटना स्थित उनके घर पर उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के भाई महेश मोदी ने क़ब्ज़ा कर रखा है. न स़िर्फ क़ब्ज़ा कर रखा है, बल्कि अपने भाई के मंत्री पद केज़ोर पर उनको घर से निकालने की धमकी भी दी है.. दरअसल, पटना के राष्ट्रकवि दिनकर गोलंबर से सटे आर्य कुमार रोड पर स्थित दिनकर भवन है.
यह भवन सुविख्यात कवि रामधारी सिंह दिनकर का है. कुछ साल पहले दिनकर जी की विधवा पुत्रवधू हेमंत देवी ने बिहार के उपमुख्यमंत्री के भाई महेश मोदी को भवन परिसर में स्थित एकमात्र दुकान किराए पर दी थी. इस दुकान को तीन साल के इक़रार नामे पर किराए पर दिया गया था. जब 30 अप्रैल 2010 को यह इक़रारनामा खत्म हो गया तो महेश मोदी को दुकान खाली करने के लिए कहा गया. महेश मोदी ने दुकान खाली करना तो दूर उलटा घरवालों को धमकाना शुरू कर दिया.
जब मामले की शिकायत करने की बात कही गई तो ऐसे में महेश मोदी का जवाब था कि जहां जाना चाहते हैं जा सकते हैं, मेरा भाई उप मुख्यमंत्री है. मेरा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है. बार-बार दुकान खाली करने का आग्रह करने पर उप मुख्यमंत्री के लाडले महेश ने यह तक कह डाला कि दुकान के साथ-साथ एक महीने के अंदर पूरे मकान पर क़ब्ज़ा कर लेंगे. चौथी दुनिया से जब इस संबंध में दिनकर जी के परिवार से बात की तो कई बातें सामने आईं. दिनकर जी के पौत्र अरविंद कुमार ने बताया कि इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री आवास एक अणे मार्ग जाकर नीतीश कुमार से गुहार भी लगा चुके हैं, लेकिन वहां से उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा. इसके अलावा उन्होंने इस धमकी की लिखित जानकारी उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और बिहार के सभी राजनीतिक दलों के पास भेजी है. लेकिन अभी तक इस मामले पर कोई भी कार्रवाई नहीं की जा सकी है.
इसलिए उन्होंने राजघाट पर शांतिपूर्ण धरने पर बैठने का फैसला लिया. जब हमने उनसे पूछा कि अगर धरने के बाद भी काई बात नहीं बनी तो क्या करेंगे? इस पर अरविंद कुमार का कहना था हमसे जो बन पड़ा, हमने किया. अगर फिर भी हमें मदद नहीं मिली तो हम सीधे प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौपेंगे. हालांकि, यहां पर बात स़िर्फ अवैध क़ब्ज़े की नहीं है, बात है देश की उस महान कवि के अपमान की, जिसने न स़िर्फ अपनी लेखनी से देश को कई कालजयी रचनाएं दी हैं, बल्कि देश की आज़ादी की लड़ाई में भी महत्वपूर्ण भूमिका भी अदा की है. इससे ज़्यादा दुर्भाग्य की बात और क्या हो सकती है कि जिस आदमी ने देश को आज़ाद कराया, आज उसी का मकान उसके अपने लोगों ने ही क़ब्ज़ा लिया है. यह स़िर्फ दुर्भाग्य ही नहीं बल्कि शर्मनाक भी है कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को इस बात का संज्ञान है और तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. अपनी पीड़ा का अंत न होते देख आ़खिर दिनकर जी के परिवार ने पिछले दिनों नई दिल्ली में महात्मा गांधी की समाधि राजघाट के सामने शांतिपूर्ण धरना दिया. इस धरने में दिनकर जी की के परिवार के अलावा राम विलास पासवान भी विरोध करते दिखे.
सभी ने इस घटना की निंदा करते हुए जल्द ही उचित कार्रवाई की मांग की. अब इस पर कितनी कार्रवाई होती है यह तो आने वाला व़क्त ही बताएगा पर इतना तो तय है कि दिनकर जी का जो अपमान होना था वह हो ही गया. यह शांतिपूर्ण धरना अपनी खामोशी के पीछे कई सवाल छोड़ गया. वो सवाल जिनके जवाब न तो नीतीश के पास हैं और न ही सुशील मोदी के पास. सवाल उस पी़ढी से भी है जो रामधारी सिंह दिनकर को प़ढते हुए बड़ी हुई है. क्या इन सबका दिनकर जी के प्रति कोई फर्ज़ नहीं है. क्या आज मंत्रियों के रिश्तेदार महान कवि से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं? अगर हमारे दिल में देश के महापुरुषों के लिए इतनी भी इज़्ज़त नहीं बची है तो आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आने वाला कल कैसा होगा.