Wednesday, July 13, 2011

ये बदलाव कितने जरूरी हैं



व्‍यापार का एक सिद्धांत यह होता है कि जैसे ही व्यापारी को महसूस हो कि उसके बिजनेस की चमक फीकी पड़ने लगी है, वह या तो अपना बिजनेस बदल दे या उसे जल्द ही रेनोवेशन की प्रक्रिया में लाए. आजकल क्रिकेट के व्यापारीकरण से तो सभी वाकिफ हैं. यह बिजनेस भी अपनी लोकप्रियता और मुनाफे के शिखर पर है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से भारतीय क्रिकेट टीम ने इतना क्रिकेट खेला कि लोग खेल से ही उकताने लगे. पहले विश्वकप हुआ, उसके तुरंत बाद आईपीएल और फिर वेस्टइंडीज दौरा.

 बात यहीं खत्म नहीं होती. टीम इंडिया वेस्टइंडीज दौरे के बाद इंग्लैंड रवाना होगी. नतीजतन, आईपीएल में क्रिकेट प्रायोजकों और प्रबंधन को उतना फायदा नहीं पहुंचा, जितने की उन्हें उम्मीद थी. हालांकि बिजनेस के टर्म में कम मुनाफे को नुकसान की ही संज्ञा दी जाती है. लगता है कि अब आईसीसी को भी इसका अंदाजा हो चुका है, इसलिए अब वह भी रेनोवेशन की प्रक्रिया से गुजर रहा है. अभी हाल में नियमों के बदलाव को लेकर जो भी विवाद और चर्चाएं हुई हैं, उनसे तो यही लगता है कि क्रिकेट के नियमों में बदलाव करके एक बार फिर से लोगों में क्रिकेट के प्रति दिलचस्पी पैदा की जाए.

गौरतलब है कि लंबी बहस के बाद आखिर में अंपायरों के फ़ैसले की समीक्षा (डीआरएस) करने वाली तकनीकी प्रणाली स्वीकार कर ली गई. अब यूडीआरएस का नया बदला हुआ रूप टेस्ट और वन डे मैचों में लागू हो जाएगा. अब विवादास्पद अंपायर डिसिजन रिव्यू सिस्टम (यूडीआरएस) का संशोधित रूप सभी अंतरराष्ट्रीय मैचों में लागू होगा. उसमें हॉट स्पॉट तकनीक तो होगी, लेकिन हॉक आई नहीं होगी, जिससे गेंद की दिशा का पता चलता है. यानी यूडीआरएस में एलबीडब्ल्यू के फैसले शामिल नहीं होंगे. इसमें अब थर्मल इमेजिंग और साउंड तकनीक शामिल होगी. 2008 के बाद अगले महीने शुरू हो रही इंग्लैंड सीरीज में भारत पहली बार यूडीआरएस के तहत मैच खेलेगा. अब यूडीआरएस का नया बदला हुआ रूप टेस्ट और वन डे मैचों में लागू हो जाएगा. अब विवादास्पद अंपायर डिसिजन रिव्यू सिस्टम (यूडीआरएस) का संशोधित रूप सभी अंतरराष्ट्रीय मैचों में लागू होगा. उसमें हॉट स्पॉट तकनीक तो होगी, लेकिन हॉक आई नहीं होगी, जिससे गेंद की दिशा का पता चलता है. यानी यूडीआरएस में एलबीडब्ल्यू के फैसले शामिल नहीं होंगे. इसमें अब थर्मल इमेजिंग और साउंड तकनीक शामिल होगी. एक तरफ जहां आईसीसी इस बात को लेकर संतुष्ट है कि वह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानी बीसीसीआई को इसके लिए राज़ी करने में सफल हुआ, वहीं बीसीसीआई ख़ुश है कि सिर्फ़ ट्रैकिंग टेक्नालॉजी के सहारे डीआरएस के इस्तेमाल का उसका विरोध भी मान लिया गया. पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद आईसीसी की हांगकांग में हुई बैठक में फ़ैसला हुआ कि समीक्षा करने वाली प्रणाली यानी डीआरएस के तहत इंफ्रारेड कैमरों और विकेट में लगी आवाज़ पकड़ने वाली मशीनों की मदद ली जाएगी.

 इंफ्रारेड कैमरे यह देख सकेंगे कि अगर विकेट के पीछे कैच या एलबीडब्ल्यू की अपील हुई है तो कहीं गेंद बल्ले को छूते हुए तो नहीं निकली थी. साथ ही विकेट में लगी आवाज़ पकड़ने वाले उपकरण भी यह बताएंगे कि गेंद के बल्ले से छूने की आवाज़ हुई है या नहीं. बीसीसीआई अब तक इस्तेमाल होने वाली बॉल ट्रैकिंग टेक्नालॉजी के विरुद्ध था और आईसीसी ने भी अब बीसीसीआई के रुख़ पर मुहर लगाते हुए कहा है कि इस तकनीक का इस्तेमाल द्विपक्षीय सीरीज में दोनों टीमों की सहमति पर होगा. यानी अगले महीने होने वाले इंग्लैंड के दौरे में अंपायरों के फ़ैसले की समीक्षा की प्रणाली लागू तो होगी, मगर एलबीडब्ल्यू के फैसलों के लिए यह लागू नहीं होगी, क्योंकि वे फ़ैसले बॉल ट्रैकिंग टेक्नालॉजी के इस्तेमाल पर निर्भर होते हैं. इन तब्दीलियों से इतना तो तय है कि आईसीसी के नए नियम क्रिकेट के स्वरूप को बदल डालेंगे.


 आईसीसी की बैठक में यह भी फ़ैसला हुआ कि एक दिवसीय मैचों में टीमों को अंपायर के फ़ैसले के विरुद्ध अब दो के बजाय एक बार अपील का मौक़ा मिलेगा और अगर अपील सही हुई तो वह मौक़ा बरक़रार रहेगा. अब बैटिंग और बॉलिंग के पावर प्ले 16 से 40 ओवरों के बीच ही लिए जा सकेंगे. साथ ही गेंदबाज़ों के दोनों छोरों से नई गेंद का इस्तेमाल होगा यानी मैच के बीच में अब गेंद बदलने की ज़रूरत नहीं होगी. साथ ही एक साल के भीतर अगर किसी टीम का कप्तान दो बार धीमे ओवर रेट का दोषी पाया गया तो उसे निलंबन का सामना करना पड़ेगा, पहले इसकी इजाज़त तीन बार की थी. विश्वकप को ध्यान में रखते हुए परिषद ने 2015 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में होने वाले क्रिकेट विश्वकप के लिए एक क्वालिफ़िकेशन की प्रक्रिया अपनाने की सलाह दी है यानी आयरलैंड और नीदरलैंड जैसी टीमों के इस विश्वकप में शामिल होने की राह खुल गई है. हालांकि यह सिफ़ारिश नहीं की गई है कि विश्वकप में कितनी टीमें शामिल की जाएं, लेकिन इससे इतना तो तय है कि अब अगले विश्वकप में छोटी टीमें भी भाग ले सकेंगी. इसके अलावा एक और बदलाव हुआ है, जिसे लेकर सुनील गावस्कर काफी खफा हैं.

दरअसल, बदलाव यह है कि आईसीसी की एग्जीक्यूटिव कमेटी ने फैसला किया है कि वन डे में घायल बल्लेबाजों को रनर नहीं दिए जाएंगे यानी अब रनर का इस्तेमाल करने का अधिकार बल्लेबाज को नहीं मिलेगा. जब भी इस तरह के परिवर्तन होते हैं, इन्हें लेकर सहमति और असहमति की स्थिति बनती रहती है.  इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ है. गावस्कर इस बात को लेकर इतने नाराज है कि उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर बल्लेबाज को रनर नहीं दोगे तो फिर गेंदबाज को मैच के बीच में पानी भी न दिया जाए.


 उनके मुताबिक, बल्लेबाजों पर लागू होने वाला नियम उतनी ही कड़ाई से फील्डिंग वाली टीम पर भी लागू होना चाहिए. नाराज गावस्कर ने यह सुझाव तक दे डाला कि गेंदबाजों को पानी न दिया जाए. वे एक ओवर डालते हैं और बाउंड्री पर आ जाते हैं, जहां उन्हें एनर्जी ड्रिंक्स दिया जाता है. गावस्कर ने कहा कि अगर आईसीसी को लगता है कि घायल बल्लेबाजों को रनर देना नाइंसाफी है तो उसे ड्रिंक्स ब्रेक भी खत्म कर देने चाहिए और वैकल्पिक फील्डर का कॉन्सेप्ट भी खत्म कर देना चाहिए. किसी हद तक उनकी यह नाराजगी जायज नजर आती है. लेकिन सवाल अब भी वही है कि इस तरह के बदलावों का क्या औचित्य है? अच्छा तो यह होता कि खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर चर्चा होती, नई प्रतिभाओं के भविष्य को लेकर योजनाएं बनतीं और इस खेल से जुड़े उन कर्मचारियों के विकास की बात होती, जो हमेशा पर्दे के पीछे रहकर क्रिकेट के विशाल आयोजनों को कामयाबी की दहलीज तक ले जाते हैं. लेकिन ऐसा नहीं होगा, क्योंकि क्रिकेट का व्यापार अभी जोरों पर है और सिर्फ रेनोवेशन मात्र से ही पब्लिसिटी बटोरने वालों की कमी नहीं है