जब तक यह आलेख पाठकों तक पहुंचेगा तब तक विश्व कप 2011 का विजेता सामने आ चुका होगा, लेकिन अपने आख़िरी पड़ाव की ओर पहुंच चुके इस महाकुंभ में अब तक जितने भी मैच हुए हैं उनमें किसी भी तरह का रोमांच देखने को नहीं मिला. जैसा कि पहले से ही उम्मीद थी कि आयरलैंड और कनाडा जैसी दूसरी टीमें शुरुआती राउंड से ही बाहर हो जाएंगी, ठीक वैसा ही हुआ. विश्व कप का पहला हफ़्ता बहुत रोमांचक नहीं रहा, जहां क्रिकेट जगत की शीर्ष टीमों और बाक़ी टीमों के बीच का अंतर इतना बड़ा था कि मुक़ाबला एकतरफ़ा होना ही था. सभी टीमें अपना-अपना खाता निपटाकर टूर्नामेंट से बाहर हो चुकी हैं. अब बची वही कुछ चुनिंदा टीमें, जो ज़्यादातर हर विश्वकप में सेमीफाइनल में भिड़ती हैं, मसलन इंडिया, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान. अगर क्रिकेट के जानकारों की मानें तो उपमहाद्वीप से बाहर की किसी भी टीम के लिए विश्व कप जीतना बेहद मुश्किल होगा, क्योंकि यहां की परिस्थितियां ही ऐसी हैं. नीची रहने वाली और धीमी घूमने वाली विकेट में बाहर की किसी भी टीम की गेंदबाज़ी में ऐसा संतुलन नहीं है जिससे कि वह नियमित रूप से मैच जिता सके, लेकिन इसी आधार पर अन्य टीमों की दावेदारी को कमज़ोर नहीं कहा जा सकता है. दरअसल मुश्किल उनको होगी, जिनकी बल्लेबाज़ी में इतना दम नहीं है कि वे शीर्षक्रम के लड़खड़ाने पर संभल सकें. बात अगर मेज़बान देश भारत की बात की जाए तो अब तक मैच देखने के बाद यही अनुमान निकाला जा सकता है कि इसका टॉप ऑर्डर बुरी तऱफ फ्लॉप रहा है. इक्का-दुक्का खिलाड़ियों को छोड़ दिया जाए तो ज़्यादातर मैचों में बल्लेबाज़ तू चल मैं आया की तर्ज़ पर ही खेले हैं. इसी वजह से दक्षिण अफ्रीका के ख़िला़फभारत का 19 साल बाद वनडे सीरीज जीतने का सपना अधूरा ही रह गया. इसकी सबसे बड़ी वजह टॉप ऑर्डर का फ्लॉप होना रही. इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब भारत नागपुर में खेले गए विश्व कप क्रिकेट के एक मैच में दक्षिण अफ्रीका से तीन विकेट से हार गया. दक्षिण अफ्रीका को जीत के लिए 297 रनों की आवश्यकता थी, जो उसने दो गेंद रहते ही हासिल कर ली. इस विश्व कप में यह भारत की पहली हार थी. इसके बाद भारत का मुक़ाबला वेस्टइंडीज से हुआ. मैच की शुरुआत में तो ऐसा ही लग रहा था यह मैच भी भारत की झोली से चला जाएगा, लेकिन क़िस्मत से टीम इंडिया जीत गई. इसके बाद भारत का मुक़ाबला आस्ट्रेलिया से हुआ और इस मैच को जीतकर भारत ने शानदार वापसी करते हुए किसी हद तक अपनी दावेदारी जता दी है. अब बचता है श्रीलंका. यह एक ऐसी टीम है जिसकी गेंदबाज़ी संतुलित है, मैदान पर खिलाड़ी चुस्त हैं और बल्लेबाज़ी ठोस है. वे किसी भी टीम को चुनौती दे सकते हैं. फ़ाइनल में भारत और श्रीलंका की टक्कर की संभावना पूरी बनती है, बशर्ते दोनों टीमें नॉक आउट दौर में न टकरा जाएं. लेकिन खेल प्रेमियों समेत कई लोगों की इच्छा भारत-पाक के मैच में दिखती है. ऐसे में अब अगर सेमीफ़ाइनल में इन दोनों टीमों के भिड़ने की संभावना हो जाए तब? इस रोचक संभावना से क्रिकेट प्रेमी तो उत्साहित हैं ही, लगता है अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद भी उत्साहित है, क्योंकि हारून लोर्गाट अहमदाबाद में संवाददाता सम्मेलन में आए और उन्होंने क्वार्टर फ़ाइनल मैचों का ज़िक्र शुरू किया तो पहले बोले कि भारत और पाकिस्तान के मैच का विजेता मोहाली में खेलेगा. इससे पहले कि वह आगे बढ़ते उनके साथियों और मीडिया वालों ने उन्हें याद दिलाया कि अभी क्वार्टर फ़ाइनल में ये दोनों टीमें अलग-अलग खेल रही हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट से आईसीसी को काफ़ी मुनाफ़ा होता है और वहां भारत-पाकिस्तान के मैच की तो बात ही क्या होगी, कहीं ऐसा तो नहीं कि नज़र उस मुनाफ़े पर रखे हुए लोर्गाट साहब दिल की बात बोल गए. ख़ैर जो भी हो हालात भारत पाक के साथ ही हैं. वैसे भारत और पाकिस्तान जैसे देश इस टूर्नामेंट से पिछली बार की तरह जल्दी ही रुख्सत न हो जाएं, इसलिए इस बार ऐसा फ़ॉर्मेट बनाया गया, जहां दोनों टीमें कम से कम क्वार्टर फ़ाइनल तक तो पहुंचे ही जाएं. पिछली बार प्रायोजकों को भारी नुक़सान उठाना पड़ा था, क्योंकि क्रिकेट के बड़े प्रायोजक भारतीय बाज़ार को निशाना बनाते हैं. अब ऐसे में सचिन तेंदुलकर की लोकप्रियता को भी भुनाने का उन्हें मौक़ा मिलता है. इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि विश्वकप में भारत या पाक ़फाइनल तक ज़रूर पहुंचेंगे. पाकिस्तान की गेंदबाज़ी उन तमाम झटकों के बाद जिन्होंने उसकी धार को कुंद किया है, मज़बूत लगती है, लेकिन तब क्या उसकी टीम नियमित तौर पर बड़े स्कोर कर सकेगी? इस पर संदेह है. ऐसे में बचते हैं केवल दो मुख्य दावेदार और उनके दावे को पहले हफ़्ते के उनके प्रदर्शन से और बल मिलता है. भारत की बल्लेबाज़ी, ऐसी परिस्थितियों में जिससे वह भली-भांति परिचित है, वह देखने में ही डरानेवाली और ठोस लगती है. अगर उसका ऊपरी और मध्य क्रम नहीं बैठा, जिसकी संभावना ऐसे विकेटों पर कम ही है तो खिला़डी निर्दयी होकर खेलेंगे.
और उनके पास ऐसे धीमी गति के गेंदबाज़ हैं जो किसी भी टीम की बल्लेबाज़ी का कचूमर निकाल सकते हैं. फिर भी, उनका कमज़ोर-तेज़ आक्रमण, मैदान पर सुस्त हाव-भाव और अपेक्षाओं के दबाव का सामना करने की टीम की क्षमता चिंता की वजह होनी चाहिए.इसके अलावा एक और बात यह कि यह विश्वकप सचिन और पॉन्टिग का आख़िरी विश्वकप माना जा रहा है. हालांकि रिकी इस बात से इंकार करते हैं कि वह विश्वकप के बाद संन्यास ले लेंगे. रिकी से संवाददाताओं ने पूछा कि विश्व कप जैसे मुक़ाबले में सचिन और पॉन्टिंग आख़िरी बार आमने-सामने होंगे तो वह बातों ही बातों में सचिन की तारीफ़ कर गए. बोले, जहां तक हमारे अंतिम विश्व कप की बात है तो सचिन जिस फ़ॉर्म में हैं वह तो अभी एक और विश्व कप खेल सकते हैं. मैं उम्मीद कर रहा हूं कि अगले मैच से मैं भी फ़ॉर्म में लौटूंगा और अगले विश्व कप तक खेल सकूंगा. वैसे सचिन के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 99 शतक हो चुके हैं और किसी भी मैच में वह शतकों का शतक जड़ सकते हैं. उनके प्रशंसकों को भी हर मैच से पहले बेसब्री से सचिन के उस 100वें शतक का इंतज़ार रहता है. उपरोक्त विश्लेषण और आंकड़े बताते हैं कि विश्कप के असली मुक़ाबले अभी बाकी हैं और टीमों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी. एक ओर जहां जानकार मेज़बानों की दावेदारी मज़बूत बता रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर बाक़ी टीमों का प्रदर्शन बोल रहा है कि वे किसी भी वक्त तख्ता पलट सकते हैं. ख़ैर 2 अप्रैल का फाइनल मैच इन सब कवायदों का जवाब दे देगा.