वेस्टइंडीज क्रिकेट इस व़क्त अपने उसी दौर से गुजर रहा है, जिस दौर से भारतीय हॉकी टीम गुजर रही है. लगातार हार का सामना और खिलाड़ियों के बढ़ते विवाद ने इस टीम को आज ऐसे मुक़ाम पर खड़ा कर दिया है, जहां इसके भविष्य पर सवाल खड़े होने लगे हैं. क्रिकेट से लगाव रखने वाले हर एक शख्स को वेस्टइंडीज क्रिकेट का स्वर्णिम दौर याद होगा. वह दौर ऐसा था, जब अफ्रीकी खिलाड़ियों के सामने अच्छे-अच्छे बल्लेबाज़ों के बैट कांप जाते थे. उस व़क्त शायद ही किसी को इस बात का एहसास रहा होगा कि वेस्टइंडीज क्रिकेट का एक ऐसा दौर भी आएगा, जब ख़ुद उसके ही खिलाड़ी बग़ावत पर उतर आएंगे. इस दौर से वेस्टइंडीज एक दिन तो उबर ही जाएगा, लेकिन खामियाजे के तौर पर उसे कई बेहतरीन खिलाड़ी खोने पड़ रहे हैं. इसमें अव्वल नाम तो आईपीएल में जलवा बिखेरने वाले धुआंधार बल्लेबाज़ क्रिस गेल का है. इस बेहतरीन क्रिकेटर के करियर की कमर ख़ुद उसके द्वारा पैदा किए गए विवादों ने तोड़कर रख दी है. हाल यह है कि क्रिस गेल का करियर लगभग ख़त्म माना जाने लगा है. अगर इन सब विवादों पर ग़ौर किया जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि अगर क्रिस गेल जैसा खिलाड़ी इतने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद टीम में अपनी जगह को लेकर संघर्ष कर रहा है तो इसमें बोर्ड से ज़्यादा ज़िम्मेदारी उसके ख़ुद के पैदा किए विवादों की है.
इन विवादों से जितना नुक़सान इस खिलाड़ी का होगा, उससे कहीं ज़्यादा उनके चाहने वाले हज़ारों प्रशंसकों और बेहतरीन क्रिकेट के शौकीनों का होगा. ग़ौरतलब है कि क्रिस गेल की टीम में वापसी की उम्मीदों को गहरा झटका लगा है. वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड डब्ल्यूआईसीबी और गेल के बीच हुई गर्मागर्म बैठक के बाद अब इस विस्फोटक बल्लेबाज़ के करियर पर भी पूर्ण विराम लगता दिखाई दे रहा है. भारत के ख़िला़फ वन डे सीरीज में जगह न बना पाने के बाद गेल द्वारा टेस्ट टीम में स्थान तलाशने की कोशिश भी नाकाम हो गई. आप सोच रहे होंगे कि क्रिस गेल के साथ वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड इस तरह से सौतेला व्यवहार क्यों कर रहा है? दरअसल, इसमें कुछ क्रिकेट बोर्ड द्वारा पैदा की हुई ग़लत़फहमियां तो हैं ही, लेकिन उससे ज़्यादा ज़िम्मेदार ख़ुद गेल द्वारा पैदा किए गए विवाद हैं. इस बात से तो सभी वाक़ि़फ हैं कि क्रिस गेल और विवादों का साथ चोली-दामन जैसा है. दरअसल, इस विवाद की असली वजह यह थी कि डब्ल्यूआईसीए ने गेल को टीम की कप्तानी नहीं सौंपी थी. इसके पीछे वजह यह बताई गई कि उन्होंने बोर्ड के साथ रिटेनर क़रार नहीं किया था.
जबकि इस खिलाड़ी को लगा कि क़रार पर हस्ताक्षर न करने का असर उसकी कप्तानी पर नहीं पड़ेगा. बोर्ड ने हालांकि कहा कि कप्तान बनने के लिए खिलाड़ी का रिटेनर क़रार पर हस्ताक्षर करना ज़रूरी है. बैठक के दौरान डब्ल्यूआईसीए चाहता था कि बोर्ड गेल को टीम में शामिल कर ले और रेडियो साक्षात्कार के दौरान की गईं उनकी टिप्पणियों को व्यक्तिगत माना जाए, जबकि बोर्ड चाहता है कि गेल उन बयानों का खंडन करें, लेकिन गेल ने क्रिकेट बोर्ड के पिछले महीने उसके ख़िला़फ रेडियो साक्षात्कार के दौरान की गई टिप्पणियों का खंडन करने के आग्रह को ख़ारिज कर दिया. इसी बात ने गेल के ख़िला़फ बोर्ड को भड़का दिया. इसके अलावा एक वजह यह भी थी कि आईपीएल के दौरान गेल ने अपने देश से ज़्यादा आईपीएल को तवज्जो दी.
सूत्रों के मुताबिक़, पिछले दिनों बोर्ड और गेल के बीच चार घंटे चली बैठक एक समय काफी उग्र हो गई थी और राम नारायण एक समय हिलेयर पर हमला करने के क़रीब थे. दरअसल, डब्ल्यूआईसीए और बोर्ड के बीच विवाद आईपीएल शुरू होने से पहले ही बढ़ गया था, क्योंकि गेल उसी स्थिति में वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम की ओर से खेलना चाहते थे, यदि बोर्ड उन्हें उतना पैसा चुकाए, जितना गेल को आईपीएल में मिल रहा है. रॉयल चैलेंजर्स बेंगलूर ने गेल को आठ लाख डॉलर की रकम देकर आईपीएल के लिए ख़रीदा था. इसमें कोई दो राय नहीं है कि गेल बेहतरीन खिलाड़ी हैं, लेकिन उनकी तीखी प्रतिक्रिया ने हमेशा उन्हें कठघरे में खड़ा किया है. स़िर्फ एक बयान ने क्रिस गेल को हाशिए पर ला दिया है. लेकिन यह पहली बार नहीं है, जब गेल ने बागी तेवर दिखाए हैं. वर्ष 2005 में भी क्रिस और बोर्ड के बीच विवाद हो चुका है. 2005 तक वेस्टइंडीज क्रिकेट को केबल्स एंड वायरलेस नामक कंपनी प्रायोजित करती थी. बोर्ड के साथ कंपनी के कुछ खिलाड़ियों से निजी क़रार भी थे, लेकिन 2005 में विंडीज बोर्ड ने केबल्स एंड वायरलेस की प्रतिद्वंद्वी कंपनी डिजिसेल के साथ क़रार कर लिया. बोर्ड ने इस अनुबंध के तहत टीम के खिलाड़ियों को केबल्स एंड वायरलेस से संबंध तोड़ने के आदेश दिए, लेकिन क्रिस गेल समेत कुछ खिलाड़ियों ने बोर्ड की इस बात को मानने से इंकार कर दिया.
नतीजतन, दक्षिण अफ्रीका के ख़िला़फ पहले टेस्ट से गेल समेत सभी बागी खिलाड़ियों का पत्ता साफ हो गया. हालांकि गेल ने बोर्ड के आगे झुकते हुए केबल्स एंड वायरलेस से क़रार ख़त्म कर लिया और उन्हें दूसरे टेस्ट की टीम में शामिल कर लिया गया. इसके बाद 2006 में गेल स्लेजिंग के प्रकरणों में लिप्त रहे. पहले न्यूजीलैंड के ख़िला़फ टेस्ट मैच में गेल अपना आपा खो बैठे. उसके बाद भारत में आयोजित चैंपियंस ट्राफी 2006 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िला़फ मैच में वह माइकल क्लार्क से उलझ गए. गेल ने पहले क्लार्क पर ताना कसकर उन्हें उकसाया और फिर जब क्लार्क भड़क गए तो दोनों के बीच हाथापाई की नौबत आ गई. मैदान पर तैनात अंपायरों ने टीम के कप्तान राम नरेश सरवन को गेल को संभालने की हिदायत दी. उस दौरान गेल को उनकी हरकत के लिए दंडित किया गया. 2007 में क्रिस गेल ने एक बार फिर बागी तेवर दिखाते हुए वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड की सार्वजनिक तौर पर आलोचना कर डाली. इंग्लैंड दौरे पर हुई इस घटना से गुस्साए बोर्ड ने गेल को फटकार लगाई और चेतावनी दी. 2009 में इंग्लैंड दौरे पर ही क्रिस गेल ने सार्वजनिक रूप से कह दिया कि वह वेस्टइंडीज टीम की अगुवाई नहीं करना चाहते, क्योंकि यह बहुत तनाव भरा काम है.
साथ ही उन्होंने यहां तक कह दिया कि वह बहुत ख़ुश होंगे, यदि 20-20 क्रिकेट टेस्ट क्रिकेट का खात्मा कर देता है. टेस्ट क्रिकेट के भविष्य पर दिए इस विवादास्पद बयान पर गेल की जमकर खिंचाई हुई थी. इन सबके बाद कैरिबियाई बोर्ड के रवैये पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाकर गेल ने विवाद खड़ा कर दिया. एक साक्षात्कार के दौरान गेल द्वारा दिए गए इस बयान के बाद बोर्ड ने उन्हें टीम से बाहर कर दिया. अगर इन सब विवादों पर ग़ौर किया जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि अगर क्रिस गेल जैसा खिलाड़ी इतने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के बाद टीम में अपनी जगह को लेकर संघर्ष कर रहा है तो इसमें बोर्ड से ज़्यादा ज़िम्मेदारी उसके ख़ुद के पैदा किए विवादों की है. इन विवादों से जितना नुक़सान इस खिलाड़ी का होगा, उससे कहीं ज़्यादा उनके चाहने वाले हज़ारों प्रशंसकों और बेहतरीन क्रिकेट के शौकीनों का होगा.