जहां एक तरफ सुन्नी व़क्फ बोर्ड और विभिन्न हिंदू संगठनों ने अयोध्या मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का मन बना लिया है, वहीं दूसरी ओर इस मामले को अदालत से बाहर सुलझा लेने की कोशिशें भी जारी हैं. अच्छी बात यह है कि यह प्रयास हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के धर्मगुरुओं, विद्वानों एवं हाशिम अंसारी जैसे आम नागरिक की तऱफ से किए जा रहे हैं. ये नेक नीयत वाले लोग हैं, जो इस मसले को आपसी सद्भाव, सौहार्द्र और बातचीत से सुलझाने की कोशिशों में लगे हुए हैं. ऐसी ही एक कोशिश अक्टूबर की 26 तारी़ख को देखने को मिली, जिसके तहत श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण न्यास के अध्यक्ष रसिक पीठाधीश्वर महंत जन्मेजय शरण और वर्ल्ड सूफी काउंसिल के चेयरमैन सूफी सैय्यद जिलानी कत्ताल ने मिलकर बैठक के ज़रिए अयोध्या मसले को निपटाने की बात कही.
सैय्यद मोहम्मद जिलानी के अयोध्या आगमन के बाद हुई इस पहल में रामनगरी के कई धर्माचार्य शामिल हुए. ग़ौरतलब है कि रसिक पीठाधीस्वर महंत जन्मेजय शरण सूफी सैय्यद जिलानी कत्ताल के साथ मिलकर दस वर्षों से भारत के कोने-कोने में सद्भाव यात्रा के माध्यम से शांति, अमन और सौहार्द्र का पैग़ाम दे रहे हैं. भक्ति आश्रम के महंत राम प्रिया शरण की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में बड़ा भक्तमाल के महंत कौशल किशोर दास, आचार्य राम टहल शरण वेदांती, सुतीक्ष्ण आश्रम के महंत जगदेव शरण, स्वामी पराकुंशाचार्य के अलावा आल इंडिया प्रियंका-राहुल गांधी फोरम के प्रदेश सचिव नारायण मिश्र, जिलाध्यक्ष मधुबन दास एवं कांग्रेस के ज़िला उपाध्यक्ष बालकृष्ण गोस्वामी भी मौजूद थे. महंत जन्मेजय शरण ने जानकी घाट स्थित बड़े स्थान मंदिर परिसर में आयोजित शांति सौहार्द्र वार्ता में उपस्थित संत समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि देश की अखंडता बनी रहेगी तो इस मामले का हल अपने आप हो जाएगा.
महंत जन्मेजय शरण ने जानकी घाट स्थित बड़े स्थान मंदिर परिसर में आयोजित शांति सौहार्द्र वार्ता में उपस्थित संत समुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि देश की अखंडता बनी रहेगी तो इस मामले का हल अपने आप हो जाएगा. उन्होंने कहा कि हम लोग देश के अलग-अलग इलाक़ों में सद्भावना स्थापित करने के साथ बातचीत के जरिए मसले के समाधान में जुटे हैं. देशवासियों की ओर से भी इस दिशा में सकारात्मक समर्थन मिला है. सूफी सैय्यद जिलानी जब अयोध्या पहुंचे तो वहां उन्होंने जन्मेजय शरण और अन्य संत-महंतों के साथ रामलला के दर्शन किए. उसके बाद वह गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड गए, जहां उन्होंने माथा टेका. वर्ल्ड सूफी काउंसिल के चेयरमैन सूफी सैय्यद जिलानी ने कहा कि चाहे कश्मीर हो या अयोध्या, सभी मसलों का हल आपसी बातचीत से ही संभव है. फिर हम आपस में क्यों लड़ें? जरूरत तो इस बात की है कि इस दिशा में सार्थक पहल की जाए और लोग इसमें अपनी भरपूर भागीदारी करें.
इससे देश की एकता और अखंडता मज़बूत होगी. कोई भी मजहब खूऩखराबे की इजाज़त नहीं देता. फिर मंदिर-मस्जिद के नाम पर खून क्यों बहाया जा रहा है? अगर हम ही नहीं रहेंगे तो मंदिर-मस्जिद में इबादत आ़खिर करेगा कौन? इस्लाम गले लगाने का हिमायती है और मज़हब से बड़ी इंसानियत है. अयोध्या मसले के समाधान में सभी समुदाय के लोगों का सहयोग ज़रूरी है. उन्होंने कहा कि सुप्रीमकोर्ट के बाद क्या होगा, आ़खिर वहां से वापस आकर भी बातचीत का ही रास्ता अपनाना पड़ेगा. जिलानी ने बैठक में कई महत्वपूर्ण बातें कहीं. उन्होंने कहा कि मोहम्मद साहब ने हमें इंसानियत का पाठ पढ़ाकर ग़ैर मजहबी लोगों को गले लगाने और पीड़ितों की मदद करने का संदेश दिया है. उन्होंने बाबरी मस्जिद के मुद्दई हाशिम अंसारी के प्रयासों की सराहना की और कहा कि समय मिला तो वह उनसे मिलने भी जाएंगे. सबसे पहले खुद को भारतीय बताते हुए सैय्यद जिलानी ने देश की तरक्की को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया.
महंत जन्मेजय शरण ने कहा कि अयोध्या मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है, लेकिन यहां अन्य धर्मों को भी बराबर सम्मान मिलता रहा है. हम हिंदू-मुस्लिम बाद में हैं, पहले इंसान हैं. हनुमानगढ़ी के नागा रामलखन दास ने अयोध्या मसले को राजनीतिक रंग देने वालों को इससेदूर रहने की सलाह दी. ज़ाहिर है, इन विद्वानों के नेक प्रयास इस बात के उदाहरण हैं कि हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब आज भी ज़िंदा है, जो किसी भी सांप्रदायिक संगठन या राजनीतिक दल के खतरनाक़ मंसूबों को पूरा नहीं होने देगी.