इससे पहले हम भारत में कई बड़े आयोजनों में घोटालों की खबरें सुनते आए हैं. जब कोई आयोजन इतने बड़े स्तर पर होता है, तो ज़ाहिर तौर पर ज़िम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. इस पर देश का मान-सम्मान भी दांव पर लग जाता है. यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब ऐसा आयोजन भारत में पहली बार हो रहा हो. इस फॉर्मूला रेस से भारत भी कई तरह की उम्मीदें लगाए बैठा है. जैसे खेल बढ़ेगा, टूरिज्म बढ़ेगा और व्यापार बढ़ेगा, लेकिन अगर आयोजन और सुविधाओं में राष्ट्र मंडल खेलों की तरह कहीं फिर से अनियमितताओं और घोटालों की छाया पड़ी तो विश्व पटल पर भारत की एक बार फिर से भद्द पिट सकती है
इस आयोजन का थोड़ा-बहुत श्रेय भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन (आईओए) के पूर्व अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को भी जाता है. ग़ौरतलब है कि उन्होंने ही भारत में फॉर्मूला-1 रेस कराने के लिए वर्ष 2007 में बर्नी एकल्सटन को आमंत्रित किया था. एकल्सटन फॉर्मूला-1 मैनेजमेंट और एडमिनिस्ट्रेशन के मुख्य कार्याधिकारी हैं. उन्होंने भारत आकर यहां की स्थितियों का जायज़ा लिया, उसके बाद इस आयोजन की प्रक्रिया आगे बढ़ी. एकल्सटन के मन मुताबिक़ ही 5.14 किलोमीटर का बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट ट्रैक डिजाइन किया गया है. यह रेसिंग सर्किट ट्रैक 865 एकड़ ज़मीन पर है. इसके लिए 300 इंजीनियरों के निर्देश पर क़रीब 6000 कामगारों ने काम किया. नई दिल्ली से 40 किलोमीटर दूर बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट बनाया गया है. भारत में होने वाली पहलीफॉर्मूला-1 रेस 19 रेस वाले सीजन की 17वीं रेस होगी. ग़ौरतलब है कि इस ट्रैक को जर्मन आर्किटेक्ट हेरमान टिल्के ने बनाया है.
एकल्सटन वैश्विक रुझानों की गहराइयों को बहुत बारीकी से समझने की क्षमता रखते हैं. इससे पहले वह मलेशिया, सिंगापुर, चीन, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड में ऐसे आयोजनों को सफलता दिला चुके हैं. अब देखना यह होगा कि उनका यह जादू भारत में भी चलेगा या नहीं. इतना तो तय है कि आयोजक देश को भी इससे फायदे होंगे. ऑस्ट्रेलिया में एफ-1 के 10 सालों के दौरान एक अरब डॉलर का सकल आर्थिक फायदा हुआ और 28,000 नौकरियों के मौके भी मिले. वहीं बहरीन में एफ-1 रेस पर्यटन उद्योग के लिए आमदनी के सबसे बड़े स्रोतों में शुमार है. इसलिए संभव है कि ग्रेटर नोएडा के आसपास के सभी होटल रेस के दौरान भर जाएं, लेकिन इसमें थोड़ा पेंच है. ग़ौरतलब है कि यह ट्रैक दिल्ली से 40 किलोमीटर दूर ग्रेटर नोएडा में बनाया गया है. ग्रेटर नोएडा एक नया शहर है. इसलिए वहां अच्छे होटलों की संख्या ज़्यादा नहीं है. ऐसे में मेहमानों को दिल्ली में ही रुकना होगा. इस आयोजन में शामिल होने वाली सभी 12 टीमें करीब 100-100 लोगों के दल के साथ आएंगी. इसके अलावा एफ-1 से जुड़े 500 अधिकारियों और 10,000 मेहमानों के भी आने की उम्मीद है.
ज़ाहिर है, इस दौरान 11,500 कमरों की ज़रूरत होगी. अब ऐसे में समस्याओं का होना लाज़िमी है. दिल्ली से ग्रेटर नोएडा का 40 किलोमीटर का स़फर कई बार तो दो से भी ज़्यादा घंटे में पूरा होता है, क्योंकि इस रास्ते पर ट्रैफिक की हालत बहुत खराब है. इसलिए मेहमानों को परेशानी हो सकती है. इसके अलावा हवाई किराए में उछाल भी एक बड़ी समस्या हो सकती है. हाल में किराए में औसतन 25 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. एक और विवाद सामने आया है, कस्टम विभाग और आयोजकों के बीच. सरकार और फॉर्मूला-1 रेस के आयोजकों में इस नई अनबन से आयोजन आशंकाओं में घिर गया है. कस्टम विभाग का कहना है कि फॉर्मूला-1 एयरटेल इंडियन ग्रां प्री के आयोजकों को रेस के लिए आने वाले सभी उपकरणों पर 100 प्रतिशत ड्यूटी अग्रिम चुकानी होगी. जबकि आयोजक इसमें कुछ छूट चाहते हैं. खैर, यह विवाद तो हल हो जाएगा, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस आयोजन में भी ओलंपिक, राष्ट्रमंडल और क्रिकेट वर्ल्डकप की तरह धन की बरसात होगी.
एक सर्वे के मुताबिक़, इस एफ-1 रेस को 50 करोड़ दर्शक स़िर्फ टेलीविजन पर मिलेंगे. इस लिहाज़ से यह फुटबॉल वर्ल्डकप से थोड़ा ही पीछे है. क़रीब 24 एशियाई देशों में एफ-1 रेस के प्रसारण का अधिकार ईएसपीएन के पास है. ईएसपीएन के मुताबिक़, हर रेस के दौरान मिलने वाले 800 विज्ञापन सेकेंड का समय लगभग बिक चुका है. इस चैनल ने 10 सेकेंड के स्लॉट के लिए कंपनियों से 1,50,000 रुपये की दर से रकम वसूली है. हालांकि यह क्रिकेट वर्ल्डकप के फाइनल मैच के लिए 6,00,000 रुपये की दर से बेचे गए विज्ञापन स्लॉट के मुक़ाबले का़फी कम है, लेकिन एक लाइफ स्टाइल स्पोट्र्स के लिए यह बुरा नहीं है. वह भी तब, जब यह अपने शुरुआती चरण में हो. कई कंपनियों ने अपने स्लॉट बुक कराए हैं. खास तौर पर सोनी, सैमसंग, एमआरएफ, सेल और टाटा मोटर्स आदि के नाम शामिल हैं. चैनल को उम्मीद है कि इंडियन ग्रां प्री के दौरान दर्शकों की तादाद में कम से कम 20 फीसदी इज़ाफा होगा. इसके टिकटों की कीमत 25,000 से 35,000 रुपये तक रखी गई है. बुकमाईशो डॉट कॉम के सीईओ आशीष हेमरजनी का कहना है कि उनकी वेबसाइट पर पहले 3 घंटे में ही 1.5 करोड़ रुपये के टिकट बिके. ज़्यादातर बुकिंग दिल्ली और उसके आसपास के इलाक़ों से हुई है. इसके अलावा मुंबई और चेन्नई के दर्शकों ने भी अपनी सीट बुक कराई है. अब तक करीब 2500 टिकट बेचे जा चुके हैं. अनुमान है कि टिकट से ही क़रीब 75 करोड़ रुपये की कमाई होगी. इनमें कॉरपोरेट बॉक्स भी शामिल हैं. करीब 55 कॉरपोरेट बॉक्स बनाए गए हैं और प्रत्येक की कीमत 35 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपये तक है. जेपीएसआई के मुताबिक, ज़्यादातर की बुकिंग हो चुकी है. बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान, जे के टायर और भारती एयरटेल जैसी कंपनियों ने भी बुकिंग कराई है. कुल मिलाकर इस आयोजन में कई लोगों के वारे-न्यारे होंगे.
लेकिन इन सबसे इतर एक बड़ा सवाल यह है कि भारत इस तरह के आयोजन को किस हद तक संभाल पाएगा. इससे पहले हम भारत में कई बड़े आयोजनों में घोटालों की खबरें सुनते आए हैं. जब कोई आयोजन इतने बड़े स्तर पर होता है, तो ज़ाहिर तौर पर ज़िम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. इस पर देश का मान-सम्मान भी दांव पर लग जाता है. यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब ऐसा आयोजन भारत में पहली बार हो रहा हो. इस फॉर्मूला रेस से भारत भी कई तरह की उम्मीदें लगाए बैठा है. जैसे खेल बढ़ेगा, टूरिज्म बढ़ेगा और व्यापार बढ़ेगा, लेकिन अगर आयोजन और सुविधाओं में राष्ट्र मंडल खेलों की तरह कहीं फिर से अनियमितताओं और घोटालों की छाया पड़ी तो विश्व पटल पर भारत की एक बार फिर से भद्द पिट सकती है
माल्या की फोर्स इंडिया का जलवा
भारत की एकमात्र फॉर्मूला वन टीम यानी उद्योगपति विजय माल्या की फोर्स इंडिया भी इस खेल में अपना जौहर दिखाएगी. 2007 में बनी यह टीम इस बार के फॉर्मूला रेस आयोजन में विजय माल्या की तऱफ से भारत का प्रतिनिधित्व करेगी. गौरतलब है कि 29 रेसों में कोई चैंपियनशिप अंक हासिल करने में नाकाम रही फोर्स इंडिया को 2009 में उस व़क्त कामयाबी मिली थी, जब बेल्जियम की ग्रां प्री में जियानकार्लो फिजिकेला दूसरे स्थान पर आए. अभी इस टीम के चालक एड्रियन सुटिल और पॉल डी रेस्टा हैं, जबकि नीको ह्युलकेनबर्ग को अतिरिक्त चालक के तौर पर रखा गया है. फोर्स इंडिया के प्रशंसकों की तरह माल्या को भी 2009 के बेल्जियम की ग्रां प्री याद है, जब उनकी टीम ने पहले तीन में जगह बना ली थी. अब समर ब्रेक के बाद इस महीने के आ़िखरी में बेल्जियम से ही फॉर्मूला वन के सीजन की शुरुआत होगी.
ये हैं भारत के रेसर
वैसे तो फॉर्मूला रेसिंग से भारत का कोई विशेष वास्ता नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ नाम हैं, जो विश्व में फॉर्मूला रेसर भारतीयों का ज़िक्र कराते रहते हैं. यह अलग बात है कि अब तक इनमें से किसी ने भी भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व नहीं किया. 2005 में जब भारतीय चालक नारायण कार्तिकेयन ने जॉर्डन टीम के लिए गाड़ी दौड़ाई तो भारत में लोगों का ध्यान इस खेल की तरफ गया. जॉर्डन टीम तो अब नहीं रही, लेकिन उसने भारत में फॉर्मूला वन को लेकर दिलचस्पी ज़रूर पैदा कर दी. कार्तिकेयन स्पेन की हिस्पानिया रेसिंग टीम के साथ हुए क़रार के बाद 2011 में सर्किट पर लौटे. भारतीय करुण चंढोक ने भी पिछले साल हिस्पानिया के लिए गाड़ी दौड़ाई, लेकिन वह साल भर में 12 प्रतियोगियों में 11वें स्थान पर रहे. इस बार बुद्ध सर्किट ट्रैक पर इनके जलवों का इंतजार रहेगा.