Monday, February 7, 2011

बुंदेलखंडः किराए की कोख, मजबूरी या शौक




 

उत्तर प्रदेश के बुदेलखंड क्षेत्र में अगर समस्याओं की बात की जाए तो का़फी लंबी फेहरिस्त बनती है. जिसमें बेरोजगारी, सूखा, भुखमरी और दस्यु सरगनाओं जैसी कई समस्याएं हैं. इन्हीं वजहों से बुंदेलखंड का सामाजिक और आर्थिक ढांचा चरमराया हुआ है. इन सबके बीच यहां के लोग किस तरह जीवन बसर करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. ज़्यादातर भूमिहीन किसान मजदूरी के वास्ते यहां से पलायन कर चुके हैं और महिलाएं किसी तरह से रोज़ी-रोटी का इंतेज़ाम करने में लगी हैं.

 लेकिन अब रोजगार और रोज़ी-रोटी की मार ने यहां की महिलाओं और लड़कियों को इतना मजबूर कर दिया है कि वे अपनी कोख का सौदा करने पर अमादा हैं. यानी सरोगेट मदर बनकर पैसा कमाने को रोजगार बना रही हैं. बुंदेलखंड में महिलाओं और लड़कियों को रोज़ी-रोटी की मार ने इतना मजबूर कर दिया है कि वे अपनी कोख का सौदा करने पर आमादा हैं. यानी सरोगेट मदर बनना अब उनके लिए रोज़गार का एक ज़रिया बन गया है. उन्हें इस बात का भी एहसास नहीं हैं कि इस तरह से कोख का सौदा कर वह अपना ही स्वास्थ्य बिगा़ड रही हैं. जी हां, भारत में सरोगेसी का यह कारोबार अब बुंदेलखंड में भी फैल रहा है.

आर्थिक हालात इतने बदतर हो गए हैं कि अब बुंदेलखंड के विभिन्न इलाक़ों की कुंवारी लड़कियां अपनी कोख किराए पर देकर अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रही हैं. सरोगेसी की सबसे बड़ी वजह है ग़रीबी. जिसकी बुंदेलखंड में कोई कमी नहीं है. ग़रीब महिलाओं की पैसों की चाहत उन्हें इस कारोबर में उतरने को मजूबर करती है. यह मामला बिल्कुल वैसा ही है जैसे पुरुष ग़रीबी से तंग आकर अपना खून और किडनी बेचने को तैयार हो जाते हैं, ताकि उनके घर में चूल्हा जल सके.


 वैसे ही महिलाएं भी ग़रीबी के कारण अपनी कोख को किराए में देकर अपनी जान जोखिम में डालती हैं और अपने घर परिवार को छोड़कर दूसरे के बच्चे को पालती हैं. इससे पहले सरोगेसी भारत के कुछ ही राज्यों जैसे उड़ीसा, भोपाल, केरल, तमिलनाडु, मुंबई आदि में फैली थी. पर अब इस विदेशी कारोबार ने यहीं भी अपने पैर जमाने शुरू कर दिए हैं. विदेशी कारोबार इसलिए, क्योंकि अब तक सरोगेट मदर बनने की घटनाएं स़िर्फ विदेशों में ही सुनने को मिलती थीं. यहां एक बात ध्यान देने योग्य है, वह यह कि सरोगेसी ऐसे राज्यों में ज़्यादा देखने को मिलती थी, जहां पर्यटक ज़्यादा आते थे.

पर अब सरोगेसी के मामले बुंदेलखंड में भी मेट्रो सिटीज की तरह बढ़ रहा है. आलम यह है कि यहां कई अन्य राज्यों समेत विदेशों से दंपत्ति सरोगेट मदर की तलाश में आ रहे हैं. इस कारोबार का सबसे बूरा पक्ष यह है कि इसमें अविवाहित लड़कियों की भी बड़ी संख्या सामने आ रही है, जो पैसों की खातिर बिन ब्याही मां बनने को भी तैयार हैं. अभी भी देश में बिन ब्याही मां बनना समाज के लिए कलंक माना जाता है. पर अब चंद रुपयों की खातिर लड़कियां घर से महीनों दूर रहकर कोख किराए पर देने जैसा जोखिम भरा काम कर रही हैं. जब इस तरह की लड़कियों से ऐसा करने की वजह पूछी जाती है तो सबका अलग-अलग जवाब होता है. अपना पूरा भविष्य दांव पर लगाने को तैयार ये लड़कियां बड़ी बेबाकी से कहती हैं कि भविष्य की कोई गारंटी नहीं है.


आज हमें कुछ महीनों में ही लाखों रुपए मिल रहे हैं, वो भी बग़ैर कोई ग़लत क़दम उठाए, तो फिर इसमें हर्ज़ क्या है? बुंदेलखंड की रमा (परिवर्तित नाम) की बचपन में ही शादी हो गई. गौने से 3 महीने पहले ही पति ने दूसरी शादी कर ली. अब वह आत्मनिर्भर होना चाहती है, लेकिन इसमें ग़रीबी आड़े आ रही है. विभा ने इसके लिए सरोगेट मदर बनने का रास्ता चुना. इसी तरह सुनीता (परिवर्तित नाम) के माता-पिता की मृत्यु हो गई है. अब वह एक ऑफिस में रिसेप्शनिस्ट है. पर इस नौकरी से वह संतुष्ट नहीं है.

उसने आत्मनिर्भर होने के लिए सरोगेट मदर बनने का निर्णय लिया है. जब उससे यह पूछा गया कि क्या उसे ऐसा करने में समाज से डर नहीं लगता है. तो उसने कहा, जब मुझे भूख लगती है तो कोई पुछने नहीं आता, ऐसे में डरे किससे? क्या उस समाज से डरूं, जो मेरी मदद नहीं कर सकता. इस तरह न जाने कितनी लड़कियां है, जो अपनी जिम्मेदारी और इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपनी कोख का सौदा कर रही हैं. आगरा की झुग्गी बस्ती में काम करने वाले एक ग़ैर सरकारी संगठन ने क़रीब एक साल पहले एक सर्वेक्षण कराया. इस सर्वे में यह बात सामने आई थी कि वहां की अधिकांश महिलाएं मजबूरी में किराए की कोख पालती हैं.

 कुछ महिलाएं घरवालों की मर्ज़ी से ऐसा कर रही हैं. उन महिलाओं का दर्द असहनीय था, जो चुपके -चुपके  ऐसा करते पाई गईं. वह घरवालों को बता नहीं सकतीं. पति कमाता नहीं है, इसलिए बिना बताए ही किसी धनवान जोड़े के लिए बन जाती हैं सरोगेट मदर. ऐसी महिलाओं को समाज की भी चिंता रहती है. अपने पास रह रही औलाद की भी चिंता कचोटती रहती है. फिर भी दूसरों की औलाद को पैदा होने से पहले पालती हैं. अब आपको बताते हैं कि यह कारोबार कैसे होता है. सरोगेट मदर को अपनी कोख की कितनी क़ीमत मिलती है और कैसे यह बुंदेलखंड तक पहुंचता है. दरअसल, सरोगेट मदर की खोज के लिए पहले डॉक्टर की सलाह ली जाती है, फिर विभिन्न अ़खबारों में और आज-कल तो इंटरनेट पर भी सरोगेट मां की खोज की जाती है.

 उसके  बाद महिला की पूरी मेडिकल जांच की जाती है कि कहीं उसे कोई रोग तो नहीं है. सरोगेट मां की उम्र अमूमन 18 साल से 35 साल के बीच होती है. सरोगेट मां का सारा खर्च वही लोग उठाते हैं, जिन्हें बच्चा चाहिए और रही बात क़ीमत की तो, किराए पर कोख लेने का खर्च भारत में जहां तीन-चार लाख तक होता है, वहीं दूसरे देशों में कम से कम 35-40 लाख रुपए तक खर्च आता है. वजह सा़फ है कि क्यों विदेशी भारत कर रुख कर कर रहे हैं. इसके अलावा बांझपन भी सरोगेसी की एक बड़ी वजह मानी जाती है. बांझपन के  कारण महिलाएं भी अपने पति का इस कृत्य में साथ देने को तैयार हो जाती हैं. भारत के दक्षिणी इलाक़ों से शुरू हुआ यह कारोबार बुंदेलखंड जैसे इलाक़े तक पहुंच गया है. हालांकि बीच-बीच में खबरें आती रहती हैं कि सरकार इस कारोबार को नियंत्रित रखने के लिए कई प्रावधान बना रही है, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक़ भारत में सरोगेसी इसलिए भी आसान है, क्योंकि हमारे यहां अधिक क़ानून नहीं हैं, और जो हैं उनकी नज़र में यह मान्यता प्राप्त है. यही वजह है कि आज सरोगेसी एक विवादास्पद मुद्दा बनता जा रहा है.



ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें सरोगेट मदर ने बच्चा पैदा होने के बाद भावनाओं के आवेश में आकर बच्चे को उसके क़ानूनी मां-पिता को देने से इंकार कर दिया. इसके अलावा सबसे ज़्यादा गंभीर मामले तब पैदा होते हैं, जब सरोगेट मां की कोख से पैदा हुआ बच्चा विकलांग हो या फिर करार एक बच्चे का हो और जुड़वा बच्चे हो जाएं. ऐसे में जेनेटिक माता-पिता बच्चे को अपनाने से इंकार करने लगते हैं. साथ ही भारत में एक बात और विवाद का विषय है. वह है विदेशी ग़े-दंपतियों को बच्चा कैसे दिया जाए? टेस्ट ट्यूब बेबी सेंटर के एक संचालक कहते हैं कि कोख किराए पर देने वाली महिलाओं की संख्या ब़ढने की असली वजह, इनके लिए उपलब्ध मार्केट है. वहीं उच्च वर्ग की महिलाएं अपने फिगर को मेंटेन रखने, गर्भपात होने से पैदा होने वाली परेशानियों से बचने के लिए सरोगेट मदर की मदद लेना ज़्यादा बेहतर समझती हैं. गर्भधारण का अनुभव प्रमाण सहित होना ज़रूरी है. इसके लिए विवाहित होने की बाध्यता नहीं है. अविवाहित लड़िकयां भी गर्भधारण का अनुभव होने पर सरोगेट मदर बन सकती हैं. हालांकि इसमें विवाहिता के पति की अनुमति ज़रूरी है.

 अविवाहिता और तलाकशुदा के लिए केवल उसकी अपनी मर्ज़ी ही का़फी है, जबकि तलाक के लंबित मामलों में महिला कोख किराए पर नहीं दे सकती. महिला को ऐसी कोई बीमारी न हो, जिसके बच्चे में स्थानांतरित होने की आशंका हो और उसकी उम्र 21 से 45 साल के बीच हो. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च डॉ. आर.एस. शर्मा की मानें तो सरोगेट मांओं का स्वास्थ्य चिंता का विषय है. हालांकि इस कारोबार का कुछ लोग सकारात्मक पहलू भी निकालते हैं. डॉक्टर पटेल के मुताबिक गर्भ धारण न कर पाना किसी भी दंपत्ति के लिए बहुत दुखद होता है. इसके लिए सरोगेसी एक अच्छा ज़रिया है.




लेकिन अब भारत सरकार सरोगेसी के इर्द-गिर्द कुछ नियम बनाने वाला है. क्योंकि इस कारोबार के बढ़ने के साथ-साथ इसमें होने वाली कुछ गड़बड़ियों को भी बढ़ावा मिल सकता है. सरकार तो खैर इन नियमों में समय-समय पर संशोधन करती रहेगी, लेकिन तब तक बुंदेलखंड में इस तरह के मामलों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा. क्योंकि यह मसला इतना साधारण नहीं है जितना इसे समझा जा रहा है. क्योंकि अगर बुंदेलखंड की ज़्यादातर महिलाएं और लड़कियां अपनी-अपनी मजबूरी का वास्ता देकर शॉर्टकट में पैसे कमाने के इस कारोबार के जुड़ जाएंगी तो परिणाम घातक होंगे. इससे न स़िर्फ सामाजिक ढांचा बिगड़ेगा बल्कि जान का भी जोखिम होगा.