आज हॉकी के अंदर और बाहर का पूरा तंत्र इस क़दर स़ड चुका है कि जब भी हॉकी से जु़डी खबर आती है तो कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर होता है जिससे हमारे राष्ट्रीय खेल की फज़ीहत हो जाती है. अंतरराष्ट्रीय मुक़ाबलों में शर्मनाक हार झेलना तो बहुत पुरानी बात हो चुकी है. अब हम अपने देश में ही आपसी ल़डाई देख रहे हैं. कभी कोच के सेक्स स्कैंडल हॉकी को शर्मसार करते हैं तो कभी खिला़डी खुद के मेहनताने को लेकर स़डक पर विरोध प्रदर्शन के लिए उतर आते हैं. इतना ही नहीं टीम के खिलाडि़यों के आपसी संबंधों पर भी विवाद होते रहते हैं. फिर डोपिंग में फंसे खिला़डी बची खुची कसर पूरी कर देते हैं. कुल मिलाकर हॉकी आज अपने निम्नतम दौर से गुज़र रही है, लेकिन मुश्किलें हैं कि फिर भी खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं.
अभी ताज़ा मामला चैम्पियंस ट्रॉफी और ओलंपिक क्वालीफाइंग टूर्नामेंट की मेज़बानी को लेकर उठ रहा है. इस बात से तो सभी वाक़ि़फ हैं कि पिछले कुछ दिनों से अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच), हॉकी इंडिया (एचआई) और भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) के बीच हुए आपसी समझौते से नाराज़ चल रहा था. इस बात का अंदेशा लगाया जा रहा था कि अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) ज़रूर कोई न कोई ठोस क़दम उठाएगा, ऐसा ही हुआ. हॉकी इंडिया (एचआई) और भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) के बीच हुए आपसी समझौते से नाराज़ अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ (एफआईएच) ने भारत से चैंपियंस ट्रॉफी और ओलंपिक क्वालीफाइंग टूर्नामेंट की मेज़बानी छीन ली है. उसके इस क़दम ने न स़िर्फ हॉकी संघ की फज़ीहत की है, बल्कि इससे देश की भी फज़ीहत होती है. दरअसल एफआईएच ने अपने बयान में कहा था कि एफआईएच भारतीय खेल मंत्रालय द्वारा एचआई और आईएचएफ के बीच कराए गए समझौते को लेकर बेहद चिंतित है.
इसके लिए एफआईएच से सलाह लेने की भी ज़रूरत नहीं समझी गई. एचआई, आईएचएफ और खेल मंत्रालय के बीच हुए समझौते के मुताबिक़ दोनों संगठनों ने आपसी मतभेदों को भुलाकर भारतीय हॉकी के विकास के लिए साथ मिलकर काम करने फैसला किया था. ग़ौरतलब है कि एफआईएच इस बात को लेकर नाराज़ था कि एचआई ने उससे सलाह के बग़ैर आईएचएफ के साथ साझा तौर पर काम करने संबंधी समझौता किया. एफआईएच के मुताबिक़ एचआई और आईएचएफ के बीच हुआ समझौता ओलंपिक और उसके चार्टर के खिला़फ है और यही कारण है कि वह भारत से चैंपियंस ट्रॉफी और ओलंपिक क्वालीफाइंग टूर्नामेंट की मेज़बानी छीन रहा है. ग़ौरतलब है कि दोनों आयोजन नई दिल्ली में इस वर्ष के अंत में और 2012 की शुरुआत में होने थे. ऐसा नहीं है कि यह अचानक हो गया हो. दरअसल एफआईएच ने अपने बयान में कहा था कि एफआईएच भारतीय खेल मंत्रालय द्वारा एचआई और आईएचएफ के बीच कराए गए समझौते को लेकर बेहद चिंतित है. इसके लिए एफआईएच से सलाह लेने की भी ज़रूरत नहीं समझी गई. एचआई, आईएचएफ और खेल मंत्रालय के बीच हुए समझौते के मुताबिक़ दोनों संगठनों ने आपसी मतभेदों को भुलाकर भारतीय हॉकी के विकास के लिए साथ मिलकर काम करने फैसला किया था. हालांकि घरेलू स्तर पर दोनों संगठन अलग-अलग काम करेंगे. घरेलू स्तर पर दोनों के लिए बराबर ज़िम्मेदारियां तय करने के लिए एक संयुक्त कार्यकारिणी और कार्यकारी समिति का गठन किया जाएगा. नए संगठन को राष्ट्रीय टीम के चयन, उसकी तैयारी, विदेशी आयोजनों के लिए टीमों को भेजने और राष्ट्रीय कैंप आयोजित करने का काम सौंपा जाएगा. फिलहाल यह व्यवस्था 2012 तक के लिए की गई है. इसके बाद इन संगठनों की ज़िम्मेदारियों पर फिर से विचार किया जाएगा. ज़ाहिर सी बात है कि इस फैसले से एफआईएच खुश नहीं था. उसने सा़फ कहा है कि भारत के दो हॉकी संगठनों के बीच हुआ यह समझौता उसे म़ंजूर नहीं है. एफआईएच अध्यक्ष लेनार्दो नेगरे ने खेल मंत्री अजय माकन को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने इस बात का ज़िक्र किया कि इस मामले की गंभीरता को समझते हुए एचआई और भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्षों के बीच एक बैठक कराई जाए, जिसमें एफआईएच की चिंताओं को लेकर चर्चा होनी चाहिए.
एफआईएच ने कहा कि उसके मुताबिक़ एचआई ही भारत में हॉकी का संचालन करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था है और इस नाते उसे ही भारतीय टीम के चयन और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की मेज़बानी का अधिकार मिलना चाहिए. एफआईएच किसी भी हाल में आईएचएफ को मान्यता नहीं दे सकता. एफआईएच ने वर्ष 2000 में आईएचएफ की मान्यता रद्द कर दी थी. अब हो सकता है कि इस मामले पर फिर कई बैठकें हों, पर इतना तो तय है कि हॉकी की जो फज़ीहत होनी थी, वह तो हो ही गई. समझने वाली बात यह है कि यहां पर हॉकी से ज़्यादा फज़ीहत भारत की हुई है. किसी भी देश के लिए ऎन व़क्त पर म़ेजबानी का छिनना बहुत ही शर्मिंदगी भरा होता है. खैर, जो होना था वह तो हो ही गया. लेकिन दिक्क़त तो इस बात को लेकर और ब़ढ जाती है कि ऐसे मौक़े पर जहां देश की अस्मिता के लिए टीम और प्रबंधन को एकजुट होकर देश को संदेश देना चाहिए था, उल्टा वे आपस में ही उलझे हुए हैं. पिछले दिनों कुछ खिलाडियों के अभ्यास शिविर छो़डकर विश्व श्रृंखला हॉकी के लिए भारतीय हॉकी महासंघ और नियो स्पोर्ट्स के मुंबई में हुए संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में शामिल होने की वजह से पनपा विवाद भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. पूर्व भारतीय कप्तान धनराज पिल्लै ने हॉकी इंडिया से कारण बताओ नोटिस पाने वाले पांच वरिष्ठ खिलाड़ियों को सलाह दी है कि वे भारतीय हॉकी टीम में खेलने के लिए इस संस्था के अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाए नहीं. इस बात से तो सभी वाक़ि़फ है कि हॉकी इंडिया ने कुछ दिनों पहले ही पांच वरिष्ठ खिलाड़ियों अर्जुन हलप्पा, संदीप सिंह, एड्रियन डिसूजा, सरदारा सिंह और प्रभजोत सिंह को बेंगलुरु में चल रहा अभ्यास शिविर छोड़कर विश्व श्रृंखला हॉकी के लिए भारतीय हॉकी महासंघ और नियो स्पोर्ट्स के मुंबई में हुए संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में शामिल होने की वजह से कारण बताओ नोटिस जारी किया था. हॉकी इंडिया की अनुशासन समिति के अध्यक्ष परगट सिंह ने इन पांचों खिलाड़ियों को नोटिस जारी किया था.
बस विवाद यहीं से शुरू हो गया. इस विवाद को सुलझाने के बजाय धनराज इस मामले को एक तरह से तूल देते हुए यह बयान देते हैं कि इन खिलाड़ियों को अपने देश के लिए खेलने के लिए हॉकी इंडिया के अधिकारियों के सामने नाक नहीं रगड़नी चाहिए. हालांकि धनराज ने इसके अलावा जो सवाल उठाए हैं, वे कई मायनों में तार्किक हैं, मसलन पूर्व कप्तान ने इस निर्णय और हॉकी इंडिया में बड़ा पद ले चुके अपने पूर्व टीम साथी परगट पर टिप्पणी करते हुए कहा कि एक समय परगट भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमा़डी को माफिया कहा करते थे, लेकिन जब उन्हीं के बनाए हॉकी इंडिया में जब उनके सामने अच्छे पद की पेशकश की गई तो वह सबकुछ भूलकर पद की तऱफ लपक पड़े. धनराज ने विश्व श्रृंखला हॉकी की तऱफदारी करते हुए कहा कि यह भारतीय हॉकी खिलाड़ियों के हक़ और हित में है और इसीलिए मैं इसमें शामिल हूं.
अब इन हालात में कैसे कोई उम्मीद कर सकता है कि पहले से क़ब्र में पैर लटकाए हुए इस राष्ट्रीय खेल का भला कैसे होगा. एक बात तो बिल्कुल समझ में नहीं आती है कि किसी भी देश के लिए राष्ट्रीय खेल को परिभाषित करने के लिए क्या मापदंड होते हैं. इस बात को भी दरकिनार कर दिया जाए तो यह सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रीय खेल की इस बदहाली का ज़िम्मेदार खेल मंत्रालय और प्रशासन नहीं है. अगर इस खेल की बदहाली यूं ही जारी रही तो बहुत दुख के साथ कहना प़ड सकता कि हॉकी स़िर्फ नाम का ही राष्ट्रीय खेल रह जाएगा.