क्या जैविक खेती से इतनी खाद्य
सामग्री पैदा हो सकती है जिससे दुनिया भर का पेट भरा जा सके. जर्मनी में एक नई
किताब फूड क्रैश- हम जैविक जीवनयापन कर पाएंगे या फिर बिल्कुल नहीं आई है, इसके लेखक फेलिक्स
प्रिंस सू लौएवेनश्टाइन, जो जर्मन जैविक खाद्य संघ के प्रमुख हैं इस बात का समर्थन
करते हैं. उनके मुताबिक जो खेती कीटनाशक और रसायनिक खादों से मुक्त हो, उस तकनीक से पैदा हाने
वाली फसल पूरी दुनिया का पेट भरा जा सकता
है. यह बात सिर्फ जर्मनी में ही नहीं बल्कि बल्कि दुनिया के हर उस कोने में कही जा
रही है. जो जैविक खेती अपना रहे हैं और इससे होने वाले फायदे देख रहे हैं. भारत के
परिपेक्ष्य में भी यही बात लागू होती है. असल में खेती पहले भी होती थी पर तब
रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक उपलब्ध नहीं थे. तब गोबर किसानों के लिए बेहतर खाद
का काम करता था. नीम और हल्दी उनके लिए प्रभावी कीटनाशक थी, लेकिन बाद में रासायनिक खाद और
कीटनाषकों ने खेती को घाटे का सैदा बना दिया पर अब ऐसा नहीं है एक बार फिर से
किसानों की समझ में आ गया है कि रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल करने का
नतीजा क्या होता है, और प्राकृतिक तरीके से बगैर किसी रासायनिक खाद, कीटनाशक और उर्वरक के इस्तेमाल
के पैदा किए गए खाद्यान्न सेहत के लिए कितने लाभकारी हैं. षायद इसीलिए आज भरत के गांवों में जैविक खेती के प्रति
दिलचस्पी लगातार बढती जा रही है. अगर ये बढोतरी यो ही रही तो आने वाले दिनों में
भारत विश्व स्तर पर जैविक खेती में निश्चित तौर पर नए आयाम स्थापित करेगा और एक
बार फिर से कर अपने खेतों में हरा सोना पैदा करेगा.
जमीन और किसान दोनों के लिए सेहतमंद
जैविक खेती से अनाज के पैदावार में तो बढोेतरी हुई ही साथ में मिट्टी की
गुणवत्ता में सुधार से किसानों की परोक्ष आमदनी में भी इजाफज्ञ हुआ है. जैविक खेती
के माध्यम से सूखे जैसी स्थितियों से भी निपटा जा सकता है, क्योंकि जैविक खेती में फसलों की
सिंचाई के लिए पानी की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती. जैविक खेती से मिट्टी की
पौष्टिकता बढ़ती है और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित रहती है. इस तकनीक का इस्तेमाल करने वाले किसानों की
संख्या भी लगातार बढ रही है, पिछले पांच सालों के मुकाबले में बाजार में यह आर्गेनिक फूड
पहले की तुलना में कहीं ज्यादा मात्रा में उपलब्ध है. जैविक खेती पैदावार, बचत और स्वास्थ्य के नजरिए से भी
किसानों और जमीन दोनों के लिए लिए फायदेमंद है. लिहाजा किसान जैविक खेती की ओर
तेजी से रुख कर रहे हैं. इससे न सिर्फ पैदावार बढ़ती है, बल्कि उत्पादों की गुणवत्ता में
भी बेतहाशा इजाफा होता है. इतना ही नहीं, जैविक खेती करने वाले किसानों की फसलों को अन्य
फसलों की तुलना में कीमतें भी ज्यादा मिलती हैं, जिससे किसान आर्थिक रूप से भी
संपन्न बनता है. फिलहाल देश खाद्यान्न की कमी से भी जूझ रहा है. खाद्य पदार्थों की
कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं. साथ ही हर साल खाद्यान्न की बर्बादी भी हो रही है. यह
बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन जैविक खेती के जरिए इस बर्बादी को नियंत्रित किया जा
सकता है. इसकी वजह यह है कि ऑर्गेनिक फूड लंबे समय तक खराब नहीं होते. उनके
संरक्षण के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता नहीं पड़ती.
देषी प्रजाति को बढावा
जैविक खेती से किसानो ंका भला तो ही रहा है लेकिन साथ में फसलो ंऔश्र देषी
प्रजातियों की गुणवत्ता और पौश्टिकता को लेकर भी कई ा सकारात्म्क परिणाम देखने को मिले हैं. जैविक खेती का सबसे बडा
फायदा तो यह हुआ है कि देशी प्रजाति के अनाज की खेती को बढावा मिला है. अब तक आम
किसान संकर किस्म के बीजों का इस्तेमाल कर रहा था, लेकिन जैविक खेती करने वाले
किसानों ने बेहतर परिणाम के लिए फिर से देशी किस्म के अनाजों का उत्पादन करना शुरु
कर दिया. इसके अलावा, जैविक अनाज स्वास्थ्य की दृष्टि से भी काफी फायदेमंद होता है. अच्छा स्वास्थ्य
पाने के लिए अब लोग मोटे अनाज की ओर आकर्षित हुए हैं. जैविक अनाज की शुद्धता और
स्वाद का कोई जोड नहीं है और यह अनाज पेट के रोगों के लिए खासा कारगर साबित हुआ
है. वैसे ही मधुमेह के रोगियों के लिए भी मोटा अनाज फायदेमंद साबित हुआ है.
पर्यावरण की सुरक्षा
इस बात ये तो इंकार नहीं किया जा सकता है कि हाल के दिनो ंमें बढती जनसंख्या
और प्रदूशण ने पर्यावरण को दुनिया भर में चिंता का विशय बना दिया है. आए दिन कोई न कोई बैठक अंतरराश्ट्रीय स्तर पर
प्र्यावरण को बचाने के लिए होती रहती है. ग्लोबल वार्मिंग भी पूरी दुनिया के लिए
चिंता का सबब है. वैसे तो लोग इन सब समस्याओं को हल करने के लिए वैज्ञानिक तरीकों
पर निर्भर है पर कोई जमीनी कारणें की तरफ ध्यान नहीं दे रहा है. असल मंे जैविक
खेती ही पर्यावरण के लिए काफी फायदेमंद है. जैविक तकनीक ही है जो खेती और फसल,
सब्जियों और फलों
को रसायनसे दूर रखकर जमीन को बंजर होने से बचा रही है. लोगों के पर्यावरण की तरफ
बढते रुझान को देखत हुए केले के पेड या अलो विरा ग्वार के पटे से कपडे तैयार करने
की विधियों को भी कारोबार के रूप में देखा जाने लगा है.
विदेषी भी सीख रहे हैं गुर
भारत मंे जैविक खेती की तकनीकों से विदेषी भी प्रभवित हैं. नतीजनतन वे सात
समुंदर पार कर भारत में जैविक खेती से जुडी तकनीको को भारतीय किसानो ंसे सीखने के
लिए आ रहे है. हाल में सऊदी अरब के किसानों का एक दल राजस्थान आया था जैविक खेती
के तौर तरीकों को सीखने. उन्होंने यहां पर न सिर्फ जैविक खेती से जुडी नई तकनीके
सीखीं बल्कि इस बात से वाकिफ कराया कि किस तरह से पूरी दुनिया में भरत में होने
वाली जैविक लेागों की दिलचस्पी की वजह बनी हुई है. इस काम में लगे एक गैर सरकारी
संगठन मोरारका फाउंडेशन के मुकेश गुप्ता कहते हैं, दो तीन साल से हम देख रहे है,
भारत ने इस
क्षेत्र में बहुत प्रगति की है, भारत एक पॉवर हाउस के रूप में स्थापित हो सकता है. उनके
मुताबिक जैविक चोती को अपनाने वाले किसानों के लिए खेती की लागत में कमी आई है. और
भूमि के सूक्ष्म प्रबन्धन से खेती में पानी की 40 फीसद कमी आई है, इसीलिए किसानों को जैविक
खेती काफी भा रही है. यही वजह है कि किसान इसके
जरिए आज विश्व बाजार से जुड़ रहे हैं ताकि
उन्हें उचित मूल्य मिल सके.बात अगर राजस्थान की करें तो यहां लगभग 70 हजार किसान जैविक खेती
के इस अभियान में षामिल है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के बाकी के राज्यों के
मुकाबले राजस्थान में सबसे ज्यादा किसान इस खेती में हाथ बंटाते रहे हैं.
खेती के अलावा भी है उपयोगी
ऐसा नहीं है जैविक विधियो ंका इस्तेमाल सिर्फ खेती औश्र फस्ल उगाने में ही
किया जा रहा है, असल में जैविक विधियां खेती के साथ साथ अन्य व्यवसायों के लिए भर बहुत
फायदेमंइ बनकर उभर रही है. पिछले दिनों केले से कपडे का निर्माण करने वाली चेन्नई
की एक कंपनी कोे फ्रांस, सिंगापुर, ब्रिटेन, और आस्ट्रेलिया जैसे बडे देशों के भी ऑर्डर मिल रहे हैं.
ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने के लिए और कार्बन क्रेडिट को बढाने के लिए ये
कंपनियां ऐसे और्डर देती हैं. गौश्रतलब है कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा केले
उत्पादित करने वाले देशों में से एक है. ऐसे में कंपनी केले के बचे हुए कूडे का
इस्तेमाल कपडे बनाने के लिए करती है। इसमें फाइबर को सुई की मदद से निकाला जाता है
और इसे धागों में बदलने के लिए पूर्णतरू जैविक विधियों का ही प्रयोग किया जाता है.
इसी तरह जैविक तकनीक कम्युनिटी आधारित आर्गेनाइज्ड फार्मिंग, रिसर्च , एग्रोप्रोसेसिंग,
मार्केटिक और
फार्म टूरिज्म जैसे आयामो ंमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.
किसानों की जुबानी
मैं वाणिज्य में स्नातक हूं. पुश्तैनी खेत में पहले रासायनिक खाद का इस्तेमाल
करते थे. इससे खाद उपज तो बढ जाती थी, लेकिन खर्च
में इजाफा हो रहा था. फिर मैंने अपनी जमीन पर जैविक खेती करने की ठानी.
पहले साल उपज में दस फीसदी की कमी आई, लेकिन दूसरे साल से उपज बढ गई. अब, जब मैं अपना अनाज लेकर
मंडी में जाता हूं और सबाके बताता हूं कि
हमारा अनाज जैविक विधि से उगाया गया है तो हमें प्रति क्विंटल दो सौ रुपये ज्यादा
मिलते हैं.
-शंकर लाल, बलवंतपुरा, झुंझुनू
हम तो गोबर और केंचुआ से खुद ही खाद ही खाद तैयार कर लेते हैं. नीम, हल्दी एवं लहसुन मिलाकर
हर्बल स्प्रे बना लेते हैं. पिछले 4 सालों से हम इन्हीं सब चीजों का इस्तेमाल करके खेती
कर रहे हैं. इससे दो फायदे होते हैं. पहला
तो यह कि जैविक विधि से खेती करने पर लागत कम हो जाती है, साथ ही उपज का मूल्य भी अधिक
मिलता है. और दूसरा हमारी खेती की उर्वरकता भी बढती जाती है. -ओमप्रकाश, मझाओ, झुंझुनू