Monday, July 25, 2011

टेस्ट सीरीज भारत–वेस्टइंडीज : जीते हैं पर शान से नहीं


वेस्टइंडीज दौरे पर टीम इंडिया ने सीरीज अपने नाम कर फतह तो हासिल कर ली, लेकिन कई मायने में इस जीत को का़फी फीकी कहा जा सकता है. फीकी इसलिए, क्योंकि जिस मुक़ाम और रैंकिंग पर टीम इंडिया आज ख़डी है, उस जगह पर इस टीम से कंप्रोमाइज करने की उम्मीद शायद किसी को नहीं थी. वेस्टइंडीज के आखिरी टेस्ट मैच में धोनी ने जिस तरह 90 गेंदों में 86 रन बनाने को ब़डी चुनौती मानते हुए मैच को ड्रा के अंजाम तक पहुंचाया, वह कहीं न कहीं इस बात की तऱफ इशारा करता है कि टीम इंडिया में अभी भी वर्ल्ड चैंपियन वाला कॉन्फिडेंस पैदा नहीं हुआ है. अजीब बात है, एक तऱफ हम वर्ल्ड चैंपियन होने का दावा करते हैं, वहीं दूसरी तऱफ हम इतना जोखिम भी नहीं ले सकते कि 90 गेंदों में 86 रन बनाने के लिए अपने खिलाडि़यों को मैदान पर उतारें. या फिर इसे यूं कहें कि धोनी को आधी से ज़्यादा टीम पर इतना भी भरोसा नहीं था कि वह इस लक्ष्य को पा सकेगी. इसलिए जल्दी-जल्दी में सीरीज अपने नाम करने के चक्कर में धोनी ने मैच ड्रा करा दिया.

टी-20 के दौर में अगर 15 ओवरों में 86 रन भी बनाने का माद्दा आपमें नहीं है तो फिर आपको किस आधार पर वर्ल्ड चैंपियन का खिताब हासिल है. निश्चित तौर पर धोनी के इस फैसले से क्रिकेट प्रेमियों को निराशा हुई होगी. आ़खिरी टेस्ट मैच में कोई भी इस बात से इत्ते़फाक़ नहीं रखता होगा कि केवल तीन विकेट खोने के बाद 90 गेंदों में 86 रनों का लक्ष्य पाने के लिए आपकी लगभग पूरी टीम ड्रेसिंग रूम में बैठी है और जीत के लिए आप आगे बढ़ने के बजाय ड्रा करने का फैसला कर लें. ड्रा करने का फैसला तो ज़्यादातर हारने वाली टीम लेती हैं. मैच के आ़खिरी दिन वेस्टइंडीज़ ने अपनी दूसरी पारी में छह विकेट पर 224 रनों से आगे खेलना शुरू किया था और चंद्रपाल ने अपना शतक पूरा किया, जिसके लिए उन्हें मैन ऑफ द मैच के खिताब से भी नवाज़ा गया, लेकिन अगर भारत ने पूरा मैच खेला होता तो मैन ऑफ द मैच का दावेदार भारत भी हो सकता था. इसके साथ ही जीत का स्वाद भी बढ़ सकता था, लेकिन धोनी को शायद अपने रिकॉर्ड की चिंता ज़्यादा थी. वह अपनी कप्तानी में जीत का औसत कम नहीं करना चाहते थे. वेस्टइंडीज ने पहली पारी में 204 रन बनाने के बाद दूसरी पारी में 322 रन बनाए थे. भारत की दूसरी पारी की शुरुआत अच्छी नहीं रही और अभिनव मुकुंद को पहली ही गेंद पर एडवर्डन ने पगबाधा आउट कर दिया. इसके बाद राहुल द्रविड़ और मुरली विजय ने पारी को संभाला. विजय ने 45 रन बनाए, वहीं द्रविड़ 34 बनाकर क्रीज पर डटे हुए थे. विजय के आउट होने के बाद रन गति तेज़ करने के लिए रैना को भेजा गया, लेकिन वह 8 रन बनाकर ही आउट हो गए.

 द्रविड़ और लक्ष्मण टिक कर खेल रहे थे, उसी दौरान मैच को ड्रा मान लेने का फ़ैसला किया गया. नतीजतन, भारत-वेस्टइंडीज के बीच खेला गया तीसरा और आखिरी टेस्ट मैच बिना किसी हार-जीत के समाप्त हो गया. अगर भारतीय गेंदबाज़ चाहते तो इस मैच का नतीजा निकल सकता था, लेकिन भारतीय कप्तान में जीत का वह जज्बा और आत्मविश्वास ही नहीं दिख रहा था, जिससे लगे कि वह सीरीज पर पूरी तरह क़ब्ज़ा करना चाहते हैं. वहीं वेस्टइंडीज की तऱफ से चंद्रपाल और क्रिक ने अपनी टीम को हार से बचा लिया. दोनों ने मिलकर चौथे विकेट के लिए 161 रनों की भागीदारी निभाई. भारत के तेज़ गेंदबाज़ ईशांत शर्मा को उनके ज़बर्दस्त प्रदर्शन के लिए मैन ऑफ द सीरीज चुना गया. ईशांत ने आ़खिरी टेस्ट में छह विकेट लिए, जबकि पूरी सीरीज़ में उन्होंने 23 विकेट लिए. कप्तान धोनी ड्रा करने के फ़ैसले को सही ठहराते हुए कह रहे थे कि खेलने का फैसला जोखिम वाला होता, क्योंकि अगर हम हारते तो पूरी सीरीज़ की जीत खतरे में पड़ जाती. इसलिए हमने ड्रा करने का फ़ैसला स्वीकार किया. अगर धोनी खुद क्रीज पर आते, उन्होंने द्रविड़ का साथ होता और उनके बाद भी कई बल्लेबाज़ अगर मान लिया जाए कि औसतन 10-15 रन भी बनाते तो क्या मैच जीता नहीं जा सकता था. इस बात पर धोनी को मंथन करने की ज़रूरत है, क्योंकि टेस्ट में जीत के ऐसे मौके कम ही आते हैं. ड्रा करना कोई शान की बात नहीं होती है और न ही ड्रा करने का तरीक़ा इतनी आसान परिस्थितियों में लिया जाता है.

ड्रा तो कप्तान को उस समय करना चाहिए, जब उसे लगे कि मैच जीतना अब नामुमकिन सा है. इस आ़खिरी टेस्ट मैच में कोई भी इस बात से इत्ते़फाक़ नहीं रखता होगा कि केवल तीन विकेट खोने के बाद 90 गेंदों में 86 रनों का लक्ष्य पाने के लिए आपकी लगभग पूरी टीम ड्रेसिंग रूम में बैठी है और जीत के लिए आप आगे बढ़ने के बजाय ड्रा करने का फैसला कर लें. ड्रा करने का फैसला तो ज़्यादातर हारने वाली टीम लेती हैं. इसका मतलब यह मान लेना चाहिए कि धोनी कहीं न कहीं हार के मानसिक दबाव में होंगे और उन्होंने जीतने की सोची ही नहीं. यहां पर धोनी को वर्ल्ड चैंपियन ऑस्ट्रेलिया से सबक़ लेना चाहिए. अगर आपको बादशाहत क़ायम रखनी है तो विपक्षी टीम को पूरी तरह से रौंदना होगा, लेकिन जो जीत धोनी ने वेस्टइंडीज पर हासिल की है, उसमें वह बात नहीं दिखाई देती. इस जीत के लिए तो यही कहा जा सकता है कि जीते तो मगर शान से नहीं. - See more at: http://www.chauthiduniya.com/2011/07/test-series-india-west-do-not-live-in-luxury-on.html#sthash.c67396Td.dpuf

टीम इंडियाः सब कुछ ठीक नहीं है


पिछले दिनों भारत ने जब विश्व कप जीता तो लगा कि टीम इंडिया अपने बेहतरीन दौर में चल रही है, लेकिन अब लगता है कि सब कुछ बदल गया है. इस वक़्त टीम इंडिया विवादों और संकटों के ऐसे दलदल से गुज़र रही है, जिसमें लगभग हर खिलाड़ी फंसा हुआ है. कुछ दिनों पहले ख़बर आई थी कि वेस्टइंडीज़ दौरे के लिए जाने वाली भारतीय टीम में वीरेंद्र सहवाग भाग नहीं लेंगे. उसके बाद ख़बर आई कि सांस की शिकायत को लेकर युवराज़ भी इस दौरे से छुट्टी चाहते हैं. यहां तक तक तो सब ठीक था, लेकिन उसके बाद ख़बर आती है कि सचिन तेंदुलकर ने अपने परिवार के साथ छुट्टी मनाने के लिए इस दौरे पर न जाने का फैसला किया है. पता चला कि धीरे-धीरे करके सभी दिग्गज इस दौरे से दूर होते जा रहे हैं. इतना सब होने के बाद गौतम गंभीर को कप्तान और सुरेश रैना को उप कप्तान बनाकर टीम इंडिया को वेस्टइंडीज़ के लिए रवाना करने की बात तय करके सभी अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की गई,
लेकिन असली धमाका होना अभी बाक़ी था. ठीक उसी वक़्त एक और बम फटा, जब वर्तमान कप्तान गौतम गंभीर ने अपने कंधे की चोट की दुहाई देते हुए इस दौरे से ख़ुद को दूर रखने की घोषणा कर दी. फिर क्या था, सीन यह बना कि एक-एक करके टीम इंडिया के सभी खिलाड़ियों ने वेस्टइंडीज़ दौरे से तौबा कर ली. धीरे-धीरे करके सभी दिग्गज इस दौरे से दूर होते जा रहे हैं. इतना सब होने के बाद गौतम गंभीर को कप्तान और सुरेश रैना को उप कप्तान बनाकर टीम इंडिया को वेस्टइंडीज़ के लिए रवाना करने की बात तय करके सभी अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की गई, लेकिन असली धमाका होना अभी बाक़ी था.
ठीक उसी वक़्त एक और बम फटा, जब वर्तमान कप्तान गौतम गंभीर ने अपने कंधे की चोट की दुहाई देते हुए इस दौरे से ख़ुद को दूर रखने की घोषणा कर दी. अब यह इतना बड़ा संयोग तो हो नहीं सकता कि सभी खिलाड़ी एक साथ कोई न कोई बहाना करके छुट्टी ले लें. जरूर कोई न कोई खिचड़ी पक रही है. कहीं ऐसा तो नहीं है कि टीम इंडिया के अंदर कोई नई कलह शुरू हो गई हो. वेस्टइंडीज़ दौरे से दूरी की दूसरी वजह यह भी हो सकती है, जो खिलाड़ियों के मुताबिक़ है, यह कि वे लगातार होने वाले क्रिकेट से इतने थक गए हैं कि इसके अलावा उनके पास कोई रास्ता ही नहीं बचता. अगर ऐसा है तो और भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं. मसलन, खिलाड़ी अगर ज़्यादा क्रिकेट से इतने थक गए हैं तो उन्होंने बोर्ड को इस बात की सूचना क्यों नहीं दी. दूसरी बात, अगर कोई खिलाड़ी चोटिल है तो फिर आईपीएल तक इस बात को छिपाकर रखने की क्या ज़रूरत थी. उससे पहले भी इलाज कराया जा सकता था. जैसा कि गंभीर के बारे में कहा जा रहा है. आलोचकों के मुताबिक़, आईपीएल में ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमाने के चक्कर में कई खिलाड़ियों ने अपनी चोटें छिपाईं, जिसका असर अब वेस्टइंडीज़ दौरे में दिखाई दे रहा है. अगर इन बातों में ज़रा भी सच्चाई है तो टीम इंडिया में सब कुछ ठीक नहीं है. दरअसल, यह सारा मामला तब प्रकाश में आया, जब यह घोषणा हुई कि इंडियन प्रीमियर लीग के तुरंत बाद वेस्टइंडीज में होने वाली एकदिवसीय और 20-20 सीरीज में सचिन तेंदुलकर, महेंद्र सिंह धोनी, युवराज सिंह, वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर और ज़हीर ख़ान नहीं खेलेंगे. ऐसा पहली बार हो रहा है कि बड़े खिलाड़ियों ने टीम इंडिया से इस तरह पल्ला झाड़ा है. इन हालात में अब टीम की कमान युवा खिलाड़ी सुरेश रैना के हाथ में होगी. वेस्टइंडीज़ जा रही भारतीय टीम इस बार पूरी तरह युवा है. मज़े की बात यह है कि इस टीम में हरभजन सिंह को छोड़कर एक भी वरिष्ठ खिलाड़ी नहीं है. चयन के बाद एकदिवसीय टीम में मनोज तिवारी और शिखर धवन को शामिल किया गया है. युवराज और गंभीर ने ऐसा क्यों किया वेस्टइंडीज़ दौरे पर गौतम गंभीर के खेलने के संशय को लेकर बीसीसीआई चिंतित थी कि अचानक युवराज सिंह ने भी उसे एक करारा झटका दे दिया. वेस्टइंडीज जाने वाली टीम इंडिया में हरफनमौला खिलाड़ी युवराज सिंह का नाम नदारद है, क्योंकि उन्होंने बीसीसीआई को सूचित किया है कि तबियत ख़राब होने के चलते वह दौरे पर टीम के  साथ नहीं जा सकते.
उन्होंने बीसीसीआई को बताया कि उनके फेफड़े में संक्रमण है. इससे उबरने के लिए कम से कम 15-20 दिनों का आराम चाहिए. युवराज सिंह ने 21 मई को दिल्ली डेयर डेविल्स के ख़िला़फआईपीएल में अंतिम मैच खेला था. उल्लेखनीय है कि दौरे के लिए गौतम गंभीर का चयन पहले से संदिग्ध है. गंभीर पर आरोप है कि वह चोट के बावजूद आईपीएल खेले. उन्हें कंधे में चोट के चलते आराम की ज़रूरत बताई गई है. अगर इन दोनों खिलाड़ियों की ग़ैर मौजूदगी रही तो तो टीम इंडिया के ज़्यादातर बड़े खिलाड़ी इस दौरे से बाहर ही रहेंगे. सचिन, धोनी, ज़हीर, नेहरा और सहवाग पहले ही वेस्टइंडीज़ जाने से मना कर चुके हैं. टीम इंडिया के चयन को लेकर बीसीसीआई की फज़ीहत हो गई है. पिछले दस सालों में यह पहला मौक़ा है, जब उसे टीम के चयन में इतनी माथापच्ची करनी पड़ी. टीम के चार खिलाड़ी पहले ही आराम करने के लिए दौरे से छुट्टी ले चुके हैं. बची हुई टीम के कप्तान बनाए गए गौतम गंभीर भी आईपीएल की भेंट चढ़ गए और चोट के चलते टीम से बाहर हो गए. अब युवराज सिंह भी फेफड़े में इंफेक्शन को वजह बताकर दौरे से बाहर हो गए हैं. युवराज के बारे में कहा जा रहा है कि वह इस बात से नाराज़ हैं कि धोनी की जगह पहले गौतम गंभीर को कप्तान बनाया गया और गंभीर के ज़ख्मी होने के बाद अब सुरेश रैना को कप्तानी दी जा रही है. युवराज सिंह को यह कतई मंजूर नहीं कि वर्ल्डकप में अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद उनकी अनदेखी की गई और रैना को कप्तान बनाया गया. ख़ुद से इतने जूनियर खिलाड़ी की कप्तानी में युवी नहीं खेलना चाहते, इसलिए उन्होंने दौरे पर न जाने का फैसला किया. वजह बताई फेफड़े में इंफेक्शन की, जिसके बारे में उन्हें और उनके फीजियो के अलावा शायद ही किसी को पता हो. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि गंभीर को आईपीएल में कप्तानी के लिहाज़ से यह मौक़ा दिया गया था. विश्वकप में गौतम गंभीर का प्रदर्शन बेहतर और लाजवाब था, वहीं आईपीएल में केकेआर ने उनकी कप्तानी में जमकर धमाल मचाया. केकेआर ने उनकी कप्तानी में आईपीएल के 11 मैचों में से 7 में जीत दर्ज की है. केकेआर को आईपीएल में प्रबल दावेदार के रूप में देखा जा रहा है, जबकि वहीं युवी की पुणे वारियर्स लड़ाई से बाहर हो चुकी है. वैसे यह कोई पहला मौक़ा नहीं है कि जब गंभीर को भारत की कमान दी जा रही है. इससे पहले 2010 में न्यूजीलैंड के ख़िला़फ पांच मैचों की कप्तानी गंभीर ने की थी, जिसमें भारत ने जीत दर्ज की थी. उम्मीद थी कि इस बार भी वह ऐसा ही कुछ करेंगे, लेकिन जिस तरह कप्तानी की घोषणा होने के बाद गंभीर ने अपनी चोट का  हवाला देते हुए दौरे से ख़ुद को दूर किया है, उससे तो यही लगता है कि अच्छा होता कि कप्तानी की कमान युवराज को ही दी गई होती. आईपीएल में क्यों ख़ामोश थे इस पूरे मसले पर खिलाड़ियों सहित ज़्यादातर लोगों ने यही कहकर बचाव किया कि खिलाड़ियों के इस तरह अचानक छुट्टी लेने की वजह उनका लगातार क्रिकेट खेलना और व्यस्त कार्यक्रम है. लेकिन यहां पर यह सवाल भी उठता है कि अगर खिलाड़ी अपने व्यस्त कार्यक्रम से इतने परेशान थे तो इस पर उन्होंने पहले मुंह क्यों नहीं खोला. कहीं ऐसा तो नहीं था कि उस वक़्त उन्हें पैसे कमाने की सूझ रही थी और जब आईपीएल का सीजन ख़त्म हुआ तो सबकी बारी-बारी अपनी समस्याएं निकल आईं. इसके अलावा इस घटना का एक पहलू यह भी है कि जब खिलाड़ियों पर पैसे के लिए खेलने और राष्ट्र के लिए न खेलने का आरोप लग रहा था तो उस दौरान बोर्ड का ध्यान किधर था. इससे पहले बोर्ड को यह सोचना चाहिए कि ऐसी नौबत बार-बार क्यों आ रही है. वेस्टइंडीज़ के दौरे के बाद भारतीय टीम को इंग्लैंड के दौरे पर जाना है यानी सितंबर तक भारतीय टीम का कार्यक्रम बिना रुके चलता रहेगा. इस स्थिति में अगर पुराने और अनुभवी खिलाड़ी आराम की मांग कर रहे हैं तो उनकी बात में दम दिखता है.
इस मामले में कपिल देव खिलाड़ियों का बचाव करते हुए कहते हैं कि  खिलाड़ी भी एक आम आदमी होता है, उसकी भी इच्छाएं और पसंद होती है. इसलिए बेहतर होगा कि उसे ही निर्णय लेने दें कि उसे देश के लिए खेलना है या फिर देश के किसी क्लब के लिए. अतिरिक्त दबाव से केवल परेशानी ही पैदा होती है. इसलिए मैं गुजारिश करता हूं कि अपनी हां और ना का अधिकार खिलाड़ियों के ही हाथ में रहने दें. कपिल देव ने कहा कि हम एक स्वतंत्र देश में रहते हैं. यहां हर किसी को अपने फैसले लेने का हक़ है. इसलिए मेरी नज़र में यही बेहतर होगा कि खिलाड़ी ख़ुद तय कर लें कि उन्हें क्या करना है.
बोर्ड को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. कपिल देव ने ये बातें उस समय कहीं, जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको लगता है कि खिलाड़ी देश के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए खेलते हैं. हालांकि कपिल विवादों पर टिप्पणी करने से बचते रहे. कपिल देव को इन बातों पर भी ग़ौर करने की ज़रूरत है कि ये सभी वे खिलाड़ी हैं, जो लगातार आईपीएल खेल रहे थे, लेकिन जब दौरे की बात हुई तो सब बीमार हो गए. इसे मात्र संयोग तो नहीं कहा जा सकता. होना तो यह चाहिए था कि बोर्ड इस बहस में हिस्सा ले और भविष्य में ऐसे कार्यक्रम बनाए, जिससे आईपीएल और बाक़ी अंतरराष्ट्रीय मुक़ाबलों के बीच सामंजस्य स्थापित हो सके,