Wednesday, September 28, 2011

क्रिकेट और करिश्माई चश्मा


क्रिकेट बाज़ार और परिवर्तन की चरम सीमा से गुजर रहा है. यह खेल अब तक राष्ट्रीय खेल हॉकी समेत अन्य खेलों को तो हाशिए पर ढकेल ही चुका है और अब अपने ही फॉर्मेटों के साथ बदलाव कर रहा है. यह कभी फटाफट खेल की दुनिया में प्रवेश करता है तो कभी तकनीकी बदलाव से गुजरता है. फटाफट क्रिकेट की वजह से तो यह अपने ही कई फॉर्मेटों के अस्तित्व को संकट में डालने का काम कर रहा है. पूर्व आस्ट्रेलियन कप्तान एलन बॉर्डर ने तो हाल में टेस्ट क्रिकेट को ही ख़तरे में बताया.

दरअसल उनकी यह चिंता 20-20 के फटाफट क्रिकेट के चढ़ते खुमार को देखते हुए बढ़ी है. बड़े ताज्जुब की बात है कि जिस खेल में आएदिन विवादों की बौछार रहती हो और हर साल कोई न कोई खिला़डी मैच फिक्सिंग और स्पॉट फिक्सिंग करते पकड़ा जाता हो, वह खेल लोकप्रियता के पायदान पर अब तक अव्वल है. इतना ही नहीं, अपने फॉर्मेट के साथ छेड़छा़ड के अलावा मुना़फे की लड़ाई को लेकर भी बोर्ड और खिलाड़ियों के बीच तनातनी होने के बावजूद क्रिकेट अभी तक हॉकी की तरह नहीं बिखरा, यह शोध का विषय हो सकता है. मसलन कौन टॉस जीतेगा, कौन अंपायर किस तऱफ खड़ा होगा, कितने खिलाड़ी धूप का चश्मा पहनेंगे, पारी में कितनी बार विकेट कीपर बेल्स गिराएगा, कौन सा गेंदबाज़ पहले बदलाव के तौर पर आएगा और कब नई गेंद ली जाएगी. इसे माइक्रो फिक्सिंग या फैंसी फिक्सिंग भी कहते हैं. अब इतनी बारीक़ चीजों को इसी हाईडेफिनेशन कैमरे के ज़रिए ही पकड़ा जा सकता है. परिवर्तन का एक और आयाम पूरा करते हुए क्रिकेट में एक ताजा तकनीकी बदलाव आया है. अभी हाल में ख़बर आई है कि 19 सितंबर से शुरू हो रही चैंपियंस लीग 20-20 टूर्नामेंट के दौरान खिलाड़ियों को विशेष प्रकार के चश्मे दिए जाएंगे. इन चश्मों की ख़ासियत यह है कि इनमें हाईडेफिनेशन के कैमरे लगे होंगे. ये चश्मे देने का मक़सद यह बताया जा रहा है कि इसके जरिए अब मैच के दृश्यों को उस खिलाड़ी की नज़र से देखा जाएगा. चैंपियंस लीग 20-20 टूर्नामेंट के दौरान खिलाड़ी जो कैमरायुक्त चश्मा पहनेंगे, उसकी मेमोरी 8 जीबी तक होगी. कैमरे के ज़रिए वीडियो और ऑडियो दोनों चीजें रिकॉर्ड हो सकेंगी.

 इस वीडियो की रिजोल्यूशन 720 पिक्सल तक रहेगी यानी 30 फ्रेम प्रति सेकेंड की स्पीड. इनके लेंस पोलराइज्ड होंगे, जिससे धूप से उनके ख़राब होने का ख़तरा नहीं रहेगा. हालांकि हाईडेफिनेशन कैमरे से लैस यह चश्मा टीम के सभी सदस्य नहीं पहन सकेंगे. मैच से पहले टीम प्रबंधन उस एक खिलाड़ी का नाम तय करेगा, जो पूरे मैच के दौरान यह चश्मा पहनेगा. एक खिलाड़ी इसे सर्वाधिक 3 ओवरों तक पहनेगा. इसके बाद प्रोडक्शन टीम का सदस्य उससे कैमरे को ले लेगा. टीम बस में भी मैनेजर की इजाज़त से खिलाड़ी बस के अंदर के दृश्यों को कैमरे में कैद कर सकते हैं. यानी अब आप अपने पसंदीदा खिलाड़ी की आंखों से गुजरने वाले दृश्यों के ज़रिए मैच को एक अलग दृष्टिकोण से देख सकते हैं. अभी तक क्रिकेट में यूडीआरएस, बॉल ट्रेकर और हॉटस्पॉट जैसी तकनीकें जुड़ी थीं, लेकिन यह हाईडेफिनेशन कैमरा आने के बाद मैच में कई रोचक बदलाव देखने को मिलेंगे. ग़ौरतलब है कि इससे पहले अंपायर डिसीजन रिव्यू सिस्टम (यूडीआरएस) के इस्तेमाल पर भी काफी चर्चा हुई थी.

 इसके अलावा हॉटस्पॉट और स्नीकोमीटर पर तो यह कहा गया था कि जब मैदान पर अंपायर को समझ में नहीं आता कि वह क्या फैसला ले, तब उसके लिए हॉटस्पॉट और स्नीकोमीटर मददगार हो सकते हैं, लेकिन हॉकआई के इस्तेमाल पर कुछ शंकाएं थीं. इसमें यह पेंच बताया गया था कि कैमरा जहां लगाया जाएगा, उससे गेंद कहां जाएगी, उसका कोण क्या होगा, इस बाबत एकदम सही पता लगाना मुश्किल होगा. सचिन तेंदुलकर स्नीकोमीटर की मदद से यूडीआरएस के इस्तेमाल के पक्ष में थे, जबकि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी इसके एकदम ख़िला़फ थे. बहरहाल, इस हाईडेफिनेशन कैमरे के इस्तेमाल से कुछ बदलाव ऐसे भी होंगे, जो किसी के हित में जाएंगे और किसी के अहित में. अगर कोई खिलाड़ी अंपायर के आसपास यह चश्मा लगाकर खेलेगा तो उसे कई सनसनीखेज बातें सुनने और रिकॉर्ड करने का मौक़ा मिलेगा. जैसे अभी हाल में इंग्लैंड और पाकिस्तान के बीच टेस्ट में कथित स्पॉट फिक्सिंग के लिए गिरफ्तार सटोरिए मजहर मजीद ने दावा किया कि कई पाकिस्तानी क्रिकेटरों को खेल से कोई प्यार नहीं है, बल्कि वे स़िर्फ दौलत, औरतों और खाने की तलाश में रहते हैं. यह बात मजहर मजीद ने एक ब्रिटिश टेबलायड द्वारा कराए गए स्टिंग ऑपरेशन के दौरान कही. अब अगर वही बातचीत, जिसमें खिलाड़ी अपनी ऐसी मंशा ज़ाहिर करते हों, इस हाईडेफिनेशन कैमरे से लैस चश्मे के ज़रिए रिकॉर्ड हो जाए तो फिर विपक्षी टीम का सच दुनिया के सामने लाने में देर नहीं लगेगी. इसके अलावा स्पॉट फिक्सिंग को पकड़ने में भी यह चश्मा काफी मददगार साबित हो सकता है. चूंकि मैदान में हर जगह इतने कैमरे लगाना मुमकिन नहीं है, जो हर खिलाड़ी के इर्द-गिर्द रहें और उसकी हर प्रतिक्रिया को रिकॉर्ड करने में सक्षम हों. ऐसे में किसी खिलाड़ी की आंखों में यह कैद होना कोई मुश्किल काम नहीं है. बशर्ते उस खिलाड़ी में इतनी ईमानदारी हो कि वह उस टेप को सही हाथों में पहुंचा दे.यह काम इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आजकल क्रिकेट को सबसे बड़ा ख़तरा स्पॉट फिक्सिंग से है. इस बात से सभी वाकिफ हैं कि किसी ख़ास सत्र में खिलाड़ी या अधिकारी की हरकत पर लगाया गया दांव स्पॉट फिक्सिंग है.

 ज़रूरी नहीं कि इसका मैच के नतीजे पर असर हो. मसलन कौन टॉस जीतेगा, कौन अंपायर किस तरफ खड़ा होगा, कितने खिलाड़ी धूप का चश्मा पहनेंगे, पारी में कितनी बार विकेट कीपर बेल्स गिराएगा, कौन सा गेंदबाज पहले बदलाव के तौर पर आएगा और कब नई गेंद ली जाएगी. इसे माइक्रो फिक्सिंग या फैंसी फिक्सिंग भी कहते हैं. अब इतनी बारीक चीजों को इसी हाईडेफिनेशन कैमरे के ज़रिए ही पकड़ा जा सकता है. इसके अलावा अंपायर के नज़दीक मौजूद खिलाड़ी के चश्मे के कैमरे में अंपायर की कई प्रतिक्रियाएं रिकॉर्ड हो सकती हैं. मसलन अंपायर का किसी खिलाड़ी विशेष के प्रति लगाव या पक्षपात या फिर अंपायर की कोई ऐसी टिप्पणी भी रिकॉर्ड हो सकती है, जो बवाल मचाने के लिए काफी होती है. मैच के दौरान खिलाड़ियों के चश्मे से रिकॉर्ड किए गए टेप अगर ग़लत हाथों में चले गए तो कोई ताज्जुब नहीं कि भविष्य में कोई बड़ा स्कैंडल खुल जाए. बस इस चश्मे का रंग कहीं बदरंग न हो जाए, इसका डर है. फिर भी यह कहना ग़लत नहीं होगा कि नई तकनीक इस खेल को और ज़्यादा रोचक बनाने वाली है