Tuesday, May 21, 2013

जनता को ठगने का महामुकाबला





क्‍या सरकार टीवी चैनलों को इसलिए लाइसेंस देती है कि वे जनता को बेवकूफ बनाकर पैसे कमाएं? क्या सरकारी अधिकारियों को पता नहीं है कि उनके  द्वारा जारी लाइसेंस का इस्तेमाल देश की जनता को मूर्ख बनाने में किया जा रहा है? रात के बारह बजते ही कई चैनलों पर ऐसे कार्यक्रम चलाए जाते हैं, जिन पर लाइव लिखा होता है. पर सच्चाई यह है कि उक्त सभी कार्यक्रम रिकॉर्डेड होते हैं. 

इन कार्यक्रमों के टेलीकास्ट के दौरान जब इन चैनलों के दफ्तरों में फोन करके असलियत जाननी चाही तो पता चला कि वहां तो स़िर्फ टेप प्ले करके छोड़ दिया गया है और स्टूडियों में कोई शूट नहीं चल रहा है. हमारी सरकार से मांग है कि ऐसे चैनलों का लाइसेंस रद्द करे, जो कुछ कंपनियों के  साथ मिलकर धोखाधड़ी करते हैं. और, देश की जनता से हम अपील करते हैं कि टीवी पर आने वाले किसी भी शो में फोन या एसएमएस का बहिष्कार करें. रात के  बारह बजते ही देश की जनता को मूर्ख बनाते हुए एसएमएस और फोन कॉल के जरिए जनता की जेबों पर डाका डालते हैं. ऐसे कार्यक्रमों की लंबी फेहरिस्त है. कुछ कार्यक्रम अंकों को दिखाकर उनका जोड़-भाग और कैलकुलेशन करवाते हैं, कुछ फिल्मी पहेली हल कराने के नाम पर अमिताभ बच्चन का चेहरा पहचानने जैसे कठिन सवाल पूछते हैं तो कुछ बड़े ब्रांड्‌स के प्रोडक्ट की नीलामी के नाम पर विज्ञापन भी कर लेते हैं.

वैसे सारी पहेलियों और सवालों के जवाब बहुत आसान होते हैं, लेकिन इन चैनलों पर आने वाले जवाब सुनकर लगेगा कि हमारे देश में गणित की पढ़ाई होती ही नहीं है. दरअसल जब टेलीविजन की शुरुआत हुई थी, तब दूरदर्शन ने लोगों को सा़फ-सुथरा मनोरंजन परोसने का ज़िम्मा उठाया था. 

यही वजह है कि हम लोग, नुक्कड़, रामायण और चंद्रकांता जैसे कार्यक्रम लोगों के जेहन में आज भी ताज़ा हैं. फिर केबल चैनल का दौर आया. इस दौर में रात होते ही पुराना और क्लासिक सिनेमा चलने लगा, पर जैसे ही मार्केटिंग, विज्ञापन एवं टीआरपी जैसे फैक्टर्स इन चैनलों की सफलता और असफलता तय करने लगे तो मानों चैनलों का काम ही बदल गया. वे दर्शकों का मनोरंजन करने के बजाय उनसे रुपये ऐंठने की नई-नई स्कीम बनाने लगे. आजकल टेलीविजन में अजीबोग़रीब मुकाबलों के ऐसे कार्यक्रम चल रहे हैं, जो यह साबित करने पर तुले हैं कि भारत की जनता मूर्ख और बेवकूफ है. म्यूजिक का मुक़ाबला, बिग बॉस और दूसरे रियलिटी शो तो जनता के एसएमएस के ज़रिए करोड़ों की कमाई करने में कामयाब होते हैं. 

मज़ेदार बात यह है कि वोट देने वाले ज़्यादातर दर्शकों को पता भी नहीं चलता है कि यह कार्यक्रम दरअसल कला और छुपे टैलेंट को देश के सामने लाने के  बजाय चैनलों की मोटी कमाई का ज़रिया मात्र है. सबसे पहले उन कार्यक्रमों के  बारे में बताते हैं, जो रात के  बारह बजते ही देश की जनता को मूर्ख बनाते हुए एसएमएस और फोन कॉल के जरिए जनता की जेबों पर डाका डालते हैं. ऐसे कार्यक्रमों की लंबी फेहरिस्त है. कुछ कार्यक्रम अंकों को दिखाकर उनका जोड़-भाग और कैलकुलेशन करवाते हैं, कुछ फिल्मी पहेली हल कराने के नाम पर अमिताभ बच्चन का चेहरा पहचानने जैसे कठिन सवाल पूछते हैं तो कुछ बड़े ब्रांड्‌स के प्रोडक्ट की नीलामी के नाम पर विज्ञापन भी कर लेते हैं.


 वैसे सारी पहेलियों और सवालों के जवाब बहुत आसान होते हैं, लेकिन इन चैनलों पर आने वाले जवाब सुनकर लगेगा कि हमारे देश में गणित की पढ़ाई होती ही नहीं है. ताज्जुब की बात यह है कि 4+18+30-15=? जैसी पहेली को हल करने में पूरे देश को तीन-चार दिन लग जाते हैं और हद तो तब हो जाती है, जब बिना सही जवाब के  कार्यक्रम बंद कर दिया जाता है. अगर कोई जीत भी गया तो न उसका फोन नंबर दिखाया जाता है और न उसकी तस्वीर. ऐसा इसलिए, क्योंकि सभी कार्यक्रम महज़ छलावा हैं. लाइव के नाम पर रिकॉर्डेड कार्यक्रम दिखाकर जनता को मूर्ख बनाया जा रहा है. कार्यक्रमों में क्रिकेट खिलाड़ी या बॉलीवुड की किसी हस्ती की तस्वीर दिखाई जाती है. फिल्मी हीरोइनों के दांत और आंख दिखाए जाते हैं और जनता से चैनल अपील करते हैं कि इन्हें पहचानो. वैसे इन तस्वीरों को इस तरह पेश किया जाता है कि कोई भी बच्चा सही जवाब दे दे. जैसे सचिन और द्रविड़ के चेहरे को मिलाकर पेश करके उन्हें पहचानने के लिए कहा जाता है. अब भला ऐसा कौन होगा, जो सचिन और द्रविड़ का चेहरा न पहचान सके. 

ऐसे ही अक्षय कुमार की तस्वीर दिखाकर पहचानने के लिए कहा जाएगा. अधिक एसएमएस के लालच में हिंट दी जाती है कि इस अभिनेता ने फिल्म सिंह इज किंग में काम भी किया है. मजेदार बात यह कि दो-तीन दिन बीत जाते हैं, लेकिन एक भी सही जवाब नहीं मिल पाता. चैनल बार-बार लगातार किसी भिखारी की तरह फोन करने की अपील करता रहता है और पहले से रिकॉर्ड किए गए ग़लत जवाब दिखाता रहता है, ताकि लोग समझें कि प्रतियोगिता में और लोग भी लगे हुए हैं. एक खूबसूरत एंकर लगातार यह कहती रहती है कि आपको लाइन पर बने रहना है. आगे यह प्रलोभन देती है कि अगले कॉलर को 3000 रुपये मिलेंगे. ग़लत जवाब देने वाले को भी इनामी राशि का कुछ भाग दिए जाने की झूठी घोषणा की जाती है. 

फिर कई मिनटों तक कोई कॉल नहीं ली जाती. मतलब यह कि लोग तीन हज़ार रुपये के लालच में लगातार फोन करते रहते हैं और फोन बिजी होने पर एसएमएस करना शुरू कर देते हैं. उक्त सभी फोन नंबर पीआरएम लाइंस के होते हैं. इस पर कॉल करने पर सामान्य कॉल रेट से कई गुना अधिक यानी छह से बारह रुपये प्रति मिनट खर्च होते हैं. फोन करने वाले दर्शक की कॉल को होल्ड पर रखा जाता है. ज़ाहिर है, जितना लंबा इंतज़ार, उतना ही ज़्यादा लंबा फोन बिल. फोन लगे या न लगे, फोन करने वाले का पैसा ज़रूर लग जाता है. कुछ फोन लाइंस में पहले से रिकॉर्डेड संदेश फीड होते हैं और अलग से जवाब तलब किया जाता है. एसएमएस के धंधे से होने वाली कमाई का कुछ हिस्सा फोन कंपनियों को जाता है और बाकी पैसा उनके खाते में जाता है, जिनके नाम से उक्त नंबर रजिस्टर होते हैं. उक्त कार्यक्रम लाइव नहीं होते. 

सभी कॉल्स चैनल के स्टूडियो के बजाय अलग-अलग कंपनियों के  कॉलसेंटर में जाती हैं. जनता को लगता है कि वह चैनल के एंकर से बात कर रही है. जबकि सच्चाई यह है कि वह कॉल किसी कंप्यूटर में जाती है. कॉलसेंटर्स से रिकॉर्डेड टेप टीवी चैनलों में जाते हैं. मतलब यह है कि जो लोग यह समझ कर फोन करते हैं कि वे चैनल के लाइव प्रोग्राम में फोन कर रहे हैं, उन्हें पता नहीं होता कि इस खेल के पीछे क्या चल रहा है. यह बात और है कि धोखाधड़ी करने वाले कार्यक्रमों की शुरुआत में एक डिस्क्लेमर लगाकर चैनल सारी ज़िम्मेदारियों से खुद को अलग कर लेते हैं. अब बात ऐसे कार्यक्रमों की, जिन्हें हम रियलिटी शो कहते हैं. 

उक्त रियलिटी शो कभी डांस तो कभी संगीत का महामुक़ाबला के नाम से जनता के सामने आते हैं. सर्वश्रेष्ठ गायक कौन है, यह जनता के वोट से तय होता है. नए-नए फॉर्मेट और नए-नए अंदाज़ में लोगों से एसएमएस मंगवा कर टीवी प्रोड्यूसर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. रही बात हार और जीत की, सच पूछिए तो जनता के वोट का कोई मतलब ही नहीं होता है. हाल में हुए एक ऐसे ही मुक़ाबले में जनता के वोट से शान जीते थे, लेकिन जज की कुर्सी पर बैठे जावेद अख्तर ने एक ऐसा कारनामा किया कि उनकी अकेली च्वाइस लाखों-करोड़ों देशवासियों के  वोटों पर भारी पड़ गई. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जावेद साहब कोई संगीतकार नहीं हैं. अगर शंकर महादेवन को जजों के फैसले से ही जीतना था, तो जनता से लाखों की संख्या में एसएमएस क्यों मंगवाए गए? क्या इन रियलिटी शोज का एकमात्र मक़सद पैसा कमाना है? एसएमएस भेजने वाली जनता का भी हक़ है कि उसे बताया जाए कि किसी भी रियलिटी शो में कितने एसएमएस आए और कहां से आए? एसएमएस और फोन का यह खेल अभी रियलिटी टीवी तक सीमित है, लेकिन संकेत तो यह मिल रहे हैं कि टीवी सीरियलों में भी अब एसएमएस का खेल शुरू होने वाला है. 



बालिका वधू सीरियल में आनंदी के ठीक होने के लिए टीवी चैनल ने प्रार्थनासभाओं का ड्रामा शुरू किया है. वह दिन दूर नहीं, जब सीरियलों में सबसे पसंदीदा कलाकार को मारकर यह एसएमएस मंगवाया जाएगा कि वह फिर से जिंदा होनी चाहिए या नहीं. टीवी चैनलों और खासकर न्यूज़ चैनलों की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है. लोगों का मीडिया पर भरोसा है. चंद पैसों और टीआरपी की खातिर इन ज़िम्मेदारियों को ताख पर नहीं रखा जा सकता. इस तरह की धोखाधड़ी के खेल में शामिल होकर न्यूज़ चैनल अपनी साख खोते जा रहे हैं और उनसे जनता का भरोसा उठता जा रहा है.

 ऐसे में इस भरोसे को कायम रखने की ज़िम्मेदारी भी न्यूज़ चैनलों की है. देश में क़ानून का राज चलता है, यही माना जाता है. धोखाधड़ी, चोरी और जालसाजी के लिए सजा का प्रावधान है. जब कोई छोटा-मोटा चोर पांच हज़ार रुपये की चोरी करता है तो अदालत उसे सजा देती है. अगर यही चोरी करोड़ों की हो, हर रोज़ हो और इसे करने वाले देश की बड़ी-बड़ी कंपनियां और टीवी चैनल्स हों तो क्या सरकार को उन पर कोई कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? अगर इन चैनलों पर जल्द लगाम नहीं लगाई गई तो यह लूट यूं ही जारी रहेगी.