वर्ल्डकप 2011 अब तक अपने रोमांचक दौर पर है. जैसा कि हर बार होता है, इस बार भी कई उलटफेर हुए और आगे भी होंगे. जिन टीमों को फिसड्डी माना जाता है या यूं कहें कि जिन्हें स़िर्फ ग्रुप की लिस्ट लंबी करने के लिए शामिल किया जाता है, वही टीमें शुरुआती दौर में बड़ी-बड़ी टीमों को हराकर या उन्हें कांटे की टक्कर देते हुए रोमांचक मोड़ पर लाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. इन टीमों में आयरलैंड, नीदरलैंड, ज़िम्बाब्वे, कनाडा और बांग्लादेश का नाम लिया जा सकता है.
इन सभी टीमों में एक चीज कॉमन है, वह यह कि इन सभी टीमों के नाम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में स़िर्फ तब सुनाई देते हैं, जब वर्ल्डकप का आयोजन होता है. उसके बाद पता नहीं, ये सारी टीमें कहां ग़ायब हो जाती हैं. हालांकि इस मामले में कुछ हद तक बांग्लादेश को अपवाद माना जा सकता है. यह टीम कभी-कभी एशियाई देशों में होने वाली क्रिकेट प्रतिस्पर्धाओं में खेलती हुई ऩजर आ जाती है, लेकिन प्रदर्शन वही ढाक के तीन पात वाला ही रहता है. अपनी पिचों और 35,000 लोगों के बीच किसी भी टीम का हौसला बढ़ सकता है. ऐसे में वह कोई बड़ा चमत्कार करे तो कोई आश्चर्य नहीं. इसके अलावा एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस तरह की टीमों के पास खोने के लिए कुछ खास नहीं होता. ऐसे में उन पर जीतने का कोई खास दबाव नहीं होता है और उस दबाव मुक्त माहौल में वे बेहतरीन प्रदर्शन कर जाती हैं.
फिर भी यह यक्ष प्रश्न तो अभी भी क़ायम है कि आ़खिर इन टीमों का अस्तित्व वर्ल्डकप से कभी बाहर निकलेगा या फिर ये सिर्फ ग्रुप लिस्ट बढ़ाती ही ऩजर आएंगी. कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि विश्वकप में अपने उलटफेर प्रदर्शन से बड़ी-बड़ी टीमों के छक्के छुड़ाने वाली इन नई नवेली टीमों का आ़खिर बाद में क्या होता है. इस प्रतिस्पर्धा के खत्म होने के बाद ये कहां गायब हो जाती हैं. बाद में जब भी कोई बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता होती है तो इन्हें उसमें शामिल क्यों नहीं किया जाता है. अगर इनका प्रदर्शन इतना ही खराब होता तो फिर ये उलटफेर क्यों करतीं, जैसा कि इस बार इंग्लैंड और का़फी हद तक पाकिस्तान के साथ हो चुका है. अगर इस पर यह तर्क दिया जाए कि ये उलटफेर स़िर्फ तुक्के के बल पर हुए हैं तो इसका मतलब ये टीमें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भाग लेने लायक हैं ही नहीं. आ़खिर कब तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वहीं गिने-चुने देशों के नाम सुनाई देते रहेंगे? क्या कभी ऐसा भी होगा, जब टॉप रैंकिंग में इन नई नवेली टीमों को भी जगह मिलेगी? इसके पीछे की असल वजह क्या है, इस पर जानकारों की अलग-अलग राय हो सकती है, लेकिन इतना तो तय है कि पिछले कई सालों से हम इस तरह की टीमों को स़िर्फ लिस्ट भरने के तौर पर ही देखते आ रहे हैं और शायद आगे भी यही देखते रहेंगे. इसका मतलब तो यही हुआ कि दूसरे देशों की टीमों को कभी नया मुकाम हासिल ही नहीं होगा. अगर ऐसा है तो यह बहुत सारे देशों की प्रतिभाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा. हर बार कोई कमज़ोर सी टीम दिग्गज को पटक देती है और फिर पूरे वर्ल्डकप का समीकरण ही बदल जाता है. आयरलैंड ने इंग्लैंड को हराकर ऐसा ही किया है. हालांकि आयरलैंड की जीत के पीछे इंग्लैंड की दिशाहीन गेंदबाजी और घटिया क्षेत्ररक्षण की भी अहम भूमिका रही. इंग्लिश टीम को अपनी इन ग़लतियों का खामियाजा उलटफेर का शिकार होकर भुगतना पड़ा.
इसके बावजूद आयरलैंड की मेहनत कम नहीं हो जाती. पिछले विश्वकप में भी पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी टीमों को उलटफेर का शिकार बनाकर सनसनी फैलाने वाले आयरलैंड का नाम बीच में किसी प्रतिस्पर्धा में नहीं सुना गया. आयरलैंड के अलावा और भी कई टीमें हैं, मसलन हॉलैंड, कनाडा और नीदरलैंड, जो किसी भी मैच में खेल का रु़ख बदलने का माद्दा रखती हैं. बांग्लादेश का पूरा करियर ही उलटफेर की कहानी पर टिका हुआ है. इतने सालों के दौरान बांग्लादेश का नाम कभी भी टॉप रैंकिंग में नहीं आया. इस बार बांग्लादेश पहली बार वर्ल्डकप की मेजबानी कर रहा है. बांग्लादेश ने यह तो दिखा दिया कि अब वह भी ऐसे आयोजनों की मेजबानी करने में सक्षम है, लेकिन क्या वह आगे होने वाले मैचों में यह दिखा पाएगा कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उसका प्रदर्शन विश्वसनीय है. बांग्लादेश के लिए सबसे अच्छा वर्ल्डकप 2007 का था, जहां उसने पहले चरण में भारत को हराकर सुपर आठ में प्रवेश किया. सुपर आठ में भी उसने दक्षिण अफ्रीका को हराया. हालांकि इसके बाद वह सभी मैच हार गया, लेकिन इन दो ज़बरदस्त उलटफेरों ने उसे अचानक लाइम लाइट में ला दिया. उसके बाद से यह टीम आज तक छोटे-मोटे उलटफेरों के दम पर ही टिकी हुई है. इसने कभी भी यह साबित नहीं किया कि यह ए लिस्ट की रैंकिंग में शामिल होने लायक है. पिछले दो सालों में बांग्लादेश की टीम में बहुत परिवर्तन आया है. जहां उसने विदेशी धरती पर जाकर अच्छा प्रदर्शन किया है, वहीं घरेलू पिच पर भी बांग्लादेश ने पहले न्यूज़ीलैंड और फिर ज़िम्बाब्वे को एक दिवसीय सीरीज़ में हराया. अतः हम कह सकते हैं कि बांग्लादेश कुछ भी करने में सक्षम है. भारत के अलावा पाकिस्तान भी इस तरह के उलटफेरों का शिकार हो चुका है.
याद कीजिए 1999 का वर्ल्डकप, बांग्लादेश ने क्रिकेट वर्ल्डकप में पहली बार भाग लिया था. उस बार उसने लीग मैच में उलटफेर करते हुए पाकिस्तान को हराया था, लेकिन दूसरे मैचों में उसका प्रदर्शन खराब रहा. अतः उसे पहले दौर में ही बाहर होना पड़ा. ऐसा कोई नियम नहीं है कि इस तरह के उलटफेर करने वाली टीमें ए ग्रेड में नहीं आ सकती हैं. याद कीजिए 1983 का वर्ल्डकप, भारतीय टीम बेहद कमज़ोर मानी जाती थी. फिर भी किसी तरह वह वर्ल्डकप के फाइनल तक पहुंच गई. कुछ ने इसे तुक्का तो कुछ ने तक़दीर का खेल बताया. फाइनल में पहले बल्लेबाजी करते हुए टीम मात्र 183 रनों पर आउट हो गई. ज़्यादातर लोगों ने यह पक्का कर दिया कि यहां से भारत स़िर्फ उपविजेता ही बन सकता है, लेकिन बाद में मोहिंदर अमरनाथ की जादुई गेंदबाजी और कपिलदेव के करिश्माई कैच ने भारत को विश्व चैंपियन बना दिया. निश्चित तौर पर यह वर्ल्डकप का अब तक का सबसे बड़ा उलटफेर है. इसके दम पर चैंपियन बनने वाली उस व़क्त की कमज़ोर भारतीय टीम आज नंबर वन की पोजीशन में है. इससे यह तो साबित होता है कि पहली बार खेलना इस बात का ठप्पा नहीं हैं कि आप आगे भी न खेल पाओ. इसके अलावा कुछ और बड़े उलटफेरों पर ग़ौर फरमाइए. 2007 में आयरलैंड बनाम पाकिस्तान का मैच. भला उस मैच को कोई कैसे भूल सकता है. पिछले वर्ल्डकप में पाकिस्तान की टीम आयरलैंड की कमज़ोर टीम के सामने 132 रनों पर ऑल आउट हो गई थी. इसके बाद खुद आयरलैंड के सात विकेट 113 रनों पर गिर गए. उसी दौरान ट्रेंट जॉनटन ने छक्का मारकर अपनी टीम को ऐतिहासिक जीत दिला दी. उस रात पाकिस्तान के कोच बॉब वूल्मर को दिल का ऐसा दौरा पड़ा कि वह कभी उठ नहीं पाए. पाकिस्तान वर्ल्डकप से बाहर हो गया. पिछले वर्ल्डकप में अगर आयरलैंड ने पाकिस्तान को बाहर किया तो पिद्दी समझे जाने वाले बांग्लादेश ने भारत को. टीम इंडिया ने 191 रनों का कमज़ोर स्कोर बनाया, जिसे बांग्लादेश की टीम ने आसानी से पार कर लिया. इसी हार के बाद भारत को बाहर जाना पड़ा. इसी तरह 1983 में एक तरफ बॉर्डर, मार्श लिली और थॉमसन जैसे क्रिकेटरों से सजी ऑस्ट्रेलिया की टीम थी तो दूसरी तऱफ क्रिकेट की दुनिया में पहला क़दम रख रही जिम्बाब्वे. पर डंकन फ्लेचर की जादुई पारी के साथ जिम्बाब्वे ने 239 रन बना डाले, नतीजतन आस्ट्रेलिया हार गया.
2003 के वर्ल्डकप में केन्या ने भारतीय क्रिकेटर संदीप पाटिल की कोचिंग में ज़बरदस्त प्रदर्शन किया और विश्व विजेता रह चुकी श्रीलंका की टीम को परास्त करते हुए सेमी फाइनल तक जगह बना ली. हालांकि विशेषज्ञ कुछ और कारणों का ज़िक्र करते हैं. उनका मानना है कि इस तरह की टीमें उलटफेर कुछ खास कारणों से कर पाती हैं. मसलन वर्ल्डकप में बांग्लादेश के पास सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह मैच अपने घर में खेल रहा है. अपनी पिचों और 35,000 लोगों के बीच किसी भी टीम का हौसला बढ़ सकता है. ऐसे में वह कोई बड़ा चमत्कार करे तो कोई आश्चर्य नहीं. इसके अलावा एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस तरह की टीमों के पास खोने के लिए कुछ खास नहीं होता. ऐसे में उन पर जीतने का कोई खास दबाव नहीं होता है और उस दबाव मुक्त माहौल में वे बेहतरीन प्रदर्शन कर जाती हैं. फिर भी यह यक्ष प्रश्न तो अभी भी क़ायम है कि आ़खिर इन टीमों का अस्तित्व वर्ल्डकप से कभी बाहर निकलेगा या फिर ये सिर्फ ग्रुप लिस्ट बढ़ाती ही ऩजर आएंगी.