Friday, April 15, 2011

जिनके लिए यह आख़िरी मौक़ा है



भारत में क्रिकेट अगर धर्म है तो विश्वकप भी महाकुंभ के आयोजन से कम नहीं होता. यह बात स़िर्फ भारत में ही नहीं, दुनिया के लगभग हर देश पर लागू होती है. यही वजह है कि हर चार साल बाद जब विश्वकप का आयोजन होता है तो उसकी मेजबानी को लेकर देशों में और टीम में जगह पक्की करने के लिए खिलाड़ियों में उत्साह देखते ही बनता है. कुछ खिलाड़ियों की किस्मत इतनी अच्छी होती है कि उन्हें न सिर्फ विश्वकप में खेलने का मौका मिलता है, बल्कि वे विश्वकप विजेता टीम का हिस्सा भी बनते हैं. वहीं दूसरी ओर इंग्लैंड जैसी टीम भी है, जो आज तक विश्वकप ट्राफी से वंचित है.

इन सबके बीच एक चीज जो आम है, वह यह कि हर खिलाड़ी का सपना होता है कि उसे अपने पूरे करियर के दौरान कम से कम एक बार विश्वकप में खेलने का मौका अवश्य मिले. लेकिन इस अंक में हम उन खिलाड़ियों की बात कर रहे हैं, जिनके लिए विश्वकप 2011 उनका आखिरी विश्वकप होगा. उन पर दोहरा दबाव है, विश्वकप जीतने का और अपने आखिरी मौके को अच्छी तरह भुनाने का, क्योंकि पता नहीं, इसके बाद हो सकता है कि उनका करियर रिकॉर्ड यहीं पर थम जाए. शुरुआत मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर से ही करते हैं. खेल प्रेमियों के लिए वह दिन मातम का होगा, जब सचिन क्रिकेट को अलविदा कहेंगे. विश्वकप 2011 सचिन का आखिरी विश्वकप होगा. इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि सचिन की मौजूदगी में भारत ने अभी तक कोई विश्वकप नहीं जीता है. हालांकि इस बात से पूरी दुनिया वाकिफ है कि सचिन अपने समय के हर तरह से सबसे पूर्ण क्रिकेटर हैं और क्रिकेट इतिहास के सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं.

सचिन निस्संदेह दुनिया के सबसे लोकप्रिय क्रिकेटर हैं. बल्लेबाज़ी का शायद ही कोई ऐसा रिकॉर्ड हो, जो उनकी क्षमता से बाहर हो. धैर्य, संयम, आक्रमण, सही गेंद का चुनाव, गेंद का प्लेसमेंट, गैप निकालना और सबसे बढ़कर क्रिकेट के प्रति समर्पण उन्हें एक बेमिसाल खिलाड़ी बनाता है. उनका लंबा अनुभव और किसी भी परिस्थिति से निपटने का हौसला भारत के लिए एक वरदान है. उनके पास वनडे और टेस्ट, दोनों में सबसे ज़्यादा शतक हैं, सबसे ज़्यादा रन हैं. दुनिया का कोई भी गेंदबाज़ उनका विकेट लेने की ख्वाहिश रखता है. दो विश्वकपों में वह सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी रहे. वर्ष 2000 में वह पहले ऐसे खिलाड़ी बने, जिसने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 50 शतक लगाए हों और इस विश्वकप में उनसे यह उम्मीद की जा रही है कि वह अपना 100वां अंतरराष्ट्रीय शतक लगाएंगे. तेंदुलकर आईपीएल में मुंबई इंडियंस के कप्तान हैं, लेकिन उन्होंने भारत की ओर से टी-20 न खेलने का फ़ैसला किया है. जब तक सचिन खेल रहेे हैं, तब तक आप किसी भी करिश्मे की उम्मीद कर सकते हैं. उसके बाद क्या होगा, कोई नहीं जानता. सचिन के अलावा भारत की ओर से आशीष नेहरा भी ऐसे खिलाड़ी होंगे, जिनका यह आखिरी विश्वकप है. गौरतलब है कि आशीष नेहरा ने अंतरराष्ट्रीय वनडे क्रिकेट में 2000-01 में क़दम रखा था और उसके साथ यह भी बता दिया कि उनमें बाएं हाथ के क्लासिक तेज़ गेंदबाज़ की सारी विशेषताएं मौजूद हैं.

नेहरा ने 1999 में अपना पहला टेस्ट खेला था. नेहरा को उनकी चोट ने काफ़ी परेशान किया और जब वह अपने चरम पर थे, तभी परेशानियों ने आ घेरा और फिर गति एवं दिशा पर उनका नियंत्रण जाता रहा. नेहरा ने ज़िम्बॉब्वे के  ख़िलाफ़ ही अपनी पहली पूरी सीरीज़ खेली थी और 2005 में उन्हें ज़िम्बॉब्वे के दौरे को बीच में ही छोड़ना पड़ा था. टेस्ट में उन्हें दोबारा तो नहीं बुलाया जा सका, लेकिन आईपीएल के दूसरे संस्करण में अच्छा प्रदर्शन करने के नतीजे में उन्हें वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध 2009 में वनडे टीम में वापस बुलाया गया. नेहरा ने पाकिस्तान और इंग्लैंड के विरुद्ध ख़ास तौर से अच्छा प्रदर्शन किया है. उन्होंने वनडे में इंग्लैंड के विरुद्ध अपना बेहतरीन प्रदर्शन दिखाया, जब उन्होंने 23 रन देकर छह विकेट झटके. कुल मिलाकर इस विश्वकप के बाद आशीष नेहरा को क्रिकेट की और क्रिकेट प्रेमियों को नेहरा की कमी जरूर खलेगी. अब बात करते हैं उस खिलाड़ी की, जिसने अभी से ही अपने संन्यास की घोषणा कर दी है. कभी अपने प्रदर्शन तो कभी विवादों से लोगों को अक्सर चौंकाने वाले पाकिस्तानी तेज गेंदबाज शोएब अख्तर का यह आखिरी मौका है. अधिकतर समय विवादों से घिरे रहने वाले और रावलपिंडी एक्सप्रेस के नाम से मशहूर शोएब की सनसनाती गेंदों से बल्लेबाजों के होश फाख्ता हो जाते थे. ब्रायन लारा ने जब पहली बार शोएब की सनसनाती गेंदों का सामना किया था तो वह काफी असहज नजर आए थे. शोएब के नाम सबसे तेज गेंद फेंकने का रिकॉर्ड 100.2 मील (161.3 किमी) प्रति घंटा है, जो उन्होंने 2003 के विश्वकप में इंग्लैंड के विरुद्ध दर्ज कराया था. इस प्रतिभाशाली खिलाड़ी की तेज रफ्तार और आक्रामकता ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी निकली. चोट और अपने गुस्सैल व्यवहार की वजह से अत्यंत प्रतिभाशाली होते हुए भी उन्हें टीम में कभी स्थायी जगह मिली ही नहीं. जानकार आज भी मानते हैं कि अगर थोड़ा सा धैर्य और अनुशासन शोएब में होता तो इस खिलाड़ी को महानतम बनने से कोई नहीं रोक सकता था. 2006 में शोएब को डोपिंग का दोषी पाया गया था. वर्ष 2007 में मोहम्मद आसिफ से मारपीट के कारण उन पर 13 वनडे मैचों की पाबंदी लगाई गई थी. 2008 में पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड की आलोचना करने पर उन पर 18 महीने का प्रतिबंध और 70 लाख रुपये का जुर्माना हुआ था. अब शोएब का शबाब उतार पर है और उनकी गेंदों में वह तेजी भी नहीं रही, जिससे दुनिया के बेहतरीन बल्लेबाज भी खौफ खाते थे. फिर भी उनकी अपनी शैली की वजह से रावलपिंडी एक्सप्रेस को हमेशा याद रखा जाएगा. मालूम हो कि शोएब अख्तर ने अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर की शुरुआत वर्ष 1997 में की थी और उन्होंने 46 टेस्ट मैचों में 178 विकेट लिए. उन्होंने अपना आख़िरी टेस्ट मैच वर्ष 2007 में भारत के ख़िलाफ़ बंगलुरू में खेला था.

 अभी तक शोएब 163 एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुके हैं और उन्होंने 247 विकेट भी लिए. शोएब की छवि के ठीक विपरीत जैक्स कालिस भी उन खिलाड़ियों में से हैं, जो आखिरी बार विश्वकप में हिस्सा ले रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका टीम के  सर्वश्रेष्ठ हरफनमौला खिलाड़ी जैक्स कालिस टीम के सबसे अनुभवी खिलाड़ियों में शुमार हैं. कालिस बल्लेबाजी में अपनी क्लास के लिए जाने जाते हैं. जबरदस्त बल्लेबाज होने के साथ-साथ वह मध्यम-तेज गेंदबाजी भी करते हैं. 1995-96 में इंग्लैंड के खिलाफ इस खिलाड़ी ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर का सफर शुरू किया. कालिस की ़खासियत है कि वह क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं. 1998 से 2002 के बीच कालिस दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हरफनमौला खिलाड़ी के तौर पर उभरे. 1998 में चैंपियंस ट्राफी में दक्षिण अफ्रीका को खिताब दिलाने में उनकी अहम भूमिका थी. कालिस इस टूर्नामेंट में दो बार मैन ऑफ द मैच, जबकि पूरी सीरीज के लिए मैन ऑफ द सीरीज भी चुने गए. टेस्ट इतिहास के कालिस मात्र चौथे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने लगातार पांच मैचों में शतक जड़ा हो. चोटों से जूझने के बाद भी इस खिलाड़ी ने जीवट खेल दिखाया है. 2011 में भारत के ़िखला़फ निर्णायक टेस्ट मैच में कमर में बहुत दर्द के बाद भी कालिस मैदान पर डटे रहे और शतक जड़कर उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को हार से बचाया. इसके अलावा वह 2005 में आईसीसी द्वारा प्लेयर आफ द ईयर चुने जा चुके हैं. उनके  शानदार करियर ग्राफ में एक नगीना लगना अभी बाकी है. क्रिकेट जगत के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपाधि यानी आईसीसी क्रिकेट विश्वकप को जीतना. वैसे तो कई बड़े खिलाड़ी हैं, जो अगले विश्वकप में नहीं दिखाई देंगे, लेकिन शायद सभी के नाम उतने यादगार नहीं रहेंगे, जितना आस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग का रहेगा. जानकार आज भी मानते हैं कि सचिन का रिकॉर्ड अगर कोई तोड़ सकता है तो वह पोंटिंग ही हैं. आस्ट्रेलिया की कई सालों तक कप्तानी करने वाले रिकी पोंटिंग ने एलन बोर्डर का रिकार्ड तोड़कर आस्ट्रेलिया की तरफ से टेस्ट मैचों में सर्वाधिक रन बनाने का रिकॉर्ड अपने नाम किया. वह अब टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वाले शीर्ष तीन बल्लेबाजों में शामिल हैं. पोंटिंग के नाम अब 134 टेस्ट मैचों की 225 पारियों में 11,188 रन दर्ज हैं, जिसमें 38 शतक और 46 अर्धशतक शामिल हैं. टेस्ट क्रिकेट में पोंटिंग से अधिक रन भारत के सचिन तेंदुलकर और वेस्टइंडीज के ब्रायन लारा ने बनाए हैं. अगर सब कुछ ठीक रहा तो कोई आश्चर्य नहीं कि रिकी जाते-जाते कोई नया करिश्मा कर जाएं. हालांकि उनके लिए आखिरी विश्वकप का मलाल इसलिए नहीं होगा, क्योंकि वह इससे पहले अपनी टीम को विश्वकप जिता चुके हैं. फिर भी आस्ट्रेलियाई टीम के लिए उनके जैसे कप्तान और खिलाड़ी की जगह भरना आसान नहीं होगा. अब जब उम्र के इस पड़ाव पर आकर इन खिलाड़ियों के सामने क्रिकेट को अलविदा कहने का मौका करीब आ गया है तो फिर इन्हें जाते-जाते क्रिकेट और क्रिकेट प्रेमियों को ऐसा तोहफा जरूर देना होगा, जिससे इनकी विदाई शानदार मानी जाए. 

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