पिछले कुछ सालों में अगर भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर सकारात्मक रूप से उभरी है तो उसमें क्रिकेट का भी काफी योगदान रहा है. लंबे समय बाद देखा गया, जबकि भारतीय विदेशों में नहीं, बल्कि अपने ही देश में क्रिकेट के जरिए पैसा और अंतरराष्ट्रीय ख्याति हासिल कर रहे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, हम कभी क्रिकेट के सरताज कहे जाने वाले देशों के खिलाड़ियों की नीलामी भी कर रहे हैं. आज हालत यह है कि क्रिकेट अप्रत्यक्ष तौर पर राष्ट्रीय खेल बन चुका है और यह सब हुआ आईपीएल की वजह से. लेकिन अति तो किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती. आईपीएल के साथ भी यही हुआ. मोदी और कलमाडी का हश्र तो दुनिया देख ही चुकी है. इन दोनों के घोटालों को देखते हुए यह वाजिब भी था, लेकिन इस बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है कि पैसा, ग्लैमर और चकाचौंध वाला यह आईपीएल इस जेंटलमैन गेम को ही बर्बाद करने पर तुला हुआ है. मलिंगा का तर्क क्रिकेटरों की उस दुविधा को दर्शाता है, जिसमें एक तरफ़ तो आईपीएल की ओर से मिलने वाली भारी-भरकम राशि है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय टीम के प्रति ज़िम्मेदारी. अब यह तो खिलाड़ियों को ही तय करना है, क्योंकि जिस तरह मलिंगा ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है, उससे तो यही लगता है कि बलपूर्वक किसी को भी ज़िम्मेदारियों का एहसास नहीं कराया जा सकता.
जेंटलमैन इसलिए, क्योंकि एक दौर था, जब खिलाड़ी खेल के मैदान पर उतर कर एक-दूसरे से हाथ मिलाकर अपने-अपने देश का प्रतिनिधित्व करते थे और दर्शकों से भरा स्टेडियम अपने इन नायकों के लिए हवा में उछलता था. हर खिलाड़ी अपने देश की शान माना जाता था और आज भी सचिन जैसे लोग दुनिया भर के हीरो माने जाते हैं. लेकिन अब क्रिस गेल और मलिंगा जैसे खिलाड़ियों को देखिए, वेस्टइंडीज और श्रीलंका के ये धुरंधर खिलाड़ी पिछले कुछ समय से मीडिया की सुर्खियां बटोर रहे हैं. इस बार की सुर्खियां किसी प्रदर्शन को लेकर नहीं, बल्कि इस बात पर हैं कि वे अपने देश के लिए खेलें या छप्पर फाड़कर नोटों की बरसात करने वाले आईपीएल के लिए. आखिर में इन दोनों खिलाड़ियों ने देश से ज़्यादा नोट को तवज्जो देते हुए आईपीएल को चुना. दोनों के ही अपने बहाने हैं. किसी को अपने देश के क्रिकेट बोर्ड से नाराजगी है तो कोई कोहनी में चोट की वजह से टेस्ट मैच से संन्यास ही ले रहा है. गौरतलब है कि आईपीएल में खेल रहे श्रीलंकाई खिलाड़ियों को कुछ समय पहले उनके बोर्ड ने इंग्लैंड दौरे की तैयारियों के लिए जल्द स्वदेश लौटने को कहा था. इसका मतलब यह था कि खिलाड़ी आईपीएल को बीच में ही छोड़कर स्वदेश लौटें. इसका दूसरा मतलब यह भी था कि आईपीएल को बीच में छोड़ना यानी खिलाड़ियों का करोड़ों का नुकसान. इससे बीसीसीआई और श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड में टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी. अंदर से तो ऐसी खबरें भी आईं कि श्रीलंका के खेल मंत्रालय को पर्याप्त मुनाफा नहीं मिला, इसीलिए वह खिलाड़ियों पर वापसी का दबाव बना रहा है. संगकारा कहते हैं कि यदि एफटीपी में नियमित तौर पर आईपीएल को जगह दी जाती है तो इस तरह के टकराव से बचा जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि आईपीएल के लिए खास जगह होनी चाहिए और बीसीसीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पर्याप्त टेस्ट क्रिकेट खेला जाए. आपको बता दें कि श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड ने अपने खिलाड़ियों को 18 मई तक आईपीएल में खेलने की अनुमति दे दी है, लेकिन संगकारा कुछ दिन पहले इंग्लैंड दौरे पर चले जाएंगे. उन्होंने कहा, हमें 20 मई तक का समय दिया गया है. हमारा 16 और 21 मई को मैच है. मैं 16 मई के मैच के बाद लौट जाऊंगा. अब यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि अगर ये खिलाड़ी अपने बिजी शेड्यूल से समय निकाल कर स्वदेश रवाना हो सकते हैं तो क्या गेल और मलिंगा ऐसा नहीं कर सकते थे? इन दोनों मामलों में क्रिस गेल की बात पर थोड़ा यकीन किया जा सकता है. उनके मुताबिक, वहां के बोर्ड ने उन्हें चयन संबंधी प्रक्रिया से दरकिनार किया है, जिसकी वजह से उन्हें अपमान सहना पड़ा.
लेकिन मलिंगा का मामला पूरी तरह अजीब और अलग है. उन्होंने तो अपने देश वापस जाने से बचने के लिए या यूं कहें कि अपना नुकसान बचाने के लिए टेस्ट क्रिकेट से ही संन्यास लेने की घोषणा कर दी. यहां पर ताज्जुब वाली बात यह है कि इसके लिए उन्होंने घुटने की चोट को वजह बताया है. 27 वर्ष की उम्र में ही टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा करने वाला यह क्रिकेटर असल में शुरुआत से इस दुविधा में था कि वह पैसा चुने या अपना देश. इसी दुविधा का नतीजा है कि राष्ट्रीय टीम प्रबंधकों को अपने घायल होने की सूचना देकर लसिथ मलिंगा आईपीएल में खेल रहे हैं. मलिंगा के मामले में यह तर्क गले नहीं उतरता कि आईपीएल में तो सिर्फ़ चार ओवर फेंकने होते हैं. मलिंगा का तर्क क्रिकेटरों की उस दुविधा को दर्शाता है, जिसमें एक तरफ़ तो आईपीएल की ओर से मिलने वाली भारी-भरकम राशि है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय टीम के प्रति ज़िम्मेदारी. अब यह तो खिलाड़ियों को ही तय करना है, क्योंकि जिस तरह मलिंगा ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है, उससे तो यही लगता है कि बलपूर्वक किसी को भी ज़िम्मेदारियों का एहसास नहीं कराया जा सकता. यह अजीब सा लगता है कि वह घायल हैं, लेकिन फिर भी खेल रहे हैं. मेंडिस कहते हैं कि हमने मलिंगा को पत्र लिखकर घर लौटने को कहा था, लेकिन जवाब में मलिंगा ने यह कहा कि उनके घुटने में दर्द है, जिसकी वजह से वह टेस्ट सीरीज़ के लिए उपलब्ध नहीं हैं. दिलीप मेंडिस ने कड़ा रुख़ अख्तियार करते हुए यह भी कहा था कि अगर खिलाड़ी घायल है तो उसे तुरंत इलाज शुरू कर लेना चाहिए, ताकि वह अगर अपने देश के लिए खेलने में दिलचस्पी रखता है तो उसके लिए स्वस्थ हो सके. तिलकरत्ने दिलशान की कप्तानी में इंग्लैंड के दौरे पर जाने वाली श्रीलंकाई टीम एंजेलो मैथ्यू के घायल होने के कारण पहले ही गेंदबाज़ी के सीमित विकल्पों से जूझ रही है, लेकिन शायद मलिंगा को यह बात समझ में नहीं आई और उन्होंने इन सब झंझटों से पीछा छुड़ाने के लिए संन्यास लेना ही बेहतर समझा. अब उन्हें आईपीएल में खेलने से कोई भी नहीं रोक सकता. क्रिस गेल पर भी यही बात लागू होती है कि अगर उन्हें अपने देश के क्रिकेट बोर्ड से कोई नाराजगी थी तो इसका बहाना लेकर आप आईपीएल नहीं खेल सकते. ऐसा नहीं है कि पैसे और ग्लैमर की चमक में सिर्फ विदेशी खिलाड़ी ही अंधे हुए हैं, हमारे खिलाड़ी भी कम नहीं हैं. यह तो अच्छा है कि आईपीएल हमारे देश में हो रहा है, नहीं तो किसी और देश में इन खिलाड़ियों की बोली लगती और ये भी घरेलू क्रिकेट को दरकिनार करते हुए पैसा कमाने की सोच बैठते. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि अभी हाल में धोनी समेत कई भारतीय खिलाड़ी वर्ल्डकप में मिलने वाली पुरस्कार राशि से खुश नहीं थे और उन्होंने बाकायदा विरोध दर्ज कराया.
नतीजतन, भारतीय क्रिकेट बोर्ड यानी बीसीसीआई ने विश्वकप जीतने वाली भारतीय टीम के प्रत्येक खिलाड़ी को दी जानी वाली राशि एक करोड़ से बढ़ाकर दो करोड़ रुपये कर दी. बीसीसीआई ने अपनी कार्यकारी समिति की बैठक में पुरस्कार-प्रोत्साहन राशि बढ़ाकर दो करोड़ रुपये तो कर दी, लेकिन अंदरूनी सूत्रों की मानें तो यह राशि अभी भी कम है, क्योंकि खिलाड़ियों की मांग पांच करोड़ रुपये थी. हम यह नहीं कह रहे हैं कि खिलाड़ी पैसा न कमाएं. पैसा कमाने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन वे किस तरह पैसा कमा रहे हैं, इस पर गौर करने की आवश्यकता है. इसे किस तरह सही कहा जा सकता है कि आप अपने देश में होने वाले टूर्नामेंट को छोड़कर सिर्फ इसलिए आईपीएल में शामिल हों, क्योंकि वहां आपको अपने देश से ज्यादा पैसे मिल रहे हैं. इस बात को खिलाड़ी क्यों भूल जाते हैं कि उन्हें यह पैसा इसलिए मिल रहा है, क्योंकि वे अपने देश की ओर से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलते हैं. अगर वे अपने देश के स्टार खिलाड़ी नहीं होते तो आईपीएल तक कैसे पहुंचते? यह विडंबना है कि कुछ ही सालों पहले शुरू हुआ आईपीएल संस्करण अपने पैसों के दम पर खिलाड़ियों को बागी बना रहा है. यहां पर एक पक्ष यह भी है कि जब क्रिकेट से जुड़ा प्रबंधन करोड़ों में खेल रहा है और मोदी जैसे सूरमा बड़े-बड़े घोटाले कर रहे हैं तो ऐसे में खिलाड़ी पैसा क्यों न कमाएं. आईपीएल ने न सिर्फ खिलाड़ियों को खेमों में बांटा है, बल्कि उनके सामने लालच की एक ऐसी खाई खड़ी कर दी है, जिससे बचना सबके वश की बात नहीं है.
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