Saturday, July 6, 2013

कब कसेगा कानूनी शिकंजा धर्म के ठेकेदारों पर




धार्मिक स्थलों में आस्था के नाम पर जमा भीड जिस तरह से भगदड में कीडेमकौडों की तरह दबकुचलकर मर रही है उसका न तो धर्म के ठेकेदारों, पंडों और पुजारियों की मोटी चरबी पर कोई फर्क पड रहा है और न ही पुलिस प्रशासन पर. अगर ऐसा नहीं होता तो धर्म के नाम पर लोगों की जान से खेलने वाले ये पंडे, पुजारी और तथाकथित धर्मगुरू आज सलाखें के पीछे होते.

हाल ही में रिलीज फिल्म ओह माई गाॅड  पर भगवान का मजाक उडाने पर काफी बवाल मचा हुआ है. वजह, इस फिल्म में परेश रावल का किरदार दैवीय प्रकोप यानी भ्ूाकंप की वजह से हुए अपने नुकसान के लिए भगवान पर ही केस कर देते हैं. वह भगवान को न सिर्फ अदालत में घसीटता है बल्कि उसके अस्तित्व और शक्तियों को लेकर खोखले धर्म और उसे प्रचारकों की फजीहत करता है. खैर, यह तो सिनेमा की बात थी. काश.. वास्तविक जीवन में ऐसा हो सकता. अगर ऐसा होता तो भगवान के तथाकथित ठिकानों मंदिर, आश्रमों, तीर्थ स्थलों और रथ यात्राओं में हुए हादसों के लिए उस पर कोर्ट केस चलता. पर ऐसा संभव नहीं है. पर जिस तरह से धर्मिक स्थलों पर लोग तडपतडप कर मर रहे हैं उनका इंसाफ तो होना ही वाहिए. क्या उनकी मौत यों ही जाया चली जाएगी?
इसकी सजा तो उनको मिलनी चाहिए, जो इन हादसों के लिए जिम्मेदार हैं. मसलन, मंदिर के पुजारी, भगवान के नाम पर जमा करोडों के दान से अपनी जेब में भरने वाले प्रबंधक, धर्म की कमाई खा रहे धर्म प्रचारक आदि सब मासूम लोगों की गैर इरादतन हत्या के दोशी तो हैं.जिस तरह कभीकभी सिलसिलेवार ढंग से विस्फोटों और सडक हादसों में लोगों की जान जाती है ठीक वैसे ही इस साल 23 सिंतबर, 24 सिंतबर और 25 सिंतबर को, लगातार तीन दिन तक  मथुरा के बरसाना, देवघर और कानपुर के मंदिरों में मची भगदड़ में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. इन हादसों ने जाने कितने परिवारों को उजाड कर रख दिया. बात भले ही चैंकाने वाली लगे मगर सच है कि हर साल भारत में जितने लोग सडक दुर्घटना, आपसी झगडों या आतंकी गतिविधियों में जान गंवाते हैं, लगभग उतने ही लोग धर्म के नाम पर हर साल मारे जाते हैं. कभी मंदिरों में हुई भगदड के नाम पर, कभी तीर्थ यात्रा के लिए जाते वक्त बस दुर्घटनओं में तो कभी रथ यात्रा के आयोजनों के नाम पर.



अगर आपको यकीन नहीं आता है तो आंकडें उठा कर देख लीजिए. हरिद्वार की भगदड़ में 16,  केरल के अयप्पा मंदिर मे 102, भक्तिधाम मनगढ़ में 63 महिला व बच्चे, जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में मची भगदड़ में 250, हिमाचल के नैना देवी मंदिर में 162, महाराष्ट्र में माधरा देवी मंदिर में 340 लोग यांे ही बेमौत मारे गए. ये तो महज कुछ उदाहरण है. हकीकत में आंकडे बहुत ज्यादा है. इन हादसों के लिए पुलिस और प्रशासन की अव्यवस्था को दोश देते हुए मामले रफा दफा कर दिए गए. न किसी को सजा न किसी पर मुकदमा.
  दुख की बात तो यह है कि आम दुर्घटना, झगडों और आंतकी गतिविधियों में पुलिस के पास एक्शन लेने के लिए आरोपी होते हैं पर मंदिर और तीर्थ स्थलों में हुए हादसे भगवान की मर्जी समझकर दबा दिए जाते है. अब चूंकि धर्म के व्यापारी इस बात को भलीभांति समझते हैं कि इन हादसों के लिए कि भगवान को तो सजा दी नही जा सकती और रही बात मंदिर के पंडों और पुजारियों की तो वे ठहरे भगवान के प्रतिनिधि, सो उनके भी सारे खून माफ. लेकिन यह बात समझ से परे हैं कि जो भक्त धर्म में अंधे होकर सैकडों मील भगवन से अपनीे खुशहाली और लंबी उम्र की कामना करने जाते हैं, उन्हें वही  भगवान इस तरह की मौत देता है, उन्हें यह बात समझ में क्यों नही आती? अगर भगवान सबकी रक्षा करने के लिए बना है तो इन हादसों के दौरान अपने भक्तों की रक्षा क्यों नहीं कर पाता? अगर सब भगवान की मर्जी से हो रहा है तो इन हादसों में धर्म के ठेकेदार, मंदिरों के पंडे, पुजारी, प्रबंधन से जुडे लोग क्यों इन हादसों का शिकार नहीं होते? सिर्फ आम आदमी ही क्यों मरता है? ऐसा इसलिए क्योंकि मंदिरों के पंडे, पुजारी ख्ुाद की सुरक्षा का पूरा इंतजाम रखते है और आमजन का भीड में धक्के खाकर मरने के लिए छोड देते हैं.
सोमवार यानी 24 सितंबर को झारखंड में देवघर के एक आश्रम में भगदड़ मचने से 9 लोगों की मौत हो गई. सरकार ने मृतकों के परिजनों को मुआवजे का ऐलान किया है. लेकिन सवाल ये है कि बेगुनाहों की मौत का जिम्मेदार कौन है? जाहिर सी बात है तिक इसके जिम्मेदार वो है जो अपनी धर्म की दुकान चलाने के लिए लोगों का मंदिरों में जमा करते हैं. मंदिरों में आने वालों भक्तों के दान, चंदे और चढावे की शकल में मिलने वाली दौलत से मौज उडाने वाले पंडों पर इनकी सुरक्षा की भी तो जिम्मेदारी है.
3 दिसंबर 1984 को भोपाल गैस कांड में जहरीली गैसे की खबर से मची भगदड में कई लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. जिसके दोशी वारेन एंडेरसन पर आत तक मुकदमा चल रहा है  साथ ही कैमिकल कंपनी डाउ पर कई तरह के प्रतिबंध लगे हैं पर जब 30 सितम्बर 2008 को जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाह से मची भगदड़ में 250 लोगों की मौत हुई और 60 लोग घायल हो गए तब किसी पर मुकदमा नहीं चला और न ही मंदिर पर किसी  भी तरह का प्रतिबंध नही लगा. आखिर क्यों? दोनों ही हादसों में हुई भगदड में मारे गए लोगों की जान की कीमत तो एक हैं फिर धर्म  के ठेकेदारों को क्यों नहीं इन हत्याओं का दोशी माना गया. क्यों इनकी धर्म की दुकान को डाउ कैमिकल की तरह प्रतिबंधित किया गया.
 अगर राजनीतिक रैली या किसी मनोरंजक कांसर्ट में इसी तरह की भगदड के चलते कुछ लोगों की मौत हो जाती तो कार्यक्रम के आयोजकों तुरंत मामला दर्ज कर लिया जाता पर मंदिरों में धर्म की कमाई खाने वाले इन पंडों को कोई सजा  नही मिलती.
10 जनवरी 1999 को दिल्ली के बहुचर्चित बीएमडब्लयू केस में संजीव नंदा को अपनी गाडी के नीचे कुचलकर किसी की जान लेने के लिए 5 साल की जेल हुई थी. इसी तरह 28 सितंम्बर 2002 को जब बाॅलीवुड स्टार सलमान खान ने मुंबई में अपनी लैंड क्रूजर फुटपाथ पर सो रहे लोगों पर चछा दी थी तो डन्हें भी जेल जाना पडा था और उसके लिए आज भी वे अदालतो ंके चक्क्र काट रहे हैं. दोनों ही मामलों से जुडे दोशियों को बाकायदा सलाखों के पीछे जाकर अपने अपराध की सजा भुगातनी पडी पर जब दक्षिण भारत में आयोजित होने वाली रथ यात्रा के दौरान कुछ लोग रथ के पहियों के नीचे कुचलकर मर गए तो रथ संचालकों और आयोजकों पर कोई केस दर्ज क्यों नहीं हुआ? इन्हें सिर्फ इसलिए छोड दिया क्योंकि ये धर्म की तोप पर सवार थे. जिस तरह सामाजिक अपराधों, हादसों पुलिस प्रशासन सख्त रवैया अपनाता है, धार्मिक मसलों पर क्यों उसका सख्त रवैया अचानक से ठंडा पड जाता है.
   23 सितंबर को ही मथुरा के राधारानी मंदिर में हादसा इसलिए हुआ क्योंकि वीआईपी दर्शन के फेर में पंडे और प्रशासन आम भक्तों को भूल गए और दर्शन के बाद निकलने का रास्ता संकरा हो गया. इसकी वजह से ही भगदड़ मची.अब चूंकि वीआईपी भक्तों का चढावा आम भक्तों की तुलना में भारी होता है. इसलिए आम भक्तों की भीड को रोक कर रखा गया. अब इन पंडे, पुजारियों के लालच की कीमत इन भक्तों चुकानी पडी. वहीं जब 13 जून 1997 को दिल्ली के उपहार सिनेमा हाउस में अग्निकांड में  59 लोग मर गए थे तब तब न सिर्फ उस सिनेमा हाउस को बंद करवया गया था बल्कि उनके वीआईपी मालिकों को इस हादसे का जिम्मेदार ठहराते हुए बाकायदा जेल की हवा भी खानी पडी थी. अगर उपहार कांड के वीआईपी मालिकों को सजा दी जा सकती है तो मथुरा के इन वीआईपी दर्शनाथर््िायों और उनको वरीयता देने वाले पुरोहित और पंडों को  जेल में क्यों नही डाला जाता?
 16 मई 2008 को  राजेश और नुपुर तलवार के घर में एक लाश मिली जो उनकी बेटी आरूशि तलवार की थी. उसके अगले दिन यानी 17 मई को  तलवार दंपती के घर फिर से एक लाश मिली. यह लाश उनके नौकर हेमराज की थी. उसके बाद से आज तक राजेश और नुपुर तलवार जेल और अदालतों के चक्कर काट रहे हैं. पर वहीं जब तथाकथित धर्मगुरू आसाराम बाबू के आश्रम में लगातार लाशें मिलती हैं तो आसाराम पर कोई मामला नहीं बनता. इसका क्या मतलब हुआ?
यह तुलना मात्र इसलिए की जा रही है ताकि इस पहलू पर गौर किया जा सके  अन्य सामाजिक मामलों में जिस तरह आरोपियों को कानून की लाठी से हांका जाता है वहीं धार्मिक स्थलों पर हुए हादसों के जिम्मेदार धर्म के ठेकेदार, पुरोहित और पंडों और धर्म की दुकान से मलाई खा रहे मंदिरों के प्रंबधकों पर किसी तरह की कार्रवाई क्यों नहीं की जाती. आखिर धर्म को ढाल बनाकर  कब  तक ये लोग मासूम लोगों की जान से खेलते रहेंगे.
ऐसे ही एक हादसे के शिकार 85 वर्षीय रामलखन गिरि का कहना है कि मंदिरों में श्रद्धालुओं की सुरक्षा भगवान भरोसे ही रहती है. बडी हास्यास्पद बात है कि जिस भगवान की शरण में पंडे और पुजारी लोगों को उनके पाप हरने, उम्र बढाने और जीवन में खुशहाली लाने का लालीपौप देकर जमा करते हैं, उसी जगह बेचारे धर्मांध कीडे मकौडे की तरह दबकुचलकर मरने पर मजबूर हैं. अब इन पंडों से कौन पूछे कि कहां गई लोगों को जीवन देने वाली भगवान की शक्ति और उनका प्रसाद. इस बात का जवाब किसी के पास नहीं हैं कि भगवान के दर्शन के लिए जाने वाली बसें हादसे का शिकार हो जाती है तो भगवान बचााने के लिए क्यों नहीं आता. जबकि हर बस या गाडी पर भगवान की मूर्ति जरूर लगी होती है. क्या फायदा ऐसे भगवान का जो अपने ही भक्तों को न बचा सके.




पंडे ही कराते हैं भगदड

मंदिरों में होने वाली इन भगादडों के पीछे पंडों, पुराहितों का लालच और धर्म की दुकान को डिमांड में बनाए रखने वाली मानसिकता काम करती है. मंदिर परिसर में अकसर दर्शन के बीच में-बीच में परदा गिरा दिया जाता है. हजारों कोस से आए श्रद्धालु परदा गिरने पर उसके हटने के इंतजार मंदिर परिसर में ही जमे रहते हैं. दर्शन के बीच में परदा गिरने से लोगों में जहां दर्शन करने की होड़ लग जाती है, वहीं इसी से धक्का-मुक्की शुरू होती है. नतीजन ये हादसे हो जाते हैं. इसके अलावा पुजारियों का एक और बचकाना बयान सुनिए. इनके मुताबिक भोग-प्रसाद लगाते समय दर्शन इसलिए नहीं कराए जाते क्योंकि इससे भगवान को नजर लग सकती है. सोचने वाली बात है कि जिस भक्त के प्रसाद के चढावे से भगवान को भोग  और पुजारियों की जेब और पेट भरा जाता  है उन्हीं की नजर भगवान को लगेगी, इस पर कौन यकीन करेगा.  क्या भगवान में इतनी भी शक्ति नहीं हैं कि वह अपने भक्तों की नजर से भी न बच सके.




धर्म का खूनी खेल

  • 8 नवम्बर, 2011. हरिद्वार में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान गंगा नदी के तट पर मची भगदड़ में 16 लोगों की जान गई.
  • 14 जनवरी, 2011. केरल के धार्मिक स्थल शबरीमाला के नजदीक पुलमेदु में मची भगदड़ में कम से कम 102 श्रद्धालु मारे गए थे और 50 घायल हुए.
  •  4 मार्च, 2010. उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालुजी महाराज आश्रम में प्रसाद वितरण के दौरान 63 लोग मारे गए जबकि 15 घायल.
  • 3 जनवरी, 2008. आंध्र प्रदेश के दुर्गा मल्लेस्वारा मंदिर में भगदड़ मचने से पांच लोगों की जान गई.
  • जुलाई 2008.  ओडिशा में पुरी के जगन्नाथ यात्रा के दौरान छह लोग मारे गए और 12 घायल हो गए.
  • 30 सितम्बर 2008. जोधपुर में चामुंडा देवी मंदिर में बम विस्फोट की अफवाह से मची भगदड़ में 250 ंकी मौत, 60 घायल.
  • 3 अगस्त, 2008 हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश के कारण नैना देवी मंदिर की एक दीवार ढह गई, 160 लोगों की मौत हो गई, जबकि 230 घायल हो गए.
  • 27 मार्च, 2008.  मध्य प्रदेश के करिला गांव में एक मंदिर में भगदड़ मचने से आठ श्रद्धालु मारे गए थे और 10 घायल हो गए.
  • अक्टूबर 2007. गुजरात के पावागढ़ में धार्मिक कार्यक्रम के दौरान 11 लोगों की जान चली गई थी.
  • 26 जून, 2005. महाराष्ट्र के मंधार देवी मंदिर में मची भगदड़ में 350 लोगों की मौत हो गई थी और 200 घायल हो गए थे.
  • अगस्त 2003. महाराष्ट्र के नासिक में कुम्भ मेले में मची भगदड़ में 125 लोगों की जान चली गई थी.



                                   

Friday, July 5, 2013

वो पहली बार जब हम मिले..........



rajesh & harsh yadav

लाइफ में प्यार सिर्फ एक बार ही होता है. मुझे भी हुआ. हालांकि हर कोई इतना खुशनसीब नहीं होता कि वह अपने पहले प्यार को पा ले. प्यार को उस मुकाम तक पहुंचा पाए जहां वो प्यार जीवनसाथी बन पहले प्यार के अहसास को हमेशा के लिए अमर कर दे. इस मामले में मैं खुद को लकी समझता हूं कि क्योंकि तमाम नोंकझोंक, खटठेमीठे पलों और गलतफहमियों  की संकरी गलियों से गुजरकर परवान चढा मेरा पहला प्यार आज मेरी पत्नी के रूप में मेरे साथ है.

बात उन दिनों की है जब 2004 में मैं इंटर की पढाई कर आगे की पढाई के लिए हमीरपुर दिल्ली आया था. एक छोटे शहर से दिल्ली जैसे महानगर में आकर एक नई दुनिया देखी. अर्जुन नगर इलाके में किराया का कमरा लिया था. कमरे की बालकनी में हमेशा सुबह उठकर अखबार के साथ कौफी पीने की आदत थी. रोज दिन की षुरुआत बालकनी, अखबार और कौफंी से होती थी. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे. एक दिन मैं और मेरा दोस्त बालकनी में खडे गप्पें मार रहे थे. तभी गली के सामने वाले मकान की टेरिस पर एक खूबसूरत चेहरे की झलक दिखी. सुबहसुबह नींद से जागा चेहरा देखकर ऐसा लगा मानों मैं कहीें और आ गया हंू. पल पर भी उसे गौर से देख नहीं पाया था तभी मेरे पार्टनर की तेज हंसी से झेंपकर वह गायब हो गई. उसे पहली बार देखा था पर ऐसा लगा जैसे उससे कोई न कोई कनेक्षन जरूर है. उस समय तक लडकियां तो दिल्ली में खूब देखी थीं. पर किसी चेहरे पर नजर ऐसे नहीं रुकी थी. अब रोज रात को सोते समय सुबह होने की बेचैनी होती. जल्दी उठता और कौफी मग लेकर उसके दीदार के इंतजार में खडा हो जाता. कभी आती और कभी नहीं. पर मैं रोज इंतजार करता. यह सोचकर कि शायद कभी उसकी नजर मुझ पर पडे. यह सिलसिला कई दिनों से चल रहा था. दिल उसको ही खोजने में व्यस्त रहता था. जब भी आखें बंद करता था तो बस उसका ही मासूम व मुस्कुराता चेहरा दिखता. नीली आखों वाली वो लडकी मानों मुझमें बस गई थी.
दो महीने गुजर गए इस सिलसिले को. मैं उससे बिना कुछ कहे रोज बातें करता. पर उसकी तरफ से अब तक कोई रिस्पांस न आता देख बैचैनी हुई कि कहीं यह एकतरफा अट्रैक्ष्न तो नहीं है. जब भी वह दिखती तो दूर से उसकी आखों में आंखें डालकर पूछना चाहा कि उसके दिल में मेरे लिए कुछ है भी कि नहीं. एक दिन उसे दूर से ही इशारा करने की हिम्मत जुटाकर खडा हुआ पर इशारा कर नहीं पाया. थोडा डर और थोडी हिचक के चलते.

rajesh & harsh 

एक दिन आखिर मैंने उसे इशारे से अपनी तरफ देखने पर मजबूर कर ही दिया. उसके हावभाव को देख कर ऐसा लगा कि शायद वह भी मुझ नोटिस करती है. हिम्मत बढी और उससे नंबर मांगने का इशारा कर डाला. इशारों में ही मिलने का वक्त और समय भी तय हो गया.  उससे मिलने के लिए बेताबी से निकला पर भूल गया कि कोई मेरा पीछा कर रहा है. दूर खडी उस लडकी से नाम ही पूछ पाया था कि उसने इशारे में बताया कि पीछे कोई खडा है. डर था उसे कोई आंच न आए इसलिए उससे इतना ही कहा कि जाना है तो चली जाओ.वह सचमुच जाने लगी. दिल बैठ गया. तभी झटके से मुडकर उसने मुझे एक कागज का टुकडा थमाया और नजरों से ओझल हो गई. कागज में उसका नंबर था.
पहली ही मुलाकात ऐसी होगी, सोचा ना था.. लौटकर फोन किया तो नंबर बंद था. उस रात मैं सो नहीं पाया. उसके ही ख्यालों में खोया रहा. अजीब सा डर लग रहा था, उसको खोने का. अगला दिन मेरे लिए और भी बहुत बुरा था.  उस लडके ने उसके घरवालों तक बात पहंचा दी. मेरा तो कुछ खास नहीं बिगडा पर कई दिनों तक उस लडकी को बाहर आते नहीं देखा. एक दिन टेरिस के अंधेरे में उसका अक्स देखा. एक बार फिर फोन मिलाया. इस बार उससे बात हुई. प्यार की बात स्टार्ट होती कि उसने रोते हुए कहा कि तुम यहां से चले जाओ वरना बात आगे बढ जाएगी. मुझे झटका सा लगा. बहुत समझाया पर वो सहमी थी. हार मानकर भारी मन से वो कमरा छोडकर मैं कमला नगर, दिल्ली यूनीवर्सिटी आ गया. कई महीने गुजर गए. पहला प्यार इस कदर अंदर से तोड देगा सोचा नहीं था. न पढाई में मन लगता और न खाने पीने में. जुदाई के वो लम्हे काफी भारी थे.

आज सोचता हूं कि उस दिन अगर उसका फोन नहीं आया होता तो मंै दिल्ली छोड चुका होता. बेमन होकर मैंने दिल्ली छोडने का फैसला कर लिया था. तभी फोन बजा और फिर से वो आवाज सुनी. इस बार आवाज में सहमापन नहीं बल्कि मिलने की तडप थी. करीब 8 महीनों के बाद हम उस अधूरी मुलाकात के बाद मिले. कई षिकवा षिकायतों के बाद उसने बताया कि घर वालों की परमीशन से मैंने दिल्ली यूनिवर्सिर्टी से एक शार्टटर्म कोर्स में एडमिशन ले लिया है.

सुनकर खुषी से फला नहीं समाया. पहली नजर में दूर निगाहों और इशारों से षुरु हुआ वो पहला प्यार आज पहली बार खुली हवा में आजाद होकर साथ घूम रहा था. वो दिन था और उसके अगले तीन साल तक मैं उसके साथ लगभग हर पल जी रहा था. पढाई पूरी कर नौकरी की जिम्मेदारी थी ताकि उसे अधिकारिक तौर पर अपना सकूं. उसे पाने का जुननू ही था कि बहुत जल्द एक मीडिया फर्म में जौब लग गई. सेलरी ज्यादा नहीं थी पर मेरी सादगी और ईमानदारी उसके माता पिता को पसंद आई. दोनों के परिवारों और जातियों में कोई समानता नहीं थी फिर भी किसी दकियानूसी सोच ने हमारे को प्यार को शादी की दहलीज तक पहुंचने से नहीं रोका. आज दिल्ली के अर्जुन नगर की बालकनी से उसकी पहली झलक और तमाम उतारचढावों के गवाह अपने पहले प्यार को अपनी उर्जा का श्रोत मानकर अपनी प्रेयसी और पत्नी हह्र्य अरोडा के साथ नया और खुशहाल जीवन जी रहा हूं. उम्मीद ही नहीं आज पूरा विष्वास हो गया है कि कि सच्चा प्यार मुष्किलों से सही हासिल जरूर होता है.
                                                        



                                    

टीन एजर्स का बर्थडे टशन




आज के टीन एजर्स की लाइफ स्टाइल और कौन्फिडेंस देखकर अच्छेअच्छों को कौम्प्लेक्स हो जाता है. हाथ में हाइटेक गैजेट, गेम्स और व्हाटस अप डूड बोलते ये टीन एजर्स अब मम्मा ब्वाएज नहीं रहे. वे तो गर्लफेंड के साथ मूवी, शोपिंग मौल और रेस्तरां में मीटिंग करते हैं. कुछ अल्ट्रा मौडर्न टीन एजर्स तो पब्स, बार डिस्को में भी जाने से गुरेज नहीं करते हैं. मतलब यह है कि टीन एजर्स अपना ज्यादा से ज्यादा समय पार्टी में बिताना पसंद करते है. फिर चाहे वो न्यू इयर पार्टी हो, नाइट पार्टी, फेयरवेल, क्रिसमस, इग्जाम खत्म होने की खुशी में पार्टी हो या कोई और. फिर अगर बात बर्थ डे पार्टी हो तो सोने पे सुहागा. रात के 12 बजते ही बर्थ विश  करने का सिलसिला चालू हो जाता है. अपनी बर्थ पार्टी को खास अंदाज में मनाने के लिए टीन एजर्स स्पेश ल तैयारियां करते है. आइए जानते हैं कि टीन एजर्स अपने बर्थडे का टशन किस धमाकेदार अंदाज में दिखाते हैं और पार्टी की प्लानिंग कैसे करते हैं.

बर्थ डे डेस्टिनेशन
अब वो दिन गए जब टीन एजर्स घर में मम्मीपापा का आषीर्वाद लेकर जन्म दिन सादगी से मना लेते थे. अब तो गिफट ऐक्सचेंज कर सबके मुंह पर केक लगाकर मस्ती करते है. शोपिंग करते हैं. फूड कोर्ट में खाना खाते है. रेस्तरां, बैंक्वेट हौल, फन कोर्ट में पार्टी की बुकिंग करते हैं.
शहरों में मौल्स में फूड कोर्ट, फनकोर्ट, रेस्तरां, डिस्क में स्पेशल बर्थ डे पैकेज उपलब्ध कराए जाते हैं. कुछ टीन एजर्स अपने बडों की मदद से रेस्तरां या बैंक्वेट हौल में पार्टी प्लान करते है. यहां पहले से ही बुकिंग करानी पड़ती है. बुकिंग के बाद पार्टी की सारी जिम्मेदारी इन्हीं की होती है. सजावट से लेकर खानेपीने के इंतजाम जैसे केक, स्नैक्स, लंच या डिनर सब. एक ठीकठाक रेस्तरां में 10 से 15 लोगों के लिए 5 से 8000 रुपए का खर्च आ जाता है. जबकि बैंक्वेट हौल में यह खर्च ज्यादा होता है.
अगर बात फूड कोर्ट की करें तो यहां बाकायादा जन्मदिन की पार्टी के लिए विषेश पैकेज होते हैं. बस अपने दोस्तों की संख्या के मुताबिक पैकेज लेकर पार्टी प्लान करनी है. अमूमन 3000 से 5000 के बीच एक 10 लोगों का अच्छा पैकेेज मिल जाता है. जिसमे खाना और केक दोनों उपलब्ध होता है. आपकी टेबल बुक हो जाती हैं. वहीं फन कोर्ट में थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च कर थोड़ी मस्ती भी कर सकते हैं. वहां तरह तरह के गेम्स और फन के कई औप्षन मौज्ूाद होते हैं. कुछ टीन एजर्स रेस्तरां मंें भी पार्टी के लिए बुकिंग करते हैं. वहां भी दोस्तों के साथ मनपंसद खाने के साथ पार्टी इंज्वाए की जा सकती है.
कुछ टीन एजर्स डिस्क में पार्टी करना पंसद करते हैं. इसके लिए शहरों के मौल्स के अलावा अन्य डिस्क में कुछ दिन पहले जाकर उपलब्धता चेक करनी होती है. अगर बुकिंग मिल जाए तो वहां केक काटने के अलावा डिस्क पर टीन एजर्स नाच गाकर मस्ती भरी पार्टी कर सकते हैं. लगभग 20 से 25 हजार रुपए में 40 से 50 लोगों की पार्टी और्गेनाइज हो जाती है. हालांकि कुछ डिस्क में तो सिर्फ एडल्ट ही अलाउड होते हैं.
अगर पैसा ज्यादा नहीं खर्च करना चाहते तो पार्टी सेलिब्रेट करने का सबसे अच्छा विकल्प अपना घर होता है. अपने घर में कमरों या रूफ पर भी पार्टी और्गेनाइज की जा सकती है. बाजार से सजावट की ऐसेसीरीज और बैलून लाकर खूबसूरती से सजाकर न सिर्फ सीमित बजट में  अच्छी पार्टी की जा सकती है बल्कि फुलटू मस्ती के लिए काफी स्पेस मिलता है. घर में पार्टी मनाने के कई और भी फायदे हैं. पहला इसमें कम खर्च होता है और दूसरा टाइम लिमिट नहीं होती. जब तक चाहो पार्टी करो. घर की पार्टी में फैमिली मेंबर भी शरीक हो सकते हैं.
फिर भी यदि बर्थडे पार्टी घर से दूर कहीं मनाना चाहते हैं तो सबसे पहले इसका स्थान निर्धारित कर लें. इस बात को सुनिश्चित बनाएं कि हर आमंत्रित मेहमान मित्र का नाम लिख लिया जाए ताकि उन्हें तय जगह पर पहुंचने में कोई दिक्कत न हो.

थीम बेस्ड पार्टी
टीन एजर्स में आजकल थीम बेस्ड पार्टी का क्रेज ज्यादा दिख रहा है. अगर कई बुंकिग पार्टी कर रहे हैं तो वहां की थीम फिक्स्ड होती हैं लेकिन अगर घर में पार्टी प्लान कर रहे हैं तो अपने मनमुताबिक थीम पार्टी की जा सकती है. फिल्मी ड्रेस कोड थीम रख सकते हैं. इसमें अपने फेवरेट हीरो के कास्टयूम पहनने पड़ते हैं.कुछ टीन एजर्स लडके और लडकियों को अलग अलग ड्रेस कोड देते हैं. गेम थीम पार्टी का भी अलग ही मजा है. तम्बोला, म्यूजिकल चेयर जैसे मस्ती भरे खेलों की थीम से पार्टी का मजा दोगुना हो जाता है. ढेर सारी मस्ती तो करते ही हैं साथ ही जो भी गेम्स में जीतता है उसे गिफट भी मिलते हैं. इसके अलावा क्राफ्ट प्रोजैक्ट्स, बाऊंस रूम किराए पर लेने तथा क्लाऊन जैसे थीम्स के विकल्प चुन सकते हैं.

केक हो खास
बिना केक के बर्थडे पार्टी संभव ही नहीं होती. जब तक केक न कट जाए पार्टी अधूरी ही रहती है. आजकल के टीएजर्स ऐसावैसा केक नहीं बल्कि स्टाइलिश  और डिजाइन षेप वाले केक काटना पसंद करते हैं. आप चाहें तो केक कुछ दिन पहले ही और्डर कर सकते हैं. 250 से 1000 रुपए में अच्छा से अच्छा केक मिल जाता है. कई बार इमरजेंसी में पार्टी प्लान करनी पड़ती है, जिससे केक खरीदने का समय नहीं मिल पाता, ऐसे में पिज्जा की तरह कई जगहों पर केक और्डर पर मंगाने की सुविधाएं हैं.
आजकल बटर स्कौच, चोको चिप, ब्लैक फोरेस्ट, स्ट्रोबेरी फ्रेश ड्राय फ्रूट, व्हाइट चैकलेट, कौफी केक, मार्बल केक और फ्रूट केक डिमांड में हैं. कई टीन एजर्स स्वाद से ज्यादा आकर्षक षेप को तवज्जो देते हैं. वे स्पाइडर मैन, बार्बी, बुक्स, गिटार, मिकी माउस, टेडी बियर के अलावा बर्थ डे ब्वाय की तसवीर वाला स्पेश ल केक खासे डिमांड में रहते हैं. ये आम आम केक की तुलना में महंगे होते हैं. अगर केक घर पर बनाना जाानते हैं और भी अच्छा है.



खयाल रखें पार्टी मैनर्स का
टीन एजर्स को सिर्फ पार्टी करना ही नहीं बल्कि पार्टी के तौर तरीकों को भी स्मार्ट तरीके से फौलो करना चाहिए. पार्टी में मस्त होकर अपने बडीज को नहीं भूलना चाहिए. बडे़ ही इनोवेटिव स्टाइल से दोस्तों का अपनी पार्टी में इनवाइट कर सभी को आने के लिए थैंक्स बोलना चाहिए और लौटते वक्त रिटर्न गिफ्ट भी देना पार्टी मैनर्स का अहम हिस्सा है. अगर पार्टी में किसी ड्रेसकोड की तैयारी है उसकी जानकारी पहले से ही सबको मैसेज कर दी जानी चाहिए. जरूरी नहीं है कि हर दोस्त गिफट लेकर पार्टी में आए. बिना गिफट वाले दोस्तों के साथ भी जोश  से मिला चाहिए. गिफट लाने का प्रैशर नहीं डाला जाना चाहिए. डांस के दौरान सबके फेवरेट गानों को प्ले करना दोस्तों को खुश  करता है. ऐसे ही कुछ मैनर्स होते हैं जो सभी टीन एजर्स अपने बर्थडे पार्टी के दौरान फौलो करने चाहिए.
  

सीमित बजट में फन
पार्टी का मजा जरूरी नहीं है तभी आए जब आप ढेर सारा पैसा खर्च करें. सीमित बजट में बेहतरीन बर्थ डे पार्टी मनाई जा सकती है. जरूरी है तो बस दोस्तों और फैमिली मेंबर की सलाह लेना. कोषिश  करें कि घर में ही पार्टी और्गेनाइज हो. जरूरी नहीं है कि पार्टी में ढेर सारे दोस्त आए. सिर्फ खास दोस्तों के साथ पार्टी मनाने के काफी बचत होगी. बिना वजह का दिखावा कर अतिरिक्त खाना या अन्य कोई चीज बरबाद न करें. बहुत मंहगे रिटर्न गिफट देना जरूरी नहीं है. ऐसे कुछ स्मार्ट तरीकों को अपना कर सीमित बजट में अच्छी बर्थ डे पार्टी सेलिब्रेट की जा सकती है.
इस तरह से आप सभी टीन एजर्स अपनी बर्थ डे पार्टी को जरा हटकर, यादगार और कंपलीट फिनिश  दे सकते हैं. तो आप भी तैयार हो जाइए एक मजेदार बर्थडे टीन एजर्स पार्टी के लिए जो लंबे समय तक सभी दोस्तों को याद रहे. तो फिर ...... नेक्सट बर्थ डे टीन कौन है ?

        जरा गौर करें
  •  पार्टी में ड्रिंक, स्मोंकिंग या किसी भी तरह का नषा न करें
  •  ऐसी जगह पार्टी का प्लान करें जो घर से बहुत दूर न हो
  •  बहुत देर तक हुड़दंग न करें
  •  ऐडवेंचर के चक्कर में खुद को चोट न पहुंचाएं
  •  पार्टी में अजनबियों को न षामिल करें
  •  दिखावे के नाम पर बहुत ज्यादा पैसे न उड़ाएं
  •  पार्टी कहीं भी करें पर मातापिता को जानकारी होनी चाहिए
  •  चलती गाड़ी में हंगामा न करें
  •  दोस्तों में बहसबाजी और लड़ाई झगड़ा न करें
  •  दोस्तों को चिढाना या छेड़खानी न करें



हौबी और करियर अनूठा संगम - गिफ्ट बौक्स पैकिंग, डिजाइनिंग और एनवलप डिजाइनिंग



आजकल के किशोर सिर्फ किताबी पढाई पर यकीन नहीं करते हैं. इन पर तो क्रिएटिव स्टफ का क्रेज चढा हुआ है. अब इनमें स्कूल की स्टडी के साथ-साथ कोई प्रोफेशनल कोर्स या हॉबी कोर्स करने की भी लालसा दिखाई देती है. षायद इसीलिए ये किषोर अब ऐसे हॉबी कोर्सेस का रुख कर रहे है, जहां से फन और लर्निग का मजा एक साथ उठा सकें. हम ऐसे ही फनलविंग किषारों को गिफ्ट पैकेजिंग और एनवलप डिजाइनिंग से रूबरू करा रहे हैं जो इन्हें न सिर्फ रचनात्मक संतुश्टि देगा बल्कि रोजगार का नया अवसर भी लेकर आएगा.



गिफ्ट बौक्स मेकिंग और पैकिंग 
कोई फेस्टिव सीजन हो, षादी हो या फिर वैलेंटाइन से लेकर चैकलेट डे.  इन सब दिनों में गिफ्ट लेने और देने की एक होड़ सी दिखाई देती है. असल में गिफ्ट्स का लेनदेन  आज फैशन बन चुका है. इसीलिए इसकी पैकिंग पर जोर दिया जाने लगा है. गिफ्ट पैकेजिंग एक हुनर है, कला है जो आज एक रचनात्मक करियर की षक्ल ले रहा है. गिफ्ट बौक्स की मेकिंग और पैकिंग किसी भी उपहार को खूबसूरती के साथ सामने वाले व्यक्ति के समक्ष पेश करने की कला है. इसीलिए कई किषारेर इस कला को सीख्ना चाहते हैं. आजकल गिफ्ट पैकेजिंग में कपड़ों, गहनों, टीका और फ्रूट थाली व डलिया, बुके, फलों, बर्तनों, मूर्तियों, पेंटिंग्स, खिलौनों, फ्रेम, चॉकलेट, मिठाई व अन्य खाने-पीने की चीजों की पैकिंग की जाती है. अगर आप भी चमकीले कागजों, रंग-बिरंगे रिबन, चटख रंगों के कपडों के अलावा क्रिस्टल और फूल पत्तियों की मदद से उपहार को खूबसूरत अंदाज दे सकते हैं तो गिफ्ट डिजाइनर के तौर पर करियर की संभावनाएं तलाश सकते हैं.

एनवलप डिजाइनिंग
गिफ्ट बौक्स मेकिंग और पैकिंग के अलावा एनवलप डिजाइनिंग सीखने के लिए भी किषोरों में खासी उत्सुकता दिखाई देती है. ईस्ट दिल्ली के राधेपुरी इलाके में क्राफट विला की संचालक वसुधा अरोड़ा अपने इंस्टटीटयूट में कई तरह के क्रिएटिव कोर्स करवाती हैं, इसमें एनवलप डिजाइनिंग भी षामिल है. इस कोर्स में वह एक ही एनवलप को कई तरह से डिजाइन करना सिखाती हैं. इसके अंतर्गत वह अपनी क्लास में लगभग आधे घंटे में दो तरह के मैटेरियल से बनने वाले एनवलप को डिजाइन करने का गुर सिखाती हैं. वह बताती हैं कि हम हम हैंडमेड सीट और टिस्यू पेपर के इस्तेमाल से एनवलप डिजाइन करते हैं. एनवलप डिजाइनिंग के लिए हैंडमेड षीट के अलावा फेवीबौंड, डेकोरेषंस मैटेरियल, मार्बल पाउडर, थर्माकौल फेवीकोल का पेस्ट वगैरह इस्तेमाल होते हैं. वहीं टिस्यू एनवलप डिजाइनिंग में टिस्यू फैबरिक और प्लास्टिक सीट और गोल्डन लेसेज यानी चमकीले रिबन और ग्ल्यूगम को प्रयोग में लाया जाता है. इन सब मैटेरियल से विभिन्न प्रकार के एनवलप डिजाइन हो सकते हैं. ये एनवलप कई आयोजनों खासतौर पर षादी के कार्यक्रमों में ज्यादा इस्तेमाल होते हैं. फिर चाहे वो सगुन के लिए रूपयों का लिफाफा हो या फिर रिष्तेदारों के लिए कपडों के उपहार. षादी के कार्ड के अलावा अलगअलग तरह के ग्रीटिंग कार्ड में भी एनवलप डिजाइनिंग का काम होता है. आमतौर पर किषोर ये सब 2 से 3 दिन  में सीख सकते हैं. फिर भी इसकी कई वैराइटी सीख्ने के लिए एक कोर्स भी होता है.

हौबी के साथ करियर भी 
दिल्ली में क्रिएटिव क्राफट नाम की संस्था चलाने वाली रितु दुआ कहती हैं कि बाजार में क्रिएटिव स्टाइल वाले गिफ्ट पैक्स की बढ़ती डिमांड की वजह से इस कोर्स को लेकर किषोरों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिला है. रचनात्मक सोच वाले माता पिता भी बच्चों को इस तरह के कोर्सेसे के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं. हमारी भी यहीं कोषिष रहती है कि इन किषोरों के हुनर को एक मुकाम तक पहुचाएं  और रही बात शैक्षिक योग्यता की तो इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए आप हाईस्कूल और इंटरमीडिएट से ग्रेजुएट तक हो सकते है.  लेकिन इन सबके अलावा सबसे बडी योग्यता यही है कि आप क्रिएटिव हों और किसी भी चीज को और खूबसूरत रूप दे सकें.

पौकेट भी भरी रहेगी
गिफ्ट पैकेजिंग और एनवलप डिजाइनिंग का कोर्स करके कम से कम लागत पर  30 40 हजार रुपए प्रति माह तक कमाए सकते हैं. इसके अलावा आप गिफ्ट पैकिंग और डिजाइनिंग का काम करने वाले स्टूडियो में काम कर सकते हैं. खुद का स्टूडियो भी चला सकते हैं. आपको बर्थ-डे पार्टीज के अलावा शादियों जैसे आयोजनों पर भी गिफ्ट्स पैक करने का कांट्रेक्ट मिल सकता है.

जगह का चुनाव और रौ मेटेरियल का बाजार
गिफ्ट पैकेजिंग और एनवलप डिजाइनिंग का काम शुरू करने के लिए आप अपने घर के हौल भी इस्तेमाल कर सकते हैं. कोषिष यहीं करें कि आपका हौल या घर बाजार के नजदीक हो. आमतौर पर इस काम के लिए आपको शिपिंग रैप, ग्लू यानी फेविकोल, सेलो टेप, डेकोरेटिव मैटीरियल, बास्केट, कागज बॉक्स, गिफ्ट रैप पेपर, टैग, कैंची, सिफॉन, हैंडमेड पेपर, रिबन और एक टेबल या प्लेन मजबूत प्लाई या गत्ते आदि की जरूरत पड़ती है. ये रौ मैटीरियल सारा सामान आप पुरानी दिल्ली के किनारी बाजार से थोक, फुटकर मे खरीद सकते हैं. शॉपिंग बैग्स, ऑर्गेनिक कॉटन बेबी ब्लैकेंट, बीच टॉवल और ऑर्गेनिक कॉटन बाथ टॉवल से भी गिफ्ट पैकेजिंग और एनवलप डिजाइनिंग का काम होता है. इनके अलावा हैंडमेड पेपर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. यह हैंडमेड पेपर हाथी के गोबर और पत्तियों से भी बनाए जाते हैं. पेपर के अलावा आप पेट्रॉलियम बेस स्टिक टेप से भी अपना गिफ्ट पैक कर सकते हैं. साथ ही न्यूजपेपर को भी यूज कर सकते हैं.



कहां सीख सकते हैं
अगर गिफ्ट डिजाइनिंग और एनवलप डिजाइनिंग का कोर्स करना चाहते हैं तो कई प्राइवेट संस्थानों से इससे संबंधित छ से आठ महीनों का शॉर्ट टर्म कोस किया जा सकता है. 10 से 15 हजार रुपए में आप चाहें तो आसानी से यह कोर्स कर सकते हैं, जिसके लिए आपको डिप्लोमा सर्टिफिकेट भी दिया जाएगा.  इसके लिए आपको पढाई छोडने की भी कोई जरूरत नहीं है. दिल्ली के कृश्णा नगर और प्रीत विहार में समर कैंप लगाकर बच्चों को गिफ्ट पैकेजिंग और एनवलप डिजाइनिंग का प्रशिक्षण देनी वाली हर्श यादव के मुताबिक अक्सर वैकेषंस में किषारों ंके सामने यह सवाल खडा हो जाता है कि वह वैकेषन में क्या करें. इसी सवाल के जवाब में मैं समर कैंप में किषोरों को एनवलप डिजाइनिंग और गिफ्ट पैकिंग का कोर्स करवाती हूं. इससे न सिर्फ बच्चों की वैकेषंस अच्छे से बीतती है, बल्कि उनमें एक ऐसा हुनर जाग जाता है जिसका इस्मेताल वो घर से लेकर रोजगार तक कहीं भी कर सकते हैं. हमारे कैंप में बेसिक पैकेजिंग के साथ मैटीरियल सोर्स, मार्केटिंग के गुण और पैकिंग से जुड़ी बारीकियां  भी सिखाई जाती हैं. इसके अलावा खादी ग्रामोद्योग द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान क्राफ्ट एंड सोशल डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन में 18 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है.

आजकल के उत्साही और इनर्जी से लबरेज किषोर पल पर में आसमान छूना चाहते हैं लेकिन इनके आसमान छूने की हसरत को पंख मिलते हैं इन क्रिएटिव हौबीज से, जो इनका करियर तो बनाती हैं साथ ही दुनिया को देखने का एक नया नजरिया भी देती हैं. बस अगर आप टीनेजर हैं और आपमें रुचि और हर सजावट की चीज को नए एंगल से देखने की लगन है तो समझ लीजिए आपे आसमान छूने के लिए तैयार है. गिफ्ट पैकेजिंग और एनवलप डिजाइनिंग का काम आपके हुनर पर निर्भर करता है. इस सीजन में आप भी अपने रचनात्मक पहलू को पंख दें और लर्न और फन को जिंदगी का नया फंडा बना लें.


प्रमुख संस्थान

क्रिएटिव क्राफट, रितु दुआ
56 डी , कमला नगर,
दिल्ली 110007
09811924932

क्राफट विला, वसुधा अरोडा
9 राधेपुरी एक्सटेंषन 1
दिल्ली 110051
09811320399

बहुउद्देशीय प्रशिक्षण केंद्र,
खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग,
गांधी दर्शन, राजघाट, नई दिल्ली-110002
वेबसाइट- www-kvic-org-in

इंडियन इंस्टीटयूूट ऑफ पैकेजिंग
ई-2 एमआईडीसी एरिया, अंधेरी ईस्ट, मुंबई-93
बेवसाइट- www-iip&in-com

क्राफ्ट एंड सोशल डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन
3484ध्1, नारंग कॉलोनी, त्रिनगर, नई दिल्ली-110035 एवं
ई-61, लाजपत नगर-दो, फस्र्ट फ्लोर, नई दिल्ली-110024
बेवसाइट-www-candleclassesandmaterial-com

मैग्निफिसेंस एकेडमी ऑफ पैकेजिंग प्रोफेशनल
सी-91 भारत नगर, नई दिल्ली-110025
बेवसाइट  -www-mapp-co-in

Thursday, July 4, 2013

गो गोवा गो



खुला नीला आसमान, रेत और पानी के चमकीले नजारों का खूबसूरत मंजर अभी भी  हमारी यादों में ताजा है. गोआ आकर लगा मानो यहां के बीच, जंगल और हर फिजा हमारा बांहें फैलाकर स्वागत करने को आतुर है. हमारे हनीमून को स्पेशल बनाने के लिए षायद गोआ से बेहतर कोई और जगह हो ही नहीं सकती थी, कहते हैं हनीमून के लिए गोवा पहुंचे दिल्ली के अरुण और उनकी नवविवाहित संगिनी करिश्मा मनचंदा. इस जोड़े की हनीमून ट्रिप को यादगार बनाता गोआ प्रकृति का ऐसा खूबसूरत उपहार है जहां जाने की चाहत हर घुमक्कड़ के दिल में बसती है. पिछले साल गोआ गए इस जोड़े के अनुभव इतने उत्साही और रोचक हैं कि गोआ जाने की उत्सुकता और बढ़ जाती है. जाहिर है ऐसा अनुभव गोआ जाने वाले हर पर्यटक की जुबानी सुना जा सकता है.
भारत का सबसे आधुनिक पर्यटन स्थल गोआ विदेशी और भारतीय संस्कृति का बेजोड़ मिलन है. यही वजह है कि पिछले साल यानी 2012 में गोवा में तकरीबन 28-30 लाख पर्यटक आए. इनमें लगभग 4 लाख पर्यटक तो सिर्फ विदेश से ही आए थे. कहते हैं गोआ शब्द की उत्पत्ति कोंकणी शब्द गोयन से हुई है. इस के माने है लंबी घास का टुकडा. गोआ की पर्यटकों में बढ़ती लोकप्रियता का ही सबब है कि यहां की आबादी से ज्यादा तो पर्यटकों का जमावड़ा दिखता है.
गोआ भारत के पष्चिम में स्थित एक छोटा सा राज्य है. 30 मई 1987 को गोआ का पृथक राज्य के तौर पर गठन किया गया था. इससे पहले समय समय पर यहां मौर्य, चालुक्य, मुसलिम षासकों और आखिर में पुर्तगालियों की सत्ता रही. 1961 में गोआ पुर्तगाली षासन से अलग होकर आजाद भारत का हिस्सा बना. पणजी जिसे पंजिम भी कहा जा है, यहां की राजधानी है. पणजी समेत वास्को, मडगांव, ओल्ड गोआ, मापुसा और कांदा यहां के प्रमुख शहर है. मांडवी और जुवारी गोवा की दो प्रमुख नदिया हैं. यहां कई खूबसूरत बीच और जल प्रपात भी हैं. देखा जाए तो छोटेबड़े लगभग 40 समुद्री तटों का षानदार गुलदस्ता है गोआ.
गोआ का नायाब सौंदर्य केवल बीच तक ही सिमटा नहीं है बल्कि यहां के पुराने और ऐतिहासिक चर्च भी खास आकर्शण हैं. ये सैलानियों को पुर्तगाली दौर में ले जाते हैं. इन्हीं पुराने स्मारकों के चलते गोआ को भारत का रोम भी कहा जाता है. इनके अलावा आधुनिक बाजार, रिवर क्रूज, हैंग ग्लाइडिंग, व्हाइटवाटर राफ्टिंग और हौट एयर बलूनिंग जैसी एडवेंचर गतिविधियां हर पर्यटक को यहां बारबार आने पर मजबूर कर देती हैं.

गोआ के खूबसूरत बीच 
गोवा की सबसे खास बात यही है कि यहां आकर भारतीयों को ऐसा महसूस होता मानों वे विदेश यात्रा पर निकले हों. कारण, यहां के समुद्र तट अंतर्राष्ट्रीय स्तर के हैं. षायद यही वजह है कि इस राज्य की विश्व पर्यटन मानचित्र के पटल पर अलग पहचान है. यह जगह शांतिप्रिय और प्रकृतिस्नेही पर्यटकों को खासी लुभाती है. सुहावने मौसम और यहां स्थित समुद्री तटों के कायल पर्यटकों की भीड़ सबसे अधिक गर्मियों के महीनें में ही रहती है. रंगीन मिजाज संगीत की धुनी में डूबी यहां की शामें जितनी हसीन होती है दिन उतने ही खुशगवार होते है.
कलंगूट बीच  
गोआ का यह खूबसूरत बीच पणजी से 16 किलोमीटर दूर है. इसकी बेपनाह खूबसूरती के चलते इसे दुनिया भर के प्रमुख समुद्री तटों में षुमार किया जाता है. यही वजह है इसे क्वीन औफ सी बैंक यानी सागर तट की रानी के नाम से भी पुकारा जाता है. एक दौर था जब 60 के दशक के आसपास यह जगह हिप्पियों का ठिकाना बन चुका थी. लेकिन समय बदला और 90 के दशक में सरकार ने इसे टूरिस्ट स्पौट के तौर पर विकसित कर दिया. अब यहां पर्यटकों की भारी भीड़ रहती है. यह बीच पूरी तरह हौलीडे रिसोर्ट में तब्दील हो चुका है. कलंगूट बीच में रहने, खानेपीने और मनोरंजन के साधनों की कोई कमी नहीं है.
मीरामार बीच 
पणजी से महज 3 किलोमीटर की दूर यह बीच मुलायम रेत और ताड़ के पेढ़ों से सजा है. राजधानी के सबसे करीब बीच यही है. इसका सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि पणजी के होटलों में ठहरे पर्यटक पैदल भी इस बीच के नजारों का लुत्फ उठाने आ जाते हैं. लिहाजा सीजन कोई भी हो, यह जगह सैलानियों से भरी रहती है.
डोना पाउला बीच    
मीरामार बीच की तरह यह बीच भी पणजी के काफी नजदीक है. सिर्फ 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डोना पाउला बीच, नाम से साफ हो जाता है कि इसे किसी पुर्तगाली के नाम से जाना जाता है. बरहाल यह गोआ का सबसे खूबसूरत बीच है. मजेदार बात यह है कि इस बीच में न तो कोई रेतीला तट है और न ही स्वीमिंग के ठिकाने. लेकिन हां, स्टीमर या बोट के जरिए यहां के दिलचस्प नजारों का आंनद लिया जा सकता है. भारतीय सैलानियों का यह पसंदीदा बीच कहा जा सकता है.
अरमबोल बीच
इसे यहां का सबसे षांत, सुंदर और लंबा बीच माना जाता है. दिनबदिन इस बीच को प्राकृतिक खूबसूरती से भरता हुआ देखा जा सकता है. यहां अकसर विदेषी पर्यटकों का जमावड़ा देखा जा सकता है. आमतौर जो लंबा अवकाश लेकर यहां मजे करने आते हैं उनको यह जगह कुछ ज्यादा ही मुफीद लगती है. इस बीच की खासियत यह है कि कई जगहों पर रेत के लंबे किनारों पर लहरों के आगे जाकर तैरना काफी सुरक्षित और आसान होता है, इसलिए समुद्री लहरों पर ऐडवैंचर का मजा उठाने वाले सैलानियों को यहां दोगुना आनंद मिलता है. बीच से पहले ही अरमबोल गांव मिल जाता है. जिन सैलानियों को अपने बजट का खास ख्याल होता है वे इसी गांव में रहने के सस्ते ठिकाने खोज लेते हैं. राजधानी से 80 किलोमीटर दूर इस बीच के लिए मापुसा होकर बसें मिल जाती हैं.
इन के अलावा गोआ में और भी कई बीच हैं जिनमें बागाटारे, अगोंडा, पोलेलेम, सिनक्यू रिम बीच आदि प्रमुख हैं. गोआ में अनेक सुंदर और विशाल जल प्रपात हैं, जो पर्यटकों को अपनी ओर खींचते रहते हैं.

akhil manchanda

वाइल्ड लाइफ के ठिकाने
गोआ में कई दुर्लभ जानवरों और रंगबिरंगे पक्षियों का देखना मनोरम अनुभव होता है. इसके अलावा समुद्री तटों पर कई तरह की मछलियां भी खासी लुभाती हैं. गोवा में कई नैशनल पार्क  हैं जो वन्य जीव प्रेमियों के लिए पर्यटन का उपहार हैं. महावीर वन जीवन अभ्यारण्य, कीटोगाओं वन्य जीव संरक्षण, सलीम अली पक्षी अभ्यारण्य, नेतरावली वन्यजीव संरक्षण, बोंडला सेंचुरी आदि प्रमुख अभ्यारण्य हैं. मोरिजिम बीच में विदेश से पलायन कर आने वाले पक्षियों को देखने का अनुभव रोमांचकारी होता है. इस क्षेत्र में कई इंटरनेशनल बर्डर्स वाचिंग टूर आर्गेनाइज किए जाते हैं. यहां चीता, जंगली बिल्ली, हिरण, सियार, सांभर चीतल, गिलहरी, काले मुंह वाले लंगूर, सांप, मगरमच्छ आदि दुर्लभ प्रजातियां सैलानियों को वाइल्ड लाइफ केे रोमांचक तेवर से वाकिफ कराती हैं.

व्यंजन, फैशन और कार्निवाल
गोआ में सैलानी घूमने के अलावा यहां के सीफूड यानी समुुद्री व्यंजनों के भी खासे दीवाने हैं. सामान्य तौर पर यहां मांसाहारी और षाकाहारी दोनों तरह का खाना मिलता है पर तटीय इलाके के फिश, प्रौन, लौबस्टर जैसे सीफूड दुनिया भर के पर्यटकों के मुंह में पानी ले आते हैं. इसके अलावा ड्रिंक के तौर पर तो यहां की बियर्स की इतनी वैरायटी हैं कि गिनाना मुष्किल है. गोआ के नारियल पानी की बात ही निराली है. कुल मिलाकर गोवा के नजारे जितने खूबसूरत हैं उतने ही लजीज यहां के व्यजंन भी हैं.
गोआ के व्यंजनों के लजीजपन के अलावा फैशन के भी अनूठे मिजाज मौजूद हैं. यों तो यहां की ट्रैडिशनल परिधानों में औरतें मुख्यतः साड़ी, पुरुश शर्ट और हाफ पेंट के साथ हैट का उपयोग करते हैं पर अब मगर बदलते दौर के साथ पहनावा भी बदला है. आज गोआ वेस्टर्न ट्रेंड को अपना रहा है. इसके असर के तौर पर यहाँ टैटूज बनवाने का चलन देखा जा सकता है. तरह तरह के टैटू यहां के सैलानियों के शरीर पर आसानी से देखे जा सकते हैं.
गोआ का एक और आकर्शण है जिसका इंतजार यहां आए हर सैलानी को होता है. यह आकर्शण है मस्ती भरी गोवा कार्निवाल परेड. इस परेड में गोआ की रंगीन संस्कृति के विविध पहलुओं से रूबरू होने का मौका मिलता है. 3 से 4 दिनों तक चलने वाले इस कार्निवाल के दौरान यह फर्क करना आसान नहीं होता है कि दिन है या रात. इस दौरान पूरा गोआ रंगबिरंगा और रोशनी से जगमग दिखता है. फ्लोट्स परेड, गिटार की धुनों, डांस की थिरकन और नौन स्टाप मस्ती से भरे इस कार्निवाल में षामिल होना एक रोमांचक और यादगार अनुभव होता है. कार्निवाल वैसे तो विदेशी कल्चर की देन है. गोआ में यह पुर्तगालियों के जरिये आया और समय के साथ यहां की स्थानीय संस्कृति में रचबस गया. लोक कलाओं व लोक संगीत का समां बांधे इस परेड को हर साल आयोजित किया जाता है. क्रिसमस के अवसर पर निकलने वाले कार्निवाल की भव्यता का नजारा देखते ही बनता है. हर बार एक अलग थीम पर आधारित यह कार्निवाल गोआ का एक प्रमुख आकर्षण है जो इस जगह की शानदार झलक पेश करता है.

कब और कैसे जाएं
गोवा जाने के सड़क, रेल और हवाई मार्ग सेवाएं उपलब्ध है. गोवा राष्ट्रीय और प्रांतीय राजमार्गों के अलावा कोंकण रेलवे के माध्यम से मुंबई, मंगलौर और तिरुवनंतपुरम से भी जुड़ा है. वहीं डबोलिम हवाई अड्डे से मुंबई, दिल्ली, तिरुवनंतपुरम कोच्चि, चेन्नई, अगाती और बेंगलुरु के लिए रेगुलर विमान सेवाएं हैं.घूमने के लिहाज से सितंबर से मई बेहतर है. पर दिसंबर में क्रिसमस के दौरान आना भी बेहतर विकल्प है. अधिक जानकारी के लिए गोआ के पर्यटन विभाग के फोन नंबर 0832 - 2438755 पर संपर्क कर सकते हैं या http://www.goatourism.gov.in   पर भी जानकारी ले सकते हैं.


                                                   

ये खेल नहीं आसान

                                                  अंडर वॉटर हॉकी



भारत में स्पोट्‌र्स का जिक्र अमूमन क्रिकेट पर ही आकर ख़त्म हो जाता है. नाम के लिए भले ही हॉकी राष्ट्रीय खेल है, लेकिन सबसे ज़्यादा शर्मिंदगी देश को इसी खेल में उठानी प़डती है. रही बात फुटबॉल, बॉक्सिंग, कबड्डी, टेनिस और शतरंज जैसे खेलों की, तो इनकी बात स़िर्फ ओलंपिक और कॉमनवेल्थ जैसे आयोजनों तक सीमित रहती है. बाक़ी पूरा देश तो स़िर्फ क्रिकेट से ही टाइम पास करता है. जब भारत में पहली बार फॉर्मूला रेस हुई तो ज़्यादातर लोगों को इस खेल की तकनीकी जानकारी नहीं थी, सिवाय इसके कि इसका टिकट महंगा है और इसमें कारें दौड़ती हैं. जब तक लोग इसे समझते, तब तक यह ख़त्म हो चुका था. स्पोट्‌र्स ऑफ द वीक नामक इस कॉलम में हम हर हफ्ते दुनिया के कुछ प्रेरणादायक, अनोखे, रोचक और अजीबोग़रीब खेलों से रूबरू कराएंगे, जो भारतीय खेलप्रेमियों की नज़रों से अभी भी अछूते हैं. इस हफ्ते का स्पोट्‌र्स ऑफ द वीक है अंडर वॉटर हॉकी यानी पानी के अंदर हॉकी. अंडर वॉटर हॉकी को ऑक्टोपुश भी कहा जाता है. पानी के अंदर खेला जाने वाला यह खेल दुनिया भर में लोकप्रिय और दिलचस्प है. इस खेल की शुरुआत इंग्लैंड में 1954 में हुई थी. स्वीमिंग पूल के भीतर खेला जाने वाला यह खेल सामान्य हॉकी से न केवल कई मायनों में दिलचस्प है, बल्कि इसकी रूपरेखा और नियम-क़ानून भी काफी अलग हैं. इसके ऑक्टोपुश नाम के संबोधन के पीछे की कहानी कुछ यूं है. यह ऑक्टोपुश शब्द दो शब्दों ऑक्टो यानी आठ और पुश यानी धक्का देना से मिलकर बना है. चूंकि पहले इस खेल में एक टीम में आठ खिलाड़ी भाग लेते थे और इसकी बॉल यानी पक को धक्का दिया जाता है. इसीलिए ऑक्टो और पुश को मिलाकर इसे ऑक्टोपुश या ऑक्टोपश नाम दिया गया. हालांकि अब इसमें दस-दस खिलाड़ियों की दो टीमें भाग लेती हैं. मैच में प्रत्येक टीम के छह खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं. बाकी खिलाड़ियों को रिजर्व के तौर पर रखा जाता है. खेल की शुरुआत से पहले पक यानी बॉल को पूल की सतह के बीचोबीच रख दिया जाता है. जैसे ही बजर (एक प्रकार का अलार्म साउंड) बजता है, खिलाड़ी अपनी-अपनी स्टिक के साथ पानी की सतह पर जाकर प्रतिद्वंद्वी टीम पर गोल दागना शुरू कर देते हैं. मजे की बात तो यह है कि इसमें रेफरी को भी पानी के अंदर जाकर खिलाड़ियों पर ध्यान देना पड़ता है. दोनों टीमों की तऱफ की दीवारों को ही गोल प्वाइंट माना जाता है. एक बार पानी के अंदर जाने पर खिलाड़ी या तो तब बाहर आते है, जब सामने वाली टीम पर गोल हो जाए या रेफरी को लगे कि कहीं पर नियमों का उल्लंघन हुआ है. ज़रूरत पड़ने पर वह कई तरह की पेनाल्टियां भी देता है. पानी में जाने से पहले सभी खिलाड़ियों को ड्राइविंग मास्क, स्विमफिन, ग्लोव्स आदि पहनने के लिए दिए जाते हैं. अंडर वॉटर हॉकी के लिए हॉकी स्टिक काफी छोटी होती है. ताजा नियमों के अनुसार, यह  350 मिमी से ज़्यादा लंबी नहीं होनी चाहिए. इसका रंग काला और सफेद होता है. वहीं पक का आकार आइस हॉकी की बॉल के आकार जितना होता है. यह बॉल लेड या इसी प्रकार के अन्य किसी मैटेरियल से तैयार की जाती है, जिस पर प्लास्टिक कवर रहता है. मैच शुरू करते समय इस गेंद को पूल की सतह पर बीच में रखा जाता है. हर दो साल में ऑक्टोपुश की वर्ल्ड चैंपियनशिप का आयोजन होता है. चूंकि यह पानी के भीतर खेला जाने वाला खेल है, इसलिए इसके दर्शकों की संख्या कम ही रहती है. फिर भी इसे दुनिया के मजेदार और दिलचस्प खेलों में गिना जाता है. अगले सप्ताह बात होगी किसी और मजेदार खेल पर.

                                                              टो रेसलिंग




इस बार का स्पोट्‌र्स ऑफ द वीक है टो रेसलिंग. रेसलिंग के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन यह खेल आम रेसलिंग से काफी अलग है. मसलन जिस तरह रेसलिंग में दो प्रतिद्वंद्वी आमने-सामने आकर अपने पूरे शरीर का दम-खम दिखाते हैं, इस खेल में खिलाड़ियों को वैसा नहीं करना पड़ता. यहां न तो खिलाड़ी एक-दूसरे को रिंग में पटखनी देते हैं और न अखाड़े में धोबी पछाड़. इस खेल को खेलने के लिए न तो किसी बहुत बड़े मैदान का इस्तेमाल होता है और न कोई बहुत भव्य ऑडिटोरियम. इस बार का स्पोर्ट ऑफ द वीक इस अजूबे खेल के बारे में, जिसमें हमें आदमी के पैरों के अंगूठे का दम दिखाई देता है. इस खेल में खिलाड़ी अपने पैर के अंगूठे को प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी के पैर के अंगूठे से दो-दो हाथ यानी दो-दो पैर कराता है. वैसे तो रेसलिंग यानी कुश्ती का खेल काफी पुराना है, लेकिन इस तरह की रेसलिंग कम से कम भारत के लिए तो विचित्र और अनूठी है. हालांकि अभी हमारे यहां भी यानी भारत में बहुत से बच्चे आपस में पंजा लड़ाते हुए, बाजुओं का जोर दिखाते हुए मिल जाते हैं, लेकिन बाकायदा नियमों के मुताबिक़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टो रेसलिंग की वर्ल्ड चैंपियनशिप कहीं नहीं होती. टो रेसलिंग असल में यूके में पॉपुलर होना शुरू हुआ. इसके बाद यह खेल धीरे-धीरे कई अन्य देशों में पॉपुलर हो गया. आज कई बड़े देशों में इसका आयोजन होता है. इसकी लोकप्रियता का ही नतीजा था कि इसकी वर्ल्ड चैंपियनशिप आज से कई सालों पहले 1970 में वेट्टन में कराई गई. अगर आप इस बात को जानने के इच्छुक हैं कि टो रेसलिंग पहली बार कब और कहां खेला गया तो इसकी भी जानकारी है. माना जाता है कि वर्ष 1970 से काफी पहले यह खेल स्टैफोर्डशायर, यूके के ओल्डे रोयाल ओक में पहली बार खेला गया. हर वर्ष स्टैफोर्डशायर में ही वर्ल्ड टो रेसलिंग चैंपियनशिप आयोजित होती है. इसमें महिला और पुरुष दोनों भाग ले सकते हैं. हाल के दिनों में ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों को भी इस खेल ने खास तौर पर आकर्षित किया है. मतलब साफ है, न केवल यूके, बल्कि दुनिया भर में टो रेसलिंग की लोकप्रियता ब़ढ रही है. इस खेल के नियम काफी मजेदार होते हैं. इसे खेलने के लिए दोनों खिलाड़ियों को अपने जूते-मोजे उतारने पड़ते हैं. मजे की बात यह है कि इस नियम का पालन खिलाड़ी आदर स्वरूप एक-दूसरे के जूते-मोजे उतार कर करते हैं. फिर इसके बाद वन टू थ्री और कहीं-कहीं आई डिक्लेयर टो वॉर यानी मैं टो वॉर की घोषणा करता हूं, जैसे वाक्यों से यह दिलचस्प खेल शुरू हो जाता है. इस खेल प्रतियोगिता में प्रतियोगी अपने-अपने पांव के अंगूठे को आपस में भ़िडाते हैं और प्रतिद्वंद्वी के अंगूठे को पटखनी देने की कोशिश करते हैं. जो पीनिंग में सफल हो जाता है, वही विनर बनता है. अब आप सोच रहे होंगे कि पीनिंग का क्या मतलब होता है तो हम आपको बता दें कि यह दरअसल उस समय अंतराल का संकेत होता है, जिस दौरान खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी के पैर के अंगूठे को दबाकर रखता है. यह समय अंतराल तीन सेकेंड के लिए दूसरे प्रतियोगी के पैर पर पैर रखने का होता है. वैसे देखा जाए तो यह खेल ऑर्म रेसलिंग और थम्ब रेसलिंग से काफी मिलता-जुलता है. यह दिलचस्प खेल आप भी ट्राई कीजिए. अगले हफ्ते बात होगी किसी और खेल पर.

                                                वाइफ कैरिंग (भारयस्यमीथम)



इस बार के स्पोर्टस ऑफ द वीक का नाम है वाइफ कैरिंग. यानी अपनी बीबी को अपने कंधों में उठाना. स़िर्फ उठाना ही नहीं उसे अपने कंधों पर सवार करके एक रेस भी लगानी होती है इस खेल में. यह खेल दुनिया भर के खेलों में काफी दिलचस्प माना जाता है. मूलरूप से फिनलैंड में जन्मे इस खेल की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. आज यह स्पोर्ट कई विदेशी मुल्कों से निकलकर भारत में भी पहुंच चुका है. हांगकांग में भी हर साल आयोजित होने वाले वाइफ कैरिंग कांपिटिशन में पतियों का जोश देखकर तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि शादी के बाद पति के मन में पत्नी के लिए प्यार कम हो जाता है. यह खेल देखिए, आपको मालूम हो जाएगा कि किस तरह से हसबैंड अपनी कमर की बिना परवाह किए भारी भरकम बीबियों को उठाकर रेस में भाग लेते हैं और विजेताओं को सम्मानित किया जाता है. सीटी बजते ही औरतें अपने अपने पतियों के  कंधे पर सवार हो जाती हैं और क़रीब 250 मीटर की दौड़ शुरू हो जाती है. फिनलैंड के सोनकाजावरी शहर में हर साल यह प्रतियोगिता होती है और दुनिया भर के पति पत्नी 50 यूरो की फीस देकर शामिल होते हैं. वहीं नॉर्थ अमेरिका में यह खेल कोलंबस डे के दिन यानी अक्टूबर के वीकेंड में न्यूरी मताइन में खेला जाता है. इसके अलावा यूएसए और हांग कॉन्ग समेत कई देशों में भी यह ज़बरदस्त पॉपुलर है. इसी पॉपुलरिटी ने इसे गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज कर दिया है. अगर आप सोच रहे हैं कि स़िर्फ पत्नी को कंधे में उठाकर भागने से ही आप इस रेस के चैंपियन बन जाएंगे तो एक बार और सोचिए. यह इतना आसान नहीं है. रास्ते में बाधा भी है और पानी भी. तैर कर निकलना है और छलांग भी लगानी है. पत्नी कंधे से गिर गईं तो आउट. और बाद में पति का क्या हश्र होगा, कोई गारंटी नहीं.. इसलिए पहले ही कह दिया जाता है कि प्रतियोगी अपनी सुरक्षा का ज़िम्मा ख़ुद उठाएं और ज़रूरत समझें तो बीमा करा कर आएं. पता नहीं इसमें पत्नी से पिटाई का क्लेम मिलेगा या नहीं. कभी कभी जानलेवा भी.. अगर इस स्पेार्ट के नियमों की बात करें तो वज़न का ख्याल रखना है, पत्नी 49 किलो से कम की नहीं होनी चाहिए. अगर हो तो फिर बाक़ी का वजन किसी तरह पूरा करना होगा. जीत गए तो पत्नी के वज़न के बराबर की बीयर मिलेगी और हार गए तो. ख़ुद ही सोचिए. 14 साल से चली आ रही प्रतियोगिता हर साल लोकप्रिय होती भारत के केरला के तिरुअनंतपुरम तक आ पहुंची है. तिरुअनंतपुरम में यह प्रतियोगिता पिछले साल यानी 2011 को 1 जनवरी के दिन एकॉर्न इंडिया ने आयोजित करवाई थी. यह संस्था पर्यावरण जागरूकता अभियान से जुड़ी है. यह संस्था भारत के विभिन्न इलाक़ों में इस प्रतियोगिता को ऑर्गेनाइस कराने का दावा भी करती है. अगर केरल की बात करें तो यह इस खेल को मलयाली भाषा में भारयस्यमीथम के नाम से जाना जाता है. वहीं एशियन कंट्री में इसे मटुकिनीना भी कहते हैं. अगर इसके इतिहास की बात करे तो फिनलैंड में इस खेल की शुरुआत को लेकर कई किस्से हैं. मसलन हेरको रेसवो नाम के एक चोर को इस खेल का आविष्कारक कह सकते हैं. दरअसल यह चोर 1880 के आसपास अपने गैंग के साथ गांवों में चोरी के साथ वहां की औरतों को चुराकर ले जाते थे. इसके लिए उसके गैंग के लोग औरतों को अपने कंधों पर उठाकर भागते थे. इस तरह से यह काम एक मज़बूत दमखम और मस्कुलर पॉवर वाला माना गया है. ग़ौरतलब है किसी भी खेल में मस्कुलर एक्टिविटी ही देखी जाती हैं. सो धीरे धीरे इसने एक विधिवत खेल की शक्ल लेली. और चोरी की जगह लोग अपनी पत्नियों को उठाए इस खेल में काम जाकर लेने लगे. है न मजेदार कहानी. अगले हफ्ते बात होगी किसी और दिलचस्प खेल पर.

                                                    स्नोबॉल फाइटिंग



इस बार का स्पोट्‌र्स ऑफ द वीक है स्नोबॉल फाइटिंग. जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर होता है कि यह एक फाइटिंग गेम है. एक ऐसा फाइटिंग गेम, जिसमें न तो मुक्कों से लड़ाई होती है और न हथियारों से. स्नोबॉल फाइटिंग में बर्फ को हथियार बनाया जाता है. इसमें दो टीमें एक-दूसरे पर बर्फ के गोलों की बौछार करती हैं और फिर होता है स्नोबॉल में बर्फ और खेल का दोहरा मज़ा. वैसे आप लोगों ने बचपन में कई बार पिलो फाइट यानी तकियों की लड़ाई वाला खेल ज़रूर खेला होगा. स्नोबॉल फाइटिंग भी काफी हद तक पिलो फाइट से मिलता जुलता है. अंतर इतना है कि पिलो फाइट घर के अंदर यानी इंडोर गेम है, जबकि स्नोबॉल फाइटिंग घर के बाहर यानी उस जगह पर खेला जाता है, जहां पर्याप्त मात्रा में बर्फ की उपलब्धता हो. अरे भाई, बर्फ के गोले बनाने के लिए बर्फ की ज़रूरत तो पड़ेगी न! 10 फरवरी, 2006 को मिशीगन टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के लगभग 3749 छात्रों ने मिलकर यह खेल खेला था. इतनी बड़ी संख्या में स्नोबॉल फाइटिंग प्रतियोगिता में शामिल होने पर इसे एक वर्ल्ड रिकॉर्ड के तौर पर माना गया. इसके अलावा जापान में हर साल स्नोबॉल फाइटिंग प्रतियोगिता यूकिगासेन आयोजित की जाती है. जापानी में यूकिगासेन का अर्थ होता है हिम युद्ध. जर्मनी में बाकायदा इसकी वर्ल्ड चैंपियनशिप आयोजित की जाती है. वैसे अब यह खेल कई देशों में खेला जाने लगा है. मसलन पेससिंलवेनिया, बेल्जियम, वाशिंगटन डीसी, नॉर्थ अमेरिका, वर्जीनिया और उन तमाम मुल्कों में, जिन्हें बर्फीली जलवायु वाला देश माना जाता है. कहा जाता है कि क़रीब बीस साल पहले जापान के माउंट शोवा-शिनज़ैन रिसॉर्ट ने ठंड के मौसम में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए यह खेल ईजाद किया था. यह खेल शतरंज, पेंटबॉल और बैकयार्ड ब्रावलिंग का मिश्रण है. इसे 44 बाई 12 गज के मैदान में खेला जाता है. हॉकी के मैदान जैसी लाल और नीले रंग की लकीरों से मैदान को बांटा जाता है. मैच में तीन मिनट के तीन भाग होते हैं. जो टीम दो भाग जीत लेती है, वह विजेता होती है. हर भाग में जिस टीम के अधिक खिलाड़ी खड़े पाए जाते हैं, वह जीत जाती है. इसके अलावा बर्फ के गोलों से बचते हुए जो दूसरी टीम का झंडा छीन लेता है, उसकी टीम जीत जाती है. फिलहाल जापान में यूकिगासेन की दो हज़ार से ज़्यादा टीमें हैं. पिछले साल अमेरिका में भी इसकी कई प्रतियोगिताएं हुई थीं. ऐसा भी नहीं है कि इस खेल में हमेशा मज़ा ही आता है, कभी-कभी यह मजेदार खेल कई प्रतियोगियों पर भारी भी पड़ जाता है. उदाहरण के तौर पर 9 दिसंबर, 2009 की घटना को ले लीजिए. इस दिन लगभग 4000 छात्रों ने बॉसकाम हिल पर स्नोबॉल फाइटिंग प्रतियोगिता में भाग लिया, लेकिन इस दौरान कई प्रतियोगियों को काफी चोटें आईं. कई लोगों की नाक टूटी तो कई लोगों ने अपनी कुहनियां तुड़वाईं. यहां तक तो ठीक था, लेकिन मामला तब बिगड़ गया, जब भीड़ ने बेकाबू होकर लूटपाट शुरू कर दी और सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाया. जिस रिकॉर्ड  को तोड़ने के लिए इसका आयोजन किया गया था, वह तो नहीं टूटा, कई लोग अपना अंग भंग ज़रूर करा बैठे.

                                                           वुड चॉपिंग



इस बार का स्पोट्‌र्स ऑफ द वीक है वुड चॉपिंग. वुड चॉपिंग यानी लकड़ियों की कटाई. पहले पहल तो इस खेल को देखकर लगता है कि शायद यह मज़दूरों का खेल है या फिर शहरों से दूर बसी उस आबादी का, जिसे लकड़ियों में खाना बनाना होता है. लेकिन जैसे ही अमेरिका और आस्ट्रेलिया में होने वाली वुड चॉपिंग चैंपियनशिप में शामिल होते हैं तो आप जान जाते हैं कि यह शौक़ीन मिज़ाज लोगों का एक अजूबा खेल है. आपने कालिदास की कहानी तो ज़रूर सुनी होगी. कालिदास पेड़ की जिस शाख पर बैठे थे, उसे ही काट रहे थे. जब उन्होंने ऐसा काम किया था, तब उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा मूर्ख समझा गया था और आज भी लोग उस घटना को चट़खारे भरे अंदाज़ में एक-दूसरे पर फब्तियां कसने के लिए सुनाते रहते हैं, लेकिन कालिदास की अब उसी घटना को दुनिया के कई देश वुड चॉपिंग खेल के ज़रिए दोहरा रहे हैं. अब उन्हें कालिदास की तरह मूर्ख तो क़तई नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस खेल में भाग लेने वाले प्रतियोगियों को बाक़ायदा ईनाम मिलता है. अब लकड़ी के मोटे लट्ठे को काटना खेल बन गया है. इस लट्ठे पर खड़े होकर तेज़ धार कुल्हाड़ी से इसे काटना होता है. जिसने जल्दी इसे दो टुकड़ों में काट दिया, वह जीत गया. इसके अलावा कई देशों में कुल्हाड़ी की जगह आरी का भी इस्तेमाल होता है. जर्मनी सहित कई यूरोपीय देशों, ऑस्ट्रेलिया, नार्वे, स्विट्‌ज़रलैंड, इंग्लैंड, कनाडा, स्लोवेनिया, स्पेन, फ्रांस, न्यूजीलैंड एवं अमेरिका में यह खेल खेला जाता है और टेलीविज़न चैनलों पर इसका सीधा प्रसारण होता है. अगर इस खेल की शुरुआत पर ग़ौर करें तो कहा जाता है कि यह खेल 1870 के आसपास तस्मानिया में पहली बार खेला गया था. इसकी शुरुआत भी बड़ी दिलचस्प थी. असल में तस्मानिया में 1870 के आसपास दो कुल्हाड़ी धारियों ने एक लकड़ी को सबसे पहले काटने के लिए क़रीब 50 डॉलरों की शर्त रखी थी. इसी शर्त ने वुड चॉपिंग को खेल का रूप दे दिया. हालांकि यह खेल उन्हीं देशों में खेला जाता है, जहां जंगल बहुत हैं और जहां की अर्थव्यवस्था का़फी हद तक लकड़ियों के व्यापार पर निर्भर करती है. वुड चॉपिंग की पहली वर्ल्ड चैंपियनशिप 1891 में लैटरोब में हुई थी. मोटे तौर पर इस खेल में कोई खास नियम तो नहीं होता. हां, किसी देश में कुल्हाड़ी तो किसी देश में विभिन्न प्रकार की आरियां इस्तेमाल होती हैं. कहीं पर लकड़ी का गट्ठा चॉप किया जाता है तो कहीं बाक़ायदा पूरा पेड़ काट दिया जाता है. प्रतियोगिता इस बात की होती है कि कौन सा चॉपर पेड़ को सबसे पहले काटकर गिराता है. वुड चॉपिंग के खेल में दुनिया के दो चैंपियन न्यूजीलैंड से आते हैं. जेसन व्यानयाड और डेविड बोल्सटैड नामक इन दो चैंपियनों की वजह से न्यूजीलैंड वुड चॉपिंग का टॉप लीडिंग कंट्री माना जाता है. इनमें से डेविड बोल्सटैड का गत नवंबर माह में निधन हो गया. न्यूजीलैंड के बाद ऑस्ट्रेलिया और यूके ऐसे देश हैं, जहां से वुड चॉपिंग के बेस्ट एक्समैन आते हैं. कुल मिलाकर लकड़ी काटने का यह फनी और मेहनत वाला खेल भले ही भारत में औपचारिक तौर पर न खेला जा हो, लेकिन हमारे गांवों में इस खेल के बादशाह सदियों से जंगलों में लकड़ियां काट रहे हैं.

Tuesday, July 2, 2013

कहीं बूंदबूंद को न तरसे जिंदगी




हम जीवन के मूल आधार जल को लेकर कितने संवेदनहीन और गैरजिम्मेदार हैं, यह तो देश में विकराल होते जल संकट से आसानी से समझा जा सकता है. लेकिन हाल ही में संवेदनहीनता की हद पार करते हुए कुछ नामी लोग जलसंकट की समस्या का मजाक उड़ाते भी दिखे.
गौरतलब है कि महाराश्ट्र के कई इलाके सूखे की चपेट में हैं, जिस के चलते कई किसानी अपनी फसल और जानवरों के लिए पानी उपलब्ध न कर पाने के चक्कर में प्रशासन से खुदकुषी तक की गुहार लगा चुके हैं. इसी बीच हमारे कर्मठ नेता महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और एनसीपी चीफ शरद पवार के भतीजे अजित पवार बड़ी ही बेशर्मी से प्रैस के सामने कहते दिखते हैं कि जब बांध में पानी है ही नहीं तो क्या पेशाब करके दें पानी?
नेता के बाद हमारे तथाकथित धर्मगुरू आसाराम बापू तो इन से भी दो कदम आगे निकलते हुए महाराश्ट्रª में ही होली के नाम पर सरेआम लाखों टन पानी बहा देते हैं. महात्मा और नेता अगर इतने महान हैं तो हमारे अभिनेता भी भला पीछे रहने वाले हैं. लिहाजा शाहरुख खान अपनी होम प्रोडक्षन की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस की शूटिंग के डैम से खरीदकर पानी को सिर्फ इसलिए बरबाद करते हैं क्योंकि उन्हें फिल्म के एक एक्षन सीन के लिए मोटरसाइकिल कीचड़ में दौड़ानी हैं.
जिस देश में आम आदमी पानी की एक बूंद के लिए तरस रहा है वहां साधु, नेता और अभिनेता पानी की बरबादी सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इन्होंने अपने जीवन में कभी पानी की किल्लत नहीं देखी. कभी सरकारी नलों या हैंडपंपों में लाइन नहीं लगाई और कभी पानी के लिए मारामारी नहीं की. लेकिन भविश्य में जब पानी जमीन से पूरी तरह खत्म हो जाएगा तब शायद इन्हें अंदाजा होगा कि इन्होंने कितना बड़ा अपराध किया है. बहरहाल अभी इन लोगों का जल संरक्षण से सरोकार नहीं है. राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर जल को बचाने के लिए कोई गंभीर नहीं दिखता यह तो समझ में आता है पर आम आदमी यानी हम इस दिशा में कोई कदम क्यों नही उठाते, यह चिंता की बात है.

हम हैं जिम्मेदार
दरअसल विकास और लालच ने हमें स्वार्थी बना दिया है. नतीजतन अधिकांश नदियों, तालाबों, झील, पोखरों का अस्तित्व मिट गया. एक समय ये सभी माध्यम जल के मुख्य सोर्स हुआ करते थे. लेकिन आज हम इतने लापरवाह हो गए हैं कि हमें भविष्य के खतरे की आहट ही नहीं सुनाई पड़ रही है. वाटर क्राइसेस सर्वे से जुड़ी रिपोर्ट बताती हैं कि भारत में विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी निवास करती है, लेकिन उसके लिए मात्र तीन प्रतिशत पानी ही उपलब्य है. आंकड़े बताते हैं कि विश्व के लगभग 88 करोड लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है. मुंबई और चैन्नई जैसे महानगरों में तो पाइप लाइनों के वौल्व की खराबी के कारण रोज 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है. इस के अलावा हम घरों में ब्रश करते समय, नहाते और कपड़ागाड़ी धोने में बहुत जल बरबाद करते हैं. यदि पानी की एक बाल्टी से काम किया जा सकता है वहां दो बाल्टी पानी का उपयोग होता है. अधिकतर लोगों की यही सोच रहती है कि एक दो बाल्टी ओर खर्च हो जाए तो क्या है? लेकिन वे यह नहीं जानते कि जब एकएक बाल्टी करोड़ों लोग बरबार करते हैं तो कितनी मात्रा में पानी बरबाद होता है.
दरअसल भारत में पानी के प्रबंधन को लेकर कोई जागरूकता नहीं दिखती. बरसात के पानी को संरक्षित करने की दिशा में हम कोई ठोस कदम नहीं उठाते. इसलिए जलवर्शा की हार्वेस्टिंग भी कहींकहीं हो पा रही है. हम पीने वाले पानी और इस्तेमाल करने वाले पानी में अंतर नहीं समझते. कहा जाता है कि एक दौर में तेल को लेकर जंग होती थी अब पानी को लेकर होगी. इस में कोई दोराय नहीं है कि पानी को लेकर छिटपुट लड़ाइयां तो अभी से शुरु हो चुकी हैं. ऐसे में अगर तीसरे विष्वयुद्ध के पानी को लेकर होने की बात कही जाती है तो कोई आष्चर्य नहीं होना चाहिए.


पानी बचाएं ऐसे
आधुनिकता की दौड़ में हम जल के महत्व को सही मायनों में महसूस नहीं कर पा रहे हैं. जबकि जल को बचाए रखना नई पीढ़ी की जिम्मेदारी है. प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत स्तर पर पानी का दुरुपयोग न कर बचत भी करनी चाहिए. समय आ गया है जल संरक्षण और पानी की बचत की दिशा में गंभीर होने का. आवष्यक हो तो पानी का दुरुपयोग रोकने के लिये विदेशों की तर्ज पर कड़े कानून बनाने चाहिए.
आज जरूरत है कि पर्यावरण संरक्षण के साथसाथ निरंतर घटते जल स्तर को बढ़ाया जाए. अंधाधुंध वृक्षों को काटने के बजाए हमें नए पेड़पौधे रोपने होंगे. इस से बारिश होगी और जमीन का गिरता जलस्तर सुधरेगा. बरसात के पानी का संरक्षण भी बेहद जरूरी है. यह पानी जानवरों का पिलाने, फसल की सिंचाई से लेकर कई जरूरी कामों में इस्तेमाल हो सकता है. अगर शुरुआत खुद से की जाए तो दूसरों को भी इसके लिए शिक्षित और प्रेरित किया जा सकता है.
प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि कोई जल का दुरुपयोग कर रहा हो तो उसे उसके दुष्परिणाम बताते हुए ऐसा करने से रोकें. विषेशज्ञ मानते हैं कि जल संकट से नजात पाने के लिए कई कारगर हल हो सकते हैं, जैसे सरकार द्वारा पानी पर टैक्स लगाना या नदियों को समुद्र में मिलने से रोकना. हालांकि यह उपाय सरकार पर आश्रित है. इस के साथ ही किसानों को समझाया जा सकता है कि फसलों को  इस तरीके से लगायें जिससे पानी का न्यूनतम उपयोग हो. सरकार और आम लोग मिलकर ही इस समस्या से नजात पा सकते हैं.
जल का अंधाधुंध और विवेकहीन प्रयोग ही जलसंकट का बससे बड़ा कारण है. यहां कुछ आम तरीके बताएं जा रहे हैं जिन पर यदि हर आदमी अमल करे तो काफी हद तक इस समस्या का समाधान मिल सकता है.

  • टूथब्रश करते समय नल खुला न छोड़ें.
  • टब या शावर के बजाएबाल्टी में नहाने से काफी पानी बचता है.
  • किसी भी पाइप या नल में से पानी टपक रहा है तो उसको ठीक करवाएं.
  • रोज कपड़े धोने से ज्यादा पानी खर्च होता है इसलिए इकठ्ठा कपड़े धोएं.
  • वाशिंग मशीन पर एक साथ जमा कपड़े धोएं बारबार कपड़े धोने से पानी बरबाद होता है.
  • टौयलेट में पानी की टंकी को आधा दबाएं.
  • टौयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख देने से हर बार एक लीटर जल बचता है.
  • पानी को तरीके से गिलास में डालकर ही पीएं.
  • सब्जी, बरतन आदि धोने के बाद जमा पानी को पौधों में डाल दें, या फिर पोंछा, फर्श की धुलाई, कार धोने या टौयलेट आदि में प्रयोग करें.
  • एक सप्ताह में पौधों को पानी दें रोज देने से पौधों की जड़ें कमजोर हो सकती हैं.
  • अपने पालतू जानवरों को गार्डन में नहलाएं, ताकि पानी घास व पौधों को मिल सके.
  • बरसात का पानी जमा करें. इस का पानी कई जरूरी कामों में इस्तेमाल किसा जा सकता है.
  • ग्रामीण इलाकों में धरती में गढ़्डे आदि खोदकर उसमें बरसात का जल जमा किया जा सकता है.
  • गाड़ी धोने के लिए पाइप के बजाए बाल्टी का पानी ही इस्तेमाल करें.
  • नाली को साफ रखें वरना सफाई में बहुत पानी व्यर्थ जाएगा.
  • पानी की समस्या को हल करने में रीसाइकलिंग एक बेहतर विकल्प है.
  • पेंट, थर्मामीटर, कीटनाशक और पारे को नदी, नाले और सीवर में नहीं डालें इससे पानी को रसाइकिल करने में कठिनाई होती है.
  • तकनीक के जरिए खारे जल को शुद्ध कर इस्तेमाल कर सकते हैं.



Monday, July 1, 2013

जब प्रपोज करने का अंदाज हो खास तभी बनेगी बात




आंखों ही आंखों में इशारा होता है फिर रूठनेमनाने का सिलसिला षुरू होता और फिर दिल की बीत जुंबा पा लाने का वक्त आता है. तब बारी आती है अपने दिल के सबसे करीब शख्स को हमेषा हमेषा के लिए अपना बनाने का. यानी उसे प्रपोज करने का. अक्सर पहली मुलाकात में आंखे ही जुबां बनकर दिल का काम कर देती हैं पर जब उसे अपना जीवन साथी बनाने की बारी आती है तब तो जरूरत होती है एक एक ऐसे यादगार प्रपोजल की जिससे न सिर्फ बात बन जाए बल्कि ताउम्र दोनों को उस खूबसूरत प्रपोजल की यादें प्रम के कच्चो धागे से जोडें रखें. लेकिन यह इतना आसान नहीं है. प्यार करना भले ही आसान लगे पर प्यार का इजहार करना यानी  प्रपोज करमे तक्च अच्छे अच्छे लडखडा जाते हैं. कई लोग तो प्रपोज करने की कला को ही नहंी समझते. नहीं तो बनी बनाई बात के बिगडने का अंदेशा बना रहता है.
इसलिए बेस्ट प्रपोजल ही आपको अपी प्रेयसी का जीवन भर का साथ देता है. एक पे्रमी ने जब अपनी प्रेमिका को अपने पैर की हड्डी से बनी रिंग पहनाकर प्रपोज किया तो उसकी प्रेमिका उाके प्रपोज करने के अंदाज वर कुछ इस करद फिदा हुई कि उसने उसे फौरन खुषी खुषी अपना हाथ दे दिया. माइक पेरेत भारत में एक दुर्घटना में अपना पैर गंवा बैठे और फिर उन्होंने अपने पिंडली की हड्डी से एक रिंग तैयार कराई. एक रात डिनर के दौरान जब माइक ने मेलिटा को यह रिंग सौंपी तो वह प्रोपोज करने के इस तरीके से खिल उठीं. कुछ ऐसा ही षानदार और यूनीक तरीका अपनाकर ही प्रपोजल को सफल बनाया जा सकता है. 
यह सच है कि किसी से प्यार होने पर आपकी जिंदगी के मायने ही बदल जाते हैं. अपने आप में एक आत्मविश्वास पैदा होता है. पर जब प्रपोज करने की बात आती है तो  अक्सर लेाग गलती कर बैठते हैं. हम आपको बताते हैं कि कैसे अपनी गर्लफ्रेंड को खूबसूरत और यादगार प्रपोजल से हमेषा के लिए अपने दिल के करीब किया जा सकता है.

सस्ती नहीं स्पेशल रिंग
प्रपोजल के दौरान ज्यादातर युवा एक ही गलती करते हैं और वो है रिंग यानी अंगूठी का चुनाव. एक यही रस्म होती है जो आपकी प्रयेसी को प्रपोजल के दौश्रान सबसे ज्यादा भाती है. जब आप उसकी खूबसूरत उुगलियों में एक प्यारी और स्पेशल रिंग डालकर उसे अपना बनाने के लिए प्रपोज करते है। उसी वक्त वो अपनी उंगली के साथ आपना हाथ आपके हाथों में हमेषा के लिए दे देती है. इसलिए सही रिंग का सेलेक्षन बहुत इंर्पोटेंट रोल प्ले करता है. अक्सर लोग या तो बहुत सस्ती रिंग से प्रपोज करते  हैं या फिर वे महंगी रिंग तो खरीद लेते हैं पर उसका डिजायन उनके मनमाफिक नहीं ले पाते. जबकि लडकियां ज्वैलरी के मामले में बहुत चूजी होती हैं इसलिए रिंग के माामले आप किसी नजदीकी महिला मित्र या किसी औश्र की मदद ले सकते हैं.

राइट टाइम और मैनर्स
अपनी प्रेमिका को प्रपोज करते समय यह जानना बहुत जरूरी है कि वो भी इसके लिए मानसिक रूप से तैयार है या नहीं. अगर नहीं तो फिर सही समय का इंतजार करें नहीं तो बनी बनाई बात बिगड भी सकती है. अपने लव को प्रपोज करते समय अपनी आवाज को कंट्रोल में रखें. जोश में आकर जोर-जोर से न बोलने लगें और न ही इतना धीमे बात करें कि आपके पार्टनर को ही सुनाई न दे. 
क्रिएटिव अल्फाज और तरीके
 याद रखे कि आपका यह प्रपोजल आप दोनो ंकी जिंदगी की षुरुआत का बेहतद अहम पहले है. यही पल आपको ताउम्र एक दूसरे के करीब रखता है इसलिए इस पल को जितना ज्यादा यादगार बना सकें उतना अच्छा. इसके लिए थोडा क्रिएटिव होकर कोई प्यार सी गजल, कविता, तोहफा, पार्टी या क्रिएटिव सरप्राइजिंग प्रपोजल के जरिए अपने प्यार को अपना बनाया जा सकता है.

रिजेक्शन से डरें नहीं
आम तौर पर  हम अपने लव से प्यार तो कर लेते हैं उसके साथ वक्त भी बिता लेते हैं पर जब प्रपोज करने का समय आता है तो जुबां पर ताला लग जाता है. इसकी कइ्र वजहें होती हैं जिसमें कोई नर्वस हो जाता है तो कोई झिझकने लगता है औश्र किसी को प्रपोजल के रिजेक्ट होने का भय सताता है.  इसलिए जब भी आप तय कर लें कि अग प्रपोज करना है पेरे आत्मविष्वास के साथ उसे प्रपोज करें. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इस समस्या से निजात पाने के लिए झिझक को तोड़ना जरूरी है.  रजौरी गार्डन की मुक्ता कहती हैं कि आज मेरी मेरी शादी को 15 साल होने वाले हैं. मैं और मेरे पति कौलेज के जमाने से ही एक दूसरे से प्रेम करते थे पर इन्होंने मुझे प्रोपोज किया था तो वह सामने खड़े होकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. बाद में उन्होंने मुझे प्रेम पत्र लिख कर प्रोपोज किया. खैर यहां  तो मुक्ता थीं जो मान गईं पर कई ये झिझक आपे से आपका सबसे प्यारा साथ्ी दूर कर देती है.

रहें कान्फीडेंट और फ्रेश
अगर आप कहीं दूर ले जाकर प्रपोज करना चाह रहे हों तो जाने से पहले सबसे पहली बात ध्यान में रखें कि आप ज्यादा थके हुए न हों. इससे बचने के लिए भरपूर नींद लें. यदि कहीं लांग ड्राइव पर जा रहे हैं तो पूरी तरह से पैक होकर जाएं. ध्यान रखें कि ज्यादा लंबी दूरी तक ड्राइव न करना पड़े नहीं तो आप थक जाएंगे. जहां तक हो सके कपड़ों के चयन में सावधानी बरतें. ऐसा कुछ न पहनें जिससे आपको परेशानी हो, न ही ऐसा कुछ पहनें जिससे आपको शर्मिदगी उठानी पड़े. साथ ही कपड़ों के रंग का चयन करते समय ये ध्यान रखें कि आपके पार्टनर को कौनसा रंग पसंद है. निश्चित ही ये बहुत छोटी सी बात है लेकिन इसे आप खुद ही महसूस करेंगे, जब उनका पसंदीदा रंग पहनकर उनसे मिलेंगे. फिर सही मूड और जगह देखकर आप प्यार से उसे प्रपोज कर सकते हैं.


जो न हो उनको पसंद
प्रेमिका को प्रपोज करने से पहले अपने लव की पसंद के बारे में जानना बहुत ही जरुरी है. इससे संबंध मजबूत होते हैं और एकदूसरे को समझने में भी मदद मिलती है. इसलिए जब भी आप अपने लव को  प्रपोज करें उनका पसंदीदा रंग, पसंदीदा फूल, उन्हें आपसे क्या सुनना पसंद है, पसंदीदा गीत,पसंदीदा रेस्टोरेंट, भोजन, आइसक्रीम, स्नेक्स, चॉकलेट, उनका शौक, ऐसा पसंदीदा स्थान जहां वो एकांत में समय बिताना चाहती हों, मनपसंद परफ्यूम और मेकअप ब्रांड, सैर-सपाटा के लिए मनपसंद जगह, मनपसंद ड्रेस आदि के बारे में जानकर उसी हिसाब से प्रपोज करें.यदि आपकी गर्लफ्रेंड को रोमांच भरे खेल पसंद हैं तो रौक क्लाइंबिंग के बाद पहाड़ी के सबसे ऊपरी चोटी पर पहुंच कर उसे वहीं से प्रपोजकर सकते हैं. अगर उसे पानी पसंद है तो समुद्र की गहराई में मछलियों के बीच प्रपोज करना उसे लुभा सकता है पर अगर उसे पानी पसंद नहीं है तो फिर ये आइडिया उल्टा भी पड सकता है. इसलिए जरूरी है कि जब भी आप अपनी प्रेमिका को प्रपोज कर रहे हों तो उसके बारे में पूरी तरह से समझ जरूर लें.
सही लोकेशन है जरूरी
प्रपोज करने की जगह चुनते वक्त बहुत जरूरी है कि ऐसी जगह चुना जाए जां आपके पार्टनर के मुताबिक सही हो. नहीं तो बात गिड भी सकती है. इसलिए  स्थान का विशेश ध्यान रखना बेहद जरूरी है. किसी भी ऐसी जगह न जाएं जो वीरान हो और न ही किसी ऐसे सार्वजनिक स्थल का चयन करें, जहां परिवार के लोग आते हों क्योंकि इससे बार-बार उनकी नजरें तो आपको भेदेंगी ही आप भी उनकी  उसे सही तरह से प्रपोज नहीं कर पाएंगे.

यादगार तोहफा
उपहार वो जरिया हैं जिनसे आप अपने प्यार को और भी अच्छी तरह से जता सकते हैं. अगर आन अपने लव को प्रोज कर रहे हैं तो कोई ऐसा खूबसूरत तोहफा देस कते हैं उसके दिल के सबसे करीब हो बस बात बन जाएगी. फिश्र चाहे वो उसके बचपन के खूबसूरत लम्हों को कैद किए  फोटोग्राफस हो, फेवरेट ड्रेस, कहीं ट्रिप का टिकट या फिर कोई खूबसूरत सी रिंग. हालांकि ये जरूरी नहीं कि प्रपोजक रते समय  उपहार ही दिया जाए.

कुछ बेस्ट प्रपोजल

  • ख्ूाबसूरत सी रिंग देकर प्रपोज करें जो कभी उसने खरीदने की ख्वाहिश की हो.
  • अपनी गर्लफ्रेंड के साथ फिल्म देखने का प्लान करें और फिल्म के बीच में ंनरदे पर अपने प्यारे से प्रपोजल की रिकार्डिंग प्ले करवाएं.
  • फ्लाइट में अगर साथ जा रहे हां तो वहां के इंटरकॉम से भी उसको प्रोपोज कर सकते हैं.
  • उनकी किसी पसंदीदा चीज पर विल यू मैरी मी? का प्यार सा काई लगाकर छेाड सकते  हैं जब अकेले में वो उसे देखंेगी तो उसे आपका यह अंदाज जरूर भाएगा.
  • अगर उन्हें बारिश पसंद हो तो गर्लफ्रेंड को रिमझिम बारिश में एक लांग ड्राइव पर ले जाएं. और उस रोमांटिक माहौल में उसे शादी के लिए प्रपोज करें.



आज की लाइफ बहुत ज्यादा फास्ट है बावजूद इसके इश्क और प्रेम की परिभाषा को वक्त बदल नहीं पाया है इसलिए प्यार के इजहार को खूबसूरत और यादगार बनाकर ही अपने साथी को जीवनसाथी बनाया जा सकता है.