rajesh & harsh yadav |
लाइफ में प्यार सिर्फ एक बार ही होता है. मुझे भी हुआ. हालांकि हर कोई इतना खुशनसीब
नहीं होता कि वह अपने पहले प्यार को पा ले. प्यार को उस मुकाम तक पहुंचा पाए जहां
वो प्यार जीवनसाथी बन पहले प्यार के अहसास को हमेशा के लिए अमर कर दे. इस मामले
में मैं खुद को लकी समझता हूं कि क्योंकि तमाम नोंकझोंक, खटठेमीठे पलों और
गलतफहमियों की संकरी गलियों से गुजरकर
परवान चढा मेरा पहला प्यार आज मेरी पत्नी के रूप में मेरे साथ है.
बात उन दिनों की है जब 2004 में मैं इंटर की पढाई कर आगे की पढाई के लिए हमीरपुर
दिल्ली आया था. एक छोटे शहर से दिल्ली जैसे महानगर में आकर एक नई दुनिया देखी.
अर्जुन नगर इलाके में किराया का कमरा लिया था. कमरे की बालकनी में हमेशा सुबह उठकर
अखबार के साथ कौफी पीने की आदत थी. रोज दिन की षुरुआत बालकनी, अखबार और कौफंी से होती
थी. अभी ज्यादा दिन नहीं हुए थे. एक दिन मैं और मेरा दोस्त बालकनी में खडे गप्पें
मार रहे थे. तभी गली के सामने वाले मकान की टेरिस पर एक खूबसूरत चेहरे की झलक
दिखी. सुबहसुबह नींद से जागा चेहरा देखकर ऐसा लगा मानों मैं कहीें और आ गया हंू.
पल पर भी उसे गौर से देख नहीं पाया था तभी मेरे पार्टनर की तेज हंसी से झेंपकर वह
गायब हो गई. उसे पहली बार देखा था पर ऐसा लगा जैसे उससे कोई न कोई कनेक्षन जरूर
है. उस समय तक लडकियां तो दिल्ली में खूब देखी थीं. पर किसी चेहरे पर नजर ऐसे नहीं
रुकी थी. अब रोज रात को सोते समय सुबह होने की बेचैनी होती. जल्दी उठता और कौफी मग
लेकर उसके दीदार के इंतजार में खडा हो जाता. कभी आती और कभी नहीं. पर मैं रोज
इंतजार करता. यह सोचकर कि शायद कभी उसकी नजर मुझ पर पडे. यह सिलसिला कई दिनों से
चल रहा था. दिल उसको ही खोजने में व्यस्त रहता था. जब भी आखें बंद करता था तो बस
उसका ही मासूम व मुस्कुराता चेहरा दिखता. नीली आखों वाली वो लडकी मानों मुझमें बस
गई थी.
दो महीने गुजर गए इस सिलसिले को. मैं उससे बिना कुछ कहे रोज बातें करता. पर
उसकी तरफ से अब तक कोई रिस्पांस न आता देख बैचैनी हुई कि कहीं यह एकतरफा
अट्रैक्ष्न तो नहीं है. जब भी वह दिखती तो दूर से उसकी आखों में आंखें डालकर पूछना
चाहा कि उसके दिल में मेरे लिए कुछ है भी कि नहीं. एक दिन उसे दूर से ही इशारा
करने की हिम्मत जुटाकर खडा हुआ पर इशारा कर नहीं पाया. थोडा डर और थोडी हिचक के
चलते.
rajesh & harsh |
एक दिन आखिर मैंने उसे इशारे से अपनी तरफ देखने पर मजबूर कर ही दिया. उसके
हावभाव को देख कर ऐसा लगा कि शायद वह भी मुझ नोटिस करती है. हिम्मत बढी और उससे
नंबर मांगने का इशारा कर डाला. इशारों में ही मिलने का वक्त और समय भी तय हो
गया. उससे मिलने के लिए बेताबी से निकला
पर भूल गया कि कोई मेरा पीछा कर रहा है. दूर खडी उस लडकी से नाम ही पूछ पाया था कि
उसने इशारे में बताया कि पीछे कोई खडा है. डर था उसे कोई आंच न आए इसलिए उससे इतना
ही कहा कि जाना है तो चली जाओ.वह सचमुच जाने लगी. दिल बैठ गया. तभी झटके से मुडकर
उसने मुझे एक कागज का टुकडा थमाया और नजरों से ओझल हो गई. कागज में उसका नंबर था.
पहली ही मुलाकात ऐसी होगी, सोचा ना था.. लौटकर फोन किया तो नंबर बंद था. उस रात मैं सो
नहीं पाया. उसके ही ख्यालों में खोया रहा. अजीब सा डर लग रहा था, उसको खोने का. अगला दिन
मेरे लिए और भी बहुत बुरा था. उस लडके ने
उसके घरवालों तक बात पहंचा दी. मेरा तो कुछ खास नहीं बिगडा पर कई दिनों तक उस लडकी
को बाहर आते नहीं देखा. एक दिन टेरिस के अंधेरे में उसका अक्स देखा. एक बार फिर
फोन मिलाया. इस बार उससे बात हुई. प्यार की बात स्टार्ट होती कि उसने रोते हुए कहा
कि तुम यहां से चले जाओ वरना बात आगे बढ जाएगी. मुझे झटका सा लगा. बहुत समझाया पर
वो सहमी थी. हार मानकर भारी मन से वो कमरा छोडकर मैं कमला नगर, दिल्ली यूनीवर्सिटी आ
गया. कई महीने गुजर गए. पहला प्यार इस कदर अंदर से तोड देगा सोचा नहीं था. न पढाई
में मन लगता और न खाने पीने में. जुदाई के वो लम्हे काफी भारी थे.
आज सोचता हूं कि उस दिन अगर उसका फोन नहीं आया होता तो मंै दिल्ली छोड चुका
होता. बेमन होकर मैंने दिल्ली छोडने का फैसला कर लिया था. तभी फोन बजा और फिर से
वो आवाज सुनी. इस बार आवाज में सहमापन नहीं बल्कि मिलने की तडप थी. करीब 8 महीनों के बाद हम उस
अधूरी मुलाकात के बाद मिले. कई षिकवा षिकायतों के बाद उसने बताया कि घर वालों की
परमीशन से मैंने दिल्ली यूनिवर्सिर्टी से एक शार्टटर्म कोर्स में एडमिशन ले लिया
है.
सुनकर खुषी से फला नहीं समाया. पहली नजर में दूर निगाहों और इशारों से षुरु
हुआ वो पहला प्यार आज पहली बार खुली हवा में आजाद होकर साथ घूम रहा था. वो दिन था
और उसके अगले तीन साल तक मैं उसके साथ लगभग हर पल जी रहा था. पढाई पूरी कर नौकरी
की जिम्मेदारी थी ताकि उसे अधिकारिक तौर पर अपना सकूं. उसे पाने का जुननू ही था कि
बहुत जल्द एक मीडिया फर्म में जौब लग गई. सेलरी ज्यादा नहीं थी पर मेरी सादगी और
ईमानदारी उसके माता पिता को पसंद आई. दोनों के परिवारों और जातियों में कोई समानता
नहीं थी फिर भी किसी दकियानूसी सोच ने हमारे को प्यार को शादी की दहलीज तक पहुंचने
से नहीं रोका. आज दिल्ली के अर्जुन नगर की बालकनी से उसकी पहली झलक और तमाम
उतारचढावों के गवाह अपने पहले प्यार को अपनी उर्जा का श्रोत मानकर अपनी प्रेयसी और
पत्नी हह्र्य अरोडा के साथ नया और खुशहाल जीवन जी रहा हूं. उम्मीद ही नहीं आज पूरा
विष्वास हो गया है कि कि सच्चा प्यार मुष्किलों से सही हासिल जरूर होता है.
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