Tuesday, July 2, 2013

कहीं बूंदबूंद को न तरसे जिंदगी




हम जीवन के मूल आधार जल को लेकर कितने संवेदनहीन और गैरजिम्मेदार हैं, यह तो देश में विकराल होते जल संकट से आसानी से समझा जा सकता है. लेकिन हाल ही में संवेदनहीनता की हद पार करते हुए कुछ नामी लोग जलसंकट की समस्या का मजाक उड़ाते भी दिखे.
गौरतलब है कि महाराश्ट्र के कई इलाके सूखे की चपेट में हैं, जिस के चलते कई किसानी अपनी फसल और जानवरों के लिए पानी उपलब्ध न कर पाने के चक्कर में प्रशासन से खुदकुषी तक की गुहार लगा चुके हैं. इसी बीच हमारे कर्मठ नेता महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और एनसीपी चीफ शरद पवार के भतीजे अजित पवार बड़ी ही बेशर्मी से प्रैस के सामने कहते दिखते हैं कि जब बांध में पानी है ही नहीं तो क्या पेशाब करके दें पानी?
नेता के बाद हमारे तथाकथित धर्मगुरू आसाराम बापू तो इन से भी दो कदम आगे निकलते हुए महाराश्ट्रª में ही होली के नाम पर सरेआम लाखों टन पानी बहा देते हैं. महात्मा और नेता अगर इतने महान हैं तो हमारे अभिनेता भी भला पीछे रहने वाले हैं. लिहाजा शाहरुख खान अपनी होम प्रोडक्षन की फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस की शूटिंग के डैम से खरीदकर पानी को सिर्फ इसलिए बरबाद करते हैं क्योंकि उन्हें फिल्म के एक एक्षन सीन के लिए मोटरसाइकिल कीचड़ में दौड़ानी हैं.
जिस देश में आम आदमी पानी की एक बूंद के लिए तरस रहा है वहां साधु, नेता और अभिनेता पानी की बरबादी सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इन्होंने अपने जीवन में कभी पानी की किल्लत नहीं देखी. कभी सरकारी नलों या हैंडपंपों में लाइन नहीं लगाई और कभी पानी के लिए मारामारी नहीं की. लेकिन भविश्य में जब पानी जमीन से पूरी तरह खत्म हो जाएगा तब शायद इन्हें अंदाजा होगा कि इन्होंने कितना बड़ा अपराध किया है. बहरहाल अभी इन लोगों का जल संरक्षण से सरोकार नहीं है. राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर जल को बचाने के लिए कोई गंभीर नहीं दिखता यह तो समझ में आता है पर आम आदमी यानी हम इस दिशा में कोई कदम क्यों नही उठाते, यह चिंता की बात है.

हम हैं जिम्मेदार
दरअसल विकास और लालच ने हमें स्वार्थी बना दिया है. नतीजतन अधिकांश नदियों, तालाबों, झील, पोखरों का अस्तित्व मिट गया. एक समय ये सभी माध्यम जल के मुख्य सोर्स हुआ करते थे. लेकिन आज हम इतने लापरवाह हो गए हैं कि हमें भविष्य के खतरे की आहट ही नहीं सुनाई पड़ रही है. वाटर क्राइसेस सर्वे से जुड़ी रिपोर्ट बताती हैं कि भारत में विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी निवास करती है, लेकिन उसके लिए मात्र तीन प्रतिशत पानी ही उपलब्य है. आंकड़े बताते हैं कि विश्व के लगभग 88 करोड लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है. मुंबई और चैन्नई जैसे महानगरों में तो पाइप लाइनों के वौल्व की खराबी के कारण रोज 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है. इस के अलावा हम घरों में ब्रश करते समय, नहाते और कपड़ागाड़ी धोने में बहुत जल बरबाद करते हैं. यदि पानी की एक बाल्टी से काम किया जा सकता है वहां दो बाल्टी पानी का उपयोग होता है. अधिकतर लोगों की यही सोच रहती है कि एक दो बाल्टी ओर खर्च हो जाए तो क्या है? लेकिन वे यह नहीं जानते कि जब एकएक बाल्टी करोड़ों लोग बरबार करते हैं तो कितनी मात्रा में पानी बरबाद होता है.
दरअसल भारत में पानी के प्रबंधन को लेकर कोई जागरूकता नहीं दिखती. बरसात के पानी को संरक्षित करने की दिशा में हम कोई ठोस कदम नहीं उठाते. इसलिए जलवर्शा की हार्वेस्टिंग भी कहींकहीं हो पा रही है. हम पीने वाले पानी और इस्तेमाल करने वाले पानी में अंतर नहीं समझते. कहा जाता है कि एक दौर में तेल को लेकर जंग होती थी अब पानी को लेकर होगी. इस में कोई दोराय नहीं है कि पानी को लेकर छिटपुट लड़ाइयां तो अभी से शुरु हो चुकी हैं. ऐसे में अगर तीसरे विष्वयुद्ध के पानी को लेकर होने की बात कही जाती है तो कोई आष्चर्य नहीं होना चाहिए.


पानी बचाएं ऐसे
आधुनिकता की दौड़ में हम जल के महत्व को सही मायनों में महसूस नहीं कर पा रहे हैं. जबकि जल को बचाए रखना नई पीढ़ी की जिम्मेदारी है. प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत स्तर पर पानी का दुरुपयोग न कर बचत भी करनी चाहिए. समय आ गया है जल संरक्षण और पानी की बचत की दिशा में गंभीर होने का. आवष्यक हो तो पानी का दुरुपयोग रोकने के लिये विदेशों की तर्ज पर कड़े कानून बनाने चाहिए.
आज जरूरत है कि पर्यावरण संरक्षण के साथसाथ निरंतर घटते जल स्तर को बढ़ाया जाए. अंधाधुंध वृक्षों को काटने के बजाए हमें नए पेड़पौधे रोपने होंगे. इस से बारिश होगी और जमीन का गिरता जलस्तर सुधरेगा. बरसात के पानी का संरक्षण भी बेहद जरूरी है. यह पानी जानवरों का पिलाने, फसल की सिंचाई से लेकर कई जरूरी कामों में इस्तेमाल हो सकता है. अगर शुरुआत खुद से की जाए तो दूसरों को भी इसके लिए शिक्षित और प्रेरित किया जा सकता है.
प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि कोई जल का दुरुपयोग कर रहा हो तो उसे उसके दुष्परिणाम बताते हुए ऐसा करने से रोकें. विषेशज्ञ मानते हैं कि जल संकट से नजात पाने के लिए कई कारगर हल हो सकते हैं, जैसे सरकार द्वारा पानी पर टैक्स लगाना या नदियों को समुद्र में मिलने से रोकना. हालांकि यह उपाय सरकार पर आश्रित है. इस के साथ ही किसानों को समझाया जा सकता है कि फसलों को  इस तरीके से लगायें जिससे पानी का न्यूनतम उपयोग हो. सरकार और आम लोग मिलकर ही इस समस्या से नजात पा सकते हैं.
जल का अंधाधुंध और विवेकहीन प्रयोग ही जलसंकट का बससे बड़ा कारण है. यहां कुछ आम तरीके बताएं जा रहे हैं जिन पर यदि हर आदमी अमल करे तो काफी हद तक इस समस्या का समाधान मिल सकता है.

  • टूथब्रश करते समय नल खुला न छोड़ें.
  • टब या शावर के बजाएबाल्टी में नहाने से काफी पानी बचता है.
  • किसी भी पाइप या नल में से पानी टपक रहा है तो उसको ठीक करवाएं.
  • रोज कपड़े धोने से ज्यादा पानी खर्च होता है इसलिए इकठ्ठा कपड़े धोएं.
  • वाशिंग मशीन पर एक साथ जमा कपड़े धोएं बारबार कपड़े धोने से पानी बरबाद होता है.
  • टौयलेट में पानी की टंकी को आधा दबाएं.
  • टौयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में रेत भरकर रख देने से हर बार एक लीटर जल बचता है.
  • पानी को तरीके से गिलास में डालकर ही पीएं.
  • सब्जी, बरतन आदि धोने के बाद जमा पानी को पौधों में डाल दें, या फिर पोंछा, फर्श की धुलाई, कार धोने या टौयलेट आदि में प्रयोग करें.
  • एक सप्ताह में पौधों को पानी दें रोज देने से पौधों की जड़ें कमजोर हो सकती हैं.
  • अपने पालतू जानवरों को गार्डन में नहलाएं, ताकि पानी घास व पौधों को मिल सके.
  • बरसात का पानी जमा करें. इस का पानी कई जरूरी कामों में इस्तेमाल किसा जा सकता है.
  • ग्रामीण इलाकों में धरती में गढ़्डे आदि खोदकर उसमें बरसात का जल जमा किया जा सकता है.
  • गाड़ी धोने के लिए पाइप के बजाए बाल्टी का पानी ही इस्तेमाल करें.
  • नाली को साफ रखें वरना सफाई में बहुत पानी व्यर्थ जाएगा.
  • पानी की समस्या को हल करने में रीसाइकलिंग एक बेहतर विकल्प है.
  • पेंट, थर्मामीटर, कीटनाशक और पारे को नदी, नाले और सीवर में नहीं डालें इससे पानी को रसाइकिल करने में कठिनाई होती है.
  • तकनीक के जरिए खारे जल को शुद्ध कर इस्तेमाल कर सकते हैं.



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