जहां एक तऱफ भारत में पहली बार फॉर्मूला रेसिंग के आयोजन को लेकर लोगों में उत्साह और खुशी है. वहीं बहुत सारे देश ऐसे भी हैं, जहां रफ्तार के इस खेल ने लोगों को मातम में डूबो दिया. जी हां, बात चाहे फॉर्मूला रेस की हो या फिर बाइक रेसिंग की, दोनों ही खेलों ने हाल में कई घरों के चिराग़ बुझा दिए हैं. रफ्तार के नशे से भरे ये खेल इतने घातक कभी नहीं थे, जितने आजकल हैं. जब पिछले दिनों एक हादसे में ब्रिटिश ड्राइवर की मौत हुई थी, तब शायद लोग इस बात से बिल्कुल नावाक़ि़फ थे कि आगे आने वाले समय में यह बेलगाम रफ्तार कई और जानें लेगी. एक हफ्ते में जिस तरह से लगातार दो खिलाड़ियों की मौत हुई है,
उसने कई सवाल ख़ड़े किए हैं. बात चाहे कार रेसिंग में फॉर्मूला की हो या फिर बाइक रेसिंग की. दोनों ही खेलों ने अलग-अलग घटनाक्रमों में दो ऐसे लोगों की जान ली है, जो अपने करियर के बेहतरीन दौर से गुज़र रहे थे. अब सवाल यह है कि जब इस खेल में अनियंत्रित रफ्तार का नशा इतना खतरनाक रूप ले लेता है, तो फिर सुरक्षा के सही इंतज़ाम क्यों नहीं किए जाते हैं. ज़ाहिर सी बात है, अगर एक हफ्ते में दुर्घटनाओं में दो लोगों की मौत हो जाए तो मामले की गंभीरता का अंदाज़ा हर किसी को हो जाना चाहिए. ऐसा नहीं है कि दुर्घटनाएं इससे पहले नहीं हुई. लेकिन पहले के हादसों में चोटें लगती रही है. इसलिए सुरक्षा के मसलों पर इस तरह के सवाल नहीं उठाए गए लेकिन अब सवाल खिलाड़ियों की मौत का है. मामला उठा लास वेगस इंडीकार 300 रेस में ब्रिटिश ड्राइवर डैन व्हेलडन की मौत से. रेस के आख़िरी लैप में 15 कारें जब भिड़ी तो अहसास हो गया था कि दुर्घटना ख़तरनाक है. 77 नंबर की गाड़ी से पहचाने जाने वाले व्हेलडन के आगे चार कारें टकराईं. टक्कर के बाद कारों में आग लग गई. उन दो कारों को बचाने के चक्कर में एक ड्राइवर ने स्पीड कम कर बाएं मुड़ने की कोशिश की तो बायीं तऱफ से आ रही कारें आपस में भिड़ गईं. ऐसा नहीं है कि दुर्घटनाएं इससे पहले नहीं हुईं, लेकिन पहले के हादसों में चोटें लगती रही हैं. इसलिए सुरक्षा के मसले पर इस तरह के सवाल नहीं उठाए गए,
लेकिन अब सवाल खिलाड़ियों की मौत का है. मामला उठा लास वेगस इंडीकार 300 रेस में ब्रिटिश ड्राइवर डैन व्हेलडन की मौत से. रेस के आखिरी लैप में 15 कारें जब भिड़ीं तो अहसास हो गया था कि दुर्घटना खतरनाक है. 77 नंबर की गाड़ी से पहचाने जाने वाले व्हेलडन के आगे चार कारें टकराईं. टक्कर के बाद कारों में आग लग गई. उन दो कारों को बचाने के चक्कर में एक ड्राइवर ने स्पीड कम कर बाएं मुड़ने की कोशिश की तो बायीं तऱफ से आ रही कारें आपस में भिड़ गईं. व्हेलडन इसी का शिकार बने. उनकी कार कई मीटर तक हवा में उड़ी और फिर किनारे लगी बाड़ से टकरा गई, जिससे उसमें आग लग गई. इमरजेंसी गाड़ियां तुरंत ट्रैक पर पहुंचीं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. व्हेलडन बुरी तरह झुलस चुके थे. हेलीकॉप्टर से उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां दो घंटे बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. ग़ौरतलब है कि डेन व्हेलडन दो बार इंडियाना पोलिज 500 के चैंपियन रह चुके हैं. इसके अलावा वह 16 बार इंडी कार रेस जीत चुके हैं. हालांकि इससे पहले 2006 में वह एक और बड़े हादसे का शिकार हुए थे. उन्हें कहां पता था कि करियर के चरम पर जिस रफ्तार से वह आगे ब़ढ रहे हैं, वही रफ्तार एक दिन उन्हें इस ट्रैक से हमेशा के लिए अलविदा कर देगी. अभी डैन व्हेलडन की मौत का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक बार फिर से रफ्तार ने एक और रेसर की जान ले ली.
इस बार का हादसा कार रेस का ट्रैक न होकर बाइक रेसिंग ट्रैक का था. इस बार दुर्घटना का शिकार बने इटली के बाइक रेसर मार्को सिमोनसेली. अजीब संयोग है, 2008 में मलेशिया के जिस सर्किट पर सिमोनसेली वर्ल्ड चैंपियन बने थे, उसी ट्रैक पर उन्होंने अपने जीवन की आ़िखरी रेस पूरी की. मार्को अभी 24 साल के ही थे. मार्को सिमोनसेली मलेशियन मोटो जीपी के दूसरे ही लैप में हादसे का शिकार हो गए. तीखे मोड़ पर बाइक सिमोनसेली के नियंत्रण से बाहर हो गई. उनके पीछे चल रहे अमेरिकी बाइकर कॉलिन एडवडर्स और इटली के वैलेटिनो रोसी की त़ेज रफ्तार मोटरसाइकिलें पलक झपकने से पहले ही सिमोनसेली से टकरा गईं. एडवडर्स की मोटरसाइकिल ट्रैक पर फिसल रहे सिमोनसेली के सिर और धड़ से टकराई. टक्कर कितनी ज़ोरदार थी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब टक्कर हुई तो सिमोनसेली का हेलमेट उनके सिर से निकलकर दूर छटक गया. उनके साथी प्रतियोगी भी इस टक्कर में ट्रैक पर फिसले, लेकिन उन्होंने अपना नियंत्रण नहीं खोया, लेकिन इस मामले में मार्को बहुत ज़्यादा भाग्यशाली नहीं रहे. अभी हाल की बात की जाए तो फॉर्मूला वन ड्राइवर रॉबर्ट कूबिका भी इस रफ्तार के शिकार हो चुके हैं, लेकिन वह स़िर्फ जख्मी ही हुए थे.
सही समय पर उनको सुरक्षित बचा लिया गया. ये तीनों घटनाक्रम तो अभी ताज़ा हैं, लेकिन इससे पहले भी कई खिलाड़ी अलग-अलग प्रतियोगिताओं में जख्मी हो चुके हैं. इन हादसों से सुरक्षा पर सवाल तो खड़े हुए हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा असर इन खेलों से जुड़े अन्य खिलाड़ियों पर पड़ा है. इन दुर्घटनाओं के कारण उनके मनोबल टूटा है. इस तरह की घटनाओं के लिए अकेले सुरक्षा व्यवस्था ही ज़िम्मेदार नहीं है, क्योंकि ऐसा भी नहीं है कि सुरक्षा को लेकर तकनीक और मानक बेहतर नहीं हुए हैं. दरअसल, इस तरह के तेज़ रफ्तार वाले खेलों में जोख़िम तो हमेशा ही बना रहता है. रेस जीतने का जुनून और कुछ भी कर गुज़रने की चाहत में खिलाड़ी भी तेज़ी के नशे में कुछ यूं चूर हो जाते हैं कि नशा उतरते-उतरते किसी बड़े हादसे का शिकार हो जाते हैं. इसी नशे का नतीजा है कि 2006 से अब तक मोटरसाइकिल रेसों में पांच रेसरों की मौत हो चुकी है तथा 20 से ज़्यादा बुरी तरह घायल हुए हैं. इन्हीं कारणों से बदलाव की बात चल रही है. इस रेस के बड़े आयोजकों में शुमार मोटो जीपी का कहना है कि 2012 से सभी टीमों के लिए एक समान तकनीकी मानक बनाए जाएंगे. कोई भी टीम किसी भी तरह के बदलाव कर इंजन की क्षमता 1000 सीसी से ज़्यादा नहीं कर सकेगा.
टायर, सिलेंडर, वज़न और पिस्टन को लेकर सभी टीमों को एक नियम मानना होगा. अब मोटर जीपी जिन बदलावों की बात कर रहे हैं, उससे इतना तो सा़फ हो जाता है कि दुर्घटनाओं को रोकने का समाधान जो 2012 से लागू किए जाने की बात हो रही है, वो पहले भी हो सकती थी. ऐसा होने से हम इतने युवा और होनहार खिलाड़ियों को खोने से तो बच जाते.
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