Sunday, November 13, 2011

क्या यह आर्थिक शक्ति का अश्लील प्रदर्शन है !



आख़िरकार तमाम ब्रेकरों को पार करते हुए बुद्धा सर्किट में फॉर्मूला वन रेस का महाआयोजन संपन्न हो गया. रेस के बाद अंतराष्ट्रीय पॉप स्टार लेडी गागा का शो भी धूमधड़ाके के साथ रात भर चला. हालांकि शुरुआत में रेसिंग ट्रैक पर अचानक कुत्ता घुस जाने, प्रेस कांफ्रेंस के दौरान बिजली गुल होने और मीडिया सेंटर में चमगादड़ उड़ता दिखने के कारण कुछ आशंकाएं ज़रूर उठीं, लेकिन फॉर्मूला वन रेस संपन्न हो गईं. सचिन तेंदुलकर ने हरी झंडी दिखाई, वहीं उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने तीनों विजेता रेसरों को ट्रॉफी से नवाजा. रफ्तार और रोमांच की इस रेस में जर्मनी के 24 वर्षीय सेबस्टियन वेटल सब पर भारी पड़े. रेड बुल टीम के इस विश्व चैंपियन ड्राइवर ने प्रतिष्ठा के अनुरूप प्रदर्शन करते हुए बुद्धा इंटरनेशनल सर्किट पर आयोजित पहली इंडियन ग्रां प्री जीत ली. 

मैक्लारेन के ड्राइवर ब्रिटेन के जेंसन बटन दूसरे और फेरारी के  सवार स्पेन के फर्नांडो अलोंसो तीसरे स्थान पर रहे. घरेलू टीम सहारा फोर्स इंडिया के लिए भी यह रेस उपलब्धि भरी रही. इसके ड्राइवर एड्रियन सुतिल ने 9वें स्थान पर रहकर दो अंक अर्जित किए. भारत के दिग्गज फॉर्मूला वन रेसर नारायण कार्तिकेयन ने 17वां स्थान हासिल किया. रेस की शुरुआत से ही वेटल ने बढ़त हासिल की और अंत तक उसे बरक़रार रखा. 60 लैप की इस रेस में कोई भी ड्राइवर उन्हें चुनौती देता नज़र नहीं आया.

 देश-विदेश से आए दर्शकों का उत्साह देखते हुए एफ-वन के बाद बुद्धा इंटरनेशनल सर्किट पर मोटो जीपी मोटरसाइकिल रेस कराने की तैयारी शुरू हो गई है. सूत्रों के मुताबिक़, मार्च 2012 तक लोग मोटरसाइकिल रेस का भी आनंद ले सकेंगे. वहीं अक्टूबर 2012 में फिर एफ-वन रेस का आयोजन होगा. यमुना एक्सप्रेस-वे के किनारे स्थित जेपी स्पोट्‌र्स कांप्लेक्स में एफ-वन ट्रैक के निर्माण के साथ ही मोटरसाइकिल रेस कराने की भी तैयारी शुरू हो गई थी. रेस के लिए कंपनी को अभी इंटरनेशनल मोटो स्पोट्‌र्स से अनुमति नहीं मिल पाई है. कंपनी के अधिकारियों के मुताबिक़, मोटो जीपी की अनुमति जल्द मिल जाएगी

इस तरह के आयोजन में होने वाले फायदे को देखते हुए स्पोट्‌र्स कार कंपनी फरारी ने बुद्धा इंटरनेशनल सर्किट में प्रशिक्षण कार्यक्रम और एक चैलेंजर सीरीज कराने की योजना बनाई है. फरारी स्पा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमेदेव फेलिसा के मुताबिक़, हमारा विचार है कि क्यों न हम भी अपनी चैलेंजर सीरीज रेसिंग प्रतिस्पर्धा और ग्राहक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करें, क्योंकि भारत में एक विश्वस्तरीय ट्रैक उपलब्ध है.

लेडी गागा के शो में जिस तरह ग्लैमर का तड़का लगाती सेलेब्रिटीज नज़र आईं, वैसे तो एकबारगी लगा कि मानों आईपीएल का जश्न मनाया जा रहा हो. ऐसा लगना इसलिए लाज़िमी है, क्योंकि पूरे आयोजन में जिस तरह पैसा, ग्लैमर और पार्टी का कॉकटेल दिखा, उसका ट्रेंड भारत में आईपीएल के फटाफट क्रिकेट ने ही शुरू किया है. आपको याद होगा कि पिछली बार आईपीएल में लेडी गागा की तरह अंतरराष्ट्रीय पॉप सिंगर एकॉन का शो रखा गया था. रेस के बाद हुई पार्टी में लेडी गागा ने जहां एक ओर सभी को लुभाया, वहीं अपने आपत्तिजनक माइक के ज़रिए विवाद भी खड़ा कर दिया. पुरुष जननांग के  आकार के माइक पर अब काफी शोर मच रहा है, लेकिन जो लोग लेडी गागा को जानते हैं, उन्हें उनके इस क़दम से कोई आश्चर्य नहीं होगा.

 गागा के लिए ऐसा विवाद नया नहीं है. वह इससे पहले भी कई बार अश्लीलता की हद पार कर चुकी हैं. गागा पर अमेरिका में पॉप के ज़रिए पॉर्न को बढ़ावा देने के आरोप लगते रहे हैं. उनके कई गाने बच्चों के लिए प्रतिबंधित किए गए हैं. जिस तरह आईपीएल में विभिन्न टीमों के मालिक अपनी-अपनी टीम के साथ मौजूद थे, उसी तरह विजय माल्या और सुब्रतो रॉय समेत कई मालिक अपने टीम रेसरों के साथ ग्रेटर नोएडा में मौजूद थे और साथ में थीं सचिन, शाहरुख, प्रीति, अर्जुन रामपाल, दीपिका, सोनम और अनिल कपूर जैसी हस्तियां. नजारा भी वही और शक्लें भी वही. कुल मिलकार इसे आईपीएल का एक्टेंडेड वर्जन कहा जा सकता है.



ग़ौर करने वाली बात यह है कि बुद्धा सर्किट में फॉर्मूला वन रेस के इस महाआयोजन में केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन को आमंत्रित नहीं किया गया. हालांकि आयोजकों की ओर से कहा गया कि उन्हें पास भेजे गए थे, लेकिन अजय माकन कहते हैं कि उन्होंने आयोजकों को 100 करोड़ रुपये की कर माफी नहीं दी, इसलिए उनके साथ इस तरह का व्यवहार हुआ. बात स़िर्फ वर्तमान खेल मंत्री तक सीमित नहीं है. अभी हाल में जब पूर्व केंद्रीय खेल मंत्री मणिशंकर अय्यर से इस विषय पर चर्चा हुई तो उन्होंने इस फॉर्मूला वन रेस को बेतुका खेल बता डाला. उनके मुताबिक़, रेसिंग बेहद बेतुका खेल है और इससे बड़ी मात्रा में रबर और ईंधन की बर्बादी होती है, जिन्हें आयात करना पड़ता है. फॉर्मूला वन को कर माफी के सवाल पर उन्होंने कहा, यह ट्रैक किसानों से अधिग्रहीत ज़मीन पर बनाया गया है और अधिग्रहण भी औने-पौने दामों पर किया गया. इसके बावजूद एफ वन के आयोजक चाहते हैं कि उन्हें इसके प्रचार-प्रसार के लिए कर में पूरी छूट दे दी जाए. यह कहीं से जायज़ नहीं है. इस तरह के खेलों के लिए टैक्स माफी जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए.

 एफ वन को बेवजह प्राथमिकता दी जा रही है. यह हमारी आर्थिक ताक़त का अश्लील प्रदर्शन है और पता नहीं, हम किस तरह की संस्कृति को प्रोत्साहित करने में लगे हुए हैं. इस बात से सभी वाक़ि़फ हैं कि ऐसे खेलों के आयोजन का मक़सद एक ख़ास वर्ग का शौक पूरा करना होता है, लेकिन इन चकाचौंध भरे कार्यक्रमों की रोशनी तले कितने किसानों और खेतों का ख़ात्मा होता है, उस तऱफ लोगों की नज़र नहीं जाती. जेपी ग्रुप के स्पोट्‌र्स कांप्लेक्स पर नज़र दौड़ाई जाए तो मालूम होगा कि कितना बड़ा भूभाग इस तमाशे की शोभा ब़ढा रहा था. जिस देश में लोग दो जून की रोटी और सिर ढकने के लिए एक छत के लिए तरस रहे हों, वहां ऐसे तमाशों के स्थान पर कई दूसरे महत्वपूर्ण काम किए जा सकते हैं. मणिशंकर की बात भले ही थोड़ी दकियानूसी लगती हो, लेकिन उनकी बातों पर ग़ौर करना चाहिए.

यह ट्रैक किसानों की ज़मीन का औने – पौने दामों पर अधिग्रहण करके बना है. इस तरह के खेलों के लिए टैक्स मा़फी जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए.
- मणि शंकर अय्यर

मैं कोई स्टार-आइटम गर्ल नहीं हूं, जो मुझे निमंत्रण मिले. जब हम उन्हें टैक्स में मा़फी नहीं दे रहे हैं तो उनसे निमंत्रण की उम्मीद भी नहीं कर सकते.
- अजय माकन

Wednesday, November 9, 2011

सोलर लैम्प प्रोजेक्ट : जिंदगी संवारती रोशनी



बचपन से ही विकलांगता से अभिशप्त लोग हमेशा किसी अन्य की मदद के मोहताज रहते हैं. उनके लिए न कोई सरकारी योजनाएं बनाई जाती हैं और न उन्हें सहारा देने के लिए परिवारीजन ही आगे आते हैं. ऐसे में उनका जीवन अभिशप्तता के उस जाल में उलझ जाता है, जिससे बाहर निकलना उनके लिए नामुमकिन होता है. ऐसे में मोरारका फाउंडेशन की महत्वाकांक्षी सोलर लालटेन परियोजना उम्मीद की किरण लिए पूरे परिदृश्य को किस तरह बदल रही है, यह बताने की शुरुआत हम नवलगढ़ के घोड़ीवारा से करते हैं.

 ऊपरी तौर पर तो यह एक सामान्य गांव की परिभाषा गढ़ता दिखाई देता है, लेकिन जब हम इस गांव की नीलम कंवर की दास्तां सुनते हैं तो एक नई और अनोखी तस्वीर दिखाई देती है. नीलम कंवर के पास न तो ज़मीन का कोई टुकड़ा है और न परिवार चलाने के लिए दो जून की रोटी का इंतज़ाम. उसकी मुश्किलें यहीं पर ख़त्म नहीं होती हैं. नीलम अब तक एक आशियाने के लिए तरस रही है और इससे भी बड़ा घाव विकलांगता का. वह बचपन से ही पोलियोग्रस्त है. ऐसे में उसका दु:ख-दर्द हर कोई समझ सकता है, पर यहां कहानी त्रासदी और अभिशाप की नहीं, बल्कि उस वरदान की है, जो उसे मोरारका फाउंडेशन से इस योजना के रूप में मिला है. नीलम की ज़िंदगी में मोरारका फाउंडेशन ने ख़ुशहाली की दस्तक दी है.

 दरअसल मोरारका फाउंडेशन ने विकलांग युवाओं के लिए सौर ऊर्जा के इस्तेमाल और उसे रोज़गार का माध्यम बनाने की एक योजना बनाई, जिसके तहत नीलम का चयन हुआ. ग़रीबी, विकलांगता और बेरोज़गारी की मार जिन लोगों पर पड़ती है, उनके लिए एक ख़ुशहाल जीवन की कल्पना करना बेमानी हो जाता है, लेकिन अगर सोच सही हो और सच्चे मन से प्रयास किया जाए तो बदहाल ज़िंदगी को भी ख़ुशहाल बनाया जा सकता है. शेखावाटी के बेरोज़गार एवं विकलांग युवकों को ही लें, कल तक ज़िंदगी इनके लिए बदरंग और अंधकारमय थी, लेकिन मोरारका फाउंडेशन के एक प्रयास ने इनकी ज़िंदगी में इंद्रधनुषी रंग भर दिए और रोशनी भी. योजना के अंतर्गत फाउंडेशन की ओर से नीलम को एक सौर ऊर्जा पैनल दिया गया और 25 सौर ऊर्जा चालित लालटेन. नीलम को सौर ऊर्जा लालटेन के बारे में बाकायदा प्रशिक्षण भी दिया गया. इससे उसे न स़िर्फ रोज़गार मिला है, बल्कि घोड़ीवारा के आसपास के गांवों के लोगों को भी अंधेरे से निजात मिल गई. इलाक़े के ज़्यादातर गांवों में बिजली आपूर्ति नियमित नहीं है, इसलिए छात्र और किसान नीलम से सौर ऊर्जा चालित लालटेन किराए पर ले जाते हैं. दुकानों के अलावा शादियों-समारोहों के सीजन में भी सौर लालटेनों की मांग बढ़ जाती है. इसके एवज में नीलम को प्रति लालटेन एक रात के 10 रुपये मिल जाते हैं.



 नीलम के मुताबिक़, वह लालटेन किराए पर देकर हर महीने लगभग दो हज़ार रुपये कमा लेती हैं. इसके साथ ही नीलम सौर ऊर्जा के उपयोग से संबंधित जानकारी जुटाकर गांव के लोगों को जागरूक भी कर रही हैं. अगर कोई नीलम से उनकी मुश्किलों के बारे में पूछता है तो वह उसे अपनी इस क़ामयाबी की दास्तां सुना देती हैं. नीलम बताती हैं कि फाउंडेशन की इस पहल ने किस तरह उनके जीवन के अभिशापों को वरदान में तब्दील कर दिया. मोरारका फाउंडेशन का यह कारवां कटरथला में नहीं रुकता. यह एक गांव से दूसरे गांव होते हुए हर उस असहाय युवक-युवती तक पहुंचता है, जिसे सहारे और आत्मनिर्भरता की ज़रूरत है. इसी उद्देश्य से इस बार यह कारवां जा पहुंचा कोलसिया गांव में. इस गांव के राधेश्याम की कहानी नीलम और कालू से अलग नहीं है. राधेश्याम भी पोलियो की चपेट में है. पिता का साया सिर से उठ चुका है. इससे उसकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई. शेखावाटी की नवलगढ़ तहसील के कटरथला गांव निवासी कालू भाट की कहानी भी नीलम जैसी है. कालू भी बचपन से ही विकलांग है. ज़िम्मेदारियों के नाम पर उसके परिवार में 8 सदस्य हैं. वह 9 भाई-बहनों में सबसे बड़ा है. ग़रीबी की वजह से पढ़ाई भी अधूरी रह गई थी. ज़मीन के नाम पर भी कुछ नहीं है.

 पिता मज़दूरी करके किसी तरह परिवार चला रहे थे. नौ सदस्यों वाले इस परिवार के भरण-पोषण का भार कालू पर ही है. एक दौर ऐसा भी आया, जब कालू अपने इस असहाय और नीरस जीवन से तंग आकर कोई भी ़फैसला नहीं कर पा रहा था. इससे पहले कि कालू किसी नतीजे पर पहुंचता, फाउंडेशन ने अपनी इस योजना में उसे भी भागीदार बना लिया. कालू को भी एक सौर ऊर्जा पैनल दिया गया और प्रशिक्षित किया गया. अब कालू को प्रति लालटेन एक रात के 10 रुपये मिल जाते हैं. वह छात्रों को किराए में रियायत भी देता है. आज कालू अपने इस नए रोज़गार से काफी ख़ुश है. अब वह अपने परिवार की सारी ज़िम्मेदारियों का बोझ उठाने के लायक़ हो गया है. आत्मनिर्भर हो चुका कालू अपनी इस नई ज़िंदगी का श्रेय मोरारका फाउंडेशन को देता है. कालू के जीवन का उजाला पूरे परिवार को रोशन कर रहा है. लालटेन को किराए पर देने से कालू को जो आय होती है, उससे वह अपने भाई-बहनों को पढ़ाता है. वह चाहता है कि उसका परिवार उसी की तरह अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे. फाउंडेशन को धन्यवाद देते हुए कालू की मां बनारसी कहती हैं कि इन लोगों ने हमारी बहुत मदद की, अब हम बहुत ख़ुश हैं. मोरारका फाउंडेशन का यह कारवां कटरथला में नहीं रुकता. यह एक गांव से दूसरे गांव होते हुए हर उस असहाय युवक-युवती तक पहुंचता है, जिसे सहारे और आत्मनिर्भरता की ज़रूरत है.

 इसी उद्देश्य से इस बार यह कारवां जा पहुंचा कोलसिया गांव में. इस गांव के राधेश्याम की कहानी नीलम और कालू से अलग नहीं है. राधेश्याम भी पोलियो की चपेट में है. पिता का साया सिर से उठ चुका है. इससे उसकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई. कहने के लिए तो राधेश्याम दसवीं पास है, लेकिन यह आज के स्पर्धा भरे युग में कोई बहुत बड़ी डिग्री नहीं है. नतीजतन, वह बेरोज़गारी की मार का शिकार था. पांच बहनों और मां की ज़िम्मेदारी भी विकलांग राधेश्याम पर है. अपने दोनों पैर गंवा चुके राधेश्याम के कंधों पर इतनी सारी ज़िम्मेदारियों का बोझ है कि अच्छा- खासा कमाने वाला भी हार मान जाए, लेकिन इससे पहले कि उसे किसी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ता, मोरारका फाउंडेशन की इस महत्वाकांक्षी योजना ने उसके जीवन में दस्तक दी. यही दस्तक राधेश्याम को एक मुकम्मल मंजिल तक ले गई. सौर लैंप योजना के तहत राधेश्याम को भी 25 सौर लालटेन और एक सौर ऊर्जा पैनल मिला. इसके अलावा इस बात को ध्यान में रखते हुए कि विकलांगता उसकी पढ़ाई के रास्ते में रोड़ा न बने, फाउंडेशन ने उसे ट्राई साइकिल दी.



 अब वह आसानी से कहीं भी आ-जा सकता है. फाउंडेशन के प्रयासों का नतीजा है कि आज राधेश्याम बाकायदा स्कूल जाकर अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा है. पढ़ाई के साथ-साथ वह लालटेन किराए पर देता है, जिससे उसे हर माह लगभग दो-तीन हज़ार रुपये की आमदनी हो जाती है और वह न स़िर्फ अपने परिवार का भरण-पोषण आसानी से कर लेता है, बल्कि स्वाभिमान के साथ अपनी ज़िंदगी बसर कर रहा है. जाहिर है, अब उसे मदद के लिए किसी का मुंह नहीं ताकना पड़ता. मोरारका फाउंडेशन की इस विकास यात्रा के तीन प्रमुख नायक नीलम कंवर, कालू भाट और राधेश्याम आज मिसाल बनकर पूरे नवलगढ़ में चर्चा का विषय बने हुए हैं. लोग आज तीनों की बदली हुई ज़िंदगी देखकर हैरान हैं और ख़ुश भी.

 इन तीनों की आंखों में एक बेहतर भविष्य का जो सपना पल रहा था, उसे साकार किया एम आर मोरारका फाउंडेशन ने. फाउंडेशन ने अपने इस प्रयोग की सफलता को देखते हुए आसपास के गांवों में भी नीलम, राधेश्याम और कालू जैसे युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की मुहिम शुरू कर दी है. इसके लिए इन तीनों के इस नए रोज़गार का प्रचार किया जा रहा है, पर्चे आदि बांटे जा रहे हैं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस योजना से लाभांवित हों. इतना ही नहीं, अब तो नवलगढ़ तहसील के सभी गांवों को सौर ऊर्जा क्षेत्र बनाए जाने पर विचार किया जा रहा है. मोरारका फाउंडेशन ने अपने अभियान के ज़रिए कई और विकासपरक कार्य किए हैं. पहला काम यह कि बेरोज़गार एवं विकलांग युवाओं को रोज़गार दिलाना. दूसरा, उन लोगों का नज़रिया बदलना, जो अपनी शारीरिक अक्षमता को अभिशाप समझते हैं. इसके अलावा सौर ऊर्जा को रोज़गार के साधन में बदलने का काम एक नसीहत है उन सभी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए, जहां आज भी बिजली की व्यवस्था नहीं है.
 शाम होते ही अंधेरे के आगोश में लुप्त हो जाने वाले इन गांवों में अगर यह योजना लागू की जाती है तो न स़िर्फ वहां रोशनी फैलेगी, बल्कि हर गांव के कालू, नीलम और राधेश्याम जैसे विकलांग, बेरोज़गार और बेसहारा लोगों को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद भी मिलेगी.

Sunday, November 6, 2011

रफ्तार के जानलेवा खेल



जहां एक तऱफ भारत में पहली बार फॉर्मूला रेसिंग के आयोजन को लेकर लोगों में उत्साह और खुशी है. वहीं बहुत सारे देश ऐसे भी हैं, जहां रफ्तार के इस खेल ने लोगों को मातम में डूबो दिया. जी हां, बात चाहे फॉर्मूला रेस की हो या फिर बाइक रेसिंग की, दोनों ही खेलों ने हाल में कई घरों के चिराग़ बुझा दिए हैं. रफ्तार के नशे से भरे ये खेल इतने घातक कभी नहीं थे, जितने आजकल हैं. जब पिछले दिनों एक हादसे में ब्रिटिश ड्राइवर की मौत हुई थी, तब शायद लोग इस बात से बिल्कुल नावाक़ि़फ थे कि आगे आने वाले समय में यह बेलगाम रफ्तार कई और जानें लेगी. एक हफ्ते में जिस तरह से लगातार दो खिलाड़ियों की मौत हुई है,

 उसने कई सवाल ख़ड़े किए हैं. बात चाहे कार रेसिंग में फॉर्मूला की हो या फिर बाइक रेसिंग की. दोनों ही खेलों ने अलग-अलग घटनाक्रमों में दो ऐसे लोगों की जान ली है, जो अपने करियर के बेहतरीन दौर से गुज़र रहे थे. अब सवाल यह है कि जब इस खेल में अनियंत्रित रफ्तार का नशा इतना खतरनाक रूप ले लेता है, तो फिर सुरक्षा के सही इंतज़ाम क्यों नहीं किए जाते हैं. ज़ाहिर सी बात है, अगर एक हफ्ते में दुर्घटनाओं में दो लोगों की मौत हो जाए तो मामले की गंभीरता का अंदाज़ा हर किसी को हो जाना चाहिए. ऐसा नहीं है कि दुर्घटनाएं इससे पहले नहीं हुई. लेकिन पहले के हादसों में चोटें लगती रही है. इसलिए सुरक्षा के मसलों पर इस तरह के सवाल नहीं उठाए गए लेकिन अब सवाल खिलाड़ियों की मौत का है. मामला उठा लास वेगस इंडीकार 300 रेस में ब्रिटिश ड्राइवर डैन व्हेलडन की मौत से. रेस के आख़िरी लैप में 15 कारें जब भिड़ी तो अहसास हो गया था कि दुर्घटना ख़तरनाक है. 77 नंबर की गाड़ी से पहचाने जाने वाले व्हेलडन के  आगे चार कारें टकराईं. टक्कर के बाद कारों में आग लग गई. उन दो कारों को बचाने के  चक्कर में एक ड्राइवर ने स्पीड कम कर बाएं मुड़ने की कोशिश की तो बायीं तऱफ से आ रही कारें आपस में भिड़ गईं. ऐसा नहीं है कि दुर्घटनाएं इससे पहले नहीं हुईं, लेकिन पहले के हादसों में चोटें लगती रही हैं. इसलिए सुरक्षा के मसले पर इस तरह के सवाल नहीं उठाए गए,


 लेकिन अब सवाल खिलाड़ियों की मौत का है. मामला उठा लास वेगस इंडीकार 300 रेस में ब्रिटिश ड्राइवर डैन व्हेलडन की मौत से. रेस के आखिरी लैप में 15 कारें जब भिड़ीं तो अहसास हो गया था कि दुर्घटना खतरनाक है. 77 नंबर की गाड़ी से पहचाने जाने वाले व्हेलडन के आगे चार कारें टकराईं. टक्कर के बाद कारों में आग लग गई. उन दो कारों को बचाने के  चक्कर में एक ड्राइवर ने स्पीड कम कर बाएं मुड़ने की कोशिश की तो बायीं तऱफ से आ रही कारें आपस में भिड़ गईं. व्हेलडन इसी का शिकार बने. उनकी कार कई मीटर तक हवा में उड़ी और फिर किनारे लगी बाड़ से टकरा गई, जिससे उसमें आग लग गई. इमरजेंसी गाड़ियां तुरंत ट्रैक पर पहुंचीं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. व्हेलडन बुरी तरह झुलस चुके थे. हेलीकॉप्टर से उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां दो घंटे बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. ग़ौरतलब है कि डेन व्हेलडन दो बार इंडियाना पोलिज 500 के चैंपियन रह चुके हैं. इसके अलावा वह 16 बार इंडी कार रेस जीत चुके हैं. हालांकि इससे पहले 2006 में वह एक और बड़े हादसे का शिकार हुए थे. उन्हें कहां पता था कि करियर के चरम पर जिस रफ्तार से वह आगे ब़ढ रहे हैं, वही रफ्तार एक दिन उन्हें इस ट्रैक से हमेशा के लिए अलविदा कर देगी. अभी डैन व्हेलडन की मौत का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक बार फिर से रफ्तार ने एक और रेसर की जान ले ली.

 इस बार का हादसा कार रेस का ट्रैक न होकर बाइक रेसिंग ट्रैक का था. इस बार दुर्घटना का शिकार बने इटली के बाइक रेसर मार्को सिमोनसेली. अजीब संयोग है, 2008 में मलेशिया के जिस सर्किट पर सिमोनसेली वर्ल्ड चैंपियन बने थे, उसी ट्रैक पर उन्होंने अपने जीवन की आ़िखरी रेस पूरी की. मार्को अभी 24 साल के ही थे. मार्को सिमोनसेली मलेशियन मोटो जीपी के दूसरे ही लैप में हादसे का शिकार हो गए. तीखे मोड़ पर बाइक सिमोनसेली के नियंत्रण से बाहर हो गई. उनके पीछे चल रहे अमेरिकी बाइकर कॉलिन एडवडर्स और इटली के वैलेटिनो रोसी की त़ेज रफ्तार मोटरसाइकिलें पलक झपकने से पहले ही सिमोनसेली से टकरा गईं. एडवडर्स की मोटरसाइकिल ट्रैक पर फिसल रहे सिमोनसेली के सिर और धड़ से टकराई. टक्कर कितनी ज़ोरदार थी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब टक्कर हुई तो सिमोनसेली का हेलमेट उनके सिर से निकलकर दूर छटक गया. उनके साथी प्रतियोगी भी इस टक्कर में ट्रैक पर फिसले, लेकिन उन्होंने अपना नियंत्रण नहीं खोया, लेकिन इस मामले में मार्को बहुत ज़्यादा भाग्यशाली नहीं रहे. अभी हाल की बात की जाए तो फॉर्मूला वन ड्राइवर रॉबर्ट कूबिका भी इस रफ्तार के शिकार हो चुके हैं, लेकिन वह स़िर्फ जख्मी ही हुए थे.


सही समय पर उनको सुरक्षित बचा लिया गया. ये तीनों घटनाक्रम तो अभी ताज़ा हैं, लेकिन इससे पहले भी कई खिलाड़ी अलग-अलग प्रतियोगिताओं में जख्मी हो चुके हैं. इन हादसों से सुरक्षा पर सवाल तो खड़े हुए हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा असर इन खेलों से जुड़े अन्य खिलाड़ियों पर पड़ा है. इन दुर्घटनाओं के कारण उनके मनोबल टूटा है. इस तरह की घटनाओं के लिए अकेले सुरक्षा व्यवस्था ही ज़िम्मेदार नहीं है, क्योंकि ऐसा भी नहीं है कि सुरक्षा को लेकर तकनीक और मानक बेहतर नहीं हुए हैं. दरअसल, इस तरह के तेज़ रफ्तार वाले खेलों में जोख़िम तो हमेशा ही बना रहता है. रेस जीतने का जुनून और कुछ भी कर गुज़रने की चाहत में खिलाड़ी भी तेज़ी के नशे में कुछ यूं चूर हो जाते हैं कि नशा उतरते-उतरते किसी बड़े हादसे का शिकार हो जाते हैं. इसी नशे का नतीजा है कि 2006 से अब तक मोटरसाइकिल रेसों में पांच रेसरों की मौत हो चुकी है तथा 20 से ज़्यादा बुरी तरह घायल हुए हैं. इन्हीं कारणों से बदलाव की बात चल रही है. इस रेस के बड़े आयोजकों में शुमार मोटो जीपी का कहना है कि 2012 से सभी टीमों के लिए एक समान तकनीकी मानक बनाए जाएंगे. कोई भी टीम किसी भी तरह के बदलाव कर इंजन की क्षमता 1000 सीसी से ज़्यादा नहीं कर सकेगा.

टायर, सिलेंडर, वज़न और पिस्टन को लेकर सभी टीमों को एक नियम मानना होगा. अब मोटर जीपी जिन बदलावों की बात कर रहे हैं, उससे इतना तो सा़फ हो जाता है कि दुर्घटनाओं को रोकने का समाधान जो 2012 से लागू किए जाने की बात हो रही है, वो पहले भी हो सकती थी. ऐसा होने से हम इतने युवा और होनहार खिलाड़ियों को खोने से तो बच जाते.