Monday, October 31, 2011

बड़े आयोजनों का बड़ा फ़र्क़



फॉर्मूला वन रेस के आयोजन से कुछ ही दिनों पहले चौथी दुनिया ने इस आयोजन में आने वाली अड़चनों पर चर्चा की थी. इस रेस में कहीं ब्रेकर तो नहीं शीर्षक से प्रकाशित उस ख़बर में कई बिंदुओं पर आशंका जताई गई थी, मसलन निर्माण कार्य में देरी, मेहमाननवाज़ी और पैसे-ग्लैमर के कॉकटेल को लेकर पैदा होने वाले विवाद आदि. इसके कुछ ही दिनों के बाद फॉर्मूला वन रेस के ट्रैक में एक के बाद एक ब्रेकर आने लगे. पहला ब्रेकर है, यहां की निर्माण और देखरेख व्यवस्था का. उद्घाटन वाले दिन ही यानी 18 अक्टूबर तक सड़क से लेकर स्टॉल तक का कार्य पूरा नहीं हुआ था. हालांकि उस दिन इस तरह की अव्यवस्थाओं को पोस्टरों और बैनरों की आड़ में छिपा दिया गया था. दूसरा ब्रेकर सुप्रीम कोर्ट का वह नोटिस,

 जिसमें फॉर्मूला वन रेस के आयोजन को करमुक्त करने के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से स्पष्टीकरण मांगा गया. जस्टिस डी के जैन की खंडपीठ ने सरकार के साथ-साथ फॉर्मूला वन रेस को आयोजित करने वाले जेपी ग्रुप को भी नोटिस भेजा. इस नोटिस में कोर्ट ने सवाल उठाया कि इवेंट को मनोरंजन कर से छूट क्यों दी गई. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने यह कार्रवाई एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की. इस याचिका में राज्य सरकार की ओर से फॉर्मूला वन रेस के आयोजन को मनोरंजन कर से छूट को चुनौती दी गई थी. हालांकि जवाब में प्रदेश सरकार के प्रवक्ता ने यह ज़रूर कहा कि किसी भी कंपनी को अलग से कोई विशेष छूट अथवा सुविधा नहीं दी गई है. उन्होंने कई और आरोपों का भी खंडन किया. अब असलियत चाहे जो भी हो, लेकिन अगर किसी ने इस प्रकार की याचिका डाली है तो इस मामले को हल्के में नहीं लिया जा सकता है. इस आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि कुछ दिनों बाद राज्य सरकार और जेपी ग्रुप अपने-अपने हिसाब से जवाब देकर अपना दामन बचा लेंगे. एक बेहतरीन उदाहरण देखिए. फीफा वर्ल्डकप का आयोजन इस बार ब्राजील में होना है. फुटबॉल का यह विशाल आयोजन हमेशा दुनिया भर की निगाहों में रहता है, लेकिन वर्ल्डकप के इस आयोजन को लेकर ब्राजील बिल्कुल चिंतित नहीं है. ब्राजील को भी भारत के एफ-1 की तरह 2014 का फुटबॉल वर्ल्डकप कराने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना है

, लेकिन इसके बावजूद पर्याप्त समय का पूरा फायदा उठाते हुए तैयारियां पूरी की जा रही हैं. ताज्जुब की बात यह है कि जिस फॉर्मूला वन रेसिंग ट्रैक के उद्घाटन के दौरान इतनी सारी अनियमितताएं पाई गईं, उसके एफ-1 सर्किट में लगभग 400 मिलियन डॉलर की लागत आई. इसके अलावा इसमें बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों का भी पैसा लगा हुआ है. पता नहीं क्यों, भारत में जब भी कोई खेल आयोजन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होता है, इस तरह के मामले सामने आ जाते हैं. चाहे वह कॉमनवेल्थ का मामला हो या फिर फॉर्मूला रेस का. ऐसा भी नहीं है कि आयोजन समिति को सभी कार्य पूरा करने का पर्याप्त व़क्त नहीं मिलता. यह तो बहुत पहले ही तय हो गया था कि ग्रेटर नोएडा के बुद्धा सर्किट में इस रेस का आयोजन होना है. इस बात से सभी वाक़ि़फ थे कि इस आयोजन में विदेशी दर्शकों की तादाद ज़्यादा होगी. ऐसे में विदेशियों के सामने यह भारत की छवि का भी प्रश्न था, लेकिन पता नहीं, भारत ऐसे आयोजनों में हमेशा इस तरह की विषम परिस्थितियों में क्यों घिर जाता है. रेस तो जैसे-तैसे ख़त्म हो गई, लेकिन आयोजन की मेजबानी को लेकर अपने पीछे बहुत सारे सवाल छोड़ गई. उद्घाटन वाले दिन ही यानी 18 अक्टूबर तक सड़क से लेकर स्टॉल तक का कार्य पूरा नहीं हुआ था. हालांकि उस दिन इस तरह की अव्यवस्थाओं को पोस्टरों और बैनरों की आड़ में छिपा दिया गया था.

 दूसरा ब्रेकर सुप्रीम कोर्ट का वह नोटिस, जिसमें फॉर्मूला वन रेस के आयोजन को करमुक्त करने के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से स्पष्टीकरण मांगा गया. जस्टिस डी के जैन की खंडपीठ ने सरकार के साथ-साथ फॉर्मूला वन रेस को आयोजित करने वाले जेपी ग्रुप को भी नोटिस भेजा. एक बेहतरीन उदाहरण देखिए. फीफा वर्ल्डकप का आयोजन इस बार ब्राजील में होना है. फुटबॉल का यह विशाल आयोजन हमेशा दुनिया भर की निगाहों में रहता है, लेकिन वर्ल्डकप के इस आयोजन को लेकर ब्राजील बिल्कुल चिंतित नहीं है. ब्राजील को भी भारत के एफ-1 की तरह 2014 का फुटबॉल वर्ल्डकप कराने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना है, लेकिन इसके बावजूद पर्याप्त समय का पूरा फायदा उठाते हुए तैयारियां पूरी की जा रही हैं. पहले ऐसी ख़बरें थीं कि फुटबॉल की यह अंतरराष्ट्रीय संस्था तैयारियों की धीमी रफ्तार को लेकर चिंतित है. ख़ास तौर पर स्टेडियमों में सुधार और नए भवनों के निर्माण को लेकर फिक्र जताई गई थी, लेकिन बाद में जब फीफा अध्यक्ष जोसेफ ब्लाटर ने तैयारियों का जायज़ा लिया तो वह पूरी तरह संतुष्ट दिखे. आपको बता दें कि 2014 में होने वाले फीफा वर्ल्डकप के दौरान 12 अलग-अलग शहरों में मैच होंगे. ब्राजील में पिछला वर्ल्डकप 1950 में हुआ था. उसके लिए यह टूर्नामेंट एक और बड़े आयोजन की तैयारियों में फायदेमंद साबित होगा. 2016 में रियो डे जनेरो में ओलंपिक होना है. फिलहाल रियो के माराकाना स्टेडियम में निर्माण कार्य चल रहा है. इसके अलावा साओ पाउलो में इताक्वेराओ एरीना बनाया जा रहा है, इस आयोजन का उद्घाटन समारोह हो सकता है. हालांकि वर्ल्डकप से पहले 2013 में कॉन्फेडरेशन कप होना है, जिसे वर्ल्डकप की ड्रेस रिहर्सल के तौर पर देखा जाता है. इससे एक फायदा यह होता है कि जो थोड़ी-बहुत कमियां रह जाती हैं, वे समय रहते ठीक कर ली जाती हैं. 12 जून से 13 जुलाई 2014 तक होने वाला वर्ल्डकप 20वां फीफा वर्ल्डकप होगा. 1950 के बाद ब्राजील को दूसरी बार वर्ल्डकप के आयोजन का अवसर मिला है. ब्राजील समेत पांच ही देश हैं, जिन्होंने एक से ज़्यादा बार वर्ल्डकप का आयोजन किया है. इससे पहले मेक्सिको, इटली, फ्रांस और जर्मनी ऐसा कर चुके हैं. यह टूर्नामेंट दक्षिण अमेरिका के लिए भी एक बड़ी बात है. 1978 में अर्जेंटीना वर्ल्डकप के बाद पहली बार यह टूर्नामेंट महाद्वीप में हो रहा है. साथ ही ऐसा पहली बार होगा कि वर्ल्डकप लगातार दो बार यूरोप से बाहर हुआ, लेकिन इस बात को लेकर हमेशा पूरी दुनिया आश्वस्त रहती है कि फुटबॉल वर्ल्डकप का आयोजन बहुत धूमधाम से होगा. क्या दुनिया भारत के संदर्भ में भी इसी तरह आश्वस्त रहती है? शायद नहीं. अब यहां पर दो तस्वीरें हैं, एक ब्राजील की और दूसरी भारत की. दोनों ही देश बड़े आयोजनों की मेजबानी की तैयारियों को लेकर चर्चा में हैं, लेकिन दोनों तस्वीरों में कितना फर्क़ है!

Sunday, October 23, 2011

मुंबई इंडियंस : चैंपियंस के चैंपियंस



अभी हाल ही चेन्नई में ट्‌वेंटी-20 चैंपियंस लीग में मुंबई इंडियंस ने अपनी बादशाहत कायम कर ली. यह पहला मौक़ा था, जब मुंबई इंडियंस ने ट्‌वेंटी-20 का फाइनल जीतकर खिताब पर क़ब्ज़ा किया. नया विजेता बनकर जब मुंबई इंडियंस चेन्नई में चैंपियंस लीग के फ़ाइनल मुक़ाबले में अपनी जीत के क़रीब पहुंच रहा था, तब उस व़क्त उसके पास अपना सबसे बड़ा स्टार यानी मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर भी नहीं था. इसके बावजूद हारी हुई बाजी को मुंबई इंडियंस ने जिस तरह जीत में बदला, वह काबिले तारी़फ था.

 मुंबई इंडियंस ने जब रॉयल चैलेंजर बंगलुरु को 31 रनों से हराकर ट्रॉफ़ी अपने नाम की, तब जाकर यक़ीन आया कि वही असली विजेता है. वरना किसने सोचा था कि जिस खिलाड़ी को अभी-अभी टीम से बाहर का रास्ता दिखाया गया है, वह इस कदर जीत का जज़्बा दिखाते हुए चयनकर्ताओं को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर देगा. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जब यह लीग मुक़ाबला शुरू हुआ था, तब सभी ने मुंबई इंडियंस के प्रदर्शन को लेकर कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की थीं. सभी का यही कहना था कि टीम में न तो सचिन हैं और न रोहित शर्मा और मुनाफ़ पटेल. कोई भी टीम अपने किसी एक खिलाड़ी के आउट ऑफ फॉर्म होने पर चिंता में पड़ जाती है. अगर तीन-तीन खिलाड़ी बाहर हों तो टीम के बाक़ी सदस्यों के मनोबल पर क्या फर्क़ पड़ता होगा, इसका सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है, लेकिन ऐसे व़क्त में जिस तरह टर्मिनेटर हरभजन की कप्तानी में युवा खिलाड़ियों ने फ़ाइनल तक का सफ़र तय किया, वह काफी कुछ सकारात्मक संदेश दे जाता है. साथ ही इस बात की भी तस्दीक करता है कि अगर टीम में जीत की भूख हो तो फिर किसी भी हाल में जीत आपके दामन में आकर ही रहेगी. मुंबई इंडियंस की जीत के बाद जब नीता अंबानी से बात की गई तो उनकी जीत की ख़ुशी में युवाओं के जोरदार प्रदर्शन का दम बोल रहा था. हालांकि वह इस बात से इंकार नहीं कर रही थीं कि सचिन की ग़ैर मौजूदगी से मनोबल में थोड़ी कमी आई थी

. उन्होंने कहा कि सचिन भले ही मैदान में नहीं थे, पर उनकी मौजूदगी दुआ और टीम के खिलाड़ियों को सलाह के रूप में हर व़क्त हमारे साथ थी. वह इस जीत के लिए हरभजन की तारी़फ करती हैं कि उन्होंने जिस तरह मुश्किल वक्त में अपनी नेतृत्व क्षमता का दम दिखाया, उसका कोई जवाब नहीं. अगर मैच की बात करें तो कप्तान हरभजन सिंह और युजवेंद्र चहल की बेहतरीन गेंदबाज़ी के आगे बंगलुरु का कोई भी बल्लेबाज़ कहीं नहीं टिक सका. पहले बल्लेबाज़ी करते हुए मुंबई की टीम केवल 139 रनों का स्कोर ही खड़ा कर पाई थी. बंगलुरु की शुरुआत अच्छी नहीं रही. क्रिस गेल 5 रनों पर आउट हुए, जबकि तिलकरत्ने दिलशान ने 27 रन बनाए. गेल का विकेट कप्तान हरभजन सिंह ने लिया, वहीं दिलशान को मलिंगा ने आउट किया. हरभजन ने ही बंगलुरु के कप्तान डेनियल विटोरी को एक रन के निजी स्कोर पर 17वें ओवर में पवेलियन भेज दिया. विराट कोहली को भी 11 रनों के बाद खेलने का मौक़ा नहीं दिया. इसके तुरंत बाद किरोन पोलार्ड ने मोहम्मद कैफ को 3 रनों पर आउट किया. यहीं से मैच पूरी तरह मुंबई के पाले में आ चुका था. बंगलुरु को सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब तूफ़ानी बल्लेबाज़ क्रिस गेल हरभजन सिंह की गेंद पर एलबीडब्ल्यू हो गए.

दिलशान और गेल के जाने से मुंबई इंडियंस के गेंदबाज़ों के हौसले काफ़ी बढ़ गए. मयंक अग्रवाल भी 14 रनों पर सस्ते में ही निपट गए. उस समय बंगलुरु का स्कोर था चार विकेट पर 73 रन. मुंबई को नियमित समय पर विकेट मिलते गए, जबकि बंगलुरु के लिए रन रेट बढ़ता गया. अरुण कार्तिक खाता भी नहीं खोल पाए तो कैफ़ ने मात्र तीन रन जोड़े. विटोरी को हरभजन ने एक रन पर आउट कर दिया. अंतिम ओवरों में रन रेट करीब 15 प्रति ओवर पहुंच गया था. 18वें ओवर में अबू अहमद की गेंद पर सौरभ तिवारी के आउट होने के बाद तो बंगलुरु की उम्मीदें ख़त्म हो गईं. बंगलुरु की पूरी टीम 19.2 ओवरों में 108 रन बनाकर आउट हो गई. हरभजन सिंह ने तीन विकेट लिए तो मलिंगा और अबू अहमद की झोली में दो विकेट गए. मुंबई इंडियंस के कप्तान हरभजन सिंह को मैन र्ऑें द मैच का अवॉर्ड दिया गया और लसिथ मलिंगा को मैन ऑफ़ द सीरीज. सबसे ज़्यादा विकेट लेने का ख़िताब भी मलिंगा को ही दिया गया. खराब फॉर्म के कारण टीम इंडिया से बाहर चल रहे हरभजन सिंह ने चैंपियंस लीग टी-20 मैच में वह एक अहम विकेट लिया, जिसके बाद टीम की जीत लगभग तय हो गई. क्रिकेट के जानकारों की मानें तो मुंबई इंडियंस ने चेन्नई में खेले गए दूसरे सेमी फाइनल में सोमरसेट को हराकर ट्‌वेंटी-20 चैंपियंस लीग के फाइनल में जगह बना ली और उसके बाद उसकी जीत के आसार बढ़ गए थे.

वह मैच मुंबई इंडियंस ने 10 रनों से जीता था. कुल मिलाकर मुंबई इंडियंस की जीत काफी कुछ कह जाती है. यह उन टीमों के लिए एक सबक है, जो अपनी हार का ठीकरा खिलाड़ियों की कमी, उनकी चोटों और उनके फॉर्म में न होने पर फोड़ती हैं. इस जीत के साथ अगर किसी के हौसले सबसे ज़्यादा बुलंद हुए तो वह हैं हरभजन सिंह. अब वह टीम में वापसी के लिए एक बार फिर से फॉर्म में आ जाएंगे. 

Wednesday, October 19, 2011

भारत में पहली बार फॉर्मूला रेस : कहीं इसमें कोई ब्रेकर तो नहीं




आगामी 30 तारी़ख को कई भारतीय शूमाकर फॉर्मूला ट्रैक पर रेसिंग करते दिखाई देंगे. यह रेस इस बार भारतीय मेजबानी के तहत ग्रेटर नोएडा के बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट पर होगी. यह भारत के लिए पहला मौक़ा होगा, जब इस देश में फॉर्मूला रेस होगी. खैर, जब इस माह के आ़खिर में ग्रेटर नोएडा के इस सर्किट में फॉर्मूला-1 कारें 320 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ेंगी तो हर भारतीय के चेहरे पर गौरव भरी मुस्कान ज़रूर फैलेगी. अब तक इस रेस को हम भारतीयों ने ज़्यादातर विदेशी खेल चैनलों पर ही देखा होगा और इसमें भाग लेने वाले खिलाड़ियों में नारायण कार्तिकेयन जैसे इक्का-दुक्का रेसर को छोड़कर ज़्यादातर अंग्रेज प्रतियोगी ही दिखाई देते हैं. यह खेल उन संभ्रात खेलों में से है, जिनके लिए कहा जाता है कि इन खेलों को भारतीय अफोर्ड नहीं कर सकते हैं. मसलन गोल्फ, विलियड्‌र्स, फुटबॉल, आइस हॉकी वगैरह-वगैरह. लेकिन जबसे भारत में फॉर्मूला रेस के आयोजन को लेकर चर्चाएं हुई हैं, तभी से खेल जगत में इसे एक बड़े अचीवमेंट के तौर पर देखा जा रहा है. यकीनन, भारत इस व़क्त स्पोट्‌र्स रेवोलूशन से गुज़र रहा है. खेल जगत में जबसे ग्लैमर और पैसे का तड़का लगा है, तभी से हर बड़ा आयोजक हर खेल की कायापलट करने में लगा है. क्रिकेट के टी-20 और आईपीएल संस्करण इस बात की तस्दीक कर ही रहे हैं.

इससे पहले हम भारत में कई बड़े आयोजनों में घोटालों की खबरें सुनते आए हैं. जब कोई आयोजन इतने बड़े स्तर पर होता है, तो ज़ाहिर तौर पर ज़िम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. इस पर देश का मान-सम्मान भी दांव पर लग जाता है. यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब ऐसा आयोजन भारत में पहली बार हो रहा हो. इस फॉर्मूला रेस से भारत भी कई तरह की उम्मीदें लगाए बैठा है. जैसे खेल बढ़ेगा, टूरिज्म बढ़ेगा और व्यापार बढ़ेगा, लेकिन अगर आयोजन और सुविधाओं में राष्ट्र मंडल खेलों की तरह कहीं फिर से अनियमितताओं और घोटालों की छाया पड़ी तो विश्व पटल पर भारत की एक बार फिर से भद्द पिट सकती है

इस आयोजन का थोड़ा-बहुत श्रेय भारतीय ओलंपिक एसोसिएशन (आईओए) के पूर्व अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को भी जाता है. ग़ौरतलब है कि उन्होंने ही भारत में फॉर्मूला-1 रेस कराने के लिए वर्ष 2007 में बर्नी एकल्सटन को आमंत्रित किया था. एकल्सटन फॉर्मूला-1 मैनेजमेंट और एडमिनिस्ट्रेशन के मुख्य कार्याधिकारी हैं. उन्होंने भारत आकर यहां की स्थितियों का जायज़ा लिया, उसके बाद इस आयोजन की प्रक्रिया आगे बढ़ी. एकल्सटन के मन मुताबिक़ ही 5.14 किलोमीटर का बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट ट्रैक डिजाइन किया गया है. यह रेसिंग सर्किट ट्रैक 865 एकड़ ज़मीन पर है. इसके लिए 300 इंजीनियरों के निर्देश पर क़रीब 6000 कामगारों ने काम किया. नई दिल्ली से 40 किलोमीटर दूर बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट बनाया गया है. भारत में होने वाली पहलीफॉर्मूला-1 रेस 19 रेस वाले सीजन की 17वीं रेस होगी. ग़ौरतलब है कि इस ट्रैक को जर्मन आर्किटेक्ट हेरमान टिल्के ने बनाया है.


एकल्सटन वैश्विक रुझानों की गहराइयों को बहुत बारीकी से समझने की क्षमता रखते हैं. इससे पहले वह मलेशिया, सिंगापुर, चीन, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड में ऐसे आयोजनों को सफलता दिला चुके हैं. अब देखना यह होगा कि उनका यह जादू भारत में भी चलेगा या नहीं. इतना तो तय है कि आयोजक देश को भी इससे फायदे होंगे. ऑस्ट्रेलिया में एफ-1 के 10 सालों के दौरान एक अरब डॉलर का सकल आर्थिक फायदा हुआ और 28,000 नौकरियों के मौके भी मिले. वहीं बहरीन में एफ-1 रेस पर्यटन उद्योग के लिए आमदनी के सबसे बड़े स्रोतों में शुमार है. इसलिए संभव है कि ग्रेटर नोएडा के आसपास के  सभी होटल रेस के दौरान भर जाएं, लेकिन इसमें थोड़ा पेंच है. ग़ौरतलब है कि यह ट्रैक दिल्ली से 40 किलोमीटर दूर ग्रेटर नोएडा में बनाया गया है. ग्रेटर नोएडा एक नया शहर है. इसलिए वहां अच्छे होटलों की संख्या ज़्यादा नहीं है. ऐसे में मेहमानों को दिल्ली में ही रुकना होगा. इस आयोजन में शामिल होने वाली सभी 12 टीमें करीब 100-100 लोगों के दल के साथ आएंगी. इसके अलावा एफ-1 से जुड़े 500 अधिकारियों और 10,000 मेहमानों के भी आने की उम्मीद है.

ज़ाहिर है, इस दौरान 11,500 कमरों की ज़रूरत होगी. अब ऐसे में समस्याओं का होना लाज़िमी है. दिल्ली से ग्रेटर नोएडा का 40 किलोमीटर का स़फर कई बार तो दो से भी ज़्यादा घंटे में पूरा होता है, क्योंकि इस रास्ते पर ट्रैफिक की हालत बहुत खराब है. इसलिए मेहमानों को परेशानी हो सकती है. इसके अलावा हवाई किराए में उछाल भी एक बड़ी समस्या हो सकती है. हाल में किराए में औसतन 25 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. एक और विवाद सामने आया है, कस्टम विभाग और आयोजकों के बीच. सरकार और फॉर्मूला-1 रेस के आयोजकों में इस नई अनबन से आयोजन आशंकाओं में घिर गया है. कस्टम विभाग का कहना है कि फॉर्मूला-1 एयरटेल इंडियन ग्रां प्री के आयोजकों को रेस के लिए आने वाले सभी उपकरणों पर 100 प्रतिशत ड्यूटी अग्रिम चुकानी होगी. जबकि आयोजक इसमें कुछ छूट चाहते हैं. खैर, यह विवाद तो हल हो जाएगा, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस आयोजन में भी ओलंपिक, राष्ट्रमंडल और क्रिकेट वर्ल्डकप की तरह धन की बरसात होगी.


एक सर्वे के मुताबिक़, इस एफ-1 रेस को 50 करोड़ दर्शक स़िर्फ टेलीविजन पर मिलेंगे. इस लिहाज़ से यह फुटबॉल वर्ल्डकप से थोड़ा ही पीछे है. क़रीब 24 एशियाई देशों में एफ-1 रेस के प्रसारण का अधिकार ईएसपीएन के पास है. ईएसपीएन के मुताबिक़, हर रेस के दौरान मिलने वाले 800 विज्ञापन सेकेंड का समय लगभग बिक चुका है. इस चैनल ने 10 सेकेंड के स्लॉट के लिए कंपनियों से 1,50,000 रुपये की दर से रकम वसूली है. हालांकि यह क्रिकेट वर्ल्डकप के फाइनल मैच के लिए 6,00,000 रुपये की दर से बेचे गए विज्ञापन स्लॉट के मुक़ाबले का़फी कम है, लेकिन एक लाइफ स्टाइल स्पोट्‌र्स के लिए यह बुरा नहीं है. वह भी तब, जब यह अपने शुरुआती चरण में हो. कई कंपनियों ने अपने स्लॉट बुक कराए हैं. खास तौर पर सोनी, सैमसंग, एमआरएफ, सेल और टाटा मोटर्स आदि के नाम शामिल हैं. चैनल को उम्मीद है कि इंडियन ग्रां प्री के दौरान दर्शकों की तादाद में कम से कम 20 फीसदी इज़ाफा होगा. इसके टिकटों की कीमत 25,000 से 35,000 रुपये तक रखी गई है. बुकमाईशो डॉट कॉम के सीईओ आशीष हेमरजनी का कहना है कि उनकी वेबसाइट पर पहले 3 घंटे में ही 1.5 करोड़ रुपये के टिकट बिके. ज़्यादातर बुकिंग दिल्ली और उसके आसपास के इलाक़ों से हुई है. इसके अलावा मुंबई और चेन्नई के दर्शकों ने भी अपनी सीट बुक कराई है. अब तक करीब 2500 टिकट बेचे जा चुके हैं. अनुमान है कि टिकट से ही क़रीब 75 करोड़ रुपये की कमाई होगी. इनमें कॉरपोरेट बॉक्स भी शामिल हैं. करीब 55 कॉरपोरेट बॉक्स बनाए गए हैं और प्रत्येक की कीमत 35 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपये तक है. जेपीएसआई के मुताबिक, ज़्यादातर की बुकिंग हो चुकी है. बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान, जे के टायर और भारती एयरटेल जैसी कंपनियों ने भी बुकिंग कराई है. कुल मिलाकर इस आयोजन में कई लोगों के वारे-न्यारे होंगे.

लेकिन इन सबसे इतर एक बड़ा सवाल यह है कि भारत इस तरह के आयोजन को किस हद तक संभाल पाएगा. इससे पहले हम भारत में कई बड़े आयोजनों में घोटालों की खबरें सुनते आए हैं. जब कोई आयोजन इतने बड़े स्तर पर होता है, तो ज़ाहिर तौर पर ज़िम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. इस पर देश का मान-सम्मान भी दांव पर लग जाता है. यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जब ऐसा आयोजन भारत में पहली बार हो रहा हो. इस फॉर्मूला रेस से भारत भी कई तरह की उम्मीदें लगाए बैठा है. जैसे खेल बढ़ेगा, टूरिज्म बढ़ेगा और व्यापार बढ़ेगा, लेकिन अगर आयोजन और सुविधाओं में राष्ट्र मंडल खेलों की तरह कहीं फिर से अनियमितताओं और घोटालों की छाया पड़ी तो विश्व पटल पर भारत की एक बार फिर से भद्द पिट सकती है


माल्या की फोर्स इंडिया का जलवा

भारत की एकमात्र फॉर्मूला वन टीम यानी उद्योगपति विजय माल्या की फोर्स इंडिया भी इस खेल में अपना जौहर दिखाएगी. 2007 में बनी यह टीम इस बार के फॉर्मूला रेस आयोजन में विजय माल्या की तऱफ से भारत का प्रतिनिधित्व करेगी. गौरतलब है कि 29 रेसों में कोई चैंपियनशिप अंक हासिल करने में नाकाम रही फोर्स इंडिया को 2009 में उस व़क्त कामयाबी मिली थी, जब बेल्जियम की ग्रां प्री में जियानकार्लो फिजिकेला दूसरे स्थान पर आए. अभी इस टीम के चालक एड्रियन सुटिल और पॉल डी रेस्टा हैं, जबकि नीको ह्युलकेनबर्ग को अतिरिक्त चालक के तौर पर रखा गया है. फोर्स इंडिया के प्रशंसकों की तरह माल्या को भी 2009 के बेल्जियम की ग्रां प्री याद है, जब उनकी टीम ने पहले तीन में जगह बना ली थी. अब समर ब्रेक के बाद इस महीने के आ़िखरी में बेल्जियम से ही फॉर्मूला वन के सीजन की शुरुआत होगी.

ये हैं भारत के रेसर

वैसे तो फॉर्मूला रेसिंग से भारत का कोई विशेष वास्ता नहीं है, लेकिन फिर भी कुछ नाम हैं, जो विश्व में फॉर्मूला रेसर भारतीयों का ज़िक्र कराते रहते हैं. यह अलग बात है कि अब तक इनमें से किसी ने भी भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व नहीं किया. 2005 में जब भारतीय चालक नारायण कार्तिकेयन ने जॉर्डन टीम के लिए गाड़ी दौड़ाई तो भारत में लोगों का ध्यान इस खेल की तरफ गया. जॉर्डन टीम तो अब नहीं रही, लेकिन उसने भारत में फॉर्मूला वन को लेकर दिलचस्पी ज़रूर पैदा कर दी. कार्तिकेयन स्पेन की हिस्पानिया रेसिंग टीम के साथ हुए क़रार के बाद 2011 में सर्किट पर लौटे. भारतीय करुण चंढोक ने भी पिछले साल हिस्पानिया के लिए गाड़ी दौड़ाई, लेकिन वह साल भर में 12 प्रतियोगियों में 11वें स्थान पर रहे. इस बार बुद्ध सर्किट ट्रैक पर इनके जलवों का इंतजार रहेगा.

Wednesday, October 12, 2011

कंट्रोवर्शियली योर्स : एक हीरो का विलेन बनना




कुछ तैराक ऐसे होते हैं, जो मझधार में तो ख़ूब तैरते हैं, पर किनारे आकर डूब जाते हैं और कुछ, जो मझधार से लेकर किनारे तक डूबते- तैरते रहते हैं, लेकिन आख़िर में बुरी तरह से डूबते हैं. रावलपिंडी एक्सप्रेस के नाम से मशहूर शोएब अख्तर उन तैराकों में आते हैं, जो मझदार से लेकर किनारे तक डूबते ही रहते हैं. दरअसल, यह खिलाड़ी कभी भी अपने करियर की नैया संतुलित नहीं रख पाया. जब-जब विवादों की लहरें आईं, यह खिलाड़ी ख़ुद को संभाल ही नहीं पाया और करियर की डांवाडोल कश्ती पर जैसे ही इसने अपनी किताब कंट्रोवर्सियल योर्स का वजन डाला, पूरी तरह से डूब गया.

अब इस गेंदबाज़ को शायद ही कोई सलीके से याद कर पाए. जब भी इस रावलपिंडी एक्सप्रेस की चर्चा होगी तो एक विवादास्पद खिलाड़ी की छवि उभर कर सामने आ जाएगी. हांलाकि अपने करियर के दौरान ज़्यादातर विवादों के लिए वह ख़ुद ही ज़िम्मेदार रहे. बातें चाहे डोपिंग की हों या खिलाड़ियों से झड़प की, पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड के अधिकारियों को उल्टा-सीधा कहने का मामला हो या फिर खेल भावना का सम्मान न करने का, शोएब अख्तर लगभग हर मामले में पूरी तरह असंतुलित रहे. उन पर गेंद से छेड़छाड़ के आरोप लगे, उनके ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई हुई और डोपिंग के आरोप लगे. अपने साथी खिलाड़ी मोहम्मद आसिफ़ को बल्ले से मारने के मामले में भी उनकी काफ़ी आलोचना हुई. इसके अलावा शोएब अख्तर लंबे समय तक अपनी फ़िटनेस की समस्या से भी जूझते रहे. एक तऱफ फिटनेस की समस्या और दूसरी तऱफ विवादों का पिटारा, दोनों ने इस खिलाड़ी के करियर पर ऐसा ग्रहण लगाया, जिससे शोएब अख्तर कभी उबर ही नहीं पाए.

अभी हाल ही में शोएब अख्तर ने अपनी आत्मकथा कंट्रोवर्शियली योर्स में सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ समेत कई क्रिकेटरों की क़ाबिलियत पर सवाल उठाए. उन्होंने कोलकाता नाइट राइडर्स के मालिक शाहरुख ख़ान और आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी पर धोखाधड़ी का भी आरोप लगाया. उनका दावा है कि तेंदुलकर और द्रविड़ मैच विजेता नहीं हैं और न वे मैच जीतकर समाप्त करने की कला जानते हैं. अपनी किताब में अख्तर लिखते हैं कि फ़ैसलाबाद की पिच पर सचिन तेंदुलकर उनकी तेज़ गेंदों का सामना करने से डरते थे. सचिन तेंदुलकर ने पूर्व पाकिस्तानी गेंदबाज़ शोएब अख्तर के इन दावों पर टिप्पणी करने से इंकार कर दिया है. रावलपिंडी एक्सप्रेस ने अपनी आत्मकथा में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) में भेदभाव, बोर्ड के अक्खड़ रवैये, अपनी बेइज़्ज़ती, गेंद से छेड़छाड़ और साथी खिलाड़ियों पर हमला करने समेत कई घटनाओं का जिक्र किया है. शोएब ने पीसीबी में राजनीति के बारे में भी लंबी बात की है. वह ड्रेसिंग रूम में होने वाले टीम के झगड़ों का ख़ुलासा भी करते हैं.


शोएब ने वसीम अकरम पर अपना करियर चौपट करने की कोशिश करने के आरोप लगाए और यह भी कहा कि पूर्व कप्तान शोएब मलिक पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के पिट्ठू हैं. उनका आरोप है कि इन लोगों ने उन्हें हतोत्साहित करने की पूरी कोशिश की. 1999 में एशियन टेस्ट चैंपियनशिप के कोलकाता टेस्ट में अकरम और वकार के बीच हुए विवाद का जिक्र करते हुए शोएब लिखते हैं कि दिल्ली टेस्ट हारने के बाद ही अकरम वकार से उलझ गए थे और यह विवाद इस स्तर पर पहुंच गया कि वकार को वापस स्वदेश भेजे जाने जैसी अफवाहें फैलने लगी थीं. तब पूरी टीम पहले टेस्ट के लिए कोलकाता रवाना हुई, लेकिन वहां ड्रेसिंग रूम का माहौल बिगड़ गया था. शोएब का यहां तक कहना है कि अकरम ने उन्हें अंतिम एकादश में चुने जाने पर टीम छोड़ने तक की धमकी दे डाली थी. उपरोक्त सभी दावों की सच्चाई तो शोएब ही जानते होंगे, लेकिन उन्हें इस बात का जवाब ख़ुद खोजना होगा कि अपनी विदाई के बाद इस तरह वरिष्ठ खिलाड़ियों पर उंगली उठाकर उन्हें क्या मिलने वाला है.

जो खिलाड़ी अपने पूरे करियर में अपने खेल से ज़्यादा विवादों से चर्चित रहा हो, उसकी किताब में विवादों की जगह तो बनाती है, लेकिन अगर सचिन और द्रविड़ जैसे खिलाड़ी उनसे डरते थे तो फिर उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ होना चाहिए था और सचिन को अब तक संन्यास ले लेना चाहिए था. जो खिलाड़ी ख़ुद स्वीकार करे कि वह गेंद के साथ नियमित छेड़छाड़ करता था तो उसे कतई हक़ नहीं है कि वह दूसरे खिलाड़ियों की आलोचना करे. अगर उनकी किताब में ज़रा भी सच्चाई होती तो दुनिया में एक आदमी तो ऐसा होता, जो उनके पक्ष में बोलता. इस किताब में उन्होंने जो भी बातें लिखी हैं, उन पर जब उनका देश और साथी खिलाड़ी तक सहमत नहीं हैं तो बाक़ी लोगों की बात ही मत कीजिए. उनकी किताब में बहुत सारी विवादित चीज़ें हैं. अब अगर उन्हें लगता है कि विवादों से सुर्ख़ियां बटोर कर किताब बेची जा सकती है तो बाज़ार के हिसाब से वह सही हैं, लेकिन शोएब को यह हमेशा याद रहेगा कि इस किताब ने उन्हें विलेन बताते हुए उनके शख्सियती ताबूत में आख़िरी कील का काम किया है.

आत्मकथाओं की कथाएं अभी और भी हैं

अकेले शोएब ही नहीं हैं, जिन्होंने अपनी आत्मकथा के नाम पर विवादों का पिटारा खोल दिया है. क्रिकेट जगत की ऐसी कई हस्तियां हैं, जो अपनी ऑटो बॉयोग्राफी के ज़रिए सनसनीखेज ख़ुलासे कर चुकी हैं. इस सूची में सबसे पहला नाम पूर्व ऑस्ट्रेलियाई ओपनर हेडन का आता है. उन्होंने अपनी आत्मकथा स्टैंडिंग माई ग्राउंड में पूर्व भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली और ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह को अपने निशाने पर लेते हुए कहा था कि ये दोनों 2004 में नागपुर में सीरीज के निर्णायक मैच में घसियाली पिच देखकर अचानक मैच से हट गए थे. ग़ौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया ने वह टेस्ट जीतकर सीरीज पर क़ब्ज़ा किया था. इसी तरह पूर्व ऑस्ट्रेलियाई अंपायर हेयर ने अपनी किताब इन द बेस्ट इंट्रेस्ट्स ऑफ द गेम में लिखा था कि भारतीय उप महाद्वीप में हुए पिछले विश्वकप में कई गेंदबाज़ चकिंग कर रहे थे, लेकिन खेल प्रशासकों ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की. उन्होंने मुथैया मुरलीधरन और हरभजन के एक्शन को संदिग्ध बताते हुए कहा था कि हरभजन, शोएब अख्तर, मोहम्मद हफीज, जोहान बोथा और अब्दुल रज्जाक आदि ने विश्वकप में चकिंग की थी. हर्शेल गिब्स ने अपनी किताब टू द प्वाइंट में राष्ट्रीय टीम के कप्तान ग्रीम स्मिथ और अन्य खिलाड़ियों पर आपत्तिजनक आरोप लगाए थे. इस तरह और भी कई नाम हैं, जिन्होंने अपनी-अपनी आत्मकथाओं में कई कथाएं उजागर की हैं.


विवादों पर एक नज़र

शोएब से पाकिस्तान के क्रिकेट प्रेमियों को बहुत उम्मीदें थीं, लेकिन उनका यह हीरो आख़िर विलेन में कैसे तब्दील हो गया, उसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है. शोएब को वर्ष 2006 में डोपिंग का दोषी माना गया था, जिसके लिए उन्हें कई सालों का निलंबन झेलना पड़ा. हालांकि अपील के बाद निलंबन समाप्त हो गया था, लेकिन इस घटना में उनकी काफी भद्द पिटी थी. इसके अलावा ङ्गिटनेस समस्या के कारण शोएब वर्ष 2007 के विश्वकप में हिस्सा नहीं ले पाए और उसी साल मोहम्मद आसिफ़ से उनकी मारपीट की घटना भी सुर्ख़ियों में रही थी. इस मारपीट के कारण उन पर 13 वन डे मैचों की पाबंदी लगी थी. 2008 में सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड की आलोचना करने की वजह से उन पर 5 साल की पाबंदी लगी थी. अपील करने पर यह पाबंदी 18 महीने कर दी गई और दंड के तौर पर उन पर 70 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था. तब तक शोएब सबकी नज़रों में खटक चुके थे. रही-सही कसर उनकी किताब ने पूरी कर दी. अपनी आत्मकथा में शोएब ने वसीम अकरम और वकार यूनुस जैसे वरिष्ठ खिलाड़ियों पर साजिश रचने का आरोप लगाते हुए कहा कि इन लोगों ने उन्हें हतोत्साहित करने की पूरी कोशिश की. हालांकि वसीम ने जवाब में स़िर्फ इतना ही कहा कि शोएब रिटायरमेंट के पहले भी परेशानी थे और अभी भी परेशानी बने हुए हैं. किताब में कोलकाता नाइट राइडर्स के मालिक शाहरुख ख़ान और आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी पर धोखाधड़ी का भी आरोप लगाया गया है. अब शायद शोएब को दोस्त बहुत मुश्किल से मिलेंगे.

Monday, October 3, 2011

जीत का गम और हार की ख़ुशी



जब भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्वकप जीता था, तब न स़िर्फ उसे पर्याप्त फीस मिल रही थी, बल्कि उस पर पूरे देश की राज्य सरकारों एवं उद्योगपतियों समेत कई लोगों ने ईनामों की बौछार कर दी थी. इस सबके बावजूद टीम इंडिया प्रबंधन द्वारा दी गई फीस से संतुष्ट नहीं थी. इसीलिए धोनी समेत कई खिलाड़ियों ने बाक़ायदा विरोध कर अपनी फीस बढ़वा ली. यह वाकया पिछले दिनों फिर से दोहराया गया, लेकिन इस बार इसे इंग्लैंड के हाथों सीरीज और इज़्ज़त दोनों गंवाने वाली धोनी की टीम ने नहीं, बल्कि राष्ट्रीय और ग़रीब खेल हॉकी के खिलाड़ियों ने दोहराया. अब इन दोनों वाकयों का फर्क़ समझते हैं.

हॉकी के खिलाड़ियों को हर विदेशी दौरे के प्रति मैच के लिए महज़ 50 डॉलर यानी दो हज़ार रुपये और भारत में प्रति मैच 1800 रुपये मिलते हैं. वहीं हमारे होनहार क्रिकेटरों को एक टेस्ट मैच के लिए 7 लाख रुपये, एक वन डे के लिए 4 लाख रुपये और एक टी-20 मैच के लिए 2 लाख रुपये बतौर फीस मिलते हैं. यानी क्रिकेट और हॉकी के खिलाड़ियों की फीस में ज़मीन-आसमान का अंतर है. इसके अलावा अगर मौजूदा प्रदर्शन पर चर्चा की जाए तो हॉकी खिलाड़ी एशियन चैंपियनशिप ट्रॉफी जीतकर आए हैं.

इसके बावजूद खिलाड़ियों द्वारा फीस लेने से इंकार करने के बाद खेल मंत्रालय ने ईनाम की राशि बढ़ाई, जबकि इंग्लैंड में शर्मनाक प्रदर्शन करने वाली क्रिकेट टीम को वहां खेले गए 4 टेस्ट, एक टी-20 और पांच वन डे मैच खेलने के लिए सालाना कांट्रैक्ट से मिलने वाली भारी-भरकम धनराशि के अलावा हर खिलाड़ी को 50 लाख रुपये मैच की फीस के तौर पर दिए गए. यह तुलना इसलिए की गई, क्योंकि अगर क्रिकेट खिलाड़ी अपनी इस भारी-भरकम फीस के बावजूद अपनी फीस बढ़ाने की मांग कर सकते हैं तो पिछले दिनों एशियन चैंपियनशिप ट्रॉफी जीतकर आई हॉकी टीम के खिलाड़ियों ने अपनी फीस न लेने का फैसला करके क्या ग़लत किया? ख़ैर, असली मामला यह है कि जब हॉकी के खिलाड़ियों ने फीस लेने से इंकार कर दिया और बाक़ी लोगों, जिनमें राज्य सरकारों से लेकर अन्य उद्योगपति भी शामिल हैं, ने टीम हॉकी को पुरस्कार देने की भरमार कर दी, तब केंद्रीय खेल मंत्री अजय माकन ने अचानक एक प्रेस कांफ्रेंस की और एशियन हॉकी चैंपियनशिप जीतने वाली भारतीय टीम के हर खिलाड़ी को बतौर ईनाम 1.5 लाख रुपये देने की घोषणा कर दी. ग़ौरतलब है कि एशियन हॉकी चैंपियनशिप जीतने वाली भारतीय टीम ने प्रत्येक खिलाड़ी को 25-25 हज़ार रुपये का ईनाम लेने से इंकार कर दिया था. उन्होंने इस फैसले पर नाराज़गी भी जताई थी. बाद में हर तऱफ से आलोचना होते देख अजय माकन ने यह कांफ्रेंस की. माकन के मुताबिक़, सरकार खिलाड़ियों को नकद पुरस्कार देने में कभी पीछे नहीं रहेगी और इसमें संसाधनों की कमी आड़े नहीं आने दी जाएगी. अब अगर ऐसा ही था तो फिर खिलाड़ियों को पहले 25 हज़ार रुपये देने की बात क्यों की गई? इसका जवाब भी माकन को देना चाहिए, क्योंकि 25 हज़ार और ड़ेढ लाख में छह गुने का अंतर होता है. इस बदलाव से दो बातें निकल कर सामने आती हैं.

 पहली बात तो यह कि अगर खेल मंत्रालय के पास पहले से ही इतना पैसा था तो वह 25 हज़ार रुपये की मामूली रकम देकर शेष पैसों का क्या करना चाहता था? दूसरी बात यह कि अगर खिलाड़ियों ने पहले मिलने वाली राशि लेने से इंकार न किया होता तो क्या उनके हिस्से में डेढ़ लाख के बजाय स़िर्फ 25 हज़ार रुपये ही आते यानी एक लाख पच्चीस हज़ार रुपये हर खिलाड़ी के खाते से बचते. अब सवाल यह उठता है कि इतना सारा पैसा किसकी जेब में जाता? खेल मंत्रालय की बातों में एक बहुत बड़ा विरोधाभास नज़र आता है. कभी वह कहता है कि उसके पास टीम के खिलाड़ियों को देने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है और इसके पीछे वजह भी वह लाजवाब बताता है. उसके मुताबिक़, हॉकी क्रिकेट की तरह न तो पापुलर है और न हॉकी के मैचों के लिए बड़ी संख्या में स्पांसर मिलते हैं. अब आपको बताते हैं कि इस बात में कितनी सच्चाई है. 15 दिसंबर से 22 जनवरी के बीच भारतीय हॉकी महासंघ और निम्बस के संयुक्त तत्वावधान मेंविश्व सीरीज हॉकी खेली जाएगी. इसमें 140 भारतीयों समेत दुनिया भर के 200 खिलाड़ी भाग लेंगे. इस सीरीज के प्रमोटर निम्बस स्पोट्‌र्स का कहना है कि इसके पहले ही सत्र में खिलाड़ी 40 लाख रुपये से अधिक कमाई कर सकते हैं. यानिक कोलासो, जो निम्बस के मुख्य संचालन अधिकारी हैं, के मुताबिक़ हाल में मिली जीत के बाद इस सीरीज की अहमियत और बढ़ गई है. अब खिलाड़ियों को वित्तीय सुरक्षा मिलेगी और देश में हॉकी का स्तर मज़बूत होगा. ग़ौरतलब है कि इस सीरीज के साथ भारतीय हॉकी टीम के कप्तान राजपाल सिंह के अलावा अर्जुन हलप्पा, प्रभजोत सिंह, एड्रियन डिसूजा, भरत छेत्री, शिवेंद्र सिंह, रोशन मिंज और धनंजय महाडिक ने अनुबंध किया है.

इसके अलावा दो साल का प्रतिबंध झेल रहे संदीप सिंह और सरदारा सिंह भी इससे जुड़े हैं. यह जानकर ताज्जुब होगा कि इस सीरीज में ईनामी राशि साढ़े चार करोड़ रुपये है. अच्छी बात यह है कि इसमें भारतीय और विदेशी खिलाड़ियों को बराबर कमाने का मौक़ा मिलेगा. एक अच्छी बात जो स्पांसर न मिलने की बात को सिरे से नकारती है, वह यह कि हॉकी विश्वकप में भारत और पाकिस्तान के बीच मैच की औसत टीवी रेटिंग भारतीय क्रिकेट टीम के टेस्ट मैचों की रेटिंग के बराबर या उससे अधिक रही. अब अगर टेलीविज़न रेटिंग के स्तर पर भी हॉकी मैच इतने देखे गए तो फिर स्पांसर न मिलने का सवाल ही नहीं पैदा होता है. असल में अगर खेल मंत्रालय हॉकी की सही मार्केटिंग करे और खिलाड़ियों को उनका वाजिब मेहनताना दे तो विश्व सीरीज हॉकी भी आईपीएल की तरह मुना़फे वाली संस्था हो सकती है. आपको बता दें कि भारत में अगर क्रिकेट के बाद सबसे ज़्यादा दर्शक हैं तो वे हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी के हैं. किसी भी खेल में अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कार ज़रूरी है. यह बात क्रिकेट पर भी पूरी तरह लागू होती है. लेकिन दु:ख से ज़्यादा इस बात पर गुस्सा आता है कि हमारे देश में खिलाड़ियों को विश्व हॉकी जैसी प्रतिस्पर्धा जीतने के बाद भी उचित फीस के लिए तरसना पड़ता है. अब यह जीत का गम नहीं तो और क्या है? एक सवाल वर्षों के बाद भी जस का तस है कि इस राष्ट्रीय खेल की दुर्दशा के लिए आख़िर कौन ज़िम्मेदार है, इसके कर्ताधर्ता और सरकार या फिर कोई और?