अब टीम इंडिया इंग्लैंड के साथ अपने आख़िरी टेस्ट मैच का अंजाम चाहे जो भी देखे, लेकिन 3-0 की हार से हुआ आगाज़ यह बताने के लिए काफी है कि भारतीय क्रिकेट टीम की न तो लाज बची है और न ताज. ताज तो उसने अपने शर्मनाक प्रर्दशन के साथ ही गंवा दिया था, लेकिन लाज गंवाई उसने हार का ठीकरा बेमतलब की बातों पर फोड़कर. सीधे-सीधे अपने अति आत्मविश्वास और लचर प्रदर्शन को हार का ज़िम्मेदार न मानते हुए धोनी वही पुराने डायलाग्स दोहराते नज़र आए. कभी कहते हैं कि किसी भी टीम के लिए हर मैच जीतना आसान नहीं है और कभी कहते हैं कि हम लोगों ने काफी समय से इतना क्रिकेट खेला है कि आराम करने का मौक़ा ही नहीं मिला. वहीं कुछ लोग टीम की हार का ठीकरा कोच फ्लेचर के सिर फो़ड रहे हैं. ताज्जुब की बात है कि जब टीम कोई बड़ा मैच जीतती है तो कोच को जीत का उतना हिस्सेदार नहीं माना जाता, जितना हार का. ख़ैर, अगर हम धोनी की इन बातों को तार्किक भी ठहराएं तो यह बात समझ के बाहर है कि टीम इंडिया इतने बड़े अंतर से कैसे हार गई. नंबर एक की सीट पर काबिज टीम का प्रदर्शन इतना भी नहीं गिरता कि वह अपना सूपड़ा इस तरीक़े से साफ कराए. आस्ट्रेलिया का ही उदाहरण ले लीजिए. वह विश्व विजेता रह चुकी है और हारती भी है, लेकिन उसकी हार में टीम का ज़बरदस्त संघर्ष दिखाई देता है.
मैं समझ सकता हूं कि बीसीसीआई टेस्ट मैचों की शर्मनाक हार के कारणों का पता लगाना चाहता है. यह स्वागत योग्य क़दम है. मुझे उम्मीद है कि यह एकतरफा जांच नहीं होगी.
- वसीम अकरम
ग़ौर करने वाली बात है कि भारतीय टीम ने इंग्लैंड में छह पारियों में एक बार भी अपना स्कोर 300 के पार नहीं किया. इसके अलावा टीम की अधिकतर पारी 90 ओवर से कम में ही सिमट गई. मतलब टीम एक पूरे दिन भी मैदान पर टिकने में नाकाम रही. जिस टीम में सचिन, सहवाग, लक्ष्मण और द्रविड़ जैसे सूरमा हैं, वह अपनी बल्लेबाज़ी के लिए परेशान है. यह बात भी गले नहीं उतरती है. टेस्ट मैच में यह ज़रूरी होता है कि आप धैर्य के साथ पिच पर टिकें और कम से कम 90 ओवरों की बल्लेबाज़ी करें. तभी कोई टीम जीत की नींव रख पाती है. बर्मिंघम टेस्ट का ही उदाहरण लें तो एक ओर जहां भारत की पहली पारी 62.2 ओवरों तक टिकी, वहीं दूसरी पारी महज़ 55.3 ओवरों में ही सिमट गई. इसके विपरीत इंग्लैंड ने पहली ही पारी में 188 ओवर खेले. इंग्लैंड के हाथों तीसरे टेस्ट में एक पारी और 242 रनों की करारी हार के बाद भारत ने टेस्ट टीम में नंबर वन की हैसियत खो दी है. इसके साथ ही आईसीसी टेस्ट रैंकिंग शुरू होने के बाद 32 वर्षों में इंग्लैंड पहली बार टेस्ट रैंकिंग में पहले नंबर पर पहुंचा है. लगभग 20 महीनों तक नंबर वन की रैंकिंग वाली महेंद्र सिंह धोनी की टीम एजबेस्टन टेस्ट में अपनी दूसरी पारी में भी 242 रनों पर धराशायी हो गई. जबकि खेल का एक दिन बाक़ी था. ज़रा सोचिए कि इंग्लैंड के एक खिला़डी कुक ने अकेले ही पूरी भारतीय टीम से ज़्यादा रन जोड़े. इस हार को हम हाल में किसी अन्य देश में भारत की सबसे बुरी हार के तौर पर शुमार कर सकते हैं. अगर क्रिकेट के इतिहास में थोड़ा पीछे जाकर देखें तो इससे पहले भारत को सबसे ख़राब हार का सामना वर्ष 1958 में करना पड़ा था, जब कोलकाता में वेस्टइंडीज़ ने उसे एक पारी और 336 रनों से हराया था, लेकिन उस दौरान भारतीय टीम क्रिकेट के खांचे में फिट होने की कोशिश कर रही थी, लेकिन आज के दौर में जब भारतीय क्रिकेट टीम ने दुनिया भर में कामयाबी का झंडा लहरा दिया है तो ऐसे में इतनी अपमानजनक हार क्रिकेट प्रेमी पचा नहीं पा रहे हैं.
हाल में बीसीसीआई की कार्यकारी समिति की बैठक में फैसला किया गया कि निवर्तमान अध्यक्ष शशांक मनोहर और भावी अध्यक्ष एन श्रीनिवासन हार के कारणों की जांच करेंगे. इस पर वसीम अकरम कहते हैं, मैं समझ सकता हूं कि बीसीसीआई टेस्ट मैचों की शर्मनाक हार के कारणों का पता लगाना चाहता है. यह स्वागत योग्य क़दम है. मुझे उम्मीद है कि यह एकतरफा जांच नहीं होगी. अकरम के मुताबिक़, मुझे एक बात ने चिंतित किया कि क्या भारत के पास तेंदुलकर, द्रविड़, लक्ष्मण और सहवाग जैसे खिलाड़ियों की जगह भरने के लिए कुशल खिलाड़ी हैं? रैना, कोहली और रोहित शर्मा जैसे खिलाड़ियों को अभी मीलों दूरी तय करनी है. चयनकर्ताओं के लिए यह बड़ा मुश्किल काम होगा. टीम में लगभग हर क्षेत्र में लापरवाही और कमज़ोरियां देखी गईं. चाहे वह बल्लेबाज़ी हो, क्षेत्ररक्षण, गेंदबाज़ी और मनोबल हो. इन सभी आयामों में टीम इंडिया पूरी तरह से चित्त रही. टीम की इस दुर्दशा के लिए कोच फ्लेचर भी कई मायनों में ज़िम्मेदार हैं. भारतीय क्रिकेट टीम में बतौर कोच जब गैरी क्रिस्टन शामिल थे, तब टीम अपने स्वर्णिम दौर से गुजर रही थी. जबसे कमान फ्लेचर ने संभाली है, टीम इंडिया का लचर प्रदर्शन दिखा है. यह संयोग भी हो सकता है, लेकिन कुछ तर्क ऐसे हैं, जिनके आधार पर फ्लेचर को टीम इंडिया की इस दुर्दशा का ज़िम्मेदार मान सकते हैं. मसलन उनका एक बयान, जिसमें उन्होंने टीम इंडिया की हार के लिए पिच को ज़िम्मेदार ठहराया. ग़ौरतलब है कि लॉर्ड्स और नॉटिंघम के बाद एजबेस्टन में भी भारतीय बल्लेबाज़ों के फ्लॉप शो के बाद फ्लेचर ने कहा था कि इसके लिए इंग्लैंड की तेज पिचें ज़िम्मेदार हैं, लेकिन क्या वाकई में ऐसा है? इस बात से सभी वाक़ि़फ हैं कि फ्लेचर इंग्लैंड टीम के साथ आठ साल गुजार चुके हैं. अब किसी भी देश में इतना व़क्त बिताने के बाद अगर कोई कोच यह कहता है कि हम वहां की पिच और परिस्थितियों से वाक़ि़फ नहीं हैं तो थोड़ा ताज्जुब होता है. ऐसा नहीं था कि टीम ने ऐसी पिचें पहली बार देखी थीं. दक्षिण अफ्रीका में भी टीम को तेज उछाल वाली पिचें मिली थीं, लेकिन तब भारतीय टीम ने अपनी रणनीति में लगातार बदलाव कर सीरीज 1-1 से ड्रा खेली थी. हैरत की बात यह है कि ख़राब पिच की दुहाई वह कोच दे रहा है, जिसने आठ साल उसी देश में गुजारे हैं. फ्लेचर के पास ब्रिटिश नागरिकता भी है. ऐसे में फ्लेचर का वहां की परिस्थितियों से वाक़ि़फ न होना शक पैदा करता है.
सच तो यह है कि टीम इंडिया पिछले कुछ समय से इस कदर जीतती आ रही है कि उसने कभी अपनी कमज़ोरियों पर ध्यान देने की ज़रूरत ही नहीं समझी. क़िस्मत और कुछ खिलाड़ियों का प्रदर्शन साथ रहा तो जीतते गए और अगर उन्होंने साथ छोड़ा तो चारों खाने चित्त. कोच के मसले को दरकिनार करके अब बात करते हैं उस जूनियर चैंपियन टीम की, जो किसी भी बहाने में यक़ीन नहीं करती है. वह तो स़िर्फ प्रदर्शन करना जानती है. वहीं सीनियर टीम इंडिया कोच, पिच और थकान को अपनी हार में बतौर ढाल इस्तेमाल कर रही है. अभी हाल में ऑस्ट्रेलिया में संपन्न हुए इमर्जिंग प्लेयर्स टूर्नामेंट में शिखर धवन की अगुवाई में खेली इंडिया इमर्जिंग प्लेयर्स टीम ने टूर्नामेंट के दोनों फॉर्मेट टी-20 और तीन दिवसीय मैचों में जीत हासिल की. इस टीम ने सीनियर टीम इंडिया में लगातार फ्लॉप हो रहे खिलाड़ियों के लिए एक संकेत दिया है कि जीत का कोई विकल्प नहीं होता है. अगर वह ऑस्ट्रेलिया जैसे कठिन वेन्यू पर टूर्नामेंट जीतने का माद्दा रख सकती है तो सीनियर टीम इंडिया को उससे सबक लेने की ज़रूरत है.
No comments:
Post a Comment