Monday, August 1, 2011

क्रिकेट, विज्ञापन और फजीहत



जब खिलाड़ियों पर सफलता और पैसे का नशा चढ़ता है तो फिर सारी नैतिकता दांव पर लग जाती है. उस दौरान यह भी ध्यान नहीं रहता है कि क्या सही और क्या ग़लत. दिखाई देता है तो स़िर्फ पैसा. उसके लिए भले ही किसी को अपमानित करना पड़े या फिर किसी को गाली ही क्यों न देनी पड़े. हाल में दो शराब कंपनियों के विज्ञापन के बाद भारतीय टीम के दो खिलाड़ियों में उपजा विवाद कुछ यही कहानी बयान करता है. अभी तक टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और साथी खिलाड़ी हरभजन सिंह क़रीबी दोस्त के तौर जाने जाते थे लेकिन एक विज्ञापन ने इन दोनों के बीच खाई पैदा कर दी थी, जिसकी वजह से ये एक-दूसरे के खिला़फ क़ानूनी जंग पर उतर आए थे.

अब यह क़ानूनी विवाद भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि खिलाड़ियों के बीच सामंजस्य का अभाव है. अगर इनमें ज़रा भी आपसी सद्भाव होता तो दोनों इस मामले को लेकर एकजुट होते और अगर ज़रूरी होता तो अनजाने में अथवा जानबूझ कर हुई इस ग़लती को सुधारने की कोशिश करते, लेकिन ये कंपनी के कर्मचारियों जैसा व्यवहार कर रहे हैं. इन्हें इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं है कि खेल और खिलाड़ी ही इनका साथ हमेशा देंगे, न कि ये शराब बनाने वाली कंपनियां.

दरअसल, एक शराब कंपनी का विज्ञापन पिछले कुछ दिनों से टीवी पर प्रसारित हो रहा था. इसमें धोनी के अवतरित होने से पहले एक सिख युवक ब़डे-ब़डे गोले बना रहा होता है कि उसी बीच उसके पिता उसे थप्पड़ रसीद कर गाली देते हुए कहते हैं (कुछ गालियां बीप भी की जाती हैं) कि इतने ब़डे-ब़डे गोले क्यों बना रहा है तो जवाब में वह सिख युवक कहता है कि आई एम मेकिंग लार्ज…बस यहीं से धोनी कहते हैं कि ब़डा करने से कुछ नहीं होगा, कुछ अलग करो. इस बात से अब सभी वाक़ि़फ हो चुके हैं कि यह विज्ञापन हरभजन के ही विज्ञापन का स्पूफ था और थप्प़ड खाने वाला वह युवक हरभजन से मिलता-जुलता चरित्र. इस स्पूफ में मैक्डॉवेल के विज्ञापन में धोनी प्रतिद्वंद्वी कंपनी परनॉड रिकॉर्ड के ब्रांड रॉयल स्टैग के विज्ञापन में हरभजन की भूमिका का मजाक उड़ाते दिख रहे थे. बस जैसे ही यह विज्ञापन हरभजन और उनके परिवार ने देखा, उन्हें इस पर आपत्ति हो गई. हरभजन और उनके वकील देवानी एसोसिएट्स एंड कंसल्टेंट्स ने विजय माल्या की यूबी स्पिरिट्स को मैक्डॉवेल नंबर वन प्लेटिनम व्हिस्की के उस विज्ञापन के लिए नोटिस भेज दिया. इसमें कहा गया है कि मैक्डॉवेल नंबर वन का धोनी वाला विज्ञापन हरभजन, उनके परिवार और सिख समुदाय का मजाक है.

नोटिस की एक कॉपी ईटी के पास मौजूद है. इसमें सभी बड़े समाचारपत्रों और टीवी चैनलों में भज्जी के परिवार से बिना शर्त सार्वजनिक माफी मांगने के अलावा नोटिस मिलने के तीन दिन के अंदर विज्ञापन हटाने की मांग की गई थी. नोटिस में कहा गया कि यूबी अपनी प्रसारण/विज्ञापन एजेंसी को उक्त विज्ञापन का प्रसारण तुरंत रोकने का निर्देश दे. वकील श्याम देवानी के हस्ताक्षर वाले नोटिस में कहा गया था कि मेरे क्लाइंट ने आपको ग़लती मानने और संशोधन करने का मौक़ा देने के लिए नोटिस भेजा है. इसमें असफल रहने पर हमारे पास क़ानूनी कार्रवाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा. नोटिस खर्च के हर्जाने के तौर पर हरभजन के परिवार को एक लाख रुपये देने की भी मांग की गई है. नोटिस भज्जी की मां अवतार कौर ने भेजा था. इसमें कहा गया है कि भज्जी वाली विज्ञापन फिल्म सा़फ है, अच्छी है और इससे किसी की भावनाओं को ठेस नहीं लगती. जबकि दूसरा विज्ञापन उनके परिवार की प्रतिष्ठा और साख को नुकसान पहुंचाने वाला है.

हरभजन की ओर से भिजवाए गए क़ानूनी नोटिस के जवाब में विजय माल्या ने सा़फ कर दिया था कि वह किसी भी सूरत में विज्ञापन वापस नहीं लेंगे. माल्या ने हरभजन सिंह से किसी भी क़ीमत पर मा़फी मांगने से इंकार कर दिया था. माल्या ने कहा कि वह भज्जी के लीगल नोटिस का जवाब अब क़ानून से ही देंगे. उनका इरादा भज्जी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था और उन्होंने अपने विज्ञापन में उनका कोई मज़ाक नहीं उड़ाया है. इसलिए वह अपना विज्ञापन वापस नहीं लेंगे. माल्या ने तर्क दिया था कि बहुत सारे न्यूज चैनलों में नेताओं-अभिनेताओं का मज़ाक उड़ाया जाता है तो क्या उन सभी को नोटिस भेज दिया जाता है. जब वहां वैसा नहीं होता तो विज्ञापन जगत में ऐसा कैसे हो सकता है. मेरे वकील भज्जी के नोटिस को पढ़ रहे हैं, जो उचित होगा, वह किया जाएगा. जबकि माल्या की प्रतिद्वंद्वी कंपनी के मुताबिक़ उसने हरभजन सिंह को क़ानूनी कार्रवाई की सलाह नहीं दी थी, लेकिन अब अगर भज्जी ने यह क़दम उठा लिया है तो वह उनका हर तरीक़े से सपोर्ट करेगी. लेकिन इसी बीच शायद विजय माल्या को इस बात का इल्म हो गया कि इस विज्ञापन से न स़िर्फ हरभजन के प्रशंसकों में उनकी साख गिरेगी बल्कि उनकी आईपीएल टीम का बिज़नेस भी प्रभावित हो सकता है. इसलिए उन्होंने इस विज्ञापन को वापस लेने का फैसला ले लिया. लेकिन माल्या के सुर बदलने के पीछे का सही कारण यह तो कतई नहीं है कि उन्हें अपनी इस करनी पर कोई अ़फसोस है. वह प्रोफेसनल बिज़नेसमैन हैं और उनको पब्लिसिटी बटोरना बहुत अच्छी तरह से आता है. अब इस विज्ञापन का प्रसारण भले ही बंद हो गया हो लेकिन इस बात से तो कोई इंकार नहीं कर सकता है कि जितने दिन भी यह विज्ञापन प्रसारित हुआ है, उससे हरभजन की छवि को जो नुक़सान होना था, वो हो चुका है. और साथ ही माल्या को एक विज्ञापन के माध्यम से जो चर्चा मिलनी थी, वो भी मिल गई, अब ऐसे में अब विज्ञापन के प्रसारण को रोकने का कोई विशेष औचित्य नहीं है.


इस बात से धोनी भी इंकार नहीं कर सकते कि उन्हें पता नहीं था कि इस विज्ञापन में हरभजन का मज़ाक उड़ाया जा रहा है. ज़ाहिर है, ऐसे में अगर धोनी में ज़रा भी नैतिकता होती तो टीम के प्रति सद्भावना दिखाते हुए वह इस तरह के विज्ञापन में काम करने से मना कर सकते थे. ऐसा तो है नहीं कि धोनी अगर इसमें काम करने से इंकार कर देते तो उनसे यह विज्ञापन ही छीन लिया जाता.

धोनी अगर वह हरभजन की भावनाओं का ख्याल करते हुए स्क्रिप्ट में बदलाव की मांग करते तो आज यह विवाद पैदा ही नहीं होता, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इससे कई बातें स्पष्ट होती हैं. पहली बात तो यह कि धोनी को अपने साथी खिलाड़ियों की इज़्ज़त करनी नहीं आती है और दूसरी बात यह कि वह खेल से ज़्यादा पैसे और ग्लैमर को तवज्जो देते हैं. इस मसले में उन्हें सचिन तेंदुलकर से सीख लेनी चाहिए. ग़ौरतलब है कि धोनी इससे पहले भी शराब कंपनी को प्रमोट करने के चक्कर में कई शहरों में विरोध का सामना कर चुके हैं. यह तो खैर मनाइए कि टीम इंडिया आजकल सफलता के चरम पर है, ऐसे में इन खिलाड़ियों को मनमानी करने का मौक़ा मिल जाता है, वरना अब तक बोर्ड इनके खिला़फ अनुशासनसत्मक कार्यवाही कर चुका होता. ताज्जुब की बात यह है कि अभी तक धोनी ने औपचारिक तौर पर ही सही, इस मसले पर कोई टिप्पणी नहीं की है. इससे इतना तो सा़फ है कि कहीं न कहीं धोनी को एहसास हो गया है कि हरभजन सिंह के साथ ग़लत हुआ है.

अब यह क़ानूनी विवाद भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि खिलाड़ियों के बीच सामंजस्य का अभाव है. अगर इनमें ज़रा भी आपसी सद्भाव होता तो दोनों इस मामले को लेकर एकजुट होते और अगर ज़रूरी होता तो अनजाने में अथवा जानबूझ कर हुई इस ग़लती को सुधारने की कोशिश करते, लेकिन ये कंपनी के कर्मचारियों जैसा व्यवहार कर रहे हैं. इन्हें इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं है कि खेल और खिलाड़ी ही इनका साथ हमेशा देंगे, न कि ये शराब बनाने वाली कंपनियां. जिस दिन इनके सितारे बुलंदी पर नहीं होंगे तो सबसे पहले साथ छो़डने वालों में इन कंपनियों का ही नाम आएगा. राहुल द्रव़िड और गांगुली इस बात के जीते-जागते उदाहरण हैं. अगर इन खिलाड़ियों में ज़रा सी भी नैतिकता है तो इन्हें यह समझने में देर नहीं करनी चाहिए कि पैसा और ग्लैमर खेल और साथी खिलाड़ियों से बढ़कर नहीं है.

ब्रांड वॉर कोई नई बात नहीं

इससे पहले भी कई एड वॉर के चक्कर में सेलिब्रिटी और खिलाड़ी आपस में उलझ चुके हैं. कुछ दिनों पहले आमिर की फिल्म डेल्ही बैली में एक कार का कथित रूप से मज़ाक उड़ाए जाने पर विवाद खड़ा हो गया था. आरोप था कि फिल्म में जानबूझ कर उस कार का इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि एक अन्य हीरो (शाहरु़ख खान) इस कंपनी की कार का प्रचार करते हैं. कंपनी अपनी कार को कथित तौर पर अनादरपूर्ण तरीक़े से दिखाए जाने के लिए डेल्ही बेली के निर्देशक एवं प्रोडक्शन हाउस के खिला़फ क़ानूनी कार्यवाही करने की सोच रही थी. इसके अलावा माइक्रोसॉफ्ट ने एक विज्ञापन अभियान भी शुरू किया, जिसमें एप्पल के आईफोन और गूगल के एंड्‌रॉयड सिस्टम की खिल्ली उड़ाई गई है. यूट्यूब पर डाले गए इस विज्ञापन में प्रतियोगियों का मज़ाक उड़ाते हुए दिखाया गया है कि कुछ फोन की डिजाइन खराब होने के कारण उपभोक्ताओं में खराब आचार-व्यवहार को बढ़ावा मिल रहा है. माइक्रोसॉफ्ट ने इस अभियान में लोकप्रिय टीवी कलाकार रॉब डायर्डेक और अभिनेत्री मिंका केली को शामिल किया है. ऐसा ही वाकया डिटर्जेंट कंपनियों के मामले में दिखाई दिया. जब हिंदुस्तान यूनीलीवर लिमिटेड (एचयूएल) के प्रोडक्ट रिन डिटर्जेंट और प्रॉक्टर एंड गैंबल (पी एंड जी) कंपनी के प्रोडक्ट टाइड डिटर्जेंट के विज्ञापन ने ब्रांड वॉर छेड़ दिया था. उस दौरान भी पी एंड जी ने एचयूएल के खिला़फ याचिका दायर कर दी थी. इस मामले में समीक्षा मार्केटिंग कंसल्टेंट्स के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर जगदीप कपूर कहते हैं, मुझे लगता है कि इस तरह आपा नहीं खोना चाहिए. यह व़क्त ही ब्रांड वॉर का है, फिर इस तरह आगबबूला होने का कोई मतलब नहीं. यदि किसी ब्रांड पर ऐसे हमले हो रहे हैं तो उसे शांतिपूर्वक लेना चाहिए. इसे स्वस्थ प्रतियोगिता के नज़रिए से देखा जाए तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है.

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