Saturday, June 29, 2013

बीडी मजदूर : जीवन में खुशहाली कब आएगी




किसी भी देश की आर्थिक उन्नति उसके औद्योगिक विकास पर निर्भर करती है. अगर वह किसी विकासशील देश की बात हो तो वहां के लघु उद्योग ही उसके आर्थिक विकास की रीढ़ होते हैं. भारत भी एक विकासशील देश है. ज़ाहिर है, भारत के विकास की कहानी के पीछे भी इन्हीं उद्योगों का योगदान है, लेकिन अब भारत धीरे-धीरे विकासशील देशों की कतार में का़फी आगे आ चुका है. यहां ब़डी-ब़डी मल्टीनेशनल कंपनियां पैसा लगा रही हैं. अरबपतियों की लिस्ट में भारत ठीकठाक पायदान पर अपनी जगह बना रहा है. हम कह सकते हैं कि भारत में औद्योगिक क्रांति अपनी सफलता के चर्मोत्कर्ष पर है, लेकिन इस सबके बीच शायद हम उन उद्योगों और उनमें काम करने वाले लोगों को भूल गए हैं, जिन्होंने भारत के आर्थिक विकास में न स़िर्फ महती भूमिका निभाई, बल्कि आज भी जब भारत पर आर्थिक संकट मंडराता है तो इन्हीं उद्योगों की बदौलत देश का आर्थिक तंत्र टिक पाता है.

वर्तमान में अगर बीड़ी उद्योग के स्वरूप की बात की जाए तो भारत में क़रीब 300 बड़े काऱखाने बीड़ी बनाने के काम में लगे हैं और कई हज़ार अन्य छोटे काऱखाने हैं. यह उद्योग क़रीब 44 लाख लोगों को सीधे तौर पर रोज़गार देता है और क़रीब 40 लाख लोग बीड़ी से संबंधित अन्य कामों में लगे हुए हैं.




यही हाल अस्तित्व के संकट से जूझ रहे बीड़ी उद्योग का है. एक दौर था, जब भारतीय बाज़ार में सिगरेट कंपनियां इस क़दर नहीं छाई हुई थीं, उस वक़्त भारत का बीड़ी कारोबार ज़ोरों पर था. उस वक़्त सिगरेट बहुत खास तबक़ा ही पिया करता था. उस दौरान बी़डी के कारोबार से जु़डे व्यवसायी और उत्पादन प्रक्रिया में शमिल मज़दूर अपने-अपने रोज़गार से खुश थे. समय बदला, सिगरेट की खपत ब़ढ गई और बी़डी कारोबारियों का मुना़फा कम होने लगा. लेकिन जैसा कहते हैं कि व्यापारी तो अपना ऩफा कहीं न कहीं से निकाल ही लेता है, सो बीड़ी व्यापारी भी उन राज्यों की तऱफ अपना व्यापार ब़ढाने लगे, जहां बीड़ी की खपत ज़्यादा होती है. इन इलाक़ों में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों का नाम लिया जा सकता है. इस क़दम से बी़डी का उत्पादन ब़ढ गया और व्यापारी भी मुना़फे  में आ गए, लेकिन इस बदलाव की सबसे ब़डी मार जिन पर प़डी, वे थे बी़डी मज़दूर. वे कहीं के नहीं रहे. वे दैनिक मज़दूर की तरह दिहा़डी पर ही सिमट कर रह गए. वर्तमान में अगर बीड़ी उद्योग के स्वरूप की बात की जाए तो भारत में क़रीब 300 बड़े काऱखाने बीड़ी बनाने के काम में लगे हैं और कई हज़ार अन्य छोटे काऱखाने हैं. यह उद्योग क़रीब 44 लाख लोगों को सीधे तौर पर रोज़गार देता है और क़रीब 40 लाख लोग बीड़ी से संबंधित अन्य कामों में लगे हुए हैं. अब अगर आप सोच रहे हों कि इस धंधे से जुड़े मज़दूरों का मेहनताना क्या है तो आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि राज्य सरकारों द्वारा बीड़ी लपेटने के काम में लगे लोगों के लिए जो मज़दूरी निर्धारित की गई है, वह प्रति 1000 बीड़ी लपेटने पर उत्तर प्रदेश में 29 रुपये और गुजरात में 66.8 रुपये है. अब आप सोच सकते हैं कि इतनी दिहा़डी में कोई अपने के लिए रोटी का इंतज़ाम कैसे करता होगा, परिवार का पेट पालने की बात तो बहुत दूर है. ऐसा नहीं है कि इस व्यापार में मुना़फा नहीं है. असल में मुना़फा तो बहुत है, लेकिन मज़दूरों का शोषण जानबूझ कर किया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत के बीड़ी उद्योग ने वर्ष 1999 में क़रीब 16.5 अरब उत्पाद कर और 20 अरब विदेशी विनिमय राजस्व भारत सरकार के लिए एकत्रित किया. इन आंक़डों से इतना तो समझा जा सकता है कि सरकार और इससे जु़डे व्यवसायी इन मज़दूरों के  विकास के  प्रति कितने उदासीन हैं. इनकी तुलना अगर सिगरेट कंपनियों के मज़दूरों से की जाए तो देखेंगे कि उनके  लिए न स़िर्फ अच्छे मेहनताने का इंतज़ाम है, बल्कि काऱखाने में उनको स्वास्थ्य संबंधी कई सुविधाएं भी मुहैया कराई जाती हैं. लेकिन बी़डी मज़दूरों के लिए न तो कोई काऱखाना होता है और न उनकी सुरक्षा का कोई इंतज़ाम. इसलिए वे बेचारे अपने घरों में ही बैठकर बी़डी बनाते हैं और न्यूनतम दिहा़डी में मालिकों को सप्लाई करते हैं. असली मुना़फा मालिक खाता है.

यह तो रही मेहनताने की बात और ज़रा बी़डी मज़दूरों के स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों और स्वास्थ्य के नाम पर मिलने वाली सुविधाओं पर नज़र डालते हैं. इस बात से तो सभी वाक़ि़फ हैं कि बीड़ी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. यह हानि स़िर्फ पीने वालों को ही नहीं, बल्कि उन्हें भी होती है, जो इसके निर्माण कार्य से जुड़े होते हैं. इन मज़दूरों को टीबी, अस्थमा, फेफड़े के रोग और चर्म रोग होने का खतरा बना रहता है. जो महिलाएं अपने शिशुओं को काम पर ले जाती हैं, उन शिशुओं को नन्हीं सी उम्र में ही तंबा़कू  की धूल और धुंआ झेलना पड़ता है. जो बाल मज़दूर इस काम में लगे हैं, उन्हें श्वास और चर्म रोग होना आम बात है. बीड़ी लपेटने के दौरान मज़दूर किसी भी तरह के दस्ताने और मास्क आदि का प्रयोग नहीं करते, जिससे उनके शरीर में तंबा़कू आदि के कण प्रवेश कर जाते हैं. शोध बताते हैं कि जो लोग बीड़ी के पत्ते की कटाई के काम में लगे हुए हैं, उनके पेशाब में निकोटिन की मात्रा पाई गई है. 45 साल की उम्र आते-आते बीड़ी मज़दूरों के हाथों की उंगलियों की ऊपरी सतह की खालें मर जाती हैं और वे काम करना बंद कर देती हैं. इस परिस्थिति में वे लोग जो बी़डी बनाने का काम नहीं कर पाते, भीख मांगना शुरू कर देते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि इन मज़दूरों के स्वास्थ्य से संबंधित उक्त सारी जानकारियां सरकारी सर्वे में ही सामने आती हैं और इसके बावजूद सरकार स़िर्फ काऱखाना मालिकों के हितों का ही ध्यान रखती है.


कहने के लिए सरकार बी़डी मज़दूर कल्याणकारी फंड के तहत उन्हें शिक्षा, चिकित्सा, बीमा योजना, घर का किराया आदि प्रदान करने की बात करती है. इसके अलावा काम के  दौरान बी़डी मज़दूर को यदि किसी प्रकार की समस्या आती है तो उसे बीमा योजना के  अंतर्गत आर्थिक सहायता प्रदान किए जाने की बात कही जाती है, लेकिन ये सारी सुविधाएं कितने मज़दूरों को मिलती हैं, इसका आंक़डा किसी के पास नहीं है. पिछले दिनों सरकार ने चिकित्सा स्मार्ट कार्ड के ज़रिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ बी़डी मज़दूरों को भी देने की मंज़ूरी दे दी है. इस योजना के तहत बी़डी मज़दूरों के परिवारों को तीस हज़ार रुपये वार्षिक सहायता दी जाएगी. इससे अधिक की राशि कल्याण आयुक्त द्वारा मौजूदा नियमों के अनुसार पैनल में रखे गए अस्पतालों को सीधे दी जाएगी. अब इस योजना का लाभ पाकर कितने बीड़ी मज़दूरों का जीवन संवरता है, देखने वाली बात होगी. इस तरह ये मज़दूर आर्थिक और सामाजिक स्तर पर इस क़दर पिछ़ड जाते हैं कि फिर इनका पूरा परिवार सज़ा के तौर पर इसी व्यसाय का ग़ुलाम बनकर रह जाता है. दरअसल इस तरह धंधे में ज़्यादातर वही लोग काम करते हैं, जो समाज के उस तबक़े से संबंधित हैं, जहां न तो शिक्षा है और न रोज़गार के अवसर. नतीजतन, पी़ढी दर पी़ढी लोग बीड़ी के धुएं में उड़ जाते हैं.

ऐसा नहीं है कि लोग इस व्यवसाय से छुटकारा नहीं पा सकते. ये लोग चाहें तो जबलपुर के अंसार नगर के बी़डी मज़दूरों से बहुत कुछ सीख सकते हैं. कुछ साल पहले इस इलाक़े के कुछ युवाओं ने ठान लिया कि वे बी़डी नहीं बनाएंगे. उन्होंने एम्ब्रोडरी और सिलाई की ट्रेनिंग ली और घर पर ही काम शुरू किया. आज 30 लाख की आबादी वाले इस इलाक़े में आधे से अधिक घरों में यह काम हो रहा है. इन लोगों को चाहिए कि ये संगठित होकर सरकार से अपने हक़ की मांग करें और सभी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ हासिल करें या फिर अंसार नगर के मज़दूरों की तरह बी़डी के इस जाल से आज़ाद होकर एक नई शुरुआत करें.



सरकार को वास्तविकता की जानकारी नहीं

झारखंड में असंगठित मज़दूरों की संख्या लाखों में है. इसमें बीड़ी मज़दूरों का एक बड़ा तबक़ा शामिल है. इनका दुर्भाग्य यह है कि इनकी वास्तविक संख्या राज्य सरकार के पास नहीं है. राज्य सरकार बीड़ी उद्योग से जुड़े मज़दूरों की हालत से नावाक़ि़फ है. इन परिस्थितियों में राज्य या केंद्र सरकार द्वारा बीड़ी मज़दूरों के लिए बनाई गईं योजनाएं कितनी उपयोगी होंगी, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है. सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, राज्य सरकार के श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग की जानकारी में पाकुड़ ज़िले में मात्र 2589 मज़दूर हैं, पर वास्तविकता यह है कि इस ज़िले में बीड़ी मज़दूरों की संख्या 25 हज़ार से भी अधिक है. हैरत की बात तो यह है कि पाकुड़ स्थित भारत सरकार के श्रमिक औषधालय में भी मज़दूरों की सही संख्या दर्ज नहीं है. इस औषधालय में निबंधित मज़दूरों की संख्या 4457 है. इसका मतलब यह है कि पाकुड़ ज़िले के मज़दूरों की वास्तविक संख्या न तो राज्य सरकार के पास है और न पाकु़ड स्थित श्रम औषधालय में. कमोबेश यही स्थिति चतरा ज़िले की है. राज्य सरकार के श्रम नियोजन एवं प्रशिक्षण विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, देवघर में बीड़ी मज़दूरों की संख्या 4897, साहबगंज में 251, दुमका में 892, गोड्डा में 867, हज़ारीबाग में 600, पूर्वी सिंहभूम में 6500 और पलामू में 384 है. इनमें से कोई भी आंकड़ा वास्तविक आंकड़ों से मेल नहीं खाता है. वास्तविकता यह है कि अकेले साहबगंज, पूर्वी सिंहभूम और देवघर में ही लाखों की संख्या में बीड़ी मज़दूर काम करते हैं. इन आंकड़ों से बीड़ी मज़दूरों की उपेक्षा का अंदाज़ा सहज लगाया जा सकता है. सरकार के अलावा बी़डी बनाने वाली कंपनियों के पास भी बीड़ी मज़दूरों की वास्तविक संख्या नहीं है. सच पूछा जाए तो बीड़ी कंपनियां जानबूझ कर मज़दूरों की वास्तविक संख्या ज़ाहिर नहीं करना चाहती हैं. वे नहीं चाहतीं कि मज़दूरों का संगठन मज़बूत हो और वह उनके लिए परेशानी का सबब बने. दरअसल, झारखंड में बीड़ी उद्योग चलाने वाली लगभग सभी कंपनियां बाहर की हैं. ये कंपनियां बिचौलियों और दलालों के माध्यम से झारखंड में बीड़ी का कारोबार चलाती हैं. इसके कारण कंपनियों का मज़दूरों से सीधे तौर पर कोई सरोकार नहीं होता. कंपनियां यह चाहती भी नहीं हैं. यही वजह है कि मज़दूरों को मिलने वाला लाभ इस धंधे में लगे बिचौलिए और दलाल गटक लेते हैं. दुर्भाग्य की बात यह है कि झारखंड राज्य गठन के 11 साल बाद भी बीड़ी मज़दूरों की समस्या किसी राजनीतिक पार्टी का एजेंडा नहीं बनी. बीड़ी मज़दूरों की तमाम समस्याओं की जड़ उनका असंगठित होना है.

- आलोका

Thursday, June 27, 2013

मार्शल आर्ट - हम भी किसी से कम नहीं




फिल्मों मे हीरो और विलेन के बीच होने वाली ढिशुमढिशुम किशोरों का बहुत पसंद आती है, इसी फिल्मी फाइट को देखकर अक्सर स्कूल और घर में किशोर भी इसे आजमाने की कोषिश किया करते हैं. कोई चोरसिपाही का खेल खेलता है तो कोई रेसलिंग. कुछ साल पहले धारावाहिक शक्तिमान को देखकर कई किशोर कुछ स्ंटट सीन दोहराने के चक्क्र में चोटिल हो गए थे. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि तब इन्होंने फार्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी, पर अब समय बदल गया है. किषोर पहले की बजाए एडवांस हो गए हैं अब वो फिल्मी फाइट के बजाए मार्शल आर्ट के गुर सीख रहे हैं. जी हां, अब किशोर मार्शल आर्ट के जरिए फन के साथसाथ आत्मनिर्भरता का दोहरा मजा ले रहे हैं. हाल के दिनों में टीनेजर्स में मार्शल आर्ट सीखने का जबरदस्त के्रज देखा गया है. जब भी मार्शल आर्ट की चर्चा होती हैं तो ब्रूस ली, जैकी चैन और अक्षय कुमार का नाम सबसे वहले आता है. इन्हीं लोगों नें किशोरों में मार्शल आर्ट के प्रति उत्सुकता और इस कला को सीखने का प्रोत्साहन जगाया है. अब आप भी अक्षय की तरह मार्शल आर्ट के सबसे बडे खिलाड़ी बन सकते हैं. अगर आप भी स्कूल में अपने फ्रंेडस को मार्शल आर्ट से इंप्रेस करना चाहते हैं तो इसे सीखने में देर कैसी. सिर्फ कुछ ही महीने की ट्रेनिंग की बात है और आप बन जाएंगे मार्शल आर्ट एक्सपर्ट.

जोश और जुनून की हौबी
मार्शल आर्ट एक हौबी और आर्ट होने के साथ साथ किशोरों में एक नया जोश, जुनून और आत्मविष्वास भरता है. इसके जरिए किषोर मुष्किल समय में न केवल अपनी सुरक्षा खुद कर सकते हैं बल्कि  अपने फ्रेंडसग्रुप में सबके चहेते बन जाते हैं. कोई आपको बिन वजह तंग करे तो आपके पास उसे सबक सिखाने का बेहतरीन विकल्प है मार्शल आर्ट. इसे सीखने के कई फायदे हैं. सबसे पहले तो इसे सीखने वाले किशोर चुस्तदुरूस्त होने के साथ अनुषासित और मजबूत इच्छाशक्ति वाले होते हैं. यह एक जबरदस्त कैलीबर का स्पोर्ट है.
गुड़गाव में संषिकन कराटे इंडिया नाम का इंस्टीटयूट चलाने वाले यशपाल सिंह कलसी कई सालों अपने संस्थान के जरिए मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग दे रहे हैं. उनके मुताबिक, हमारे ज्यदातर मार्शल आअ सीखने वाले स्टूडेंट किषोर होते हैं और पिछले कुछ समय में इस आर्ट को सीखने के लिए लडकियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है. इसे एक अच्छा संकेत माना जा सकता है. क्योंकि आजकल छेड़छाड़ की बढ़ती घटनाओं की वजह से लड़कियों को अपनी सुरक्षा कई बार खुद करनी पड़ती है. ऐसे में मार्शल आर्ट का प्रषिक्षण इनके लिए बहुत कारगर साबित होता है.
सबसे पहले तो यह जानना जरूरी है कि आखिर मार्शल आर्ट है क्या. तकनीकी भाषा में कहें तो बिना किसी हथियार का प्रयोग किए हाथ, पैर, घुटने, और सिर आदि के द्वारा आत्मरक्षा की कला को मार्शल आर्ट कहा जाता है. पर असल में इसे एक तरह की फिजिकल एक्सरसाइज कहा जा सकता है, एक ऐसी एक्सरसाइज जिससे शरीर में स्फूर्ति और ताजगी रहती है. मार्शल आर्ट से किषारों में आत्मविश्वास और आत्मरक्षा की भावना का विकास होता है. यह शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक क्षमता को विकसित करती है.


कहां और कैसे सीखें मार्शल आर्ट
वैसे तो किसी भी उम्र में मार्शल आर्ट सीखी जा सकती है लेकिन किषोर यदि मार्शल-आर्ट सीख लेते हैं, तो उन्हें आगे चलकर इसे बतौर करियर अपनाने में भी मदद मिल सकती है. मार्शल आर्ट में प्रशिक्षित सेना, अर्धसैनिक बलों, पुलिस बल तथा सुरक्षा एजेंसियों में रोजगार के अलावा जिम, फिटनेस सेंटर, कॉलेज और विभिन्न संस्थानों में इंस्ट्रक्टर के रूप में भविष्य संवारा जा सकता है. मार्शल-आर्ट की टे्रनिंग में कई पड़ाव आते हैं. शुरू में आपको  फिजिकल ट्रेनिंग, हाथ-पैर चलाने की कला और उछलकूद ही सिखाया जाता है, लेकिन अंतिम दौर में दांव-पेंच, स्टाइल और आघात पहुंचाने की कला सिखाई जाती है, जिसे ब्लैक बेल्ट कहते हैं. मार्शल आर्ट के अंतर्गत आने वाले जूडो कराटे को प्रथम चरण से लेकर ब्लैक बेल्ट तक पहुंचने में 3 से 4 साल लग जाते हैं. इसे सीखने के लिए संयम, अनुशासन, सहयोग की भावना और स्वस्थ शरीर होना आवश्यक है. कुल मिलाकर मार्शल आर्ट सीखने के लिए व्यक्ति में बुलंद हौसला और जुनून होना चाहिए. मार्शल आर्ट के कोर्स मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहरों के स्टेडियमों, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली छत्रसाल स्टेडियम, नई दिल्ली आदि में उपलब्ध हैं.

इतिहास के आइने में
मार्शल आर्ट एक प्रचीनतम युद्ध कला है जो बिना हथियारों के लड़ी जाती है. मार्शल आर्ट का एक उदाहरण जापान ने प्रथम विश्वयुद्ध में रुस जैसे शक्तिशाली देश को पराजित करके साबित कर दिया कि मार्शल आर्ट एक ऐसी कला है जिसमें एक व्यक्ति अनेक व्यक्तियों से अपना बचाव करते हुए उन्हें मात देकर आत्मरक्षा कर सकता है. वर्तमान समय में यह कला कई देशों जैसे भारत, चीन, जापान व कोरिया में चल रही है.



Wednesday, June 19, 2013

शादी की शोपिंग हो शानदार




शादी हर कपल के लिए जीवन का सबसे यादगार लम्हा होता है. यह मौका एक बार आता है. इस दिन से जुड़े हर पहलू ताउम्र यादों के आइनों में जीवनभर सामने आते रहते हैं.  उस दिन क्या पहना था, क्या खाया था और कौन कौन शरीक हुआ था, तमाम बातें तसवीरों के जरिए उन बेहतरीन लम्हों की याद दिलाती रहती हैं.  सामान्य तौर पर शादी की तारीखें निर्धारित होते ही दूल्हादुल्हन के करीबी लोग शादी की तैयारियों और शोपिंग में जुट जाते हैं लेकिन जब कपल्स अपना बैंड बाजा बारात खुद बजा रहे हों तो भावी दूल्हादुल्हन खुद ही शादी की पूरी शोपिंग करने की चाहत रखते हैंें.
इसके दो कारण हैं. पहला तो यह कि कपल एक नए शहर में शादी करने की प्लानिंग कर अपने गार्जियन को इनवाइट करते हैं और दूसरा यह कि नई जेनरेशन अपने लिए आकर्षक परिधानों और फैशन से जुड़े हर चीज का चयन स्वयं करना चाहती है. असल में दोनों की यही इच्छा यही रहती है इस खास और शुभ दिन पर उनकी चमक खास अंदाज में सबके सामने आए. जाहिर है इस दिन हर लड़की सबसे खूबसूरत दिखना चाहती है जिससे सबकी नजरें उसी पर टिकी रहें. वहीं लडका भी सबसे हैंडसम दिखने की ख्वाहिश रखता है. वह भी शोपिंग में कोई कसर नहीं छोड़ता. इस लिहाज से दोनों के लिए शौपिंग के दौरान स्मार्टनेंस दिखानी जरूरी हो जाती है. यों तो शोपिंग के अलावा भावी दूल्हा दुल्हन ही वेडिंग प्लैनर, वेडिंग डेकोरेटर, फ्लोरिस्ट, कैटरर, मेहंदी आर्टिस्ट, ब्यूटीशियन और फैशन डिजाइनर हायर करते हें पर अभी बात शादी की षौंपिंग की.

शॉपिंग लिस्ट बनाएं
शादी की शोपिंग करना आसान नहीं होता वो भी कम समय में. ऐसे में काम आता है अपनेे जानकार व अनुभवी रिष्तेदारों का साथ जो इस तरह की शोपिंग पहले भी कर चुके होते हैं. इनके मार्गदर्शन से यह काम फट से हो जाता है. इनका परामर्श हमेशा फायदेमंद साबित होता है. जरूरत हो तो इन्हें साथ भी लेकर जाएं. सबसे पहले बाजार या मौल जाने से पहले आप शादी के सामान की सूची बनाएं. आमतौर पर लडकियां शोपिंग में ज्यादा माहिर होती हैं इसलिए उनकी मदद से से लिस्ट जल्दी बनाई जा सकती है. बरहाल इस में बहन, दोस्त से लेकर मां या मौसी किसी की भी मदद ली जा सकती है. चूंकि शोपिंग में कपड़ों, गहनों, ऐसेसीरीज, फुटवियर, मेकअप किट से लेकर हर तरह का सामान शामिल होता इसलिए लिस्ट बनाकर चलने से बाजार में समय की काफी बचत होती है. और खरीददारी के लिए कोई सामान छूटता भी नहीं है.

सस्ती और अच्छी शॉपिंग के ठिकाने
अक्सर लोग शादी में दिखावे की मानसिकता के तहत बेवजह की फिजूलखर्ची में पड़ जाते हैं. ऐसा बिलकुल नहीं है कि जो चीज मंहगी है वह अच्छी भी होगी और सस्ती खराब. अगर बाजार की सही समझ और शोपिंग की स्मार्टनेस हो तोे शादी के लिए लिमिटेड बजट में अच्छी शोपिंग की जा सकती है. हां, स्मार्ट और सस्ती शोपिंग के लिए अहम बात यह है कि आपको शोपिंग के सही ठिकाने पता हों. यो तो हर बड़े शहर में मौल और होल सेल मार्केट मौजूद हैं. फिर भी अगर दिल्ली की बात करें तों यहां हर मिजाज और बजट के शोपिंग डेस्टीनेशन हैं. मसलन सदर बाजार, चांदनी चैंक, लाजपत नगर, सरोजनी नगर, करोल बाग, रजोरी गार्डन, कमला नगर आदि. इन तमाम जगहों पर हर रेंज ओर स्टाइल की शादी शोपिंग संभव है.
शादी की खरीदारी के लिए दिल्ली में चांदनी चैक का नाम अव्वल है. यहां से ब्राइड के लिए लहंगे, साड़ी, ऐसेसीरीज और फुटवियर से लेकर दूल्हे के लिए सूट, शेरवानी, जूतियां और सेहरा सब आसानी से वाजिब दाम पर मिल जाता है. यहां की स्पेषिसलिटी यह है कि यहां ट्रेडिशनल और मौडर्न फैशन, दोनों तरह का सामान मिलता है. सूट और बाकी कपड़ों के लिए नील, नवाब, खुशहाल और नया कटरा आदि ऐसे कई कटरे और गलियां हैं, जहां 2000 रुपये से 30 हजार तक का सूट मिल जाएगा. अप्सरा, मीना बाजार, ओमप्रकाश जवाहर लाल आदि ऐसी मशहूर दुकानें हैं, जहां आपको एक से बढ़कर एक डिजाइनर साडि़यां मिल जाएंगी.
बसुधा अरोड़ा जिन्होंने अपनी शादी की शो पिंग खुद की बताती है कि इस तरह की चीजों के लिए चांदनी चैक सबसे मुफीद जगह है. यहां 150  से 1000 रूपए तक अच्छी साड़ी मिल जाती हैं जो रिष्तेदारी में लेनदेन के काम आ सकती हैं. इसी तरह 10 हजार से 12 हजार के बीच में वेंडिंग लहंगा भी यहां आसानी से मिल जाता हे जबकि इसी तरह का लहंगा किसी मोल या षोरूम में कम से कम 50 हजार का पड़ता है. यही हाल सूट और षेरवानी का भी है. इसके अलावा जो सूट मौल से 2 हजार से 5 हजार का मिलता है वही यहां पर 500 से 1 हजार का मिल जाता है. इसी तरी कौस्मेटिक 120 से 200 तक मिल जाएगा. वहीं आर्टिफिषियल ज्वैलरी भी 250 से 2500 तक बेहतरीन डिजाइन में मिलती हैं. इसके अलावा फुटवेयर्स, बैग, बेल्ट और अन्य सामान के लिए करोलबाग बड़ा बाजार है. यहां जूते और सैंडल अच्छी रेंज में आसानी से कम कीमत में मिलते है.
कमलानगर बाजार में हर किसी के बजट के मुताबिक सामान मिल जाता है. लाजपत नगर, साउथ एक्सटेंशन  में भी शादी की खरीदारी के लिए विशिष्ट बाजार हैं. हां ब्रांडेड स्टोर्स के लिए सीपी और साउथ एक्सटेंशन बेहतर रहेंगे. वहीं बार्गेनिंग के लिए जनपथ, लाजपत नगर, सरोजनी नगर मुफीद हैं.
तो अगर आप भी शादी के सामानों की खरीदारी की अपनी लिस्ट तैयार कर चुके हैं तो इन जगहों अपनी रुचि व पसंद के हिसाब से शानदार और यादगार शो पिंग कर सकते हैं. यहां न तो आपका बजट बिगड़ेगा और न ही किसी भी तरह की दिक्कत होगी. गौर करने वाली बात यह है कि खुल बाजारों और होल सेल मार्केट में किसी भी तरह की बारगेनिंग करने में बिलकुल भी संकोच न करें बल्कि खुलकर मोलभाव करें.


सेल में करें सस्ती शॉपिंग
शादी की षांपिंग अगर फेस्टिव सीजन के दौरान कर रहे हैं तो मौजा ही मौजा. इन दिनों बाजारों में सेल की बहार होती है. चूंकि शादी के दौरान कई रिष्तेदारों के  लिए भी ढेर सारा सामान खरीदना पड़ता हैऐसे में  सेल में 2 के साथ 3 मुफत वाली स्कीम बहुत कारगर होती हे. सेल पीरियड में कई ब्रांडेड स्टोर्स ग्राहकों को  लुभाने के लिए लुभावनी सेल स्कीम्स अनाउंस करते हैं. आप भी ब्रैंडेड ड्रेसेज डिस्काउंट या औफर में लेना चाहते हैं, तो इसका फायदा जरूर उठाएं. फिलहाल  दिल्ली के कई मौल्स में सूट, षेरवानी, टीशर्ट, जींस, शर्ट, जूते और लड़कियों के लिए साड़ी, लहंगे, मेकअप किट, स्कर्ट के अलावा बैग, कैप, बेल्ट औ फुटवियर्स वगैरह भी 30 से 40 प्रतिशत तक के डिस्काउंट पर आसानी से मिल जाएंगे.
किराये पर भी ले सकते हैं
मेरा व्यक्तिगत अनुभव है, मैंने अपनी शादी के मौके पर परिधानों की खूब मंहगी खरीदारी की. 10000 हजार के सूट तो 2 से 5 हजार के महंगे जूते भी खरीदे. इसी तरह मेरी पत्नी ने भी महंगे लहंे, सूट और चांदनी चैक से 20 हजार की कीमत वाली साडि़यां खरीदीं.  वर वे कपड़े अब सिर्फ अलमारियों में धूल खा रहे हैं. कहने का मतलब यह हैं कि शादी के बाद वे किसी काम के नहीं रहे. 10000 का सूट, 15000 की षेरवानी और 38000 का लंगहा ड्राई क्लीनिंग के बाद अलमारियों में सजा भर है. शादी को एक साल पूरा होने को है पर अभी तक उन में से एक भी परिधान को दोबारा पहनने का मौका नहीं मिला. सिर्फ एक दिन के लिए पहनने वाले कपड़ों पर इतना खर्च करना अब मुझे नागवार गुजर रहा है. असल में शादी के कपड़े कुछ इस तरह के डिजाइन किए होते हैं कि उन्हें अन्य फंक्षनों में पहना ही नहीं जाता. मुझसे से सबक लेते हुए अगर अगर आप अपना बजट नहीं बिगाड़ना चाहते तो तो किराये पर भी अपना मनपसंद ड्रेस ले सकते हैं. अमूमन लोग दो दिन के लिए लहंगा शेरवानी किराये पर लेते हैं जिसमें कुल खर्च 5 से 10000 हजार रुपए तक खर्च आता है. जबकि वही 15 से 25 हजार रुपए के प्राइज टैग वाली साड़ी के किराये के रूप में दो से चार हजार रुपये का भुगतान करना पड़ता है.  किराए पर ड्रेसेज देने वालों की दुकानें दिल्ली में कई जगहों पर हैं मसलन वेस्ट पटेल नगर, चांदनी चैक, पीतमपुरा और राजौरी गार्डन में किराए पर ये परिधान लिए जा सकते हैं.

औनलाइन हो सस्ती शॉपिंग
मेट्रो सिटी में शादी की शो पिंग के ढेरों विकल्प मौजूद हैं. होल सेल, ओपेन मार्केट व मौल्स के अलावा औनलाइन शो पिंग औप्षन का चलन भी आजकल जोरांे पर है.घर बैठे सपरिवार मिलकर हरके की पंसद के अनुसार ईपोर्टल पर सामान चुनांे और और्डर कर दो. कुड ही दिनों में होम डिलीवरी के जरिए सारा सामान आपके घर पर होगा. शो पिंग का इतना आसान तरीका और न भागदौड़ की जरूरत. इससे समय और पैसे दोनांे की बचत होती है. यो तो औनलाइन शो पिंग कंपनियां साल भर सस्ते औफर देती हैं पर त्योहारों में डिस्कांउट और बढ जाते हैं. महंगे और ब्रांडेड सामानों पर सामान्य तौर पर 15 से 25 फीसदी तक की छूट असानी से मिल ही जाती है. कंपटीशन को दखते हुए आजकर औनलाइन शो पिंग वैबसाइट खूब छूट देती हैं. फ्लपकार्ट, स्नैपडील, 99 लेबल्स डौट कौम, फैशन एंड यू डौट कौम, एक्सक्लूसिवली डौट इन, मिंत्रा डौट कौम, नापतौल डौट कौम, होम शो प 18 और स्टार सीजे लाइव आदि कुछ प्रमुख वेबसाइट हैं जहां से  शदी की बेहतरीन खरीददारी की जा सकती है. जिस रंग का सूट या फैबरिक चाहिए या फिर मेकअप किट सब यहां उपलब्ध हैैं. कपड़ों के अलावा बेल्ट, बैग, परफ्यूम और घड़ी जैसे सामानों पर औनलाइन पोटर्ल 50 फीसदी की छूट मिल जाती है. इनके पास देशीविदेशी कई ब्रांड मौजूद हैं, बस एक क्लिक की जरूरत है.
इस तरह से आप एक स्मार्ट शो पिंग के जरिए अपना बैंड बाजा और बारात बड़े धूमधाम से बजा सकती हैं.
                                                 

Tuesday, June 4, 2013

खेल खेल में गार्डनिंग का मजा



रोहित पिछली बार अपनी नानी के यहां छुटिटयां मनाने गया तो वहां उसने ढेर सारी मस्ती के साथसाथ नानी के बगीचे और टेरिस में बागवानी का भी भरपूर मजा लिया. दरअसल नानी ने जिस तरह से घर को रंग बिरंगे फूलों और पौधों से सजाया था, वो रोहित कोे बहुत अच्छा लगा. उसने भी नानी से कहां कि वे उसे बागवानी कराना सिखाएं जाकि  घर जाकर वह  भी अपने घर को हरियाली और फूलों की खुशबू से भर दे. छुटिटयां खत्म होते ही रोहित ने नानी के बताए टिप्स को जमकर आजमाया और घर की टेरिस, विंडों और छत को कई तरह के फूलों, बेलों और पौधों से सजा डाला. नानी की टिप्स की बदौलत रोहित ने अपने घर को तो महकाया है साथ ही पूरी सोसाइटी का चहेता भी बन गया है. इस तरह रोहित ने खेलखेल में बागवानी को हौबी के साथ साथ लर्न एंड फन का बेहतरीन माध्यम बना लिया.  अब उसके सारे दोस्त उससे बागवानी की टिप्स लेने आते हैं.  वह भी अपने दोस्तों व रिश्तेदारों से अपनी नानी की गार्डनिंग टिप्स शेयर करता है. आप भी ऐसा कर सकते हैं.
टीनेजर्स की उनके स्वाभाव के हिसाब से अलग अलग हौबी होती हैं. किसी को किताबों का तो किसी को डांस की हौबी होती है लेकिन कुछ हौबी ऐसी भी होती हैं जो षौक के साथ खेलने का मजा भी देती है. ऐसी ही हौबी है गाईनिंग यानी बागवानी. हम देखते हैं कि मेट्रो सिटीज में हरियाली बेहद ही मुश्किल से दिखाई देती है. जबकि किषारों का तो फेवरेट स्पौट हरा भरा पार्क ही होता है. जो किषोर अपने घर को ही पार्क जैसा हरा भरा बनाना चाहते हैं उनके लिए बागवानी के कुछ ऐसे तरीके हैं जो आपको आपको पर्फेक्ट गार्डनर और घर को ही पार्क और बगीचे जैसा बना देंगे.  सबसे पहले तो घर में ऐसी जगह ढूढे जहां छोटा सा गार्डन बनाया जा सके. अगर स्पेस की समस्या हो तो आप विंडो बॉक्स, बालकनी और टेरेस का इस्तेमाल कर सकते हैं. फिर घर में बेकार पड़ी बोतलों और बाल्टियांे को गमले की तरह प्रयोग में लाने के लिए उनमें मिटटी भरें, इससे घर का वेस्ट मैटेरियल भी काम में आ जाएगा और रंग बिरंगी बोतल और बाल्टियों में पौधे भी बड़े अच्छे लगेंगे. अगर ये सब न मिले तो बाजार से छोटेछोटे प्लास्टिक के पौट या गमले खरीद लें. फिर उनमें मिटटी भरकर उनमें अपने पसंद की क्यारियां बनाएं. अपने हाथों से मिटटी से क्यारी बनाना और उनमें पाननी से स्पे्र करनो का मजा ही अलग होता है. इसके बाद उसमें अपने पसंद के रग बिरंगे फूलों के पौध लगाएं. वेजिटेबल्स, फ्रूट्स, हर्ब्स भी लगा सकते हैं. इसके लिए घर के किसी बड़े सदस्य की मदद लें. क्यारिष्यों लगाने के बाद उनमें समय समय पर पानी और जरूरी खद डालते रहें ताकि पौधों को बढने में कम समय लगे. हां, पौधों को हमेषा अंधेरे से दूर यानी धूप में ही. याद रखें पौधों को पानी और धूप की बहुत जरूरत होती है. नहीं तो ये मुरझा जाते हैं. इअसे तरह से आपे जो खेल खेल में फले उगाएं हैं उनका  इस्तेमाल आप घर को सजाने के अलावा पार्टी में खास एरिया को डेकोरेट करने में भ्सर कर सकते हैं. यानी आप डिजाइनर एंड डेकोरटर भी बन गए. कुल मिलाकर गार्डनिंग से आपको घर बैठे ही एक बडे़ पार्क में खेलने के मजे के साथसाथ  अपना षौक तो पूरा करते हैं और घर हरियाली से महकेगा अगल से. गार्डनिंग करने से किषारों की कैलरीज भी बर्न होती हैं और रात में अच्छी नींद आती है. तो हुआ ना दोहरा फायदा. हौबी की हौबी और हेल्थ को भी फायदा.

पर्फेक्ट गार्डनर बनने के लिए
जिनका मन गार्डनिंग में कुछ ज्यादा ही रमता है तो इसे बतौर करियर भी आजमा सकते हैं. इसके लिए बाकायदा कोर्स होते हैं. इन शॉट टर्म कोर्सो को करने के लिए किसी भी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती. विद्यार्थी का बारहवीं पास होना ही काफी होता है. अगर गार्डनिंग आपकी हॉबी है तो छुट्टियों के खाली दिनों में इस कोर्स को चुना जा सकता है. इससे आप पर्फेक्ट गार्डनर बन सकते हैं.


जरूरी टिप्स

  • बेकार पड़ वेस्ट मैटेरियल को इस्तेमाल करें
  • पौधों को स्वस्थ रखने के लिए सनलाइट, वाटरिंग और खाद की व्यवस्था
  • रंग बिरेंगे और खुशबूदार फूलों का चुनें
  • कैक्टस और ओरनामेंटल ग्रास जैसे पौधे खूबसूरत होते हैं
  • जगह के हिसाब से पौधों का चयन करें.
  • पत्तियों को टेलकम पाउडर, हेयर स्पे्र से बचाकर रखें.
  • पौधों को अंधेरे से दूर बालकनी में धूप में रखें
  • कैक्टस के गमलों में मिट्टी ढीली रखें.
  • मिटटी में काम करने के बाद खुद को अच्छे से साफ करें