Tuesday, April 16, 2013

ट्रे कल्टीवेशन - किसानों के लिए नई सौगात



इस बात के इंकार नहीं किया जा सकता है कि आज देश में किसान और खेती दोनों ही खस्ताहाल में हैं. एक ओर जहां पानी के भूमिगत स्तर  आई तेजी से कमी ने खेती और किसान को संकट में डाल दिया है, वहीं दूसरी ओर खाद और सिंचाई साधनों की बढ़ती मंहगाई ने भी उनकी कमर तोड़कर रख दी है. षायद यही वजह है कि आज हमारे देश के किसाान जो कल तक देश में अन्नदाता माने जाते थे, भुखमरी की कगार पर आ गए हैं. बर्बाद होती फसलें, खेती के सीमित साधनों की वजह से ये किसान आए दिन आत्महत्याएं करने लगे हैं. फिर चाहे विदर्भ के किसान हों या बुंदेलखंड के. किसानों की यह समस्या इतनी जटिल होती जा रही है कि अब लोग यह तक कहने लगे हैं ऐसे में न सिर्फ सरकार को, बल्कि देश के वैज्ञानिकों को भी किसानों की इन समस्याओं से छुटाकरा दिलाने के लिए जरूरी उपाय ढूंढने होंगे. इस दिषा में कई प्रयास काफी वक्त से किए भी जा रहे हैं.

ट्रे कल्टीवेशन
इसी प्रक्रिया में कई नई तकनीकें ईजाद हुई है, जिनका इस्तेमाल किसानों के लिए नई उर्जा और उम्मीद लेकर आया है. ऐसी ही एक तकनीक है ट्रे कल्टीवेशन यानी ट्रे में खेती. दरअसल, इसे सरल भाशा में समझें तो ये एक ऐसी तकनीक है जिसमें कम पानी और कम मिट्टी में अधिक से अधिक सब्जियां उगाई जा सकती हैं. इस तकनीक में प्लास्टिक की ट्रे में मिट्टी रखकर सब्जियां उगाई जाती हैं. इससे कम लागत में उत्तम गुणवत्ता वाली सब्जियों का उत्पादन किया जा सकता है. इसके लिए सर्वप्रथम ट्रे में ग्रीन नेट एवं जूट बिछाकर उसमें वर्मी कंपोस्ट डाला जाता है, फिर उसमें उपचारित बीज या पौधे लगाते हैं. इसके बाद ट्रे में एग्री इनपुट्स एवं पोशक तत्वों का समय-समय पर छिड़काव किया जाता है. इस तकनीक से उस तरह की सब्जियां उगाने में बेहतर परिणाम मिलता है, जो हम अपने रोजमर्रा के भोजन में इस्तेमाल करते हैं. मसलन टमाटर, मिर्च, बैगन, भिंडी, करेला, ककड़ी, ग्वारफली का नाम प्रमुख रूप से लिया जा सकता है. इन तमाम सब्जियों को बड़ी आसानी से डेढ़ इंच मिट्टी में उगाया जा सकता है. इस विधि द्वारा एक किलो सब्जी उगाने में सिर्फ 30 से 70 लीटर पानी की आवश्यकता होती है.

किफायती और फायदेमंद 
इस तकनीक की विषेशता यही हैं कि इसमें पानी की बहुत बचत होती है यानी जिन किसानों को ंिसंचाई के साधनों का इंतजाम करने में दिक्कत पेश आती है या फिर जो आथर््िाक रूप से इतने कमजोर है कि सिंचाई क जल का खर्च वहन नहीं कर सकते, उनके लिए यह तकनीक किसी वरदान से कम नहीं है. इस तकनीक के इस्तेमाल से किसान बेहतर और अधिक उपज पैदा कर सकते हैं. इसकीं दूसरी सबसे अच्छी बात ये हैं यह उन किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद है जो पिछड़े होने के साथ साथ सूखे और भूमिहीन यानी जमीन की कमी से जूझ रहे हैं. इस तकीनीक की मदद से उन्हें उपज के लिए बहुत सारी जमीन की आवष्यकता नहीं पड़ती. ट्रे के कई स्तर बनाकर कम से कम जगह में खूब सारी उपज की जा सकती है. इसके अलावा इस इस विधि में फसल चक्र की भी आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ट्रे के अंदर एक सब्जी तैयार होते ही आप उसमें कोई दूसरी सब्जी लगा सकते हैं.

कीटनाशकों से छुटकारा
केयर रेटिंग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कीटनाशकों के गलत प्रयोग से उत्पादकता में जबरदस्त गिरावत आई है. देश में हर साल कीटनाशकों के प्रयोग से न सिर्फ उपज की गुणवत्ता में कमी आती है बल्कि किसानों की जेबों पर भी अतिरिक्त भार पड़ता है. एक आंकड़े के मुताबिक भारत में कीटनाशकों के प्रयोग के कारण करीब 18 फीसदी फसल बर्बाद हो जाती है यानी इससे हर साल करीब 90 हजार करोड़ रुपये की फसल को नुकसान पहुंचता है. ट्रे कल्टीवेशन तकनीक से सबसे पहले किसानों को इसी समस्या से निजात मिलती है. जी हां, ट्रे कल्टीवेशन की तकनीक पर की गई उपज में कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव की जरूरत नहीं पड़ती. ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रे के ऊपर नेट लगा देने से कीड़े-मकोड़े सब्जियों को नुकसान नहीं पहुंचा पाते. जाहिर है जब फसल में कीट ही नहीं लगेंगे तो फिर कीटनाशकों की जरूरत ही नहीं पड़ेंगी. उपज की गुणवत्ता पर भी कोई दुश्प्रभाव नहीं पडे़गा. 


शहरों में भी ट्रे कल्टीवेशन
आमधारण होती है कि किसान और खेती का मतलब गांव. किसी हद तक ये धारणा सही भी होती है. क्योंकि भारत का कृशकवर्ग गावों में ही बसता है. लेकिन ट्रे कल्टीवेशन की तकनीक इस धारणा को काफी हद तक बदल देती है. इस तकनीक को शहरों भी कई लोग आजमा रहे हैं. आप आपने शहर में बने मकान के गार्डन में या फिर  किसी के कमरे में कोई स्थान, जो थोड़ा सा खुला हो या फिर छत पर ट्रे कल्टीवेशन के जरिए सब्जियां उागकर अपने हाथों सेे उगाई गई सब्जियों का मजा ले सकते हैं. इससे दो फायदे होंगे पहला, आप स्वादिश्ट, ताजी और पेस्टीसाइड से मुक्त भोजन पाएंगे और दूसरा सब्जी मंडी में बासी सब्जियों पर अधिक पैसे भी खर्च नहीं करने पडें़गे. आप कोट-पैंट, टाई लगाकर भी अपने घर की छत या बालकनी में इस विधि द्वारा सब्जियां उगा सकते हैं. किसानों की वेशभूशा में पानी और कीचड़ में उतरने की कोई आवष्यकता ही नहीं है. तो बन गए न आप मौडर्न किसान. 
राजस्थान के झुझुनूं जिले की शेखावाटी तहसील के कई किसान इस तकनीक से सब्जियां उगा रहे हें. मोरारका फाउंडेशन ने भी कुछ वर्श पहले दिल्ली में एक प्रदर्शनी लगाकर इस तकनीक को पेश किया था. मोरारका फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक मुकेश गुप्ता बताते हैं कि ट्रे कल्टीवेशन तकनीक खेती पैदावार, बचत और स्वास्थ्य के नजरिए से भी किसानों के लिए फायदेमंद है. लिहाजा किसान इस तकनीक की तरफ तेजी से रुख कर रहे हैं. आज यह तकनीक जहां भी पुहंचती है वहां के लोग इसे हाथोंहाथ लेते हैं. कम लागत पर ज्यादा सब्जियां उगाकर किसान अधिक से अधिक पैसे कमा रहे है. 




Tuesday, April 9, 2013

हेल्थ इंश्योरेंस - आपात समय की सुरक्षा


आज की आपाधापी और भागदौड़ भरी जिंदगी में सब से ज्यादा स्वास्थ्य हाशिए पर रहता है. काम का तनाव और अव्यवस्थित जीवन शैली के चलते देश  में हर दूसरा व्यक्ति किसी न किसी बीमारी से पीडि़त है. यह तो सब जानते हैं कि बीमारियां न तो समय व पता पूछ कर आती हैं और न ही जेब देखकर. हर बीमारी का सफर अस्पताल पर खत्म होता है. एक बार बीमार पड़ने का मतलब है अपनी सारी जमापूंजी दांव पर लगाना. इसलिए हेल्थ इंश्योरेंस  कराएं ताकि खुद या परिवार को कोई आदमी बीमार पड़े तो इलाज का सारा खर्च अपकी बीमा कंपनी उठाए और आप आर्थिक मोरचे पर निष्चिंत रहें. आज आपात समय में सुरक्षा बनकर उभर रहा है हैल्थ इंश्योरेंस.  
दिल्ली के व्यवसायी महेश अरोड़ा काफी समय से ब्ल्डप्रैशर और सुगर की समस्या से पीडि़त हैं. इसके चलते उन्हें इन बीमारियों का नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप्प से महंगे इलाज से गुजरना पड़ता है. चूंकि समय रहते उन्होंने अपनी हेल्थ इंश्योरेंस  नहीं कराया, और अब 55 साल की उम्र में स्वास्थ्य बीमा कराना कतई आसान नहीं है. उन्होंने इस अनुभव से सबक लेते हुए अपने युवा बेटे का सही समय पर हेल्थ इंश्योरेंस  करवा लिया. महेश  जी जानते हैं कि ये आनुवांशिक बीमारियां एक समय बाद उनके बेटे को भी होंगी. तब ये स्वास्थ्य बीमा उसके काम आएगा.

क्यों जरूरी है हेल्थ इंश्योरेंस
हेल्थ केयर फाउंडेश न औफ इंडिया के प्रैसीडेंट डाक्टर केके अग्रवाल कहते हैं कि इस देश  में बिना इंश्योरेंस  के कार या कोई और गाड़ी चलाना जुर्म माना जाता है जबकि दुर्भाग्वश  दुनिया के सबसे महंगे व्हीकल यानी मानव श रीर का इंश्योरेंस  आवष्यक हो, इस के लिए कोई कानून नहीं है. अगर हर किसी का हेल्थ इंश्योरेंस  हो तो स्वास्थ्य सेवाएं श हर क्या गांवों तक सुचारू रूप से पहुंच सकेंगी. आज भारत की जनसंख्या लगभग 1241491960 है. अगर हर व्यक्ति रोजाना 3 रुपये से कम बतौर प्रीमियम के हिसाब से साल का हजार रुपए देता है तो बीमा कंपनी के पास 124000 करोड़ की भारी धनराषि जमा होती है. जरा सोचिए इतने पैसों से देश  भर में कितने हेल्थ केयर सेंटर और अस्पताल खोले जा सकते हैं. और जो आदमी पैसे नहीं दे सकता उस का प्रीमियम सरकार को देना चाहिए. आज जब दवाओं और चिकित्सा के दाम आसमान छू रहे हैं. एक समय ऐसा भी आएगा जब बिना इंश्योरेंस  के चिकित्सा सुविधा पाना असंभव सा हो जाएगा. इसलिए हेल्थ इंश्योरेंस  सबके लिए बेहद जरूरी है. क्योंकि हेल्थ इंश्योरेंस  बीमाधारक या उस के आश्रित परिजनों को स्वास्थ्य समस्या, दुर्घटना या मृत्यु आदि की स्थिति में आर्थिक सहायता देता है.

हेल्थ इंश्योरेंस क्या है
हेल्थ इंश्योरेंस  यानी स्वास्थ्य बीमा को मेडिक्लेम भी कह सकते हैं. देश  की आबादी का एक बड़ा हिस्सा खासकर ग्रामीण हिस्सा तो हेल्थ इंश्योरेंस  के मायनों से वाकिफ तक नहीं है. आसान लहजे में समझें तो हेल्थ इंश्योरेंस  दो तरह का होता है. पहला इंडिविजुअल हेल्थ इंश्योरेंस यानी  व्यक्तिगत स्वास्थ्य बीमा और दूसरा फैमिली फ्लोटर बीमा यानी सामूहिक बीमा. इंडिविजुअल हेल्थ इंश्योरेंस के कवर क्षेत्र में सिर्फ बीमा स्वामी आता है. इस बीमा का षुल्क सामूहिक बीमा शुल्क की तुलना में अधिक होता है. जबकि फ्लोटर प्लान में बीमा करने वाला या प्रायोजक ही पौलिसी का स्वामी होता है और दूसरे पंजीकृत सदस्य भी पौलिसी में संलग्न होते हैं. उदाहरण के तौर पर अगर पिता ने अपने हेल्थ इंश्योरेंस  के प्लान में पत्नी और बच्चों को पंजीकृत कराया है तो जरूरत पड़ने पर उन को भी कवर किया जाता है. आमतौर पर फैमिली फ्लोटर प्लान को लोग तरजीह देते हैं. भारत में आजकई बीमा कंपनियां हैं जो अच्छी और सुलभ हेल्थ इंश्योरेंस  पौलिसी मुहैयया कराती हैं. हाल ही पंजाब नेश नल बैंक ने इस क्षेत्र में बढती आर्थिक संभावनाओं के चलते मेट लाइफ के साथ करार किया है. इसी तरह आईसीआईसीआई बैंक ने भी लोम्बार्ड कंपनी के साथ हेल्थ इंश्योरेंस  के क्षेत्र में करार किया है. 

यों तो सभी बीमा कंपनी बेहतर सुविधाओं और क्लेम का दावा करती हैं और देती भी हैं पर बीमा के मामाले में सबसे जरूरी बात यही होती है कि हम उससे जुड़े सभी नियमों, श र्तों को भलीभांति समझ लें. कुछ गंभीर रोगों के लिए बीमा कंपनिया कवर नहीं देती इसलिए यह अवश्य पता कर लेना चाहिये कि किन बीमारियों का बीमा होता है और किनका नहीं.

कैसे कैसे हेल्थ इंश्योरेंस  
बाजार में कई तरह की हेल्थ इंश्योरेंस  पौलिसी मौजूद हैं. सब कंपनियां प्रतिस्पर्धा के चलते कम राषि और बेहतरीन सुविधाओं से लैस आकर्शक प्लान दे रहीं हैं.उम्र और बीमारियों के आधार पर सबके लिए अलग अलग पौलिसी मुफीद हो सकती है. बाजार में मौजूदा कुछ हेल्थ प्लान की बात करें तो आईसीआईसीआई लोंबार्ड जनरल की कंप्लीट हेल्थ इंश्योरेंस, हेल्थ केयर प्लस, हेल्थ एडवांटेज प्लस, पर्सनल प्रोटेक्ट, क्रिटिकल केयर पौलिसी के अलावा अवीवा का अवीवा हेल्थ सिक्योर और आई लाइफ, बजाज अलायंज की इंडीविजुअल हेल्थ गार्ड, फैमिली फ्लोटर हेल्थ गार्ड व एक्स्ट्रा केयर, एगौन रेलीगेर का आई हेल्थ प्लान, कौम्प्रिहेंसिव हेल्थ प्लान आदि प्रमुख हैं.
इन ढेरों प्लान के तहत हर बीमा कंपनी की अलग अलग क्लेम राषि, प्रीमियम, सेवाएं, सुविधाएं और प्रोसेसिंग हैं. उदाहरण के तौर पर आईसीआईसीआई लोंबार्ड जनरल की कंपनलीट हेल्थ पौलिसी में 10 लाख तक का कवर मिलता है. इसके अंतर्गत 46 साल से कम उम्र वाले बीमा ग्राहक को मेडिकल टेस्ट की कोई जरूरत नहीं होती. अगर बात उम्र की करें तो इसे कोई भी ले सकता है. फिर भी कागजी तौर पर फैमिली फ्लोटर पौलिसी के लिए 3 महीने और इंडीविजुअल प्लान के लिए 6 साल है. इसके अलावा प्लान में पौलिसी लागू होने के 30 दिनों के अंदर किसी बीमारी पर क्लेम की सुविधा नहीं हैं सिवाए एक्सीडेंट की घटना के. इसी तरह क्लेम को लेकर और भी कई नियम होते हैं जो बीमा एजेंट पौलिसी देने से पहले ग्राहकों को बताते हैं. 
इसी कंपनी का एक और प्लान हेल्थ एडवांटेज प्लस ओपीडी के खर्च भी कवर करता है जबकि अन्य कई कंपनियां ऐसा नहीं करती. प्लान में 40 हजार से ज्यादा अस्पतालों का भारत भर में नेटवर्क हैं. आप अपने सुविधा से नजदीकी अस्पताल चुन सकते हैं. कुछ हेल्थ इंश्योरेंस  कंपनियां गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर या हृदय संबंधी रोग से पीडि़त होने पर एक बार लाभ देते हैं. इसे एड औन हेल्थ कवर कहते हैं.
आईसीआईसीआई लोंबार्ड के अलावा इंडस इंड बैंक भी हेल्थ इंष्योंरेस देता है. यह अपनी विभिन्न हेल्थ पौलिसी के तहत भारत के 2200 से भी अधिक अस्पतालों में बिना नकदी दिए भर्ती रहने की सुविधा प्रदान करता है. यह भर्ती होने से पहले और अस्पताल से घर जाने के बाद के उपचार के दौरान हुए खर्च को भी भरता है. इनका दावा है कि चिकित्सा व्ययों का अस्पताल से निवृत्ति के 90 दिन तक भुगतान भी बीमा के तहत होता है. भारत की कोई भी अन्य हेल्थ इंश्योरेंस  पौलिसी इस सुविधा की बराबरी नहीं करती. ऐसी कई कंपनी हैं जो अलगअलग राषि के हेल्थ इंष्यारेंस पर कई लुभावनी सुविधाएं देती है. स्वास्थ्य बीमा कंपनी के सभी नियम व श र्तों का विवरिण यहां संभव नहीं. इसलिए जब भी स्वास्थ्य बीमा लें अपने बीमा फार्म को तसल्ली से पढें और एजेंट से सभी षंकाओं का समाधान कराएं.



इंश्योरेंस और राशि 
रही बात कीमत की तो इसकी इसके लिए कोई तय रकम नहीं है. हां, अपनी आय, स्वास्थ्य समस्याओं और जिम्मेदारियों के आधार पर बीमा तय करना फायदेमंद होता है. 21 से 25 साल की उम्र में आप 2 से 3 लाख रुपये का स्वास्थ्य कवर ले सकते हैं. बाद में इस कवर की राषि बढाई भी जा सकती है. वहीं अगर फैबिली मेंबर की आयु 28 से 35 के बीच है तो 3 से 5 लाख का फैमिली फ्लोटर प्लान लेकर बाद में आवष्यकताओं के अनुरूप राषि में इजाफा किया जा सकता है. हालांकि एक्पर्ट मानते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस  जितना जल्दी लिया जाए उतना ही फायदेमंद होता है. क्योंकि बाद में उम्र ज्यादा होने या किसी बीमारी का पता चलने पर या कई बीमा कंपनियां बीमा करने से इंकार कर देती हैं. और जो करती भी हैं उनका प्रीमियम बहुत ज्यादा होता है.
बीमारी, सुविधाएं और कवर
आमतौर पर 45 साल से कम उम्र के हैं तो पॉलिसी लेने से पहले किसी मेडिकल चेकअप की जरूरत नहीं होती. कुछ कंपनियों में यह उम्र 60 साल भी है. सामान्यत रक्तचाप, डाबिटीज, एसजीपीटी, कौलेस्ट्रोल, यूरीन रुटीन, ईसीजी, चेस्ट का एक्सरे, मोतियाबिंद और ग्लूकोमा आदि का मैडिकल टेस्ट करवाना पड़ता है. कुछ बीमारियां  मसलन एचआईवी, मनोरोग आदि कभी कवर नहीं होते. 
कुछ में प्लान ऐम्बुलेंस खर्च, हौस्पिटल का रोजाना का खर्च आदि भी कवर होते हैं. हालांकि मैटरनिटी का खर्च आमतौर पर कवर नहीं होता, लेकिन मैक्स बूपा और अपोलो म्यूनिख जैसी कुछ कंपनियां कुछ सीमा और शर्तों के साथ यह कवर दे देती हैं. हालांकि डाक्टर अग्रवाल का मनाना है कि ओपीडी भी इंश्योरेंस  के दायरे में आना चाहिए. इसके अलावा इंश्योरेंस  के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए और स्वास्थ्य बीमा जीवनपर्यंत चलना चाहिए.
गौरतलब है कि अब हेल्थ इंश्योरेंस सेक्टर में पोर्टेबिलिटी लागू हो चुकी है. इसलिए जब बीमा कंपनी पौलिसी के रिन्यूअल के दौरान प्रीमियम बढाए तो आप कंपनी बदल सकते हैं. हेल्थ इंश्योरेंस  पर टैक्स में भी छूट मिलती है. इसके अलावा समय और धन की बचत के लिए औनलाइन हैल्थ पौलिसी खरीदना एचित रहता है.
        
    गौर करने वाली कुछ बातें
  •    बीमा लेने के दौरान कंपनी को सही सूचनाएं दें अन्यथा क्लेम में मुष्किल होगी.
  •    बीमा की सभी शर्तों और सुविधाएं को अच्छे से समझें.
  •   बीमा लेने से पहले अन्य बीमाओं के दामों की जांच कर लें.
  •   फैमिली के लिए फैमिली फ्लोटर योजना को प्राथमिकता दें.
  •   बीमा एजेंट का लाइसेंस नम्बर अवष्य चेक करें.
  •   बीमा में क्या कवर होगा और क्या नहीं, जरूर पता करें.
  •   कंपनी से जुड़े अस्पतालों के नेटवर्क से अपनी सुलाभता जरूर देखें. 
  •   क्लेम के वक्त का सम एश्योर्ड और लिमिट के बारे में जानकारी लें.
  •  समय और धन की बचत के लिए औनलाइन पौलिसी खरीदें.
  •  हेल्थ इंश्योरेंस  करवाएं और टैक्स छूट का लाभ उठाएं.
  •  फार्म को तसल्ली से पढें और एजेंट से सभी षंकाओं का समाधान कराएं.