Wednesday, September 12, 2012

खबरों के समंदर में नई लहर



उत्तर प्रदेश में जब भी सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन की बात आती है तो ज़ेहन में सबसे पहले बुदेलखंड का नाम आता है. बुंदेलखंड के ज़्यादातर इलाक़े भुखमरी और सूखे का सालों से सामना करते आ रहे हैं. इस वजह से ही यह इलाक़ा विकास की रफ्तार में सबसे पीछे छूट गया है. बहुत कम होता है जब किसी अच्छी खबर के लिए बुंदेलखंड का ज़िक्र हुआ हो. लेकिन यहां पर दो बड़ी खबरों का ज़िक्र कर रहे हैं.

पहली खबर इलाहाबाद के एक किशोर की. 12 साल की छोटी उम्र का उत्कर्ष त्रिपाठी एक अ़खबार निकाल रहा है. इस अखबार का संपादक है, संवाददाता, प्रकाशक और वितरक (हॉकर) वही है. इलाहाबाद के चांदपुर सलोरी इला़के की काटजू कॉलोनी में रहने वाला उत्कर्ष त्रिपाठी पिछले एक साल से हाथ से लिखकर जागृति नामसे चार पृष्ठों का एक साप्ताहिक अ़खबार निकाल रहा है. हाल-फिलहाल में इसके क़रीब 150 पाठक हैं. अपने अ़खबार में उत्कर्ष भ्रूणहत्या, पर्यावरण जैसे सामाजिक मुद्दों पर लिखता है. इसमें कोई खर्चा नहीं है, वह पूरा अखबार अपने हाथों से लिखकर और उसकी फोटो कॉपी करवाकर लोगों तक पहुंचाता है.

दूसरी खबर है उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा से लगे चित्रकूट ज़िले के कर्वी गांव की. इस गांव से निकलने वाले अ़खबार खबर लहरिया को संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने साक्षरता सम्मान के लिए चुना है. यह उपलब्धि शायद ही किसी मीडिया हाउस को नसीब हुई हो. इन दोनों खबरों के दो महत्वपूर्ण सकारात्मक पहलू हैं. पहला तो यह कि बुंदेलखंड जैसे इलाक़े में इस तरह का क्रांतिकारी विकासात्मक परिवर्तन एक नई उम्मीद जगाता है और दूसरे पहलू का फलक थोड़ा बड़ा है. बड़ा इसलिए कि जब पूरे देश में वीर सांघवी और बरखा दत्त जैसे तथाकथित बड़े पत्रकार मीडिया को दलाली के व्यवसाय में तब्दील करे रहे हों तो ऐसे में इस तरह के रूरल जर्नलिज्म का जन्म सुकून भरा है.

 ऐसा सुकून जिसमें एक बड़ी क्रांति के बीज छिपे हुए हैं. किसी भी देश या राज्य के बहुआयामी विकास में जनसंचार माध्यमों की भूमिका अहम हो जाती है. इसी के माध्यम से सरकारी योजनाओं और नीतियों की जानकारी लोगों तक पहुंच पाती है. लेकिन पिछले कुछ समय से मीडिया की भूमिका एक व्यवसायिक कंपनी की तरह हो गई है, जो कि स़िर्फ मुना़फा देने वाले ग्राहकों के हितों का ही ध्यान रखते हैं. इसी तरह हमारी राष्ट्रीय मीडिया में भी स़िर्फ महानगरों और उन लोगों के मुद्दे उठाए जाते हैं, जिनसे उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर फायदा पहुंचता है. इसी वजह से गांव में एक तरह से संचार का खालीपन पैदा हो गया है.




 गांव और किसानों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने वाला मीडिया जब अपने ही फर्ज़ से दूर हो रहा है, ऐसे में आंचलिक पत्रकारिता का सहारा बचता है. और इस काम को खबर लहरिया और जागृति ने ब़खूबी संभाला है. ज़रूरत है तो इन्हें भरपूर सहयोग और ब़ढावा देने की. अगर उन्हें उचित सहयोग और प्रोत्साहन मिलता रहे तो संचार के इस खालीपन को इस वैकल्पिक मीडिया के द्वारा भरा जा सकता है. अंचलों से निकलने वाली पत्र-पत्रिकाएं समाचार-पत्र उस क्षेत्र-विशेष की भाषा और ज़रूरत को समझते हैं तथा स्थानीय लोग भी ऐसे माध्यमों से जुड़ाव महसूस करते हैं. ग़ौरतलब है कि चमेली देवी पुरस्कार से सम्मानित खबर लहरिया नौ नवसाक्षर महिलाओं ने लगभग चार साल पहले शुरू किया था. इस अ़खबार को निकालने वालों में से किसी ने भी पत्रकारिता का विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया है. यह अ़खबार महिला सशक्तीकरण का अद्‌भुत उदाहरण है. ऐसा सशक्तीकरण जो सरकारी योजनाओं के सहारे न होकर गांव की पिछड़ी और दलित महिलाओं के बलबूते हुआ है. हिंदी की उपबोली बुंदेली में प्रकाशित यह आंचलिक समाचार पत्र को दलित ग्रामीण महिलाओं द्वारा निरंतर नामक अशासकीय संस्था के प्रोत्साहन से निकाला जाता है.

इस अखबार को इला़के की बेहद ग़रीब, आदिवासी और कम-पढ़ी लिखी महिलाओं की मदद से निकाला जा रहा है. अ़खबार में सभी क्षेत्रों से जु़डी खबरें होती हैं, लेकिन पंचायत, महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास की खबरों को ज़्यादा महत्व दिया जाता है. दो रुपए की क़ीमत वाले इस अ़खबार की संपादक मीरा के मुताबिक़ उनका अ़खबार बुंदेलखंड की आदिवासी कोल महिलाओं में शिक्षा की भूख जगाने में मदद कर रहा है. इतना ही नहीं इस अ़खबार के तहत महिलाओं को पत्रकारिता का भी प्रशिक्षण दिया जाता है. इस कोर्स को रूरल जर्नलिज्म कोर्स कहते हैं. 20,000 से अधिक पाठकों वाले इस अ़खबार की बदौलत कई विकास कार्य मसलन गांव की सड़कें बनी हैं. नहर खुदी हैं और स्कूल खुले हैं.



हालांकि क़ाग़जों में यह काम पहले ही हो चुके थे पर हक़ीक़त में तब हुए जब खबर लहरिया ने इन्हें अपने बेबाक़ अंदाज़ में प्रकाशित किया. तमाम सरकारी योजनाओं की घोषणा की खबरें समय-समय पर इस अ़खबार में छपती रहती हैं और इन सूचनाओं को ही ताक़त बनाकर गांव का आदमी अपने हक़ की लड़ाई लड़ने लगा है. इसे ही इस वैकल्पिक मीडिया की शक्ति कह सकते हैं. इसमें विज्ञापन और पेज-थ्री का ग्लैमर नहीं है और न ही गला काट प्रतियोगिता. यहां स़िर्फ सामाजिक सरोकार और जनहित से जुड़े मसले उठते हैं. इनमें प्रशासन के खिला़फ आवाज़ उठाने का माद्दा है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस आंचलिक पत्रकारिता पर अभी तक कॉरपोरेट और दलालों की छाया नहीं पड़ी है. उम्मीद की जानी चाहिए कि बुंदेलखंड की तर्ज़ पर अन्य राज्यों के पिछड़े इलाक़ों में भी सच की आवाज़ बनने वाले इस वैकल्पिक मीडिया को ब़ढावा मिलेगा.

Friday, September 7, 2012

टीम इंडियाः चारों खाने चित्त


अभी कुछ ही दिनों पहले भारत के ख़िला़फ दूसरे टेस्ट में जीत दर्ज करने के बाद इंग्लैंड की तऱफ से दो ऐसे अप्रत्याशित वाकए सामने आए, जो भारतीय मीडिया और कुछ वरिष्ठ खिलाड़ियों को नागवार गुजरे. पहली बार जब इंग्लैंड टीम ने एक प्रेस कांफ्रेंस में यह दावा किया था कि हम पूरी सीरीज में भारत का सूपड़ा साफ कर देंगे. दूसरी घटना, जब लंदन के मीडिया ने भारतीय टीम पर अपमानजनक और आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए यह कहा था कि भारतीय टीम उस कुत्ते की तरह है, जिससे अगर डरा न जाए तो वह ख़ुद ही डर कर भाग जाता है. दोनों ही मामलों में भारत के पास जवाब देने के लिए दो टेस्ट बाक़ी थे.

जैसा कि कहते हैं कि इस जेंटलमैन गेम में हर बात का मुंह तोड़ जवाब अपने प्रदर्शन से दिया जाता है, टीम इंडिया भी बचे हुए दोनों टेस्टों में इंग्लैंड को धूल चटाकर यह साबित कर सकती थी कि लंबे समय बाद इंग्लैंड क्रिकेट टीम की जीत के बाद वहां का मीडिया पगला और बौखला गया है और फिर इंग्लैंड की गीदड़ भभकी दुनिया के सामने जगज़ाहिर हो जाती. अब इस पर जल्दी विश्वास नहीं होता कि यह वही टीम इंडिया है, जिसने विश्व विजेता ऑस्ट्रेलिया के विजय रथ को रोका था, टी-20, आईपीएल और वर्ल्डकप की हैट्रिक लगाई थी. आम तौर पर ऐसा होता है कि जो टीम सिलसिलेवार जीतती जाती है, उससे अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं. क्रिकेट प्रेमियों की हर अपेक्षा पर खरा उतरना आसान भी नहीं है, लेकिन जिस तरीक़े से इस सीरीज में टीम इंडिया चारों खाने चित्त रही, यह उम्मीद तो हम किसी नई नवेली टीम से ही कर सकते हैं. लेकिन हुआ क्या?

 आख़िरकार वही, जिसके आसार बहुत पहले से  दिख रहे थे. भारत पूरी सीरीज में हर क्षेत्र में चारों खाने चित्त दिखा. अपने दावों को इंग्लैंड ने सही साबित किया और टीम इंडिया की आख़िरी हार एक पारी और आठ रनों से हुई. इसके साथ ही भारत इंग्लैंड से टेस्ट सीरीज 0-4 से हार गया. इस हार के बाद भारतीय टीम आईसीसी की टेस्ट टीमों के वरीयता क्रम में तीसरे स्थान पर पहुंच गई है. नंबर वन पर इंग्लैंड और दूसरे नंबर पर दक्षिण अफ्रीका पहुंच गया है. कल तक टीम इंडिया के लिए मिस्टर लकी के नाम से मशहूर महेंद्र सिंह धोनी का लक कब बैडलक में बदल गया, किसी को भी पता नहीं चला. अभी तक धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया हारी नहीं थी और अब हारी है तो ऐसी कि किसी को मुंह दिखाते नहीं बन रहा है. धोनी की कप्तानी में यह पहला मौक़ा है, जब भारत कोई टेस्ट सीरीज हारा है. आपको बता दें कि पिछले चालीस सालों में भारत की यह सबसे बड़ी और शर्मनाक हार है. धोनी कहते हैं कि इस हार के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे खिलाड़ी चोटिल रहे और हम अपनी क्षमता के अनुरूप अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए. धोनी ने इसके लिए अपर्याप्त अभ्यास को भी दोषी ठहराया. लेकिन जब टीम इंडिया जीत रही थी, तब धोनी ने यह मसला क्यों नहीं उठाया. इस हार के बाद टीम इंडिया की चारों ओर आलोचना हो रही है. मैच के  पांचवें दिन फॉलोऑन खेलते हुए केवल वह 283 रन ही बना पाई. ग़ौरतलब है कि भारत ने पहली पारी में इंग्लैंड के  छह विकेट पर 591 रनों के जवाब में 300 रन बनाए थे. हालांकि सचिन तेंदुलकर और अमित मिश्रा ने आख़िरी दिन कुछ अच्छा खेल दिखाने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और भारत के हाथ से सफलता बहुत दूर निकल चुकी थी. भारत इस सीरीज में एक ओर शर्मनाक तरीक़े से हारा ही, ऊपर से जिन लोगों ने ओवल में सचिन के शतक की आस लगा रखी थी, वे भी नर्वस नाइंटी के शिकार होकर लौट गए यानी हार तो हार भारत को सचिन का सौंवा शतक देखने का भी मौक़ा नहीं मिला. सचिन 91 रन बनाकर एलबीडब्ल्यू हो गए. लॉर्ड्स में हुए पहले टेस्ट से लेकर ओवल में हुए आख़िरी टेस्ट तक भारत की कमान एक थके हुए खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी के पास थी. उनके चयन पर भी अब सवाल उठाए जा सकते हैं. खिलाड़ियों के अलावा मैदान में फिल्डिंग सजाने से लेकर सही समय पर सही गेंदबाज़ों को मोर्चे पर न लगाने में भी उनकी असफलता साफ दिखाई दी. धोनी को इन सब खामियों के जवाब खोजने होंगे, लेकिन भारतीय टीम का नुक़सान स़िर्फ इस सीरीज तक सीमित नहीं है, टीम को इस सीरीज से ऐसे जख्म मिले हैं, जो उसे आने वाले महत्वपूर्ण मैचों में भी दिखाई देंगे. सीरीज में जहां भारत ने क्रिकेट प्रेमियों का दिल तोड़ा है, वहीं टीम के कई खिलाड़ियों की हड्डी भी टूटी है.

 जी हां, इंग्लैंड के ख़िला़फ सीरीज ने टीम इंडिया के खिलाड़ियों की फिटनेस पर सवालिया निशान लगा दिए हैं. आधी टीम इंडिया चोटिल होकर बाहर बैठी है. चोटिल खिलाड़ियों की सूची में विस्फोटक सलामी बल्लेबाज़ वीरेंद्र सहवाग और तेज गेंदबाज़ ईशांत शर्मा का नाम जुड़ गया है. इसके अलावा इस सूची में ज़हीर ख़ान, युवराज सिंह एवं हरभजन सिंह पहले ही सीरीज से बाहर हो चुके थे. टीम इंडिया इस दौरे पर चोटों से ही जूझती रही है. लॉड्‌र्स के पहले टेस्ट मैच में ही ज़हीर ख़ान चोटिल होकर बाहर हो गए. उसी मैच में गौतम गंभीर भी चोटिल होकर बाहर हो गए. उनकी ग़ैर मौजूदगी में राहुल द्रविड़ को सलामी बल्लेबाज़ की भूमिका निभानी पड़ी. इसके बाद भी टीम इंडिया के खिलाड़ियों की चोटों का सिलसिला थमा नहीं. काफी लंबे समय बाद टीम में वापसी करने वाले युवराज सिंह और फिरकी गेंदबाज़ हरभजन सिंह भी इस मैच में चोटिल होकर बाहर हो गए. टीम इंडिया सीरीज में चोटों की वजह से 2-0 से पिछड़ गई थी. इसके बाद अपनी पुरानी चोट से उभरे वीरेंद्र सहवाग ने सीरीज में वापसी की. इसके अलावा गौतम गंभीर और ज़हीर ख़ान भी इस मैच में वापस आए. ज़हीर ख़ान मैच की पहली पारी के दौरान ही चोटिल होकर पूरी सीरीज से बाहर हो गए. इसके अलावा प्रवीण कुमार भी दूसरी पारी में बल्लेबाज़ी के दौरान अपना अंगूठा चोटिल करा बैठे थे. गंभीर और सहवाग भी पूरी तरह से फिट नहीं थे. सहवाग इस वजह से दोनों पारियों में खाता तक नहीं खोल पाए. लिहाज़ा नतीजा यह हुआ कि टीम इंडिया यह मैच भी बुरी तरह चौथे दिन ही हार गई. चौथे टेस्ट तक आते-आते गौतम गंभीर और सहवाग दोनों चोटिल हो गए थे. गंभीर इस मैच में भी पारी की शुरुआत करने नहीं उतर पाए थे. सहवाग भी दूसरी पारी में चोटिल हो गए. इससे पहले ईशांत शर्मा भी गेंदबाज़ी के दौरान अपने बाएं हाथ की उंगली में चोट खा बैठे थे. सहवाग की जगह मुंबई के  सलामी बल्लेबाज़ अजंकया रेहाणे और ईशांत की जगह तेज गेंदबाज़ वरुण अरोड़ा को मौक़ा दिया गया. लेकिन क्या ऐसा संभव है कि अचानक टीम के इतने सारे खिलाड़ी एक साथ चोटिल हो जाएं. असल में पिछले साल से लगातार मुना़फा और क्रिकेट मैच में मिलने वाली कमाई के लोभ में फंसे खिलाड़ी अपनी चोटें छिपाते हैं. गौतम गंभीर का वाकया तो सबको याद होगा. इसके अलावा आईपीएल के दौरान ही सहवाग भी घायल हुए थे, लेकिन उस व़क्त शायद सहवाग ने अपना इलाज कराना ज़रूरी नहीं समझा और इसी का खामियाजा इंग्लैंड में मिली शर्मनाक हार के रूप में भुगतना पड़ा. अब इस पर जल्दी विश्वास नहीं होता कि यह वही टीम इंडिया है, जिसने विश्व विजेता ऑस्ट्रेलिया के विजय रथ को रोका था, टी-20, आईपीएल और वर्ल्डकप की हैट्रिक लगाई थी. आम तौर पर ऐसा होता है कि जो टीम सिलसिलेवार जीतती जाती है, उससे अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं. क्रिकेट प्रेमियों की हर अपेक्षा पर खरा उतरना आसान भी नहीं है, लेकिन जिस तरीक़े से इस सीरीज में टीम इंडिया चारों खाने चित्त रही, यह उम्मीद तो हम किसी नई नवेली टीम से ही कर सकते हैं. अब व़क्त है धोनी और उन सभी खिलाड़ियों के लिए कि वे इस हार पर गहन चिंतन-मनन ज़रूर करें. - See more at: http://www.chauthiduniya.com/2011/09/team-india-defeated-all-around.html#sthash.DShpXJbC.dpuf