वेस्टइंडीज दौरे पर टीम इंडिया ने सीरीज अपने नाम कर फतह तो हासिल कर ली, लेकिन कई मायने में इस जीत को का़फी फीकी कहा जा सकता है. फीकी इसलिए, क्योंकि जिस मुक़ाम और रैंकिंग पर टीम इंडिया आज ख़डी है, उस जगह पर इस टीम से कंप्रोमाइज करने की उम्मीद शायद किसी को नहीं थी. वेस्टइंडीज के आखिरी टेस्ट मैच में धोनी ने जिस तरह 90 गेंदों में 86 रन बनाने को ब़डी चुनौती मानते हुए मैच को ड्रा के अंजाम तक पहुंचाया, वह कहीं न कहीं इस बात की तऱफ इशारा करता है कि टीम इंडिया में अभी भी वर्ल्ड चैंपियन वाला कॉन्फिडेंस पैदा नहीं हुआ है. अजीब बात है, एक तऱफ हम वर्ल्ड चैंपियन होने का दावा करते हैं, वहीं दूसरी तऱफ हम इतना जोखिम भी नहीं ले सकते कि 90 गेंदों में 86 रन बनाने के लिए अपने खिलाडि़यों को मैदान पर उतारें. या फिर इसे यूं कहें कि धोनी को आधी से ज़्यादा टीम पर इतना भी भरोसा नहीं था कि वह इस लक्ष्य को पा सकेगी. इसलिए जल्दी-जल्दी में सीरीज अपने नाम करने के चक्कर में धोनी ने मैच ड्रा करा दिया.
टी-20 के दौर में अगर 15 ओवरों में 86 रन भी बनाने का माद्दा आपमें नहीं है तो फिर आपको किस आधार पर वर्ल्ड चैंपियन का खिताब हासिल है. निश्चित तौर पर धोनी के इस फैसले से क्रिकेट प्रेमियों को निराशा हुई होगी. आ़खिरी टेस्ट मैच में कोई भी इस बात से इत्ते़फाक़ नहीं रखता होगा कि केवल तीन विकेट खोने के बाद 90 गेंदों में 86 रनों का लक्ष्य पाने के लिए आपकी लगभग पूरी टीम ड्रेसिंग रूम में बैठी है और जीत के लिए आप आगे बढ़ने के बजाय ड्रा करने का फैसला कर लें. ड्रा करने का फैसला तो ज़्यादातर हारने वाली टीम लेती हैं. मैच के आ़खिरी दिन वेस्टइंडीज़ ने अपनी दूसरी पारी में छह विकेट पर 224 रनों से आगे खेलना शुरू किया था और चंद्रपाल ने अपना शतक पूरा किया, जिसके लिए उन्हें मैन ऑफ द मैच के खिताब से भी नवाज़ा गया, लेकिन अगर भारत ने पूरा मैच खेला होता तो मैन ऑफ द मैच का दावेदार भारत भी हो सकता था. इसके साथ ही जीत का स्वाद भी बढ़ सकता था, लेकिन धोनी को शायद अपने रिकॉर्ड की चिंता ज़्यादा थी. वह अपनी कप्तानी में जीत का औसत कम नहीं करना चाहते थे. वेस्टइंडीज ने पहली पारी में 204 रन बनाने के बाद दूसरी पारी में 322 रन बनाए थे. भारत की दूसरी पारी की शुरुआत अच्छी नहीं रही और अभिनव मुकुंद को पहली ही गेंद पर एडवर्डन ने पगबाधा आउट कर दिया. इसके बाद राहुल द्रविड़ और मुरली विजय ने पारी को संभाला. विजय ने 45 रन बनाए, वहीं द्रविड़ 34 बनाकर क्रीज पर डटे हुए थे. विजय के आउट होने के बाद रन गति तेज़ करने के लिए रैना को भेजा गया, लेकिन वह 8 रन बनाकर ही आउट हो गए.
द्रविड़ और लक्ष्मण टिक कर खेल रहे थे, उसी दौरान मैच को ड्रा मान लेने का फ़ैसला किया गया. नतीजतन, भारत-वेस्टइंडीज के बीच खेला गया तीसरा और आखिरी टेस्ट मैच बिना किसी हार-जीत के समाप्त हो गया. अगर भारतीय गेंदबाज़ चाहते तो इस मैच का नतीजा निकल सकता था, लेकिन भारतीय कप्तान में जीत का वह जज्बा और आत्मविश्वास ही नहीं दिख रहा था, जिससे लगे कि वह सीरीज पर पूरी तरह क़ब्ज़ा करना चाहते हैं. वहीं वेस्टइंडीज की तऱफ से चंद्रपाल और क्रिक ने अपनी टीम को हार से बचा लिया. दोनों ने मिलकर चौथे विकेट के लिए 161 रनों की भागीदारी निभाई. भारत के तेज़ गेंदबाज़ ईशांत शर्मा को उनके ज़बर्दस्त प्रदर्शन के लिए मैन ऑफ द सीरीज चुना गया. ईशांत ने आ़खिरी टेस्ट में छह विकेट लिए, जबकि पूरी सीरीज़ में उन्होंने 23 विकेट लिए. कप्तान धोनी ड्रा करने के फ़ैसले को सही ठहराते हुए कह रहे थे कि खेलने का फैसला जोखिम वाला होता, क्योंकि अगर हम हारते तो पूरी सीरीज़ की जीत खतरे में पड़ जाती. इसलिए हमने ड्रा करने का फ़ैसला स्वीकार किया. अगर धोनी खुद क्रीज पर आते, उन्होंने द्रविड़ का साथ होता और उनके बाद भी कई बल्लेबाज़ अगर मान लिया जाए कि औसतन 10-15 रन भी बनाते तो क्या मैच जीता नहीं जा सकता था. इस बात पर धोनी को मंथन करने की ज़रूरत है, क्योंकि टेस्ट में जीत के ऐसे मौके कम ही आते हैं. ड्रा करना कोई शान की बात नहीं होती है और न ही ड्रा करने का तरीक़ा इतनी आसान परिस्थितियों में लिया जाता है.
ड्रा तो कप्तान को उस समय करना चाहिए, जब उसे लगे कि मैच जीतना अब नामुमकिन सा है. इस आ़खिरी टेस्ट मैच में कोई भी इस बात से इत्ते़फाक़ नहीं रखता होगा कि केवल तीन विकेट खोने के बाद 90 गेंदों में 86 रनों का लक्ष्य पाने के लिए आपकी लगभग पूरी टीम ड्रेसिंग रूम में बैठी है और जीत के लिए आप आगे बढ़ने के बजाय ड्रा करने का फैसला कर लें. ड्रा करने का फैसला तो ज़्यादातर हारने वाली टीम लेती हैं. इसका मतलब यह मान लेना चाहिए कि धोनी कहीं न कहीं हार के मानसिक दबाव में होंगे और उन्होंने जीतने की सोची ही नहीं. यहां पर धोनी को वर्ल्ड चैंपियन ऑस्ट्रेलिया से सबक़ लेना चाहिए. अगर आपको बादशाहत क़ायम रखनी है तो विपक्षी टीम को पूरी तरह से रौंदना होगा, लेकिन जो जीत धोनी ने वेस्टइंडीज पर हासिल की है, उसमें वह बात नहीं दिखाई देती. इस जीत के लिए तो यही कहा जा सकता है कि जीते तो मगर शान से नहीं. - See more at: http://www.chauthiduniya.com/2011/07/test-series-india-west-do-not-live-in-luxury-on.html#sthash.c67396Td.dpuf