इसके साथ ही शेन वॉर्न का राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव संजय दीक्षित के साथ जो भी विवाद रहा, उससे उनके प्रशंसकों को काफ़ी निराशा हुई. पिछले कुछ सालों से इस तरह के मामलों में खासा इज़ा़फा देखा गया है. हॉकी खिलाड़ियों के आरोपों का समर्थन वेट लिफ्टिंग में चैंपियन रहीं कर्णम मल्लेश्वरी ने भी किया था. उनके मुताबिक़, खेल चाहे कोई भी हो, महिला खिलाड़ियों को हर जगह ऐसी दिक्कतों से गुजरना पड़ता है. अलग-अलग खेलों से जुड़ी महिलाएं विभिन्न मौकों पर इस तरह के यौन शोषण की शिकायत करती रही हैं. एक समय गेंदबाज़ी का सिरमौर रहा यह खिलाड़ी क्यों ऐसी ग़लती कर बैठता है, जिससे उसकी सारी उपलब्धियों पर पानी फिरता नज़र आता है. ड्रग टेस्ट में नाकाम होने के बाद 2003 के विश्वकप से ठीक पहले पाबंदी झेल चुके शेन वॉर्न विवादों का पिटारा साथ लेकर चलते हैं. कभी उन पर महिलाओं को अश्लील संदेश भेजने के आरोप लगते हैं तो कभी विवाहेत्तर संबंधों के कारण वह सुर्ख़ियां बटोरते हैं. सट्टेबाज़ों के साथ कथित रिश्तों के कारण भी वॉर्न को काफ़ी आलोचना झेलनी पड़ी है. मैदान पर गाली-गलौज तो वह कई बार कर चुके हैं. पता नहीं, क्रिकेट के जेंटलमैन इतने बदतमीज क्यों होते जा रहे हैं. बात ऑस्ट्रेलिया की हो तो साइमंड्स का ज़िक्र ज़रूरी है. एक समय ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ी की ज़रूरत बन चुके साइमंड्स आईपीएल में भी शायद अपने करियर का आख़िरी दौर देख रहे हैं. अजीब बात यह है कि उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट से उस समय नाता तोड़ा या यूं कहें कि ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट से वह उस समय किनारे कर दिए गए,
जब उनमें काफ़ी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बची थी, लेकिन मैदान और मैदान के बाहर अपने अजीबोग़रीब व्यवहार के कारण एक अच्छा क्रिकेटर असमय ऑस्ट्रेलियाई टीम से निकल गया. उनका हरभजन के साथ हुआ नस्लवादी टिप्पणी वाला किस्सा तो सभी को याद होगा. साइमंड्स पर भारतीय दर्शकों द्वारा नस्लभेदी टिप्पणियों और श्रीसंत के व्यवहार की बहुत चर्चा रही है. मैदान के बाहर भले ही वह अन्य देशों के खिलाड़ियों से मित्रवत व्यवहार करते हैं, पर मैदान पर उनके दुर्व्यवहार की चर्चा सभी देशो के खिलाड़ी करते हैं. कई बार तो उन्हें सचिन, सौरभ और द्रविड़ जैसे खिलाड़ियों के साथ बदतमीज़ी करते देखा गया है. उनके क्षेत्ररक्षकों द्वारा बल्लेबाज़ों का ध्यान भंग किया जाता, ताकि वे अपनी एकाग्रता खो बैठें और उसमें वे सफल भी रहते हैं. श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया है. मुरलीधरन और उनके चाहने वालों के लिए इससे बड़ी ख़ुशी और क्या हो सकती है कि मुरलीधरन ने अपने आख़िरी टेस्ट में 800वां विकेट लिया और श्रीलंका यह टेस्ट मैच जीत भी गया, लेकिन उनके बॉलिंग एक्शन को लेकर काफ़ी विवाद रहा और कई बार अंपायरों ने मुरली की गेंदबाज़ी पर आपत्ति भी उठाई. बार-बार मुरलीधरन इससे उबरते रहे और अपनी सफलता से आलोचकों को चुप कराते रहे. अब थोड़ा देशी खिलाड़ियों की बात भी कर लेते हैं.
अगर विवाद और भारतीय क्रिकेटरों की बात हो तो जेहन में सबसे पहला नाम श्रीसंत और हरभजन का आता है. हरभजन ने श्रीसंत को थप्पड़ मारकर पाबंदी तो झेली ही, चेतावनी भी झेली और फिर अपने में सुधार किया. श्रीसंत का आक्रामक व्यवहार एक हद तक शोभा देता है, लेकिन कभी-कभी सीमा लांघने से नुक़सान श्रीसंत का ही हुआ है. यही वजह है कि गाहे-बगाहे मैदान पर श्रीसंत के बदतमीज़ी भरे व्यवहार की चर्चा होती रहती है. कभी धोनी उन्हें समझाते नज़र आते हैं तो कभी कोई और वरिष्ठ खिलाड़ी. विश्वकप से पाकिस्तानी टीम के बाहर होने के दूसरे दिन ही कोच बॉब वूल्मर की मौत से इतना तो ज़ाहिर हो गया था कि टीम में काफी कुछ पक रहा है. 2007 के इस विश्वकप की शुरुआत से पहले ही भारतीय उपमहाद्वीप की दो प्रमुख टीमों भारत एवं पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ियों के चयन और उनकी फिटनेस को लेकर तरह-तरह के विवादों ने माहौल बिगाड़ रखा था. पाकिस्तान में शोएब अख्तर जैसा खिलाड़ी डोप टेस्ट में असफल और टीम से बाहर रहा, वहीं शोएब मलिक भी इस मामले में पीछे नहीं रहे. इसी कारण आज पाकिस्तान क्रिकेट टीम की जो दुर्दशा हुई है, उससे सभी वाक़ि़फ हैं. बॉब वूल्मर की मौत शायद यह भी दिखाती है कि इस उपमहाद्वीप में खेल के नाम पर जो राजनीति हो रही है, वह कितनी गंदी है और अगर इसमें कुछ खिलाड़ी शामिल हैं तो वे किस हद तक बैडमैन हैं. पाकिस्तान क्रिकेट के लिहाज़ से 20-20 वर्ल्डकप का फाइनल और अब वर्ल्डकप 2011 का सेमी फाइनल, दोनों बड़े मैच फ्लाप शो साबित हुए. इन दोनों मुक़ाबलों में टीम को भारत के ख़िला़फ हार झेलनी प़डी.
दोनों ही मैचों के खलनायक टीम के मध्य क्रम के बल्लेबाज़ मिस्बाह उल हक बने. हक ने 20-20 वर्ल्डकप के फाइनल में घटिया शॉट जमाकर टीम की हार पर मुहर लगा दी थी तो अब वह धीमी बल्लेबाज़ी करके पाकिस्तानी जनता की नज़र में खलनायक बन गए हैं. हालांकि यहां मामला थोड़ा अलग था, पर जनता की नज़र में तो टीम विलेन बन ही गई थी. स़िर्फ क्रिकेट ही नहीं, अन्य खेलों में भी खिलाड़ियों की करतूतें सुनने में आती रहती हैं. आमतौर पर फील्ड पर अपने आचरण के चलते विवादों में रहने वाले आस्ट्रेलियाई क्रिकेटरों के बाद वहां के एथलीटों का भी असली चेहरा सामने आया है. पहले एक आस्ट्रेलियाई पहलवान द्वारा भारतीय पहलवान अनिल कुमार से पटखनी खाने के बाद अभद्र इशारा करने पर पदक छीन लिया गया तो अब एक साइकिलिस्ट के ग़लत आचरण के चलते आस्ट्रेलियाई अधिकारियों को शर्मिंदगी झेलनी पड़ी. आस्ट्रेलियाई साइकिलिस्ट शेन पाकिंस पर आरोप है कि उन्होंने मुक़ाबले के दौरान ख़तरनाक ड्राइविंग की, जिससे दक्षिण अफ्रीका और स्कोत्लेंद के साइकिलिस्ट आपस में भिड़ गए. और तो और, इस साइकिलिस्ट ने अपने किए पर माफ़ी मांगने के बजाय अधिकारियों को दो उंगलियों से सैल्यूट करके उनका मज़ाक भी उड़ाया. परिणामस्वरूप अधिकारियों ने उसे रेस से डिसक्वालीफाई कर दिया. कुछ साल पहले शेन को शराब पीकर ह़ुडदंग करने के चलते आस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट स्कॉलरशिप से वंचित कर दिया गया था. अब बात हॉकी की. भारतीय महिला हॉकी तो हमेशा से कई विवादों से जूझती रही है, लेकिन सबसे बड़ा मसला यौन शोषण वाला रहा, जिसने कोच के साथ-साथ पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया.
ग़ौरतलब है कि महिला हॉकी टीम के वीडियोग्राफर की आपत्तिजनक तस्वीरों के बाद उन्हें निलंबित तो कर दिया गया, लेकिन बड़ा मुद्दा कोच एम के कौशिक से जुड़ा था, जिन पर महिला खिलाड़ियों के यौन शोषण का आरोप है. आरोप लगा, तब कौशिक ने पहले तो इसे साजिश कहा और फिर जब मामले ने तूल पकड़ लिया तो इस्तीफे की पेशकश कर दी इस विवाद ने खिलाड़ियों और कोच के व्यवहार को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए. इस विवाद ने एक लंबी बहस को जन्म दिया. कुछ लोग इसे नज़रिए से जोड़कर देखने लगे तो कुछ लोग इसे साजिश का रूप मानते हैं. लोग कहते हैं कि एक्सरसाइज़ में बदन तो दिखता ही है, तो उस पर कोच की नज़र को लेकर सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए. इससे समझ में आ सकता है कि टीम मैनेजमेंट में रहने वाले पुरुषों का लड़कियों को लेकर क्या नज़रिया रहता होगा और वे उनसे कैसे बर्ताव करते होंगे. यहां ग़ौर करने वाली बात यह है कि कोच एम के कौशिक पर जो गंभीर आरोप लगे हैं, वे ख़ुद खिलाड़ियों ने लगाए हैं. ये वे खिलाड़ी हैं, जिन्हें मालूम है कि यदि झूठे आरोप लगाए गए तो उन्हें टीम में कभी जगह नहीं मिलने वाली. उनकी आवाज़ को कुछ पुराने खिलाड़ियों के बयानों से भी ताक़त मिली है.
महिला खिलाड़ियों का कहना है कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है और जैसे ही मामले की एक कड़ी सामने आई, उससे जुड़ी कई कहानियों के पन्ने खुलने लगे. इन खिलाड़ियों की मानें तो कोच के व्यवहार को लेकर पहले भी कई बार शिकायतें होती रही हैं, लेकिन ऐसी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता, बल्कि शिकायत करने वाली लड़की को ही बड़ी बेशर्मी के साथ टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. हॉकी खिलाड़ियों के आरोपों का समर्थन वेट लिफ्टिंग में चैंपियन रहीं कर्णम मल्लेश्वरी ने भी किया था. उनके मुताबिक़, खेल चाहे कोई भी हो, महिला खिलाड़ियों को हर जगह ऐसी दिक्कतों से गुजरना पड़ता है. अलग-अलग खेलों से जुड़ी महिलाएं विभिन्न मौर्ज्ञेो पर इस तरह के यौन शोषण की शिकायत करती रही हैं. पिछले साल हैदराबाद में एक महिला मुक्केबाज़ ने ख़ुदकुशी कर ली. अपने सुसाइड नोट में उसने लिखा था कि उसे उसका एक पुरुष कोच तंग कर रहा था. आंध्र प्रदेश की महिला क्रिकेटरों ने भी आरोप लगाया था कि टीम में चयन के लिए बीसीसीआई के एक अधिकारी ने उनसे सेक्स को लेकर छूट लेनी चाही थी. बिना किसी सबूत के इस तरह के आरोपों को साबित करना आमतौर पर मुश्किल होता है. पहलवान से मॉडल बनी एक लड़की ने आरोप लगाया कि उससे भी ऐसी छूट लेने की कोशिश की गई. उसका कहना है कि मामला यौन उत्पीड़न भर का नहीं, भ्रष्ट अफसरों का है, जो किसी को टीम में शामिल करने से पहले उससे तरह-तरह के फेवर चाहते हैं, चाहे वह मर्द हो या औरत.
हालांकि यह कहना कि स़िर्फ सारे कोच ही भ्रष्ट हैं, ग़लत होगा. कई बार ऐसा भी होता है कि टीम में जगह पक्की करने के लिए कई खिलाड़ी कोच को इस्तेमाल करते हैं और जब बाद में उनका शोषण होने लगता है तो फिर इस तरह के विवाद पैदा होते हैं. अब कसूर चाहे कोच का हो या फिर खिलाड़ियों का, इतना तो तय है कि इससे खेल की अस्मिता पर सवाल उठते हैं. ऐसा नहीं है कि काजल की इस काली कोठरी में सभी काले हैं. कुछ खिलाड़ी ऐसे भी होते हैं, जो सालों से इस क्षेत्र में हैं और अपनी गरिमा को बचाकर रखते हैं. सचिन इस बात के जीते-जागते उदाहरण हैं. इन सभी खिलाड़ियों को एक बात समझनी चाहिए कि ऐसा व्यवहार उनकी उपलब्धियों को बौना करता है. अगर उन्हें सीखना है तो सचिन जैसे खिलाड़ियों से सीखें. वरना जो जनता उन्हें सिर पर बैठाकर स्टार होने का रुतबा देती है, वही अर्श से फर्श तक पहुंचाने का भी माद्दा रखती है.