Wednesday, March 16, 2011

विश्वकप और कुछ खट्टी-मीठी यादें



भारत में क्रिकेट को वह दर्जा हासिल है, जो किसी भी देश के राष्ट्रीय खेल को हासिल नहीं होता. जब बात विश्वकप की हो तो यह किसी महाकुंभ से कम नहीं होता. एक ऐसा महाकुंभ, जिसमें दुनिया भर की टीमें ज़रूर शामिल होती हैं, लेकिन जो क्रेज़ भारतीय दर्शकों में दिखाई देता है, वह कहीं और नहीं. ज़ाहिर है, इतने बड़े महाकुंभ के आगाज़ से लेकर अंजाम तक कई दिलचस्प बातें हमें देखने-सुनने को मिलती हैं, लेकिन कुछ यादें ऐसी भी होती हैं, जो क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में ऐसे निशान छोड़ जाती हैं, जो शायद ही कभी मिटते हों. कुछ यादें गुदगुदाती हैं तो कुछ चेहरे पर शिकन छोड़ जाती हैं. इस अंक में हम आपको अब तक हुए सभी विश्वकप की कुछ ऐसी ही रोचक और कड़वी यादों से रूबरू करा रहे हैं.

बहरहाल पाकिस्तानी खिलाड़ियों को इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई और जमैका पुलिस ने यह कहकर मामला बंद कर दिया कि बॉब वूल्मर की मौत सामान्य थी और उनकी हत्या नहीं की गई थी. तरह-तरह की अफ़वाहें फैलीं और पूरे उपमहाद्वीप की दिलचस्पी क्रिकेट विश्वकप में कम हो गई, क्योंकि पसंद की टीमें तो बाहर ही हो चुकी थीं. फिर भी जब कभी 2007 के विश्वकप की बात होगी, लोगों के मन में यह सवाल ज़रूर उभरेगा कि भारत और पाकिस्तान की टीमों ने कहीं मैच तो नहीं फ़िक्स किया था.

आपको जानकर ताज्जुब होगा कि लॉयड ने मैच जीतने के लिए कैच छोड़ा था.  वेस्टइंडीज़ ने इंग्लैंड के सामने 293 रनों का लक्ष्य रखा था. रिचर्ड्स ने आख़िरी गेंद पर छक्का लगाया था. इंग्लैंड ने जवाब में धीमी शुरुआत की और बॉयकॉट ने दोहरे अंक तक पहुंचने के लिए 17 ओवर ले लिए. एक बार वह रिचर्ड्स की गेंद पर शॉट लगाने के लिए बाहर निकले तो ग़लत खेल गए और कप्तान लॉयड ने उस आसान से कैच को छोड़ दिया. उससे पहले दूसरी तरफ़ खेल रहे ब्रियरली का कैच भी वह छोड़ चुके थे. रिचर्ड्स को लॉयड ने जब बताया कि उन्होंने जानबूझ कर कैच छोड़ा था तो उन्हें चैन मिला. लॉयड के मुताबिक़, हम दिन भर उन दोनों को खेलते देख सकते थे, क्योंकि जितने ओवर वे खेल रहे थे, उतनी कीलें उनके ताबूत में लग रही थीं. बहरहाल लॉयड ने बाद में कहा कि उन्होंने जानबूझ कर कैच नहीं छोड़ा था, क्योंकि यह मैच जीतने की एक ख़राब तकनीक थी.

ऐसी ही एक और दिलचस्प घटना पहले विश्वकप की है. पाकिस्तान और वेस्टइंडीज़ के बीच मैच था. पाकिस्तान ने सात विकेट पर 266 रन बनाए थे. माजिद ख़ान, मुश्ताक़ मोहम्मद और वसीम राजा ने अर्द्ध शतक लगाए थे. जब वेस्टइंडीज़ की पारी शुरू हुई तो सरफ़राज़ नवाज़ की तूफ़ानी गेंदबाज़ी के सामने वेस्टइंडीज़ का कोई खिलाड़ी जमकर नहीं खेल सका. 166 रनों पर वेस्टइंडीज़ का आठवां विकेट गिर चुका था. वेस्टइंडीज़ लगभग मैच हार चुकी थी. अपील पर अपील जारी थी कि 203 रनों पर नवां विकेट गिर गया और होल्डर का विकेट भी सरफ़राज़ ने ले लिया. सातवें नंबर पर बल्लेबाज़ी करने आए डेरेक मरे सिर्फ़ टिके  हुए थे और उनका साथ दे रहे थे एंडी रॉबर्ट्स और दोनों ने मिलकर आख़िरी विकेट के लिए 64 रनों की नाबाद पारी खेली. इस तरह से पाकिस्तान सेमी फ़ाइनल में प्रवेश करने से रह गया और वेस्टइंडीज़ ने आगे चलकर विश्वकप में ख़िताबी जीत हासिल की. डेरेक मरे की वह पारी वनडे में उनकी बेहतरीन पारी रही और दसवें विकेट की वह विश्वकप की सबसे बड़ी साझेदारी रही, लेकिन पाकिस्तान को दो गेंद रहते इस मैच का हारना बहुत दिनों तक सालता रहा.


1992 के विश्वकप में पहली बार दक्षिण अफ्रीका की टीम प्रतिबंध के बाद उतरी थी, जिससे क्रिकेट जगत में एक नया उत्साह था और दूसरी टीमों में एक तरह का संकोच भी था कि न जाने उनकी टीम कैसी है. दक्षिण अफ्रीका ने धमाकेदार खेल दिखाया और सेमी फ़ाइनल में प्रवेश किया. विवाद की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आ रही थी, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के मौसम और क्रिकेट के डकवर्थ लुइस नियम ने दक्षिण अफ्रीका को जो नुक़सान पहुंचाया, उसे कोई नहीं भूला. इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका का मैच था. खेल 10 मिनट देर से शुरू हुआ और लंच में से यह समय काट लिया गया, लेकिन कोई ओवर नहीं काटा गया. उसके बाद स्थानीय समयानुसार जब इंग्लैंड की पारी 6.10 तक ख़त्म नहीं हो सकी तो उसकी पारी में से ओवर कम कर दिए गए और मैच हो गया 45 ओवरों का, जिसमें इंग्लैंड ने 252 रन बनाए. दक्षिण अफ्रीका ने खेल शुरू किया और वह 42.5 ओवरों में छह विकेट के नुक़सान पर 231 रनों पर पहुंच गया. लेकिन फिर डकवर्थ लुइस नियम लागू हुआ और जब दोबारा खेल शुरू हुआ तो दक्षिण अफ्रीका को एक गेंद पर 21 रन बनाने थे और स्कोर बोर्ड पर जब यह लिखा आया तो पता चला कि दक्षिण अफ्रीका मैच हार चुका है, बस औपचारिकता ही बची है. दक्षिण अफ्रीका इतिहास रचने से वंचित हो चुका था.

एक और घटना. जावेद मियांदाद और विवाद एक-दूसरे के पर्याय बन चुके थे. बात है 1992 के विश्वकप में भारत-पाकिस्तान मैच की. यह एक तथ्य है कि विश्वकप में पाकिस्तान भारत से कभी नहीं जीता, हालांकि ज़्यादा मैच जीतने का रिकार्ड पाकिस्तान के नाम है. जब इन दोनों देशों के बीच मैच हो रहा होता है तो खिलाड़ी ज़बरदस्त दबाव में रहते हैं. यहां तक कि दर्शकों में भी यह दबाव महसूस किया जाता है. यह विश्वकप का 16वां मैच था. भारत ने 49 ओवरों में सात विकेट पर 216 रन बनाए थे और पाकिस्तान के लिए लक्ष्य हासिल करना ज़्यादा मुश्किल नहीं था. आमिर सुहैल और जावेद मियांदाद ने पाकिस्तान का स्कोर दो विकेटों के नुक़सान पर 100 के पार पहुंचा दिया था, फिर अचानक पाकिस्तान के विकेट गिरने शुरू हो गए. मोरे विकेट के पीछे बार-बार उछल-उछल कर अपील कर रहे थे. मियांदाद पर दबाव बढ़ता जा रहा था और उसे ख़त्म करने के लिए अचानक मियांदाद ने मोरे से कुछ कहा और फिर मोरे की तरह कूद कर नक़ल उतारने लगे. ऐसा दृश्य पहले किसी ने नहीं देखा था. पश्चिमी मीडिया ने दूसरे दिन जंपिंग जावेद के नाम से ख़बर छापी. 1996 का विश्वकप भी कई मायनों में विवादों भरा रहा, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने सुरक्षा कारणों से श्रीलंका जाने से इंकार कर दिया और श्रीलंका को बिना मैच खेले ही विजयी घोषित कर दिया गया. बहरहाल श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया की फ़ाइनल में लाहौर में भिड़ंत हुई और श्रीलंका ने आसानी के साथ विश्वकप जीत लिया.

बात 1999 के विश्वकप की. दक्षिण अफ्रीका ने भारत के विरुद्ध अपने पहले मैच में रेडियो सिस्टम का प्रयोग किया. उसके कप्तान और तेज़ गेंदबाज़ एलन डोनाल्ड के पास माइक्रोफ़ोन थे और वह पवेलियन में मौजूद अपने कोच बॉब वूल्मर के साथ जुड़े हुए थे. बॉब उन दोनों को ड्रेसिंग रूम से ही गाइड कर रहे थे. पानी के लिए हुए ब्रेक में मैच रेफ़री बीच में आया और बाद में आईसीसी ने उस तरीक़े को अपनाने का विरोध कर उससे खड़े विवाद को ख़त्म कर दिया. 2007 का विश्वकप क्रिकेट की सबसे दुखद घटना का साक्षी है. पाकिस्तान के दक्षिण अफ्रीकी कोच बॉब वूल्मर होटल में अपने कमरे में मृत पाए गए और वह भी पाकिस्तान की शर्मनाक हार और विश्वकप से विदाई की रात को. इससे पहले ही पाकिस्तान पर मैच फ़िक्सिंग का आरोप था और कई खिलाड़ियों को सज़ा भी दी गई थी. जमैका पुलिस ने हत्या का संदेह ज़ाहिर किया, पाकिस्तानी खिलाड़ियों के मैच फ़िक्सिंग में फंसे होने की आशंका जताई जाने लगी और उनसे


अलग-अलग पूछताछ होने लगी. दूसरी ओर भारत भी बांग्लादेश से मैच हारकर विश्वकप के पहले दौर से ही बाहर हो गया और वह भी ऐसे समय में, जबकि उसे विश्वकप का दावेदार माना जा रहा था. बहरहाल पाकिस्तानी खिलाड़ियों को इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई और जमैका पुलिस ने यह कहकर मामला बंद कर दिया कि बॉब वूल्मर की मौत सामान्य थी और उनकी हत्या नहीं की गई थी. तरह-तरह की अफ़वाहें फैलीं और पूरे उपमहाद्वीप की दिलचस्पी क्रिकेट विश्वकप में कम हो गई, क्योंकि पसंद की टीमें तो बाहर ही हो चुकी थीं. फिर भी जब कभी 2007 के विश्वकप की बात होगी, लोगों के मन में यह सवाल ज़रूर उभरेगा कि भारत और पाकिस्तान की टीमों ने कहीं मैच तो नहीं फ़िक्स किया था.


टॉप टेन फ्लैशबैक


1. विश्वकप की शानदार पारियों में से एक 1983 में कपिल देव की 175 रनों की नाबाद पारी की न वीडियो रिकॉर्डिंग मौजूद है और न ऑडियो कमेंट्री. बताते हैं कि कैमरामैन हड़ताल पर थे.

2. विश्वकप में सबसे स्लो स्पीड से रन बनाने का रिकॉर्ड सुनील गावस्कर के नाम है. उन्होंने वर्ष 1975 के पहले विश्वकप में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 174 गेंदों का सामना करते हुए सिर्फ़ 36 रन बनाए थे. इसमें उनका सिर्फ़ एक चौका शामिल था. उस समय 60-60 ओवरों का मैच होता था.

3. एक ही विश्वकप में सबसे ज़्यादा शून्य पर आउट होने का (चार बार) रिकॉर्ड एबी डीवेलियर्स (दक्षिण अफ्रीका) के नाम है.

4. पहले तीनों विश्वकप इंग्लैंड में आयोजित हुए थे.

5. विवियन रिचर्ड्स ऐसे अकेले क्रिकेटर हैं, जिन्होंने विश्वकप क्रिकेट के साथ-साथ विश्वकप फुटबॉल में भी हिस्सा लिया. वह विश्वकप फुटबॉल में एंटिगा की ओर से खेले थे.

6. 1996 के विश्वकप में ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज़ ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए श्रीलंका में खेलने से इंकार कर दिया. ये दोनों मैच श्रीलंका के हक़ में गए. इसी विश्वकप के सेमी फ़ाइनल में भारत और श्रीलंका के बीच मुक़ाबला हुआ, लेकिन दर्शकों के ख़राब व्यवहार के कारण यह मैच भी श्रीलंका की झोली में गया. हालांकि श्रीलंका का उस समय जीतना तय था.

7. एंडरसन कमिंस ने वर्ष 1992 में वेस्टइंडीज़ और वर्ष 2007 में कनाडा की ओर से विश्वकप खेला. उनसे पहले कैपलर वेसल्स ने वर्ष 1983 में ऑस्ट्रेलिया और 1992 में दक्षिण अफ्रीका की ओर से विश्वकप के मैच खेले.

8. किसी भी विश्वकप में सबसे ज़्यादा बार शून्य पर आउट होने का रिकॉर्ड न्यूज़ीलैंड के  नाथन एस्टल और एजाज़ अहमद के नाम दर्ज है. दोनों खिलाड़ी पांच-पांच बार शून्य पर आउट हो चुके हैं.

9. दक्षिण अफ्रीका के हर्शेल गिब्स विश्वकप के एक मैच में एक ओवर में छह छक्के मारने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं. यह कारनामा उन्होंने 2007 के विश्वकप में नीदरलैंड के ख़िलाफ़ किया था.

10. इतिहास में सबसे कम स्कोर वाला विश्वकप वर्ष 1979 का था. इसमें सिर्फ़ दो शतक लगे थे.

Tuesday, March 15, 2011

क्रिकेट वर्ल्डकप: जाने कहां गुम हो जाती हैं ये टीमे





वर्ल्डकप 2011 अब तक अपने रोमांचक दौर पर है. जैसा कि हर बार होता है, इस बार भी कई उलटफेर हुए और आगे भी होंगे. जिन टीमों को फिसड्डी माना जाता है या यूं कहें कि जिन्हें स़िर्फ ग्रुप की लिस्ट लंबी करने के लिए शामिल किया जाता है, वही टीमें शुरुआती दौर में बड़ी-बड़ी टीमों को हराकर या उन्हें कांटे की टक्कर देते हुए रोमांचक मोड़ पर लाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं. इन टीमों में आयरलैंड, नीदरलैंड, ज़िम्बाब्वे, कनाडा और बांग्लादेश का नाम लिया जा सकता है.

 इन सभी टीमों में एक चीज कॉमन है, वह यह कि इन सभी टीमों के नाम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में स़िर्फ तब सुनाई देते हैं, जब वर्ल्डकप का आयोजन होता है. उसके बाद पता नहीं, ये सारी टीमें कहां ग़ायब हो जाती हैं. हालांकि इस मामले में कुछ हद तक बांग्लादेश को अपवाद माना जा सकता है. यह टीम कभी-कभी एशियाई देशों में होने वाली क्रिकेट प्रतिस्पर्धाओं में खेलती हुई ऩजर आ जाती है, लेकिन प्रदर्शन वही ढाक के तीन पात वाला ही रहता है. अपनी पिचों और 35,000 लोगों के बीच किसी भी टीम का हौसला बढ़ सकता है. ऐसे में वह कोई बड़ा चमत्कार करे तो कोई आश्चर्य नहीं. इसके अलावा एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस तरह की टीमों के पास खोने के लिए कुछ खास नहीं होता. ऐसे में उन पर जीतने का कोई खास दबाव नहीं होता है और उस दबाव मुक्त माहौल में वे बेहतरीन प्रदर्शन कर जाती हैं.

फिर भी यह यक्ष प्रश्न तो अभी भी क़ायम है कि आ़खिर इन टीमों का अस्तित्व वर्ल्डकप से कभी बाहर निकलेगा या फिर ये सिर्फ ग्रुप लिस्ट बढ़ाती ही ऩजर आएंगी. कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि विश्वकप में अपने उलटफेर प्रदर्शन से बड़ी-बड़ी टीमों के छक्के छुड़ाने वाली इन नई नवेली टीमों का आ़खिर बाद में क्या होता है. इस प्रतिस्पर्धा के खत्म होने के बाद ये कहां गायब हो जाती हैं. बाद में जब भी कोई बड़ी क्रिकेट प्रतियोगिता होती है तो इन्हें उसमें शामिल क्यों नहीं किया जाता है. अगर इनका प्रदर्शन इतना ही खराब होता तो फिर ये उलटफेर क्यों करतीं, जैसा कि इस बार इंग्लैंड और का़फी हद तक पाकिस्तान के साथ हो चुका है. अगर इस पर यह तर्क दिया जाए कि ये उलटफेर स़िर्फ तुक्के के बल पर हुए हैं तो इसका मतलब ये टीमें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भाग लेने लायक हैं ही नहीं. आ़खिर कब तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वहीं गिने-चुने देशों के नाम सुनाई देते रहेंगे? क्या कभी ऐसा भी होगा, जब टॉप रैंकिंग में इन नई नवेली टीमों को भी जगह मिलेगी? इसके पीछे की असल वजह क्या है, इस पर जानकारों की अलग-अलग राय हो सकती है, लेकिन इतना तो तय है कि पिछले कई सालों से हम इस तरह की टीमों को स़िर्फ लिस्ट भरने के तौर पर ही देखते आ रहे हैं और शायद आगे भी यही देखते रहेंगे. इसका मतलब तो यही हुआ कि दूसरे देशों की टीमों को कभी नया मुकाम हासिल ही नहीं होगा. अगर ऐसा है तो यह बहुत सारे देशों की प्रतिभाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ होगा. हर बार कोई कमज़ोर सी टीम दिग्गज को पटक देती है और फिर पूरे वर्ल्डकप का समीकरण ही बदल जाता है. आयरलैंड ने इंग्लैंड को हराकर ऐसा ही किया है. हालांकि आयरलैंड की जीत के पीछे इंग्लैंड की दिशाहीन गेंदबाजी और घटिया क्षेत्ररक्षण की भी अहम भूमिका रही. इंग्लिश टीम को अपनी इन ग़लतियों का खामियाजा उलटफेर का शिकार होकर भुगतना पड़ा.

 इसके बावजूद आयरलैंड की मेहनत कम नहीं हो जाती. पिछले विश्वकप में भी पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसी टीमों को उलटफेर का शिकार बनाकर सनसनी फैलाने वाले आयरलैंड का नाम बीच में किसी प्रतिस्पर्धा में नहीं सुना गया. आयरलैंड के अलावा और भी कई टीमें हैं, मसलन हॉलैंड, कनाडा और नीदरलैंड, जो किसी भी मैच में खेल का रु़ख बदलने का माद्दा रखती हैं. बांग्लादेश का पूरा करियर ही उलटफेर की कहानी पर टिका हुआ है. इतने सालों के दौरान बांग्लादेश का नाम कभी भी टॉप रैंकिंग में नहीं आया. इस बार बांग्लादेश पहली बार वर्ल्डकप की मेजबानी कर रहा है. बांग्लादेश ने यह तो दिखा दिया कि अब वह भी ऐसे आयोजनों की मेजबानी करने में सक्षम है, लेकिन क्या वह आगे होने वाले मैचों में यह दिखा पाएगा कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उसका प्रदर्शन विश्वसनीय है. बांग्लादेश के लिए सबसे अच्छा वर्ल्डकप 2007 का था, जहां उसने पहले चरण में भारत को हराकर सुपर आठ में प्रवेश किया. सुपर आठ में भी उसने दक्षिण अफ्रीका को हराया. हालांकि इसके बाद वह सभी मैच हार गया, लेकिन इन दो ज़बरदस्त उलटफेरों ने उसे अचानक लाइम लाइट में ला दिया. उसके बाद से यह टीम आज तक छोटे-मोटे उलटफेरों के दम पर ही टिकी हुई है. इसने कभी भी यह साबित नहीं किया कि यह ए लिस्ट की रैंकिंग में शामिल होने लायक है. पिछले दो सालों में बांग्लादेश की टीम में बहुत परिवर्तन आया है. जहां उसने विदेशी धरती पर जाकर अच्छा प्रदर्शन किया है, वहीं घरेलू पिच पर भी बांग्लादेश ने पहले न्यूज़ीलैंड और फिर ज़िम्बाब्वे को एक दिवसीय सीरीज़ में हराया. अतः हम कह सकते हैं कि बांग्लादेश कुछ भी करने में सक्षम है. भारत के अलावा पाकिस्तान भी इस तरह के उलटफेरों का शिकार हो चुका है.



याद कीजिए 1999 का वर्ल्डकप, बांग्लादेश ने क्रिकेट वर्ल्डकप में पहली बार भाग लिया था. उस बार उसने लीग मैच में उलटफेर करते हुए पाकिस्तान को हराया था, लेकिन दूसरे मैचों में उसका प्रदर्शन खराब रहा. अतः उसे पहले दौर में ही बाहर होना पड़ा. ऐसा कोई नियम नहीं है कि इस तरह के उलटफेर करने वाली टीमें ए ग्रेड में नहीं आ सकती हैं. याद कीजिए 1983 का वर्ल्डकप, भारतीय टीम बेहद कमज़ोर मानी जाती थी. फिर भी किसी तरह वह वर्ल्डकप के फाइनल तक पहुंच गई. कुछ ने इसे तुक्का तो कुछ ने तक़दीर का खेल बताया. फाइनल में पहले बल्लेबाजी करते हुए टीम मात्र 183 रनों पर आउट हो गई. ज़्यादातर लोगों ने यह पक्का कर दिया कि यहां से भारत स़िर्फ उपविजेता ही बन सकता है, लेकिन बाद में मोहिंदर अमरनाथ की जादुई गेंदबाजी और कपिलदेव के करिश्माई कैच ने भारत को विश्व चैंपियन बना दिया. निश्चित तौर पर यह वर्ल्डकप का अब तक का सबसे बड़ा उलटफेर है. इसके दम पर चैंपियन बनने वाली उस व़क्त की कमज़ोर भारतीय टीम आज नंबर वन की पोजीशन में है. इससे यह तो साबित होता है कि पहली बार खेलना इस बात का ठप्पा नहीं हैं कि आप आगे भी न खेल पाओ. इसके अलावा कुछ और बड़े उलटफेरों पर ग़ौर फरमाइए. 2007 में आयरलैंड बनाम पाकिस्तान का मैच. भला उस मैच को कोई कैसे भूल सकता है. पिछले वर्ल्डकप में पाकिस्तान की टीम आयरलैंड की कमज़ोर टीम के सामने 132 रनों पर ऑल आउट हो गई थी. इसके बाद खुद आयरलैंड के सात विकेट 113 रनों पर गिर गए. उसी दौरान ट्रेंट जॉनटन ने छक्का मारकर अपनी टीम को ऐतिहासिक जीत दिला दी. उस रात पाकिस्तान के कोच बॉब वूल्मर को दिल का ऐसा दौरा पड़ा कि वह कभी उठ नहीं पाए. पाकिस्तान वर्ल्डकप से बाहर हो गया. पिछले वर्ल्डकप में अगर आयरलैंड ने पाकिस्तान को बाहर किया तो पिद्दी समझे जाने वाले बांग्लादेश ने भारत को. टीम इंडिया ने 191 रनों का कमज़ोर स्कोर बनाया, जिसे बांग्लादेश की टीम ने आसानी से पार कर लिया. इसी हार के बाद भारत को बाहर जाना पड़ा. इसी तरह 1983 में एक तरफ बॉर्डर, मार्श लिली और थॉमसन जैसे क्रिकेटरों से सजी ऑस्ट्रेलिया की टीम थी तो दूसरी तऱफ क्रिकेट की दुनिया में पहला क़दम रख रही जिम्बाब्वे. पर डंकन फ्लेचर की जादुई पारी के साथ जिम्बाब्वे ने 239 रन बना डाले, नतीजतन आस्ट्रेलिया हार गया.

2003 के वर्ल्डकप में केन्या ने भारतीय क्रिकेटर संदीप पाटिल की कोचिंग में ज़बरदस्त प्रदर्शन किया और विश्व विजेता रह चुकी श्रीलंका की टीम को परास्त करते हुए सेमी फाइनल तक जगह बना ली. हालांकि विशेषज्ञ कुछ और कारणों का ज़िक्र करते हैं. उनका मानना है कि इस तरह की टीमें उलटफेर कुछ खास कारणों से कर पाती हैं. मसलन वर्ल्डकप में बांग्लादेश के पास सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह मैच अपने घर में खेल रहा है. अपनी पिचों और 35,000 लोगों के बीच किसी भी टीम का हौसला बढ़ सकता है. ऐसे में वह कोई बड़ा चमत्कार करे तो कोई आश्चर्य नहीं. इसके अलावा एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस तरह की टीमों के पास खोने के लिए कुछ खास नहीं होता. ऐसे में उन पर जीतने का कोई खास दबाव नहीं होता है और उस दबाव मुक्त माहौल में वे बेहतरीन प्रदर्शन कर जाती हैं. फिर भी यह यक्ष प्रश्न तो अभी भी क़ायम है कि आ़खिर इन टीमों का अस्तित्व वर्ल्डकप से कभी बाहर निकलेगा या फिर ये सिर्फ ग्रुप लिस्ट बढ़ाती ही ऩजर आएंगी.

Tuesday, March 8, 2011

करे कोई भरे कोई

हमारे देश में क्रिकेट के अलावा लगभग सभी खेलों की स्थिति एक जैसी है यानी बदहाल और उपेक्षित. भले ही वे क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले खेल हों या फिर राज्य स्तर पर. जब भी इन खेलों का आयोजन होता है, कभी मेज़बानी को लेकर समस्या पैदा हो जाती है तो कभी प्रायोजकों की भागीदारी को लेकर. अगर भूले-भटके उक्त दोनों समस्याओं से निजात मिल भी जाए तो असुविधा और बदइंतज़ामी मार जाती है.


इन सभी समस्याओं से इतर भी एक समस्या है, जिस पर शायद ही किसी का ध्यान जाता हो. यह समस्या है उन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की, जो इन बदइंतज़ामियों के शिकार हो जाते हैं. उनका करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाता है. कई सालों के अथक परिश्रम और प्रशिक्षण के बाद वे इस तरह की प्रतिस्पर्धाओं के लिए तैयार होते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कब ये खेल राजनीति या फिक्सिंग के शिकार होकर उनका करियर चौपट कर देंगे. इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता कि अगर एक बार म़ेजबानी छिन जाए तो कितना नुक़सान होता है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को नुक़सान तो होता ही है, साथ ही राज्य को आर्थिक क्षति भी होती है. उदाहरण के लिए आयोजन के पहले विज्ञापन हेतु लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं.

कई समितियां बनाई जाती हैं, जिन पर मोटा खर्च आता है. इसके अलावा जो बदनामी होती है, वह अलग. 33वें राष्ट्रीय खेलों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही थी. वर्ष 2003-2004 में उसके आयोजन के लिए हरी झंडी भी मिल गई थी, लेकिन आज तक पता नहीं चल पाया कि उस आयोजन के रद्द होने के पीछे क्या कारण थे. ऐसा नहीं है कि इन खेलों का आयोजन एक बार ही रद्द हुआ हो, चार बार राष्ट्रीय खेलों के आयोजन रद्द हो चुके हैं. अब जाकर ये खेल संपन्न हुए हैं. लोग जश्न मना रहे हैं. कई प्रतिस्पर्धाओं में झारखंड के खिलाड़ियों ने कई पदक भी अपने नाम किए हैं, लेकिन इस बार प्रतिस्पर्धा में शामिल होने वाले खिलाड़ी नए थे. इनमें वे खिलाड़ी नहीं थे, जो पिछले आयोजन को लेकर तैयार थे. पुराने खिलाड़ी अपनी प्रतिभा दिखाने से वंचित रह गए. अगर ये राष्ट्रीय खेल सही समय पर होते तो इनकी तस्वीर कुछ और ही होती. खेल संघ को शायद इस बात का अंदाजा नहीं है कि इस दौरान खिलाड़ियों का कितनाक़ीमती वक्त बर्बाद हुआ. उन्हें सही समय पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौक़ा नहीं मिला. ग़ौरतलब है कि हर बार राष्ट्रीय खेलों के ज़रिए खिलाड़ियों की एक नई पीढ़ी उभर कर सामने आती है, लेकिन अगर एक बार प्रतिस्पर्धा रद्द हो जाए या मेज़बानी छिन जाए तो न जाने कितनी प्रतिभाएं गुमनामी में खो जाती हैं.जिन खिलाड़ियों को पिछली बार अवसर नहीं मिला, उनमें से कुछ खिलाड़ी इस बार की प्रतिस्पर्धा में शामिल तो हुए, पर उम्र ज्यादा होने या अन्य कारणों से भाग लेने से वंचित रह गए.

 झारखंड में खेलों की बदहाली के पीछे के कारणों को समझना जरूरी है. दरअसल जब भी इस तरह के आयोजन होते हैं तो सभी राज्यों को मेज़बानी के लिए दावेदारी करनी होती है. यह दावेदारी राज्यों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली बेहतरीन सुविधा के आधार पर मजबूत होती है. बस इसी मामले में झारखंड की हालत ढीली हो जाती है. इस बात पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता कि अगर एक बार म़ेजबानी छिन जाए तो कितना नुक़सान होता है. प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को नुक़सान तो होता ही है, साथ ही राज्य को आर्थिक क्षति भी होती है. उदाहरण के लिए आयोजन के पहले विज्ञापन हेतु लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं. कई समितियां बनाई जाती हैं, जिन पर मोटा खर्च आता है. इसके अलावा जो बदनामी होती है, वह अलग. इस सबके बावजूद झारखंड ने महेंद्र सिंह धोनी के अलावा हॉकी, तीरंदाज़ी, एथलेटिक्स और अन्य खेलों में कई बेहतरीन खिलाड़ी दिए हैं. सोचने वाली बात यह है कि अगर इस सुविधाविहीन माहौल में इतनी प्रतिभाएं पैदा हो सकती हैं तो फिर अगर सब कुछ सही समय पर और सुविधाओं के साथ हो तो खेलों और खिलाड़ियों का भविष्य कितना उज्ज्वल होगा. 

विश्‍वकप- 2011: आगाज खूबसूरत है अंजाम क्‍या होगा




ढाका के ऐतिहासिक बंग बंधु स्टेडियम में विश्वकप का आ़गा़ज एक भव्य समारोह के साथ हो गया. समारोह में दुनिया भर के सुप्रसिद्ध कलाकारों के साथ-साथ विश्वकप में भाग लेने वाली 14 टीमों के कप्तानों ने भी अपने जलवे दिखाए. उद्घाटन समारोह के साथ ही सभी टीमों ने अपनी-अपनी जीत की दावेदारी की. विश्वकप उद्घाटन समारोह कई मायनों में भव्य और खास रहा. समारोह में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना ने औपचारिक रूप से विश्वकप शुरू होने की घोषणा करते हुए कहा कि यह प्रतियोगिता सफल होगी. इस मौके पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के प्रमुख शरद पवार भी मौजूद थे. इस रंगारंग कार्यक्रम में सबसे पहले बांग्लादेश के गायकों ने समां बांधा, फिर बारी आई सभी 14 टीमों के कप्तानों की. पहले मैदान के बीचोंबीच ठेले पर लोगो स्टंपी आया, फिर टीमों के कप्तान छोटे बच्चों के साथ सजे-धजे रिक्शे पर बैठकर आए. इस दौरान पूरा स्टेडियम विश्वकप थीम गीत-दे घुमा के से गूंज रहा था.

विश्वकप के लिए टीम इंडिया ने जो रणनीति बनाई थी, वह लीक हो गई. विश्वकप जैसी बड़ी प्रतियोगिता में दबदबा बनाने के लिए हर टीम अपनी एक खास रणनीति बनाती है. ज़ाहिर है, भारत ने भी एक रणनीति बनाई थी. टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और कोच गैरी कर्स्टन ने मिलकर अपनी योजना 150 पेजों के दस्तावेज में दर्ज की है. इस दस्तावेज को धोनी और कर्स्टन ने आओ अपना सपना साकार करें नाम दिया है, लेकिन टीम इंडिया का यह गुप्त दस्तावेज मीडिया में लीक हो गया है.

ग़ौरतलब है कि विश्वकप थीम को शंकर-एहसान-लॉय की तिकड़ी ने कंपोज किया है. इसी क्रम में पहले तीन बार के चैंपियन रिकी पोंटिंग बंग बंधु स्टेडियम पहुंचे. हर कप्तान के साथ रिक्शे में एक बच्चा था. पोंटिंग के बाद कनाडा के  कप्तान आशीष बगई, इंग्लैंड के कप्तान एंड्रयू स्ट्रॉस, आयरलैंड के कप्तान विलियम पोर्टरफील्ड, केन्या के जिमी कमांडे, हालैंड के पीटर बोरेन, न्यूजीलैंड के डेनियल विटोरी, पाकिस्तान के शाहिद आफरीदी, दक्षिण अफ्रीका के ग्रीम स्मिथ, वेस्टइंडीज के डेरेन सैमी और जिंबाब्वे के एल्टन चिगुंबुरा स्टेडयम में आए. फिर भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने इंट्री की. धोनी के बाद श्रीलंकाई कप्तान कुमार संगकारा और फिर मेजबान बांग्लादेश के कप्तान शाकिब अल हसन ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच स्टेडियम में प्रवेश किया. मशहूर गायक सोनू निगम ने अंग्रेजी गीत राइज अप फोर ग्लोरी गाकर सबको झूमने पर मजबूर कर दिया. रूना लैला के गीत दमादम मस्त कलंदर की भी ख़ूब सराहना हुई. इसके बाद अंतरराष्ट्रीय पॉप गायक ब्रायन एडम्स ने अपनी गायिकी का जादू बिखेरा. आख़िर में शंकर, एहसान और लॉय ने दे घुमा के गाकर माहौल में जोश भर दिया. इसके बाद हुई जमकर आतिशबाज़ी. रोशनी से जगमग स्टेडियम आतिशबाज़ी से गूंज उठा और एक अच्छे विश्वकप के आयोजन के वादे के साथ ख़त्म हुआ उद्घाटन समारोह.

हमारा देश इस महा आयोजन का आयोजक देश होने पर गर्व की अनुभूति कर रहा है.

- शेख हसीना, प्रधानमंत्री, बांग्लादेश


यह तो था विश्वकप का आग़ाज़, लेकिन इसका अंजाम भी इतना ही खूबसूरत होगा, इस बात को लेकर खेलप्रेमियों से लेकर आयोजकों तक के मन में संशय बरक़रार है. इस संशय की वजह हैं, मैच के पहले ही सुर्खियों में आईं विवादास्पद खबरें. हालांकि कई खबरों में का़फी हद तक सच्चाई भी है. अपने घर में विश्वकप खेल रही टीम इंडिया इस खिताब को जीतने के लिए पूरे जोश में है. कई कीर्तिमान रच चुके महेंद्र सिंह धोनी अपने नाम एक और इतिहास करने को आतुर हैं. इसके लिए उन्होंने अपने फॉर्म को भी दोबारा हासिल कर लिया है. लेकिन फिर भी कई सारी अड़चनें हैं, जो विश्वकप में भारत की जीत केआड़े आ सकती हैं. सबसे पहले तो टीम इंडिया के प्रदर्शन की बात करते हैं. टीम इंडिया के सामने सबसे बड़ा सवाल क्षेत्ररक्षण है. टीम इंडिया की कमज़ोर कड़ी उसकी फील्डिंग है. कुछ खिलाड़ियों को छोड़कर टीम में फुर्तीले फील्डरों की कमी है. इस कमी की वजह से कई ऐसे मौक़े आए हैं, जबकि टीम इंडिया को जीता हुआ मैच गंवाना पड़ा है. यदि भारतीय टीम अपनी इस कमज़ोरी पर क़ाबू पा ले तो कई सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे. इसके अलावा तेज़ गेंदबाजों का ज़्यादा रन लुटाना भी टीम को नुकसान पहुंचा सकता है. कई अवसरों पर देखा गया है कि जब मैच भारत के पक्ष में जा रहा होता है तो भारतीय बल्लेबाज अति आत्मविश्वासी होकर रन लुटाना शुरू कर देते हैं. नतीजतन टीम इंडिया को इसका खामियाजा हार के रूप में चुकाना पड़ता है. टीम प्रबंधन को तेज़ गेंदबाजी पर काम करने की भी ज़रूरत है.

भारतीय उपमहाद्वीप के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन रहा और ऐसा भव्य उद्घाटन समारोह पहले मैंने कभी नहीं देखा. वन डे वर्ल्डकप आईसीसी का फ्लैगशिप टूर्नामेंट है. इसमें खेलना हर खिलाड़ी का सपना होता है.

- शरद पवार, आईसीसी प्रमुख

इतना का़फी नहीं था कि विश्वकप के लिए टीम इंडिया ने जो रणनीति बनाई थी, वह लीक हो गई. विश्वकप जैसी बड़ी प्रतियोगिता में दबदबा बनाने के लिए हर टीम अपनी एक खास रणनीति बनाती है. ज़ाहिर है, भारत ने भी एक रणनीति बनाई थी. टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और कोच गैरी कर्स्टन ने मिलकर अपनी योजना 150 पेजों के दस्तावेज में दर्ज की है. इस दस्तावेज को धोनी और कर्स्टन ने आओ अपना सपना साकार करें नाम दिया है, लेकिन टीम इंडिया का यह गुप्त दस्तावेज मीडिया में लीक हो गया है. अब इतनी जल्दी कोई नई रणनीति बनाना आसान नहीं है. यह भी किसी हद तक नुकसान पहुंचाने के लिए का़फी है. प्रदर्शन और खेल के मैदान के बाहर फिक्सिंग का काला साया भी मंडराया रहा है, जो समय-समय पर खिलाड़ियों का ध्यान भटकाएगा. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने विश्वकप मैचों के दौरान खिलाड़ियों और अधिकारियों द्वारा सोशल नेटवर्किंग साइट ट्‌वीटर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. यह क़दम फिक्सिंग, खास तौर से स्पॉट फ़िक्सिंग को रोकने के लिए उठाया गया है. आईसीसी की भ्रष्टाचार निरोधक और सुरक्षा इकाई की पहल पर ऐसा किया गया है.


आईसीसी चाहती है कि टी-20 की तरह विश्वकप में कोई भ्रष्टाचार न हो. आईसीसी का यह क़दम खिलाड़ियों और अधिकारियों से संपर्क करने की उन लोगों की कोशिश को रोकना भी है, जो ग़ैर क़ानूनी रूप से सट्टेबाज़ी करते हैं. आईसीसी के  मीडिया मैनेजर जेम्स फ़िट्ज़गेराल्ड के मुताबिक़, विश्वकप के सभी मैचों के दौरान खिलाड़ियों और टीम अधिकारियों के ट्‌वीट करने पर पाबंदी लगा दी गई है.

अब अगर टीम इंडिया को इस बार विश्वकप का खिताब अपने नाम करना है तो इन विवादों से दूर रहने के साथ-साथ अपनी उन सभी कमज़ोरियों की ओर ध्यान देना होगा, जो उसका प्रदर्शन प्रभावित कर सकती हैं.


Tuesday, March 1, 2011

जो जीता वही सिकंदर




जब तक यह आलेख पाठकों तक पहुंचेगा तब तक विश्व कप 2011 का विजेता सामने आ चुका होगा, लेकिन अपने आख़िरी पड़ाव की ओर पहुंच चुके इस महाकुंभ में अब तक जितने भी मैच हुए हैं उनमें किसी भी तरह का रोमांच देखने को नहीं मिला. जैसा कि पहले से ही उम्मीद थी कि आयरलैंड और कनाडा जैसी दूसरी टीमें शुरुआती राउंड से ही बाहर हो जाएंगी, ठीक वैसा ही हुआ. विश्व कप का पहला हफ़्ता बहुत रोमांचक नहीं रहा, जहां क्रिकेट जगत की शीर्ष टीमों और बाक़ी टीमों के बीच का अंतर इतना बड़ा था कि मुक़ाबला एकतरफ़ा होना ही था. सभी टीमें अपना-अपना खाता निपटाकर टूर्नामेंट से बाहर हो चुकी हैं. अब बची वही कुछ चुनिंदा टीमें, जो ज़्यादातर हर विश्वकप में सेमीफाइनल में भिड़ती हैं, मसलन इंडिया, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान. अगर क्रिकेट के जानकारों की मानें तो उपमहाद्वीप से बाहर की किसी भी टीम के लिए विश्व कप जीतना बेहद मुश्किल होगा, क्योंकि यहां की परिस्थितियां ही ऐसी हैं. नीची रहने वाली और धीमी घूमने वाली विकेट में बाहर की किसी भी टीम की गेंदबाज़ी में ऐसा संतुलन नहीं है जिससे कि वह नियमित रूप से मैच जिता सके, लेकिन इसी आधार पर अन्य टीमों की दावेदारी को कमज़ोर नहीं कहा जा सकता है. दरअसल मुश्किल उनको होगी, जिनकी बल्लेबाज़ी में इतना दम नहीं है कि वे शीर्षक्रम के लड़खड़ाने पर संभल सकें. बात अगर मेज़बान देश भारत की बात की जाए तो अब तक मैच देखने के बाद यही अनुमान निकाला जा सकता है कि इसका टॉप ऑर्डर बुरी तऱफ फ्लॉप रहा है. इक्का-दुक्का खिलाड़ियों को छोड़ दिया जाए तो ज़्यादातर मैचों में बल्लेबाज़ तू चल मैं आया की तर्ज़ पर ही खेले हैं. इसी वजह से दक्षिण अफ्रीका के  ख़िला़फभारत का 19 साल बाद वनडे सीरीज जीतने का सपना अधूरा ही रह गया. इसकी सबसे बड़ी वजह टॉप ऑर्डर का फ्लॉप होना रही. इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब भारत नागपुर में खेले गए विश्व कप क्रिकेट के एक मैच में दक्षिण अफ्रीका से तीन विकेट से हार गया. दक्षिण अफ्रीका को जीत के लिए 297 रनों की आवश्यकता थी, जो उसने दो गेंद रहते ही हासिल कर ली. इस विश्व कप में यह भारत की पहली हार थी. इसके बाद भारत का मुक़ाबला वेस्टइंडीज से हुआ. मैच की शुरुआत में तो ऐसा ही लग रहा था यह मैच भी भारत की झोली से चला जाएगा, लेकिन क़िस्मत से टीम इंडिया जीत गई. इसके बाद भारत का मुक़ाबला आस्ट्रेलिया से हुआ और इस मैच को जीतकर भारत ने शानदार वापसी करते हुए किसी हद तक अपनी दावेदारी जता दी है. अब बचता है श्रीलंका. यह एक ऐसी टीम है जिसकी गेंदबाज़ी संतुलित है, मैदान पर खिलाड़ी चुस्त हैं और बल्लेबाज़ी ठोस है. वे किसी भी टीम को चुनौती दे सकते हैं. फ़ाइनल में भारत और श्रीलंका की टक्कर की संभावना पूरी बनती है, बशर्ते दोनों टीमें नॉक आउट दौर में न टकरा जाएं. लेकिन खेल प्रेमियों समेत कई लोगों की इच्छा भारत-पाक के मैच में दिखती है. ऐसे में अब अगर सेमीफ़ाइनल में इन दोनों टीमों के भिड़ने की संभावना हो जाए तब? इस रोचक संभावना से क्रिकेट प्रेमी तो उत्साहित हैं ही, लगता है अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद भी उत्साहित है, क्योंकि हारून लोर्गाट अहमदाबाद में संवाददाता सम्मेलन में आए और उन्होंने क्वार्टर फ़ाइनल मैचों का ज़िक्र शुरू किया तो पहले बोले कि भारत और पाकिस्तान के मैच का विजेता मोहाली में खेलेगा. इससे पहले कि वह आगे बढ़ते उनके साथियों और मीडिया वालों ने उन्हें याद दिलाया कि अभी क्वार्टर फ़ाइनल में ये दोनों टीमें अलग-अलग खेल रही हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट से आईसीसी को काफ़ी मुनाफ़ा होता है और वहां भारत-पाकिस्तान के मैच की तो बात ही क्या होगी, कहीं ऐसा तो नहीं कि नज़र उस मुनाफ़े पर रखे हुए लोर्गाट साहब दिल की बात बोल गए. ख़ैर जो भी हो हालात भारत पाक के साथ ही हैं.  वैसे भारत और पाकिस्तान जैसे देश इस टूर्नामेंट से पिछली बार की तरह जल्दी ही रुख्सत न हो जाएं, इसलिए इस बार ऐसा फ़ॉर्मेट बनाया गया, जहां दोनों टीमें कम से कम क्वार्टर फ़ाइनल तक तो पहुंचे ही जाएं. पिछली बार प्रायोजकों को भारी नुक़सान उठाना पड़ा था, क्योंकि क्रिकेट के बड़े प्रायोजक भारतीय बाज़ार को निशाना बनाते हैं. अब ऐसे में सचिन तेंदुलकर की लोकप्रियता को भी भुनाने का उन्हें मौक़ा मिलता है. इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि विश्वकप में भारत या पाक ़फाइनल तक ज़रूर पहुंचेंगे. पाकिस्तान की गेंदबाज़ी उन तमाम झटकों के बाद जिन्होंने उसकी धार को कुंद किया है, मज़बूत लगती है, लेकिन तब क्या उसकी टीम नियमित तौर पर बड़े स्कोर कर सकेगी? इस पर संदेह है. ऐसे में बचते हैं केवल दो मुख्य दावेदार और उनके दावे को पहले हफ़्ते के उनके प्रदर्शन से और बल मिलता है. भारत की बल्लेबाज़ी, ऐसी परिस्थितियों में जिससे वह भली-भांति परिचित है, वह देखने में ही डरानेवाली और ठोस लगती है. अगर उसका ऊपरी और मध्य क्रम नहीं बैठा, जिसकी संभावना ऐसे विकेटों पर कम ही है तो खिला़डी निर्दयी होकर खेलेंगे.

और उनके पास ऐसे धीमी गति के गेंदबाज़ हैं जो किसी भी टीम की बल्लेबाज़ी का कचूमर निकाल सकते हैं. फिर भी, उनका कमज़ोर-तेज़ आक्रमण, मैदान पर सुस्त हाव-भाव और अपेक्षाओं के दबाव का सामना करने की टीम की क्षमता चिंता की वजह होनी चाहिए.इसके अलावा एक और बात यह कि यह विश्वकप सचिन और पॉन्टिग का आख़िरी विश्वकप माना जा रहा है. हालांकि रिकी इस बात से इंकार करते हैं कि वह विश्वकप के बाद संन्यास ले लेंगे. रिकी से संवाददाताओं ने पूछा कि विश्व कप जैसे मुक़ाबले में सचिन और पॉन्टिंग आख़िरी बार आमने-सामने होंगे तो वह बातों ही बातों में सचिन की तारीफ़ कर गए. बोले, जहां तक हमारे अंतिम विश्व कप की बात है तो सचिन जिस फ़ॉर्म में हैं वह तो अभी एक और विश्व कप खेल सकते हैं. मैं उम्मीद कर रहा हूं कि अगले मैच से मैं भी फ़ॉर्म में लौटूंगा और अगले विश्व कप तक खेल सकूंगा. वैसे सचिन के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 99 शतक हो चुके हैं और किसी भी मैच में वह शतकों का शतक जड़ सकते हैं. उनके प्रशंसकों को भी हर मैच से पहले बेसब्री से सचिन के  उस 100वें शतक का इंतज़ार रहता है. उपरोक्त विश्लेषण और आंकड़े बताते हैं कि विश्कप के असली मुक़ाबले अभी बाकी हैं और टीमों  का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी. एक ओर जहां जानकार मेज़बानों की दावेदारी मज़बूत बता रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर बाक़ी टीमों का प्रदर्शन बोल रहा है कि वे किसी भी वक्त तख्ता पलट सकते हैं. ख़ैर 2 अप्रैल का फाइनल मैच इन सब कवायदों का जवाब दे देगा.