भारत में क्रिकेट को वह दर्जा हासिल है, जो किसी भी देश के राष्ट्रीय खेल को हासिल नहीं होता. जब बात विश्वकप की हो तो यह किसी महाकुंभ से कम नहीं होता. एक ऐसा महाकुंभ, जिसमें दुनिया भर की टीमें ज़रूर शामिल होती हैं, लेकिन जो क्रेज़ भारतीय दर्शकों में दिखाई देता है, वह कहीं और नहीं. ज़ाहिर है, इतने बड़े महाकुंभ के आगाज़ से लेकर अंजाम तक कई दिलचस्प बातें हमें देखने-सुनने को मिलती हैं, लेकिन कुछ यादें ऐसी भी होती हैं, जो क्रिकेट प्रेमियों के जेहन में ऐसे निशान छोड़ जाती हैं, जो शायद ही कभी मिटते हों. कुछ यादें गुदगुदाती हैं तो कुछ चेहरे पर शिकन छोड़ जाती हैं. इस अंक में हम आपको अब तक हुए सभी विश्वकप की कुछ ऐसी ही रोचक और कड़वी यादों से रूबरू करा रहे हैं.
बहरहाल पाकिस्तानी खिलाड़ियों को इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई और जमैका पुलिस ने यह कहकर मामला बंद कर दिया कि बॉब वूल्मर की मौत सामान्य थी और उनकी हत्या नहीं की गई थी. तरह-तरह की अफ़वाहें फैलीं और पूरे उपमहाद्वीप की दिलचस्पी क्रिकेट विश्वकप में कम हो गई, क्योंकि पसंद की टीमें तो बाहर ही हो चुकी थीं. फिर भी जब कभी 2007 के विश्वकप की बात होगी, लोगों के मन में यह सवाल ज़रूर उभरेगा कि भारत और पाकिस्तान की टीमों ने कहीं मैच तो नहीं फ़िक्स किया था.
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि लॉयड ने मैच जीतने के लिए कैच छोड़ा था. वेस्टइंडीज़ ने इंग्लैंड के सामने 293 रनों का लक्ष्य रखा था. रिचर्ड्स ने आख़िरी गेंद पर छक्का लगाया था. इंग्लैंड ने जवाब में धीमी शुरुआत की और बॉयकॉट ने दोहरे अंक तक पहुंचने के लिए 17 ओवर ले लिए. एक बार वह रिचर्ड्स की गेंद पर शॉट लगाने के लिए बाहर निकले तो ग़लत खेल गए और कप्तान लॉयड ने उस आसान से कैच को छोड़ दिया. उससे पहले दूसरी तरफ़ खेल रहे ब्रियरली का कैच भी वह छोड़ चुके थे. रिचर्ड्स को लॉयड ने जब बताया कि उन्होंने जानबूझ कर कैच छोड़ा था तो उन्हें चैन मिला. लॉयड के मुताबिक़, हम दिन भर उन दोनों को खेलते देख सकते थे, क्योंकि जितने ओवर वे खेल रहे थे, उतनी कीलें उनके ताबूत में लग रही थीं. बहरहाल लॉयड ने बाद में कहा कि उन्होंने जानबूझ कर कैच नहीं छोड़ा था, क्योंकि यह मैच जीतने की एक ख़राब तकनीक थी.
ऐसी ही एक और दिलचस्प घटना पहले विश्वकप की है. पाकिस्तान और वेस्टइंडीज़ के बीच मैच था. पाकिस्तान ने सात विकेट पर 266 रन बनाए थे. माजिद ख़ान, मुश्ताक़ मोहम्मद और वसीम राजा ने अर्द्ध शतक लगाए थे. जब वेस्टइंडीज़ की पारी शुरू हुई तो सरफ़राज़ नवाज़ की तूफ़ानी गेंदबाज़ी के सामने वेस्टइंडीज़ का कोई खिलाड़ी जमकर नहीं खेल सका. 166 रनों पर वेस्टइंडीज़ का आठवां विकेट गिर चुका था. वेस्टइंडीज़ लगभग मैच हार चुकी थी. अपील पर अपील जारी थी कि 203 रनों पर नवां विकेट गिर गया और होल्डर का विकेट भी सरफ़राज़ ने ले लिया. सातवें नंबर पर बल्लेबाज़ी करने आए डेरेक मरे सिर्फ़ टिके हुए थे और उनका साथ दे रहे थे एंडी रॉबर्ट्स और दोनों ने मिलकर आख़िरी विकेट के लिए 64 रनों की नाबाद पारी खेली. इस तरह से पाकिस्तान सेमी फ़ाइनल में प्रवेश करने से रह गया और वेस्टइंडीज़ ने आगे चलकर विश्वकप में ख़िताबी जीत हासिल की. डेरेक मरे की वह पारी वनडे में उनकी बेहतरीन पारी रही और दसवें विकेट की वह विश्वकप की सबसे बड़ी साझेदारी रही, लेकिन पाकिस्तान को दो गेंद रहते इस मैच का हारना बहुत दिनों तक सालता रहा.
1992 के विश्वकप में पहली बार दक्षिण अफ्रीका की टीम प्रतिबंध के बाद उतरी थी, जिससे क्रिकेट जगत में एक नया उत्साह था और दूसरी टीमों में एक तरह का संकोच भी था कि न जाने उनकी टीम कैसी है. दक्षिण अफ्रीका ने धमाकेदार खेल दिखाया और सेमी फ़ाइनल में प्रवेश किया. विवाद की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आ रही थी, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के मौसम और क्रिकेट के डकवर्थ लुइस नियम ने दक्षिण अफ्रीका को जो नुक़सान पहुंचाया, उसे कोई नहीं भूला. इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका का मैच था. खेल 10 मिनट देर से शुरू हुआ और लंच में से यह समय काट लिया गया, लेकिन कोई ओवर नहीं काटा गया. उसके बाद स्थानीय समयानुसार जब इंग्लैंड की पारी 6.10 तक ख़त्म नहीं हो सकी तो उसकी पारी में से ओवर कम कर दिए गए और मैच हो गया 45 ओवरों का, जिसमें इंग्लैंड ने 252 रन बनाए. दक्षिण अफ्रीका ने खेल शुरू किया और वह 42.5 ओवरों में छह विकेट के नुक़सान पर 231 रनों पर पहुंच गया. लेकिन फिर डकवर्थ लुइस नियम लागू हुआ और जब दोबारा खेल शुरू हुआ तो दक्षिण अफ्रीका को एक गेंद पर 21 रन बनाने थे और स्कोर बोर्ड पर जब यह लिखा आया तो पता चला कि दक्षिण अफ्रीका मैच हार चुका है, बस औपचारिकता ही बची है. दक्षिण अफ्रीका इतिहास रचने से वंचित हो चुका था.
एक और घटना. जावेद मियांदाद और विवाद एक-दूसरे के पर्याय बन चुके थे. बात है 1992 के विश्वकप में भारत-पाकिस्तान मैच की. यह एक तथ्य है कि विश्वकप में पाकिस्तान भारत से कभी नहीं जीता, हालांकि ज़्यादा मैच जीतने का रिकार्ड पाकिस्तान के नाम है. जब इन दोनों देशों के बीच मैच हो रहा होता है तो खिलाड़ी ज़बरदस्त दबाव में रहते हैं. यहां तक कि दर्शकों में भी यह दबाव महसूस किया जाता है. यह विश्वकप का 16वां मैच था. भारत ने 49 ओवरों में सात विकेट पर 216 रन बनाए थे और पाकिस्तान के लिए लक्ष्य हासिल करना ज़्यादा मुश्किल नहीं था. आमिर सुहैल और जावेद मियांदाद ने पाकिस्तान का स्कोर दो विकेटों के नुक़सान पर 100 के पार पहुंचा दिया था, फिर अचानक पाकिस्तान के विकेट गिरने शुरू हो गए. मोरे विकेट के पीछे बार-बार उछल-उछल कर अपील कर रहे थे. मियांदाद पर दबाव बढ़ता जा रहा था और उसे ख़त्म करने के लिए अचानक मियांदाद ने मोरे से कुछ कहा और फिर मोरे की तरह कूद कर नक़ल उतारने लगे. ऐसा दृश्य पहले किसी ने नहीं देखा था. पश्चिमी मीडिया ने दूसरे दिन जंपिंग जावेद के नाम से ख़बर छापी. 1996 का विश्वकप भी कई मायनों में विवादों भरा रहा, क्योंकि ऑस्ट्रेलिया ने सुरक्षा कारणों से श्रीलंका जाने से इंकार कर दिया और श्रीलंका को बिना मैच खेले ही विजयी घोषित कर दिया गया. बहरहाल श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया की फ़ाइनल में लाहौर में भिड़ंत हुई और श्रीलंका ने आसानी के साथ विश्वकप जीत लिया.
बात 1999 के विश्वकप की. दक्षिण अफ्रीका ने भारत के विरुद्ध अपने पहले मैच में रेडियो सिस्टम का प्रयोग किया. उसके कप्तान और तेज़ गेंदबाज़ एलन डोनाल्ड के पास माइक्रोफ़ोन थे और वह पवेलियन में मौजूद अपने कोच बॉब वूल्मर के साथ जुड़े हुए थे. बॉब उन दोनों को ड्रेसिंग रूम से ही गाइड कर रहे थे. पानी के लिए हुए ब्रेक में मैच रेफ़री बीच में आया और बाद में आईसीसी ने उस तरीक़े को अपनाने का विरोध कर उससे खड़े विवाद को ख़त्म कर दिया. 2007 का विश्वकप क्रिकेट की सबसे दुखद घटना का साक्षी है. पाकिस्तान के दक्षिण अफ्रीकी कोच बॉब वूल्मर होटल में अपने कमरे में मृत पाए गए और वह भी पाकिस्तान की शर्मनाक हार और विश्वकप से विदाई की रात को. इससे पहले ही पाकिस्तान पर मैच फ़िक्सिंग का आरोप था और कई खिलाड़ियों को सज़ा भी दी गई थी. जमैका पुलिस ने हत्या का संदेह ज़ाहिर किया, पाकिस्तानी खिलाड़ियों के मैच फ़िक्सिंग में फंसे होने की आशंका जताई जाने लगी और उनसे
अलग-अलग पूछताछ होने लगी. दूसरी ओर भारत भी बांग्लादेश से मैच हारकर विश्वकप के पहले दौर से ही बाहर हो गया और वह भी ऐसे समय में, जबकि उसे विश्वकप का दावेदार माना जा रहा था. बहरहाल पाकिस्तानी खिलाड़ियों को इस मामले में क्लीन चिट दे दी गई और जमैका पुलिस ने यह कहकर मामला बंद कर दिया कि बॉब वूल्मर की मौत सामान्य थी और उनकी हत्या नहीं की गई थी. तरह-तरह की अफ़वाहें फैलीं और पूरे उपमहाद्वीप की दिलचस्पी क्रिकेट विश्वकप में कम हो गई, क्योंकि पसंद की टीमें तो बाहर ही हो चुकी थीं. फिर भी जब कभी 2007 के विश्वकप की बात होगी, लोगों के मन में यह सवाल ज़रूर उभरेगा कि भारत और पाकिस्तान की टीमों ने कहीं मैच तो नहीं फ़िक्स किया था.
टॉप टेन फ्लैशबैक
1. विश्वकप की शानदार पारियों में से एक 1983 में कपिल देव की 175 रनों की नाबाद पारी की न वीडियो रिकॉर्डिंग मौजूद है और न ऑडियो कमेंट्री. बताते हैं कि कैमरामैन हड़ताल पर थे.
2. विश्वकप में सबसे स्लो स्पीड से रन बनाने का रिकॉर्ड सुनील गावस्कर के नाम है. उन्होंने वर्ष 1975 के पहले विश्वकप में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 174 गेंदों का सामना करते हुए सिर्फ़ 36 रन बनाए थे. इसमें उनका सिर्फ़ एक चौका शामिल था. उस समय 60-60 ओवरों का मैच होता था.
3. एक ही विश्वकप में सबसे ज़्यादा शून्य पर आउट होने का (चार बार) रिकॉर्ड एबी डीवेलियर्स (दक्षिण अफ्रीका) के नाम है.
4. पहले तीनों विश्वकप इंग्लैंड में आयोजित हुए थे.
5. विवियन रिचर्ड्स ऐसे अकेले क्रिकेटर हैं, जिन्होंने विश्वकप क्रिकेट के साथ-साथ विश्वकप फुटबॉल में भी हिस्सा लिया. वह विश्वकप फुटबॉल में एंटिगा की ओर से खेले थे.
6. 1996 के विश्वकप में ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज़ ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए श्रीलंका में खेलने से इंकार कर दिया. ये दोनों मैच श्रीलंका के हक़ में गए. इसी विश्वकप के सेमी फ़ाइनल में भारत और श्रीलंका के बीच मुक़ाबला हुआ, लेकिन दर्शकों के ख़राब व्यवहार के कारण यह मैच भी श्रीलंका की झोली में गया. हालांकि श्रीलंका का उस समय जीतना तय था.
7. एंडरसन कमिंस ने वर्ष 1992 में वेस्टइंडीज़ और वर्ष 2007 में कनाडा की ओर से विश्वकप खेला. उनसे पहले कैपलर वेसल्स ने वर्ष 1983 में ऑस्ट्रेलिया और 1992 में दक्षिण अफ्रीका की ओर से विश्वकप के मैच खेले.
8. किसी भी विश्वकप में सबसे ज़्यादा बार शून्य पर आउट होने का रिकॉर्ड न्यूज़ीलैंड के नाथन एस्टल और एजाज़ अहमद के नाम दर्ज है. दोनों खिलाड़ी पांच-पांच बार शून्य पर आउट हो चुके हैं.
9. दक्षिण अफ्रीका के हर्शेल गिब्स विश्वकप के एक मैच में एक ओवर में छह छक्के मारने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं. यह कारनामा उन्होंने 2007 के विश्वकप में नीदरलैंड के ख़िलाफ़ किया था.
10. इतिहास में सबसे कम स्कोर वाला विश्वकप वर्ष 1979 का था. इसमें सिर्फ़ दो शतक लगे थे.